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( ६० ) शंतपदी भाषांतर.
विचार ३५ मो. प्रश्नः-दिवसनी अंदर वारंवार सामायिक कर, केम नथी मानता?
उत्तर:-आवश्यकनियुक्तिमां अनवस्थित सामायिक करवानी ना पाडेल छे माटे सांजसवार बे टाणेज सामायिक कर, जोइये.
वळी आवश्यकवृत्तिमा स्मृतिअकरणता तथा अनवस्थितता रूप अतिचारनो अर्थ एवो लख्यो छे के स्मृति अकरणता एटले कई वेलाए सामायिक कर, ते न संभारे, अने मरजी प्रमाणे (अनियत वेलाए) सामायिक करे ते अनवस्थितता. एज रीते उपासकदशानी वृत्ति, पंचाशकनी वृत्ति, श्रावकमज्ञप्तिसूत्र; तथा तेनी टीका, तथा योगशास्त्रनी टीकामां लख्युं छे.. वळी सामायिक प्रतिमामां पण वेवखतज सामायिक करबुं कर्तुं छे.
कोइ कहेशे के "सामाइयंमि उ कए" तथा "जीको पमायबहुलो" ए गाथामां "बहुसो सामाइयं कुज्जा" एटले घणीवार सामायिक कर, लख्युं छे ते केम ? तेनुं ए उत्तर छे के आ बाबत आवश्यकचूर्णिमां आ प्रमाणे संबंध लख्यो छे के "देश सामायिकथी सर्वसामायिक उत्तम छे. माटे तेज करवू श्रेष्ट छे. पण ते करवा जे असमर्थ होय तेणे देशसामायिक पण बहुवार करवू. जे माटे कयुं छे के सामायिक कर्याथी श्रावक श्रमण जेवो थाय छे. माटे बहुवार सामायिक करवू तथा जीव बहुलप्रमादी अने घणी वेळा घणा कामोमां व्याकुल होय छे माटे पण बहुवार सामायिक करवू., आ चूर्णिकारना लखाण ऊपरथी एम जणाय छे के साधु पोताना जन्ममां. एक वखतेज सर्व सामायिक करे छे. अने श्रावक पोताना जन्ममों वहुवार देशसामायिक करे छे. माटे इहां