Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम (०४)
[भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
समवाय [प्रकिर्णका:], ---------------- ----------- मूलं [१५१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
यांगे
प्रत सूत्रांक
[१५१]
श्रीसमवा- वैमानिकानां च गमत्रयं वाय, कियहरं यावदित्याह-जाव विजये त्यादि, इह च विजयादिषु जघन्यतो द्वात्रिंश-४ १५२ श.
|सागरोपमाण्युक्तानि, गन्धहस्त्यादिष्वपि तथैव दृश्यते, प्रज्ञापनायां त्वेकत्रिंशदुक्तेति मतान्तरमिदं, पर्याप्तकापर्या-शरीरसूत्रं. श्रीअभय
सकगमद्वयमिह समूबम्, एवं सर्वार्थसिद्धिस्थितिरपि त्रिभिर्गमैर्वाच्येति ॥ अनन्तरं नारकादिजीवानां स्थितिरुक्केदानी18 वृचिः
है तच्छरीराणामवगाहनाप्रतिपादनायाह॥१४॥ कति णं भंते! सरीरा प०१, गोयमा! पंच सरीरा प०, तं०-ओरालिए वेउचिए आहारए तेयए कम्मए, ओरालियसरीरेणं भंते ।
कइविहे प०१, गोयमा ! पंचविहे प०, तं०-एगिदियओरालियसरीरे जाव गम्भवकंतियमणुस्संपचिंदियओरालियसरीरे य, ओरालियसरीरस्सणं भंते! केमहालिया सरीरोगाणा पनवा?, गोयमा! जहन्नेणं अंगुलअसंखेजतिभागं उक्कोसेणं साइरेगं जोयणसहस्सं, एवं जहा ओगाहणसंठाणे ओरालियपमाणं तहा निरवसेसं, एवं जाव मणुस्सेत्ति उक्लोसेणं तिष्णि गाउयाई । कइविहे णं भंते ! वेउवियसरीरे ५०१, गोयमा दुविहे प०, एगिदियवेउब्वियसरीरे य पंचिंदियवेउवियसरीरे अ, एवं जाव सर्णकुमारे आढतं जाव अणुत्तराणं भवधारणिला जाव तेर्सि रयणी रयणी परिहायइ । आहारयसरीरेणं भंते ! काविहे पन्नचे, गोयमा! एगाकारे प०, जइ एगाकारे ५० किं मणुस्साहारयसरीर अमणुस्सआहारयसरीरे?, गोयमा! मणुस्साहारगसरीरे णो अमणुस्सआहारगसरीरे, एवं जद मणुस्सआहारगसरीरे किं गम्भवदंतियमणुस्साहारगसरीरे समुच्छिममणुस्साहारगसरीरे १, गोयमा!
॥१४॥ गम्भवतियमणुस्साहारयसरीरेनो समुच्छिममणुस्सआहारयसरीरे, जइ गम्भवतिय० किं कम्मभूमिगा०अकम्मभूमिगा०?,गोयमा! कम्मभूमिगा० नो अकम्मभूमिगा०, जइ कम्मभूमिग० किं संखेजवासाउय० असंखेजवासाउय०१, गोयमा! संखेजवासाउय० नो
ACKAGARGARH
प्रत
अनुक्रम [२४५]
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