Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 117
________________ १०४ सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में योग—ये दोनों एक धारा के हैं। एक दर्शन पक्ष और दूसरा साधना पक्ष । ये दोनों वैदिक परम्परा में नहीं थे इसलिए श्रमण परम्परा के दर्शनों से इनका समन्वय स्वाभाविक है। श्रमण दर्शनों में अर्हत् दर्शन प्रभावशाली रहा है । जैन दर्शन उसकी मुख्य धारा है। सांख्य, आजीवक और बौद्ध-ये सब श्रमण दर्शन रहे हैं। इनकी तात्त्विक परम्परा के बीच सदीर्घकालीन श्रामणिक चिन्तन निहित है। जैन दर्शन ने द्वैतवाद का प्रतिपादन किया। सांख्य भी द्वैतवादी है। उसने दो तत्त्वों-प्रकृति और पुरुष की स्थापना की। जैन दर्शन ने दो तत्त्वों-चेतन और अचेतन का प्रतिपादन किया। कहा जाता है, इस प्रतिपादन में जैन दर्शन पर सांख्य दर्शन का प्रभाव है। इस मान्यता का कारण जैन साहित्य का अपरिचय है । विद्वानों के सामने जैन दर्शन का मुख्य ग्रन्थ 'तत्वार्थ सूत्र' रहा। किन्तु उससे पांच-छह शताब्दी पूर्व रचित आगम साहित्य उनके पास नहीं पहुंचा। यदि वह पहुंचा होता तो यह धारणा निर्मूल हो जाती । जैन दर्शन और सांख्य दर्शन—दोनों द्वैतवादी हैं। किन्तु द्वैतवादी होने पर भी उनकी दर्शन-धारा में कुछ मौलिक अन्तर है। सांख्य दर्शन का स्वीकार है कि प्रकृति से सारी सृष्टि का विकास हुआ है । सृष्टि का मूल कारण है प्रकृति और सृष्टि है प्रकृति की विकृति । जैन दर्शन ने सृष्टि की व्याख्या चेतन और अचेतन—दोनों की संयुक्त प्रक्रिया के आधार पर की। उसके अनुसार केवल पुद्गल और केवल जीव से सृष्टि का विकास नहीं होता किन्तु जीव और पुद्गल-दोनों का समुचित योग होने पर ही वह होता है। विश्व की व्याख्या का जैन दृष्टिकोण दार्शनिक आचार्यों ने विश्व की व्याख्या विभिन्न दृष्टिकोणों से की है। आचार्य शंकर के मतानुसार दृश्य जगत् पारमार्थिक नहीं है । प्रश्न हुआ—फिर यह क्या है ? उत्तर मिला—यह माया है। सुषुप्ति अवस्था का यह अनुभव है। आपने स्वप्न में सिंह देखा, आप भय से प्रकंपित हो गए। आप जागृत अवस्था में आए सिंह का भय समाप्त हो गया। स्वप्नावस्था का सिंह जागृत अवस्था का सिंह नहीं है । जागृत अवस्था में स्वप्नावस्था के सिंह की वास्तविक सत्ता नहीं है। इसलिए यह दृश्य जगत् व्यावहारिक सत्य है, वास्तविक सत्य नहीं है। हम लोग जागृत अवस्था में जो देख रहे हैं और हमें जो वास्तविक प्रतीत हो रहा है वह भी ब्रह्म की स्थिति में जाने पर वैसे ही मिथ्या हो जाएगा जैसे स्वप्न जगत् के दृश्य जागृत अवस्था में मिथ्या हो जाते हैं। इस प्रकार उन्होंने दो सत्यों से विश्व की व्याख्या की—एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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