Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 86
________________ साधना का मार्ग है। उसमें पानी ही नहीं रहा, फिर लहर कैसे उठेगी? मन की चंचलता का प्रवाह है प्राणवायु । उसका धक्का लगता है। तब चंचलता पैदा होती है। प्राणवायु को शान्त कर दिया तब मन चंचल कैसे होगा? आवेग प्राणवायु की चंचलता के द्वारा होते हैं। प्राणवायु शान्त है तो हम क्रोध करना चाहें, तो भी नहीं कर पायेंगे। क्रोध करने के लिए जरूरी है कि पहले श्वास तेज हो । श्वास तेज होगा तब हम क्रोध करेंगे। या क्रोध करेंगे तब हमारा श्वास तेज होगा। शान्त श्वास में हम क्रोध नहीं कर सकते । शान्त श्वास में हमारे मन में वासना जागृत नहीं हो सकती। शांत श्वास में हमारे मन में कोई आवेश नहीं हो सकता। ये सारे आवेश तीव्र श्वास में होते हैं। यौगिक निष्कर्षों के अनुसार क्रोध की स्थिति में एक मिनट में तीस-चालीस श्वास हो जाते हैं। संभोग की स्थिति में वे साठ तक चले जाते हैं। इसलिए संभोग के द्वारा अधिक शक्ति क्षीण होती है। भय लगता है तो हृदय की धड़कन और श्वास की गति बढ़ जाती है। भय का आवेश शान्त होता है तो श्वास की गति मन्द हो जाती है । शान्त समुद्र, तुफानी समुद्र और जमा हुआ समुद्र-समुद्र के ये तीन रूप हैं। शांत समुद्र में नौका को खतरा नहीं होता । तूफानी समुद्र में वह डगमगाने लग जाती है । उत्तरी समुद्र जमे पड़े हैं। उस पर आदमी चला जाता है। कोई खतरा नहीं है। हमारे मन की भी तीन अवस्थाएं होती हैं-शान्त मन, तूफानी मन और सघन मन । प्राणवायु लम्बा होता है, पूरा होता है, दूषित द्रव्य (Carbon)को पूरी मात्रा में बाहर निकालता है, तब मन शान्त रहता है। प्राणवायु की दीर्घता कम होती है, दूषित द्रव्य पूरी मात्रा में बाहर नहीं निकलता तब मन तूफानी बन जाता है। प्रणवायु मन्द होते-होते स्थिर हो जाता है तब मन सघन हो जाता है। समाधि अपने आप उतर आती है। ५. प्राण प्राण और प्राणवायु एक नहीं है । प्राणवायु से लिया जाने वाला पौद्गलिक द्रव्य है। उसे हम लेते हैं और छोड़ते हैं। फिर लेते हैं और फिर छोड़ते हैं। यह क्रम चलता रहता है। प्राण हमारी जीवनी-शक्ति है। वह समूचे शरीर में प्रवाहित है। प्राण है तब तक जीवन है। प्राण समाप्त होता है, जीवन समाप्त हो जाता है । जैन धर्म में प्राण-वियोजन को हिंसा माना है। प्राण तैजस शरीर का विद्युत प्रवाह है । चिन्तन का यंत्र मस्तिष्क है किन्तु उसमें प्राण शक्ति का प्रवाह न हो तो कोई भी मनुष्य चिन्तन नहीं कर सकता। बोलने का माध्यम स्वर-यंत्र है। किन्तु उसमें प्राण-शक्ति का प्रवाह न हो तो कोई भी मनुष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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