Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 115
________________ १०२ सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में देता । जैसे जल का कण हमें दिखाई देता है वैसे चेतना की स्वतन्त्र सत्ता हमें कहीं दिखाई नहीं देती। भूतवादी दार्शनिकों ने चेतना को स्वीकार किया किन्तु उसकी स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार नहीं किया। दूसरी धारा उन दार्शनिकों की है जो स्थूल जगत् में रुके नहीं, जिनके चरण उससे आगे बढ़े। उन्होंने स्थूल को देखा और साथ-साथ सूक्ष्म को भी देखा। उनका चिन्तन इस दिशा में आगे बढ़ा कि चेतना भौतिक नहीं है। वह न प्रत्येक भूत में है और न उनकी सामुदायिक परिणति में है। प्रत्येक भूत यदि उसका उपादान नहीं है तो उनकी संहति भी चेतना का उपादान नहीं हो सकती। संहति में वही गुण प्रकट होता है, उपादान के रूप में जिसकी सत्ता प्रत्येक इकाई में होती है । चेतना का उपादान न कोई भौतिक इकाई है और न उसकी संहति । इस स्थिति में उसका उपादान कोई स्वतन्त्र सत्ता है। वे चिन्तन-मनन से आगे ध्यान की गहराई में गए और उन्होंने चेतना के उपादान का साक्षात्कार किया। उन्होंने उसका नाम रखा 'आत्मा' इन्द्रियां से दृष्ट नहीं है। वह चेतना की अधिक गहराई में जाने पर ही दृष्टं होती है इसलिए आत्मवादी दार्शनिकों ने दर्शन की अध्यात्मवादी धारा को विकसित किया। जैन दर्शन का द्वैतवाद जैन दर्शन अध्यात्मवादी दर्शन है। वह आत्मा की स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार करता है। आत्मवादी दार्शनिकों ने आत्मा का भिन्न-भिन्न रूपों में प्रतिपादन किया है। वेदांत भारत के प्रमुख दर्शनों में से एक है। उसने उपनिषदों के आधार पर आत्मा की व्याख्या की। उपनिषद् भारतीय तत्त्वचिन्तन के अपूर्ण कोश हैं। उनमें शताब्दियों तक होने वाले सूक्ष्म चिन्तन संकलित हैं। सृष्टि के गहनतम रहस्यों को जानने का जो तीव्रतम प्रयत्न हुआ उसकी प्रतिध्वनि उपनिषद् के शब्दों में सुनाई देती है। वेदान्त उनका प्रतिनिधित्व करता है। उसका सिद्धांत है--मूल आत्मा एक है। उसकी संज्ञा है 'ब्रह्म ।' चैतन्य की पारमार्थिक सत्ता वही है । दृश्य जगत् में जो चेतन और अचेतन है, वह सब उसी मल आत्मा का प्रपंच है। यह 'चैतन्य द्वैतवाद' है। 'जड़ाद्वैतवादी' दार्शनिकों का अभिमत है भूत ही वास्तविक सत्ता है, चेतन वास्तविक सत्ता नहीं है। ठीक इसके विपरीत ‘आत्मा द्वैतवादी' वेदान्त का अभिमत है-चेतन ही वास्तविक सत्ता है, भूत वास्तविक सत्ता नहीं है। ___ जड़वादी कहते हैं- भूत चेतन से उत्पन्न हुआ है तो आत्मद्वैतवादी कहते हैं कि चेतन से भूत उत्पन्न हुआ है। दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं। दोनों एक-दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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