Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 16
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ जं पुण वीसदिणेहिं पज्जोसवणाऽभिवड्ढिए वरिसे / तं तित्थबज्झबज्झो सयं ति पच्चायणट्ठाए // 603 // जंतं साभिग्गहिअं पंचगहाणीइ जाव पंचासा / अभिवड्ढिए उ वीसा निअमाभावेण मुणिवयणं // 604 // तत्तो वि परं नियमं भासंतो नाहिगरणदोसमुणी। इअ भासगाहअत्थो चुण्णीए वण्णिओ पयडो // 605 // जं पुण पज्जोसवणा पव्वं सव्वेसि सम्मयं समए / तं भद्दवए मासे चउथिदिणे नन्नहा मेरा // 606 // संपइ पंचगहाणिपमुहविही संघवयणओ छिनो। साभिग्गहगिहिणायं उभयं पि अ भद्दवइ भदं // 607 // किं चागमंमऽणुत्तं तित्थाणुमयं पि तत्थ अहछंदो। एअं सुंदरमेवं नेवं ति मई महापावं // 608 // जं जं जेणं जेणं रूवेणं तित्थसम्मयं समए। . तं तेणं सरूवेणं रीअंतो तित्थमज्झत्थो तित्थाओ विवरीअं थणिअमयं तं थणिअविवरीअं। एवं पि धम्मपिम्मं निक्कारणकज्जउप्पत्ती / // 610 // तम्हा तित्थं चइडं तित्थाहिअमभिनिवेस महपावं / चइऊणमण्णउत्थिअतित्थासयणं परं सेअं // 611 // जह नाम कोइ दुहगो चिच्चाऽमियभायणं तु महुरं पि / विसमवि चइउं चउरो भक्खंतो मिच्छकंदाइ // 612 // तेणेव जिणवरेणं जइलिंगधरो अकज्जकज्जकरो। तम्हा चइउं लिंगं सुसावगो सुंदरो भणिओ // 613 // पुण्णिमपक्खिअपच्छाइरिआपमुहाई जाइ इअराई / ताई चिअ तिअ (तियचउ) विस्सामुत्ताइं इहं पि नेआई // 614 / / 400 // 609 //
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