Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 239
________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], ---------------- ----------- मूलं [१३९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: १३९ स मवाया. प्रत सूत्रांक [१३९]] श्रीसमवा- यांगे वृतिः ॥११॥ प्रत अनुक्रम [२२०] च-भरतादिक्षेत्राणां निर्गमाः-पूर्वेभ्यः उत्तरेपामाधिक्यानि 'समाए'त्ति समवाये चतुर्थे अङ्गे वर्णिता इति प्रक्रमा अवैतन्निगमयन्नाह-एते चोक्ताः पदार्था अन्ये च घनतनुवातादयः पदार्थाः, एवमादयः-एवंप्रकाराः अत्र समवाये विस्तरेणार्थाः समाश्रीयन्ते, अविपरीतखरूपगुणभूषिता बुद्ध्याऽङ्गीक्रियन्त इत्यर्थः, अथया समस्यन्ते-कुप्ररूपणाभ्यः | सम्यकप्ररूपणायां क्षिप्यन्ते, शेष निगदसिद्धमानिगमनादिति ॥५॥ से कि त वियाहे १, वियाहेण ससमया विआहिअंति परसमया विआहिअंति ससमयपरसमया विआहिति जीवा विभाहिजेति अजीवा विआहिजति जीवाजीवा विआहिअंति लोगे विआहिजइ अलोए वियाहिजइ लोगालोगे विआहिजइ, वियाहेणं नाणाविहसुरनरिंदरायरिसिविविहसंसइअपुच्छियाण जिणेणं वित्थरेण भासिवाणं दव्वगुणखेतकालपजवपदेसपरिणामजहच्छिट्टियभावअणुगमनिक्खेवणयप्पमाणसुनिउणोवक्कमविविहप्पकारपगडफ्यासियाणं लोगालोगपयासियाणं संसारसमुद्दरुंदउत्तरणसमत्थाणं सुरवइसंपूजियाणं भवियजणपयहिययाभिनंदियाणं तमरयविधूसणाणं सुदिदीवभूयईहामतिबुद्धिवद्धणाणं छचीससहस्समणूणयाणं वागरणाणं दंसणाओ सुबत्थबहुविहप्पगारा सीसहियत्या य गुणमहत्था, वियाहस्स पं परित्ता वायणा संखेशा अणुओगदारा संखेजाओ पडिबत्तीओ संखेजा वेढा संखेजा सिलोगा संखेजाओ निज्जुत्तीओ, से गं अंगवयाए पञ्चमे अंगे एगे सुयक्खंधे एगे साइरेगे अजायणसते दस उद्देसगसहस्साई दस समुद्देसगसहस्साई छत्तीसं वागरणसहस्साई चउरासीई पयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ता, संखेबाई अक्खराई अर्णता गमा अणंता पञ्जवा परित्ता तसा अर्णता थावरा सासया कडा णिचद्धा णिकाइया जिण RECE ॥११४॥ समवाय अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:, वियाह/(भगवती) अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:, ~239~

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