Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 16
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 401
________________ एएणं तुम्हाणं गंथे भणि ति वयणमवऽजुत्तं / / अणभोगो वि पमाणीकओ अ हुज्जा अभिणिवेसो // 401 // तम्हा तम्मयलिहिअं तप्पडिमं अहव लिहिअमण्णेणं / . . . उभयं पि अप्पमाणं जमभिणिवेसा अणाभोगा .. // 402 // सव्वेहिं कुवखेहि अ निब्भंतो खरयरो सहावेणं। जिब्भादोसदुगेणं भासणभक्खणसरूवेणं // 403 // उस्सुत्तं भासित्ता दिज्जा अलिअंपि सम्मई मूढो / पज्जूसिअविदलाई भक्खंतो भणइ मुणिमप्पं // 404 // अह पायं बहु खायं खरयरवयणाओ खरयरो सूरी। नवअंगिवित्तिकारो तमसच्चं भिन्नमवि वोच्छं // 405 // जइ सिरिजिणेसरो सो खरयरनामेण होइ सुपसिद्धो। ता कहमम्हायरिआ खरयरनामेण धिक्कुज्जा // 406 // पभणंता वि पभावयचरिएऽभयदेवहेमचंदाई। उस्सुत्तमग्गवडिओ पभावगो होइ न विरोहा // 407 // एएण कोइ मूढो मच्छरगसिओ हु होइ वायालो / अब्भासवत्तिओ वा नेहंतो तम्मि मुहरि सिआ एसो न दूसिअव्वो न दूसिओ जेण पुव्वसूरीहिं। सो वि मुहमुद्दिओ खलु आणाभंगाइवयणेहिं // 409 // जं पुण परूवणाए भेओऽभयदेववल्लहाणं पि। वल्लहजिणदत्ताणं तमणंतर वुच्छमुस्सुत्ते // 410 // अह उस्सुत्तं दुविहं किरिआविसयं च वयणविसयं च।. किरिआविसयं तिविहं दुविहं पुण वयणविसयं ति // 411 / / अहिअं ऊणं अजहट्ठाणं चुस्सुत्तमेव किरिआहिं। उम्मग्गदेसणामग्गनासणेहिं दुहा वयणं // 412 // 32 // 408 //

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