Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 16
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 667 // // 668 // // 669 // // 670 // // 671 // विश्राम -8 अह पडिमा पडिवक्खं कुमयं उवएसवेसमहिगिच्च / जह जायं तह वोच्छं कुच्छाण वि कुच्छणिज्जंति विक्कमओ अट्टत्तपन्नरससएहि पावउवएसो। लुंपगलिहगो मूलं तस्स वि तस्सेवमुप्पत्ती न य तित्थाउ अणंतरपरंपरानिग्गयं पि कुमयमिणं / किंतु अकम्हा मिच्छादिट्ठिसगासा सयंभूअं इह एगो नामेणं लुंपगलिहगो वि गुज्जरत्ताए। लोहेणंतरपत्तं छड्डिअ सिद्धतमालिहई मुणिवयणचोअणाए रुसिओ ऊससिअ भणइ दुव्वयणं / तुम्हं भिक्खुच्छेअं करेमि ता होमि जाओम्मि इअ कयपइण्णचिंतापरेण पावेण तेण पयडिकयं / . कुमयं निअनामेणं पावाणं पावकम्मुदया . पडिमापूआदोसं भासइ हिंसाइ मुहरमुहवयणो। . जीवदया खलु धम्मो जिणभणिउ त्ति मुहमंगलिओ तस्स वि एगो मंती नामेण लंखमसीति सम्मिलिओ। दो वि उवएसमित्ता कडुउव्व पब्वट्टिआ पावा पणवीसं वासाइं लिंगीहिं विरहिअं पि वुड्डिगयं / तेतीसुत्तरपनरससएहिं वरिसेहिं वेसहरा. तेसुवि भाणगनामा पढमो मूढो वि तम्मि वेसहरो। सयमेव गहिअवेसं वेसो वि अ साहुवेसद्धं वेसद्धं पुण तित्थाफासस्स वि होइ चिन्धमिह पयडं। जह निवणुगारकलिओ नडो व राया व रयपव्वे // 672 // // 673 // // 674 // // 675 // // 676 // // 677 // 415
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