Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
View full book text
________________
आगम (०४)
[भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
समवाय [प्रकिर्णका:], ---------------- ---------- मूलं [१४४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[१४४]
प्रत अनुक्रम [૨૨].
श्रीसमवा-रविमानेभ्यब्युताः क्रमेण करिष्यन्ति संवता यथा चान्तक्रियां ते तमाऽऽस्वायन्ते अनुत्तरोपपातिकदशास्विति प्रक-1 १४५ प्रयांगेतं,एते चान्ये चेत्यादि पूर्ववत् , नवरं 'दस अज्झयमा तिमि यम्पति, दहाध्ययनसमूहो वर्गो, वर्गे दशाध्ययनानि, भन्याकरवर्गश्च युगपदेवोदिश्वते इत्यतत्रय एवोद्देशनकाला भवन्तीखेनमेव च नन्यामभिधीयन्ते, इह तु रश्यन्ते दशेखत्राकि
दणदशाः वृतिः
प्रायो न ज्ञायत इति, तथा संख्यातानि 'पदसयसहस्साई पयग्गेण ति किल षट्चत्वारिंशल्लक्षाण्यष्टौ च सहस्राणि॥९॥ ॥१२३॥
से किं तं पण्हावागरणाणि', पण्हावागरणेसु अहत्तरं पसिणसयं अद्भुत्तरं अपसिणसयं अहुत्तरं पसिणापसिणसयं विजाइसया नागसुवन्नेहिं सद्धि दिधा संवाया आपविजेति, पण्हावागरणदसासु णं ससमयपरसमयपण्णवयपत्तेभबुद्धविविहत्थभासाभासियाण अइसयगुणउवसमणाणप्पगारावरिवभासियाणं वित्थरेणं वीरमहसीहिं विविहवित्थरभासियाणं च जगहियाणं अदागंगुहबाहुअसिमणिखोमआइबभासियाणं विविहमहापसिणविजामणपसिणविजादेवयपयोगपहाणगुणप्पगासियाणं सम्भूयदुगुणप्पभावनरगणमइविम्हयकराणं अईसयमईयकालसमयदमसमतित्थकरुत्तमस्स ठिइकरणकारणाणं दुरहिगमदुरवगाहस्स सबसवन्नुसम्मअस्स अबुहजणविवोहणकरस्स परक्खयपञ्चयकराणं पण्हाणं विविहगुणमहत्या जिणवरप्पणीया आघविजंति, पण्हावागरणेमु ण परित्ता वायणा संखेमा अणुओगदारा जाप संखेनाओ संगहणीओ, से गं अंगठ्ठयाए दसमे अंगे एगे सुयक्वंधे पणयालीसं उदेसणकाला पणया
|॥१२३॥ लीस समुदेसणकाला संखेआणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं प०, संखेजा अक्सरा अणता गमा जाव चरणकरणपरूवणया आपविअंति, सेत्तं पाहावागरणाई ॥१०॥ (सूत्रं १४५)
SHOROSCAS SACREK
444
अनुत्तरोपपातिकदशा अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचयः, प्रश्नव्याकरण अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:,
~257~

Page Navigation
1 ... 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338