Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 16
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 567 // 568 // // 569 // // 570 // . // 571 / / // 572 // उस्सुत्तं पुण पयडं पढमं मुहपोइआइ पडिसेहो। जुत्ती जइलिंगं तं णो जुत्तं सावयाण भवे . . पोत्तिअमित्तेणं जइ लिगं किं नाम नेह सामइए। समणो इव त्ति समए भणिओ वि जओ जिणिदेहि मुणिजणअंगीकरणा लिङ्ग जइ सुद्धसद्दहणमाई। अब्भंतरमवि बझं अरिहनमुक्कारमाईणि सामाइअम्मि उ कए समणो इव सावओ हवइ जम्हा। इअवयणा मुणिलिंगं कहंचि न विरुद्धमिह समए धम्मोवगरणरहिओ कयसामइओ वि अकयसामइओ। ववहारनए साहु जह लिंगायारपरिचत्तो उवगरणे पुण तुल्लं भणिअं समणेहिं सावयाणं पि। . अणुओगाइसु आवस्सयकिरिआसाहणम्मि फुडं तह पण्हावागरणे संवरदारम्मि आइमे पूआ। मुहणंतयपमुहेहिं सड्ढाणमणेसणाहेऊ उवगरणे पडिसिद्धे पडिसिद्ध सावयाण पडिकमणं / विवरीअं पडिसेहं केइ वि बहुकालअंतरिअं पज्जोसवणापुव्वं चउथिदिणे सयवईइ वयणाओ। जं आयरणाहरणं पज्जोसवणाचउत्थीए एगुणवण्णदिणेहिं पज्जोसवणावि तम्मए तेणं / अभिवड्ढिए वि सावणभद्दवए सावणाइम्मि चित्ताइअम्मि वुड्ढे पज्जोसवणा वि वीसइदिणेहि / अभिवड्ढिअम्मि वीसा इच्चाइअमागमं भणइ जं पुण पंचमिदिवसे पज्जोसवणा वि संपई तेसिं। तं अड्ढजरइणायं संपत्तं पावकुमयम्मि . 401 // 573 // // 574 // // 575 // // 576 // // 577 // // 578 //
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