Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
View full book text
________________
आगम (०४)
[भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
समवाय [प्रकिर्णका:], ---------------- ----------- मूलं [१५३] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] "समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
| युर्बन्धमे
दोत्पादो
प्रत सूत्रांक [१५३]
दर्तनाविरहाकः
प्रत अनुक्रम [२४७-२५१]
श्रीसमवा-1 नीति, तथा 'संमत्ते'त्ति द्वारं, तत्र नारकाः किं सम्यक्त्वाभिगमिनो मिथ्यात्वाभिगमिनः सम्यक्त्वमिथ्यात्वाभिगमि
यांगे 18नश्चेति, त्रिविधा अपि, एवं सर्वेऽपि, नवरमेकेन्द्रियविकलेन्द्रिया मिथ्यात्वाभिगमिन एवेति । अनन्तरमाहारप्ररूपणा श्रीअभय
कृता आहारश्चायुर्बन्धवतामेव भवतीत्यायुर्वन्धप्ररूपणायाहवृतिः
कइविहे थे भंते ! आउगवन्धे पन्नत्ते ?, गोयमा! छविहे आउगवन्धे पत्नत्ते, तंजहा-जाइनामनिहत्ताउए गतिनामनिहत्ताउए ॥१४७॥
ठिइनामनिहत्ताउए पएसनामनिहत्ताउए अणुभागनामनिहत्ताउए ओगाहणानामनिहत्ताउए, नेरइयाणं भंते! कइविहे आउगवन्धे पन्न?, गोयमा! छबिहे पन्नत्ते, तंजहा-जातिनाम० गइनाम० ठिइनाम०पएसनाम० अणुभागनाम० ओगाहणानाम० एवं जाव वेमाणियाणं ॥ निरयगई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पं०१. गोयमा! जहन्नेणं एक समयं उक्कोसेणं बारस मुहत्ते, एवं तिरियगई मणुस्सगई देवगई, सिद्धिगई णं मंते ! केवइयं कालं विरहिया सिज्मणयाए पन्नता, गोयमा! जहन्नेणं एवं समयं उक्कोसेणं छम्मासे, एवं सिद्धिवजा उन्चट्टणा, इमीसे गं भते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केवइयं कालं विरहिया उववाएणं, एवं उववायदंडओ भाणियचो उवट्टणादंडओ य, नेरइया णं भंते ! जातिनामनिहत्ताउर्ग कति आगरिसेहि पगरति ?, गो० सिय १ सिय २।३।४।५।६।७। सिय अहदि, नो चेव णं नवहि, एवं सेसाणवि आउगाणि जाव वेमाणियत्ति ।। सूत्र १५४ ॥ 'काविहे'त्यादि, तत्रायुपो बन्धनिषेक आयुर्वन्धः, निषेकश्च प्रतिसमयं बहुहीनहीनतरस्य दलिकस्यानुभवनार्थ रचना, निधत्तमपीह निषेक उच्यते, अत एवाह-'जाइनामनिधत्ताउए, जातिनामा सह निधत्तं-निषिक्तमनुभ
*
॥१४७॥
REnatinikana
~305~

Page Navigation
1 ... 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338