Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 16
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 425
________________ // 678 // // 679 // // 680 // // 681 // // 682 // // 683 // इअ पडिमारूप्पत्ती उवएसा वेसओ अ दोभेआ। लिहगा तित्थस्सद्धाभासो इअराऽखिलाभासो एअं खलु अच्छेरं तित्थाफासी वि तित्थआभासो। जाओ जणविक्खाओ जमणंता कालओ भावी अच्छेरं पुण एवं अस्संभवि संभवेइ जं लोए। कालेण अणंतेण वि जह मरुदेवीइ सिद्धत्तं उवसग्गगब्भहरणप्पमुहा अच्छेरगा वि दस समए / भणिआ तत्थ वि दसपयमुवलक्खणपरमिहं भणिअं अण्णह संपइरायप्पमुहेहिँ कराविआ य जिणभवणा। पच्चक्खं दीसंता कह लोविजंति पावेहिं ? आगमओ बलवंता आगमववहारिधम्मउवएसा / सावयणिम्मविआ जिणपासाया पच्चयट्ठाए' मइदोसा सद्दत्थं होइ समत्थो वि अण्णहा वोत्तुं / जह चेइअसद्दत्थं साहु त्ति भणइ मइमूढो . नामजुओ सिद्धंतो नामागारेहिं होइ जिणपडिमा / .. तम्हा खलु सिद्धता जिणपडिमा होइ बलवंती जह वयणा वयणठिआ लिहिआगारेण वयणमिह बलवं / लिहिएण य लोविज्जइ भासिअवयणं ति जगवाओ बलवंतबिंबलोवे बलवंतं कारणं पि कप्पिज्जं / तं खलु अच्छेराओ नन्नं सन्नीण मइविसओ बलवत्तं साविक्खं साविक्खं चेव दुब्बलत्तं पि। पभणिस्सं पडिमाणं तस्सुवएसाहिगारम्मि तत्तो वि अ बलवंते तित्थे संतम्मि नत्थि सिद्धते / जिणपडिमाइ अचित्तं वुच्चंतो दंतवंतमुहो - // 684 // // 685 // // 686 // // 687 // // 688 // // 689 // 416

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