Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 108
________________ तत्त्ववाद प्रतिपादन करता हूं। इनका प्रतिपादन मैं किसी शास्त्र के आधार पर नहीं कर रहा हूं, किन्तु अपने प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर कर रहा हूं।' महावीर का आत्मिक प्रवचन सुनकर कालोदायी का मन समाहित हो गया। यह पंचास्तिकाय का वर्गीकरण मौलिक है। भारतीय दर्शनों के तात्त्विक वर्गीकरण को सामने रखकर तुलनात्मक अध्ययन करने वाला यह कहने का साहस नहीं करेगा कि यह वर्गीकरण दूसरों से ऋण-प्राप्त है। कुछ विद्वान् स्वल्प अध्ययन के आधार पर विचित्र-सी धारणाएं बना लेते हैं और उन्हें आगे बढ़ाते चले जाते हैं। यह बहुत ही गम्भीर चिन्तन का विषय है कि विद्वत् जगत् में ऐसा हो रहा है। कहीं-न-कहीं कोई आवरण अवश्य है। आवरण के रहते सचाई प्रकट नहीं होती। मुझे एक घटना याद आ रही है। एक राजकुमारी को संगीत की शिक्षा देनी थी। वीणा-वादन और संगीत के लिए राजकुमार उदयन का नाम सूर्य की भांति चमक रहा था। राजा ने कट-प्रयोग से उदयन को उपलब्ध कर लिया। राजा राजकुमारी को संगीत सिखाना चाहता था और दोनों को सम्पर्क से बचाना भी चाहता था। इसलिए दोनों के बीच में यवनिका बांध दी। दोनों के मनों में भी यवनिका बांधने की चेष्टा की। उदयन से कहा गया—'राजकुमारी अन्धी है। वह तुम्हारे सामने बैठने में सकुचाती है। अतः वह यवनिका के भीतर बैठेगी।' राजकुमारी से कहा गया- 'उदयन कोढ़ी है। वह तुम्हारे सामने बैठने में सकुचाता है अत: वह यवनिका के बाहर बैठेगा।' शिक्षा का क्रम चालू हुआ और कई दिनों तक चलता रहा। एक दिन उदयन संगीत का अभ्यास करा रहा था। राजकुमारी बार-बार स्खलित हो रही थी। उदयन ने कई बार टोका, फिर भी राजकुमारी उसके स्वरों को पकड़ नहीं सकी। उदयन कुछ क्रुद्ध हो गया। उसने आवेश में कहा—'जरा संभलकर चलो। कितनी बार बता दिया, फिर भी ध्यान नहीं देती हो। आखिर अन्धी जो हो !' राजकुमारी के मन पर चोट लगी। वह बौखला उठी। उसने भी आवेश में कहा—'कोढ़ी ! जरा संभलकर बोलो !' उदयन ने सोचा-कोढ़ी कौन है? मैं तो कोढ़ी नहीं हैं। फिर राजकुमारी ने कोढ़ी कैसे कहा? राजकुमारी ने भी इसी भाषा में सोचा-मैं तो अन्धी नहीं हूं। फिर उदयन ने अन्धी कैसे कहा? सचाई जानने के लिए दोनों तड़प उठे । यवनिका को हटाकर देखा-कोई अन्धी नहीं है और कोई कोढ़ी नहीं है। बीच का आवरण यह धारणा बनाए हुए था कि यवनिका के इस पार अन्धापन और उस पार कोद। आवरण हटा और दोनों बातें हट गईं। मुझे लगता है, जैन दर्शन की मौलिकताओं को समझने में भी कोई आवरण बीच में आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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