Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 114
________________ अद्वैत और द्वैत दोनों विश्व के सभी दर्शनों को प्रभावित करने वाले हुए हैं। भारत के दार्शनिकों ने पूर्वी जगत् को प्रभावित किया और यूनान के दार्शनिकों ने पश्चिमी जगत् को प्रभावित किया। पश्चिम के सारे दर्शन यूनानी दर्शन से प्रभावित हैं और पूर्व के सारे दर्शन भारतीय दर्शन से प्रभावित हैं । इस प्रकार विश्व के पटल पर इन दो देशों के दार्शनिकों ने अपनी विचार धारा का पूरा प्रभुत्व स्थापित किया । मेरे सामने दर्शन की अनेक धाराएं हैं। उनका वर्गीकरण भौतिकवाद और - अध्यात्मवाद – इन दो रूपों में करना मुझे इष्ट है। मनुष्य ने जब देखा तब प्रारम्भिक दर्शन में जो स्थूल था वह सामने आ गया। मैं खड़ा हूं । मेरे सामने एक वृक्ष है । मैं उसे जितनी सुगमता से देख सकता हूं, उतनी सुगमतता से उसके नीचे चलने वाली चींटी को नहीं देख सकता। क्योंकि वृक्ष स्थूल है और चींटी सूक्ष्म । उस पर मेरी दृष्टि नहीं दौड़ती, वृक्ष पर पहले ही दौड़ जाती है। आदमी स्थूल को जल्दी पकड़ता है। सूक्ष्म तक पहुंचने में उसे बहुत गहराई में उतरना पड़ता है । हमारे सामने जो स्थूल जगत् है, वह भौतिक है । दार्शनिकों ने सबसे पहले भौतिक जगत् को देखा। उन्होंने देखा, दुनिया में पृथ्वी है, पानी है, अग्नि है और वायु है। उन्होंने देखा कि जो दिखाई दे रहा है वह इन्हीं के द्वारा निष्पन्न है । इन चार भूतों से दुनिया का निर्माण हुआ है। १०१ I कुछ चिंतक आगे बढ़े। उन्होंने आकाश को भी खोजा । आकाश भी एक तत्त्व है, भूत है। भारतीय दर्शन में दो धाराएं चलीं- एक चतुर्भूतवादी और एक पंचभूतवादी । पश्चिमी दार्शनिकों में भी इस विषय में काफी मतभेद रहा। किसी ने माना कि सारी दुनिया का मूल जल है, किसी ने माना कि वायु है और किसी ने माना कि अग्नि है। जलवादी, वायुवादी और अग्निवादी - ये स्थूलवादी विचारक रहे हैं। इन दोनों धाराओं के विकास के बाद मनुष्य के मन में फिर द्वन्द्व उत्पन्न हुआ । उसने सोचा- भूत अचेतन है । यह चेतन क्या है ? सोचता कौन है ? विचार कौन करता है ? जानने का प्रयत्न कौन करता है ? भौतिक तत्त्वों में चिन्तन, मनन 1. और ज्ञान नहीं है। उसने फिर चेतना की ओर ध्यान दिया । चेतना भौतिक तत्त्वों में नहीं है । पृथ्वी में चेतना नहीं है, पानी में चेतना नहीं है, अग्नि, वायु और आकाश में चेतना नहीं है। चिंतन करते-करते वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि चेतना भौतिक तत्त्वों की परिणति है, उनके संघटन की क्रिया है । उनसे भिन्न कोई तत्त्व नहीं है । यदि उसका कोई स्वतन्त्र अस्तित्व होता तो वह भौतिक तत्त्वों से कहीं पृथक् दिखाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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