Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 24
________________ भगवान् महावीर : जीवन और सिद्धान्त २. उपभोग की वस्तुओं का संयम करो । ३. धन-सम्पदा बढ़ाने या उसकी सुरक्षा करने के लिए फैलाव मत करो - विस्तारवादी नीति मत अपनाओ । ४. दूसरों के स्वत्व पर अधिकार करने के लिए आक्रमण मत करो । ४. पुरुष और पौरुष १. मनुष्य अपने सुख-दुःख का कर्ता स्वयं है । अपने भाग्य का विधाता वह स्वयं है । २. राजा देव नहीं है, ईश्वर का अवतार नहीं है । वह मनुष्य है, उसे देव मत सम्पन्न मनुष्य कहो । कहो, ३. ग्रन्थ मनुष्य की कृति है । पहले मनुष्य, फिर ग्रन्थ । कोई भी ग्रंथ ईश्वरीय नहीं है । विश्व की व्यवस्था शाश्वत द्रव्यों के योग या परस्परापेक्षिता से स्वतः संचालित है । वह किसी एक सर्वशक्तिमान् सत्ता द्वारा संचालित नहीं ४. U ६. ७. है 1 ११ यह विश्व छह द्रव्यों की संघटना है । वे ये हैं धर्म गतितत्त्व | • अधर्म-स्थितितत्त्व | आकाश । काल । पुद्गल । जीव । मनुष्य अपने ही कर्त्तव्य से उत्क्रांति और अपक्रांति करता है । इस प्रसंग में महावीर ने जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष - इन तत्त्वों की व्याख्या की । मनुष्य भाग्य या कर्म के यंत्र का पुर्जा नहीं है । भाग्य मनुष्य को नहीं बनाता, मनुष्य भाग्य को बनाता है । वह अपने पुरुषार्थ से भाग्य को बदल सकता है ! धर्म-संध धर्म-संघ की सुव्यवस्था के लिए महावीर ने संघ के सूत्रों का प्रतिपादन किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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