Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

View full book text
Previous | Next

Page 294
________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], ----------------- ----------- मूलं [१५२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: RS प्रत सूत्रांक [१५२] CCCCESSAGAR असंखेजवासाउय०, जइ संखेजवासाउय० किं पजत्तय० अपजत्तय०१, गोयमा! पजत्तय० नो अपअत्तय०, जइ पजत्तय किं समदिट्ठी मिच्छदिट्ठी० सम्मामिच्छदिट्ठी०१, गोयमा ! सम्मदिट्ठी० नो मिच्छदिट्ठी नो सम्मामिच्छदिट्ठी, जइ सम्मदिट्ठी किं संजय० असंजय० संजयासंजय०१, गोयमा! संजय० नो असंजय० नो संजयासंजय०, जइ संजय० किं पम्मत्तसंजय० अपम्मत्तसंजय०१, गोयमा! पमत्तसंजय० नो अपमत्तसंजय०, जइ पमत्तसंजय० किं इड्डिपत्त अणिविपत्त०१, गोयमा! इडिपत्त. नो अणिड्डिपत्त० वयणा विभाणियचा आहारयसरीरे समचउरंससंठागसंठिए, आहारयसरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता?, गोयमा! जहन्नेणं देसूणा रयणी उक्कोसेणं पडिपुण्णा रयणी । तेआसरीरे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ?, गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, एगिदियतेयसरीरे वितिचउपंच. एवं जाव गेवेस्स णं भंते! देवस्स गं मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स समाणस्स केमहालिया सरीरोगाहणा. पन्नत्ता?, गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ता विक्खंभवाहलेणं आयामेणं जहन्नेणं अहे जाव विजाहरसेडीओ उक्कोसेणं जाव अहोलोइयग्गामाओ, उड्डे जाव सयाई विमाणाई, तिरियं जाव मणुस्सखेत्तं, एवं जाव अणुत्तरोववाइया, एवं कम्मयसरीरं भाणियचं (सूत्र १५२) 'कह णं भंते' इत्यादि कण्ठ्यं, नवरमेकेन्द्रियौदारिकशरीरमित्यादौ यावत्करणाद् द्वित्रिचतुष्पञ्चेन्द्रियौदारिकशरी-11 राणि पृथिव्यायेकेन्द्रियजलचरादिपञ्चेन्द्रियभेदेन प्रागुपदर्शितजीवराशिक्रमेण वाच्यानि, कियहरमित्याह-'गम्भवकतिये'सादि, 'ओरालियसरीरस्से'त्यादि, तत्रोदारं-प्रधानं तीर्थकरादिशरीराणि प्रतीत्य अथवोरालं-विस्तरालं विशालं समधिकयोजनसहस्रप्रमाणत्वात् वनस्पत्यादि प्रतीत्य अथवा उरालं-खल्पप्रदेशोपचितत्वात् बृहत्त्वाच भेण्ड प्रत अनुक्रम [२४६] HAmurary.org ~294~

Loading...

Page Navigation
1 ... 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338