Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम (०४)
[भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
समवाय [प्रकिर्णका:], ------------------- मूलं [१५६ से १५९] + ९३ गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
श्रीसमवा
यांगे
|१५७अव: सर्पिणी
भीअभय वृचिः
जिनादि
[१५६१५९] गाथा: १-९३
॥१५१॥
अभयकर निलुइकरा मणोरमा तह मणोहरा चेव । देवकुरूत्तरकुरा विसाल चंदप्पभा सीया ॥ १७ ॥ एआओ सीआओ सब्वेसि चेव जिणवरिंदाणं । सब्बजगवच्छलाणं सव्वोउगसुभाए छायाए ॥१८॥ पुचि ओखित्ता माणुसेहिं साह(१) रोमक्वेहिं । पच्छा वहति सीब असुरिंदसुरिंदनागिंदा ॥ १९॥ चलचवलकुंडलधरा सच्छंदविउब्वियाभरणधारी। सुरअसुरवंदिआणं वहति सी जिणंदाणं ॥२०॥ पुरओ वहंति देवा नागा पुण दाहिणम्मि पासम्मि । पचच्छिमेण असुरा गरुला पुण उत्तरे पासे ॥२१॥ उसभो अविणीयाए चारवईए अरिद्ववरणेमी । अवसेसा तित्थयरा निर्खता जम्मभूमीसु ॥२२॥ सब्वेवि एगदूसेण [णिगया जिणवरा चउव्वीस । ण व णाम अण्णलिंगे ण य निहिलिंगे कुलिंगे य ॥ २३ ॥] एको भगवं वीरो [पासो मल्ली य तिहि तिहि सरहिं । मगवंपि वासुपुओ छहिं पुरिससएहि निक्खंतो ॥ २४ ॥] उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं [च खत्तियाणं च । चउहि सहस्सेहिं उसभो सेसा उ सहस्सपरिवारा ॥ २५॥] सुमइत्व णिच्च भत्तेण [जिग्गओ वासुपुज चोत्येणं । पासो मल्ली य अट्ठमेण सेसा उम्टेणं ॥ २६॥] एएसिणं चउच्चीसाए तित्थगराण चउन्बीस पढममिक्खादायारो होत्या, तेजहा-'सिजंस बंभदत्ते सुरिंददत्ते य इंददत्ते य । पउमे य सोमदेवे माहिदे तह सोमदत्ते य ॥२६ ।। पुस्से पुणब्वसू पुष्णणंद सुर्णदे जये य विजये य । तत्तो य धम्मसीहे सुमित्त तह वग्गसीहे अ॥२७॥ अपराजिय विस्ससेणे वीसहमे होइ उसभसेणे य । दिपणे वरदते धणे बहुले य आणुपुब्बीए ॥ २८॥ एए विसुद्धलेसा जिणवरमत्तीइ पंजलिउडा उ । तं कालं तं समयं पडिलामेई जिणवरिंदे ॥ २९ ॥ संवच्छरेण मिक्खा [लद्धा उसमेण लोयणाहेण । सेसेहि बीयदिवसे लद्धाओ पढमभिक्खाओ ॥३०॥] उसभस्स पढमभिक्खा खोयरसो आसि लोगणाहस्स । सेसाणं परमणं अमियरसरसोवमं आसि ॥३१॥] सव्वेसिपि जिणाणं
प्रत अनुक्रम [२५४-३८३]
॥१५॥
SAREauratonlinene
~313~

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