Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 16
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 408
________________ // 485 // // 486 // // 487 // // 488 // // 489 // // 490 // कारणनिसेहणेणं कज्जं पि निसेहिअं हवइ नियमा। तेणं खमणा दुगुणं पावं जिणदत्तवयणेणं . पुव्वं विराहिओ सोऽणंतोदिअपावरासिनारीहि / पावावणयणकाले गलग्गहो जेण निम्मविओ णणु तित्थयरेण समो सूरी भणिओ जिणागमे पयडं। तेण पवट्टिअपूआपडिसेहे कह णु उस्सुत्तं ? एवं चे दत्तंजलि उस्सुत्तं तुह मयम्मि संपण्णं / पुत्तिनिसेहप्पमुहं तम्मयसूरीहि जं वुत्तं तम्हा सो जिणसरिसो सम्मं जो जिणमयं पयासेइ। इहरा उ पावपुंजो परिवज्जो पुण्णसन्नेहि सूरिकयं पि पमाणं तं चिअ जं असढभावसंजणिअं। निरवज्जं अणिवारिअमण्णेहि बहुस्सुआणुमयं जिणपूआपडिसेहो सावज्जो असढभावणाइण्णो। . अण्णनिवारिअबहुसुअअणणुमओ तेण विवरीओ एएण तित्थसम्मय पयट्टिअं तहविहेण पुरिसेण / तं सव्वं जिणआणा नऽण्णं पि अणंतरुत्तु व्व इह सुत्तसम्मईए पओअणं नत्थि जेण तव्वयणं / मूढमुहमुद्दरूवं सामायारि त्ति अम्हाणं पागयआगमसक्कयकरणं भासंतु सिद्धसेणो वि / जिणगंणहरआसाई का वत्ता दुमगजिणदत्ते ? तित्थासम्मयभासणरसिओ तित्थस्स होइ आसाई / सो आसायणबहुलो निअमेण अणंतसंसारी एएणं खलु मग्गंतरेहिमिच्चाइमागमं वयणं / देसंतो दूरिकओ पंवयणपरमत्थममुणंतो // 491 // // 492 // // 493 // // 494 // // 495 // // 496 // 3GG

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