Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम (०४)
[भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
समवाय [प्रकिर्णका:], ---------------- ----------- मूलं [१३६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
१३७ सू कृताङ्ग.
प्रत सूत्रांक
श्रीसमवा-
यांगे श्रीअभय वृतिः
[१३६]]
॥१०॥
प्रत अनुक्रम [२१५]
विज्ञाता एवं विज्ञाता भवति-तत्रान्तरीयज्ञाता भवति, तत्रान्तरीयज्ञातृभ्यः प्रधानतर इत्यर्थः, "एवं मित्यादि नि- गमनवाक्यं, एवं-अनेन प्रकारेणाचारगोचरविनयादभिधानरूपेण 'चरणकरणप्ररूपणता आख्यायत' इति चरण- व्रतश्रमणधर्मसंयमाद्यनेकविधं करणं-पिण्डविशुद्धिसमित्याद्यनेकविधं तयोः प्ररूपणता-प्ररूपणैव आख्यायते इ. त्यादि पूर्ववदिति, 'सेतं आयारे'त्ति तदिदमाचारवस्तु अथवा सोऽयमाचारो यः पूर्व दृष्ट इति ॥१॥
से किं तं सूअगडे ?, सुअगडे णं ससमया सूइजंति परसमया सूइति ससमयपरसमया सूइज्जति जीवा सूइज्जति अजीवा सूइजति जीवाजीवा सूइजंति लोगो सूइजति अलोगो सूइजति लोगालोगो सुइजति, सूअगडे गं जीवाजीवपुण्णपावासवसंवरनिन्जरणबंधमोक्खावसाणा पयत्या सुइअंति, समणाणं अचिरकालपब्वइयाणं कुसमयमोहमोहमइमोहियाणं संदेहजायसहजबुद्धिपरिणामससइयाणं पावकरमलिनमइगुणविसोहणत्यं असीअस्स किरियावाइयसयस्स चउरासीए अकिरियवाईणं सत्तडीए अण्णाणियवाईणं बत्तीसाए वेणइयवाईणं तिण्डं तेवट्ठीणं अण्णदिट्ठियसयाणं बूई किचा ससमए ठाविअति णाणदिटुंतवयणणिस्सारं सुहुदरिसयंता विविहवित्थराणुगमपरमसब्भावगुणविसिट्ठा मोक्खपहोयारगा उदारा अण्णाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूा सोवाणा चेव सिद्धिसुगइगिहुत्तमस्स णिक्खोभनिप्पकंपा सुत्तत्था, सुयगडस्स णं परित्ता वायणा संखेजा अणुभोगदारा संखेआमओ पढिवतीओ संखेजा वेम संखेबा सिलोगा संखेजाओ निजुत्तीओ, से णं अङ्गहयाए दोचे अंगे दो सुयक्खंधा तेवीसं अजमायणा तेत्तीसं उदेसणकाला तेत्तीसं समुदेसणकाला छत्तीसं पदसहस्साई पयग्गेणं प० संखेजा अक्खरा अणंता गमा अर्णता पजवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिवद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति पण्णविनंति परूविजंति निद
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॥१०९॥
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आचार अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:, सूत्रकृत अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:,
~229~

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