Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 291
________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], ----------------- ----------- मूलं [१५०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१५०] गाथा: श्रीसमवा-मणि-प्रभावन्ति समरीचीनि-सकिरणानीत्यर्थः 'सोद्योतानि-वस्त्वन्तरप्रकाशनकारीणीत्यर्थः, 'पासाईए' त्यादि प्राग्वत्। १५१ नायांगे 'सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावासा पण्णता?, गोयमा! बत्तीस विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता' एव-16 | स्कादिश्रीअभयमीशानादिष्वपि द्रष्टव्यं, एतदेवाह-एवं ईसाणाइसुत्ति, 'गाहाहि भाणिय'ति 'बत्तीस अट्ठवीसा' इत्यादिकाभिः स्थितिः वृत्तिः पूर्वोक्तगाथाभिस्तदनुसारेणेत्यर्थः, प्रतिकल्पं भिन्नपरिमाणा विमानावासा भणितव्यास्तद्वर्णकश्च वाच्यो 'जाव ते णं वि॥१४॥ माणे त्यादि यावत् 'पडिरूवा', नवरमभिलापभेदोऽयं यथा "ईसाणे गंभंते ! कप्पे केवइया विमाणावाससयसहस्सा कापण्णता?, गोयमा! अट्ठावीसं विमाणावाससयसहस्सा भवंतीतिमक्खाया, ते गं विमाणा जाय पडिरूवा' एवं सर्वे | पूर्वोक्तगाथानुसारेण प्रज्ञापनाद्वितीयपदानुसारेण च वाध्यमिति ॥ अनन्तरं नारकादिजीवानां स्थानान्युक्तानि, अथ तेषामेव स्थितिमुपदर्शयितुमाहनेरदयाण भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नता ?, गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई ठिई प०, अपञ्चतगाणं नरेइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई प०१, जहन्नेणं अंतोमुहुर्त उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पजत्तगाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई उकोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, इमीसे णं खणप्पमाए पुढवीए एवं जाव विजयवेजयंतजयं ॥१४॥ तअपराजियाण देवाणं केवइयं कालं ठिई प०१, गोयमा! जहन्नेणं बत्तीस सागरोवमाई उकोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई, सबढे अजहण्णमणुकोसेणं तेतीसं सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता (सूत्र १५१) NECOR प्रत अनुक्रम [२३८ -२४४] FATirastaram.org ~291

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