Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 307
________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], ---------------- ----------- मूलं [१५४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: यांगे प्रत सूत्रांक वृत्तिः वनावि [१५४] श्रीसमवा-INIरिकादिपञ्चविधं तत्कारणं कर्माप्यवगाहना तद्रूपं नामकविगाहनानाम तेन सह निधत्तमायुरवगाहनानामनिधत्तायु- १५४ आ रिति॥'नेरइयाण मित्यादि स्पष्टं । अनन्तरमायुर्बन्ध उक्तोऽधुना बद्धायुषां नारकादिगतिषूपपातो भवतीति तद्विरहकाल- युबन्धभभीअभयाप्ररूपणायाह-निरयगई 'मित्यादि कण्ठ्यं, नवरं यद्यपि रत्नप्रभादिषु चतुर्विशतिमुहूर्तादिविरहकालो, यथोक्तं-181 |'चउवीसई मुहुत्ता सत्त अहोरत्त तय पन्नरसा । मासो य दो य चउरो छम्मासा विरहकालोत्ति ॥१॥' तथापि सा-101 ॥१४८ मान्यगत्यपेक्षया द्वादश मुहूर्ता उक्ताः, तथा एवंकरणाद्यत्तिर्यमनुष्यगयोः सामान्येन द्वादश मुहूर्ता उक्ताः तद्गर्भव्युत्क्रान्तिकापेक्षया, दैवगतौ तु सामान्यत एव, 'सिद्धिवजा उबद्दणे ति नारकादिगतिषु द्वादशमुहूर्तो विरहकाल उ-131 द्वर्तनायामिति, सिद्धानां तूद्वर्त्तनैव नास्ति, अपुनरावृत्तित्वात्तेषामिति, 'इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केव-14 इयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता, एवं उपवायदंडओ भाणियघोत्ति, स चायं-“गोयमा! जहण्णेणं एकं स-II मयं उक्कोसेणं चउवीसं मुहुत्ताई' अनेनाभिलापेन शेषा वाच्याः, तथाहि-'सकरप्पभाए णं उक्कोसेणं सत्त राईदियाणि | 21 वालुयप्पभाए अद्धमासं पंकप्पभाए मासं धूमप्पभाए दो मासा तमप्पभाए चउरो मासा अहेसत्तमाए छमास'त्ति है असुरकुमारा 'चउवीसइ मुहुत्ता' एवं जाव थणियकुमारा, पुढविकाइया अविरहिया उववाएणं एवं सेसावि, बेइंदिया ॥१८॥ अंतोमुहुतं, एवं तेइंदियचउरिदियसमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियावि गब्भवतियतिरिया मणुया य बारस मुहुत्ता संमुच्छिममणुस्सा चउवीसई मुहुत्ता पिरहिआ उववाएणं, वंतरजोइसिया चउवीसं मुहुत्ताई, एवं सोहम्मी RASACRACCIA प्रत अनुक्रम [२५२] ~307~

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