Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 16
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 399
________________ // 377 // // 378 // // 379 // // 380 // // 381 // // 382 // जिणवल्लहो अ चेइअनिवासिनिस्साइ वट्टमाणो वि। कहमंतरा पविट्ठो पट्टधरतेण सूरिपए ? एवं जिणवल्लहओ पुब्विं पिअ पट्टसूरिणो तेसिं। .. जं उज्जोअणसूरी पुव्विं भेए वि कहमिक्को ? पायं जिणदत्तमए आयारो एस अण्णहा लिहणं / तं पि अ कत्थ वि ऊणं अहिअंवा अहव विवरीअं नणु जिणवल्लहसूरी पसंसिओ तुम्ह पुव्वसूरीहि / तेणं तद्दोसवयं अलिअं न विअ त्ति वत्तव्वं जिनवल्लहो अ सूरी पसंसिओ जो अ पुव्वसूरीहिं। सो खरयरअंगिकया भिन्नो नियमेण विण्णेओ जं तस्स रामदेवो सीसो छास चुण्णिकारो अ। कल्लाणगसंथवणे पंचेव जिणिंदवीरस्स सो अभयदेवसीसो संभोई अहव सम्मओ समए / तेणं तक्कयपग़रणपमुहं पि पमाणपय तं .. खरयरमयस्स सीसो नासी आसी व सो अ गुरुबंधू / जिणसेहरनामेणं न सम्मओ वंचिओ अहवा अण्णह तप्पट्टधरो जिणदत्तो कहणु तम्मि संतम्मि? / संभोगी गुरुबंधू जोग्गोऽजोग्गो व संभवइ खरयरमयजिणवल्लहसंताणं जइ हविज्ज ता नूणं / रुद्दोलिओ अ जम्हा जाओ जिणसेहरो मूलं जिणवइसूरी खरयरमयमेराकरणसुत्तहारसमो। . जह जिणसमए मेराकारो वयरो अ सुत्तेसु जह वयरसामिसुकया मेरा सुमया पि सासणे चेव। तह तम्मयकयमेरा तम्मयवासीण नन्नेसि / 360 // 383 // // 384 // // 385 // // 386 // // 387 // // 388 //

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