Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 16
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 647 // // 648 // // 649 // // 650 // // 651 // // 52 // इअ चिंतापरतंतो जिणभत्तो हेमचंदसूरिवरो। आराहिअ सुअदेवि जाओ कलिकालसव्वण्णू राया कुमारपालो निम्मविओ तेण परमसंविग्गो। अज्ज वि कित्तिपयाया पवयणपासायसिहरम्मि नणु सीहूणमजुत्तं आराहण मंतदेवयाईणं / जं सड्डाण वि समए पडिसिद्धं जक्खनिस्साई इअ चे किं तइअंगं पडिवक्खं किंच सूरिहरिभद्दो / सिरिभद्दबाहुपमुहा अबुहा जं तेहिं तं भणिअं जीइ सहायत्तणओ पहावगा पवयणस्स संजाया। तं पि भणेइ वराइं वरायमुहरी वि उम्मत्तो जं जक्खाइसहायाभावो भणिओ अ सावयाणं पि / तं धम्मम्मि दढत्तं निदंसिउं दंसिआ समए तिनं निमितं हंसिआ समा जह जिअपरीसहा खलु अरिहंता साहुणो अ(व) जंता / निच्चं तुववासजुआ भण्णइ न विरोहगंधो वि अहवा रयहरणाइअउवगरणे धम्मसाहणे संते / मुणिणो अकिंचणा ते भणिआ वीरेण धीरेण तह जक्खाइसहायाभावे धम्मे वि हुंतु दढचित्ता / आणाए सुअदेवीपमुहाण सहायमिच्छंति इहलोइअट्ठतुट्ठा किंचि वि नेच्छंति जक्खपमुहेहिं / तेणं वा तन्निस्सारहिआ भणिआ. य धम्मरया मुअखित्तदेवयाईउस्सग्गो नेव तत्थ पडिसिद्धो / जणं तं. जिणआणा आणारहिअम्मि सो निअमो तेणं पवयणअट्ठा सम्मद्दिट्ठीण देवयाईणं / आराहणमविरुद्धं जह सत्तमनिण्हगट्ठाए .413 // 653 // // 654 // // 655 // // 656 // // 657 // // 658 //
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