Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 121
________________ १०८ सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में वह अद्वैत-द्वैतवादी है। द्रव्य का अस्तित्व जो है वह शाश्वत है। वह कभी भी नष्ट नहीं होता। पयाय बदलता रहता है। असत् पर्याय की उत्पत्ति और सत् पर्याय का नाश—यह क्रम बराबर चलता रहता है। इसलिए जैन दर्शन न सत्वादी है और न असत्वादी, किन्तु सत्-असत्वादी है। 000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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