Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 16
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ // 786 // // 787 // // 788 // // 789 // णणु जिणआणादेसो दव्वथओ सव्वहा य भावथओ। ता देसाणाखंडणंरूवो दव्वत्थओ जाओ एवं कुवक्खिआणं पंक्खो वि अ देसखंडणारूवो। तत्थ वि एगो मग्गो तन्नो त्ति निमित्तमिह भणह ? जीवो अणाइआसवपहवडिओ दुब्बलो अ कम्मवसा। पडिवज्जिअ जिणआणं सणि सणि तमोसरई एवं सो सावओ खलु जिणआणाराहगो न निण्हागो।। मूलाओ जिणआणापरम्मुहो दुम्मुहो लोए जम्हा जिणिदठविअंतित्थं अच्छिन्नमेव चइऊणं। तप्पडिवक्खपवत्ती जिणुत्तमिति अलिअवयणेणं / जह रण्णो तिण्णि नरा भत्तिनिमित्तं पभायकालम्मि / पइदिणपणामकिरिआ चिटुंति अ चारुचेंट्ठा वि तत्थ वि एगो विउलं कोसलिअं ढोइऊण पणमिज्जा। जहसत्तीए तुट्ठो राया वि य तं पंसीइज्जा बीओ सत्तिअभावा पाहुडविगलो वि भत्तिसंजुत्तो। पणमिज्जा रायाणं तं पि अ राया पसीइज्जा तइओ रण्णो कोसा अवहरिउं सारसावज्जाइं। तत्तो किंचि वि पाहुडपुव्वं पणमेइ पावमई . // 790 // // 791 // // 792 // // 793 // // 794 // // 795 // लोए वि निंदणिज्जो नीआण वि नीअवयणेहिं एवं पढमे साहू बीए सड्ढो अ संगई दुण्हं / तइए दुग्गइसूलाजोग्गो उस्सुत्तपहरसिओ जं सो जिणिदकोसा तित्थाओ अवहरित्तु कंइजणयं / कोसिगदेसं पाहुडकप्पं कप्पंति थुइपमुहं // 796 // // 797 // 425
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/e890ac662e229232f1c0e77bb165c0bfeef4b61a25d5be7064393e0ee6ff4ed0.jpg)
Page Navigation
1 ... 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458