Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 16
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 406
________________ // 461 // // 462 // // 463 // // 464 // // 465 // // 466 // जं उक्कालिअसंगरजलतरिआ दीसई फुडं णेहो / बक्खुप्फासणविसओं पच्चक्खं चक्खुमंताणं चंदोलावत्तीए भणि भणिअं च संगरं विदलं / बवयणसारोद्धारो संगरिमाइम्मि अप्पडिए खलु अज्जप्पभिइ तव्वयणविसारओ न को होही। हम मुणिऊणं लिहिअं मूढमणेणेव तरुणु व्व तवित्तीए संगरपमुहापडिए वि उत्तरूवदहि। विगइगयं विण्णेअं तप्पडिए पुण भवे नियमा बं जम्मि उ अप्पडिए विगइगयं तं च तम्मि पडिअम्मि। तप्पडिवक्खी विगई जह घयपडणे तहा भूअं नेवं संगरिपडणे विगइगयं कि पि हुज्ज विगई वि। तेणं तप्पडिए विअ वक्खाणे पवयणे मेरा जंजं विगइगयं खलु तं सव्वं निविअम्मि कप्पंति / जो निअमो जिणसमए महुमंसाईण तब्भावा ता कहमभक्खसंकं भाविअ विदलं ति संगरिप्पमुहं / माणंदसूरिवयणा लिहिअं संदेहदोलाए एवं खरयरकुमए छव्विहमुस्सुत्तमहिअमिह वुत्तं / तं पायं बहुवायं अण्णं पि इमाई जुत्तीए अह ऊणं उस्सुत्तं किरिआरूवंऽपणेगहा तेसिं। तत्थ वि जं बहुखायं किंचि पवक्खामि जह णायं बीजिणपुअनिसेहो पोसहपडिसेहणं अपव्वम्मि। पोसहभोअणंचाओ सावयपडिमाणमुच्छेओ समणाणं समणीहि समं विहारो जिणाण नाण त्ति / मासंकप्पविहारो न संपयं ऊणमुस्सुत्तं ___ 360 // 467 // // 468 // // 469 // // 470 // // 471 // // 472 //

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