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सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में
वैद्य आता है और कहता है बाण को निकालें और घाव को ठीक करें। किन्तु वह व्यक्ति कहता है कि मैं तब तक बाण नहीं निकलवाऊंगा जब तक कि यह पता न लग जाए कि बाण किसने फेंका है ? फेंकने वाला कितना लम्बा-चौड़ा है ? वह कितना शक्तिशाली है? वह किस वर्ण का है ? बाण क्यों फेंका गया? किस धनुष से फेंका गया? वह धनुष कैसा है ? तूणीर कैसा है ? प्रत्यंचा कैसी है? ये सारी बातें मुझे जब तक ज्ञात नहीं हो जाती, तब तक मैं इस बाण को नहीं निकलवाऊंगा। बोलो इसका अर्थ क्या होगा?'
मालुकापुत्र बोला-'वह मर जाएगा। बाण के निकालने से पहले ही मर जाएगा। वह जीवित नहीं रह सकेगा।'
बुद्ध ने कहा—'इसीलिए मैं कहता हूं कि बाण को निकालने की जरूरत है। बाण किसने बनाया, कहां से आया, किस प्रकार से फेंका गया, किस धनुष से फेंका गया, इन कल्पनाओं में उलझने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है । जिन बातों में उलझने की जरूरत है उन्हीं में उलझो । दुःख क्या है ? दुःख का हेतु क्या है ? निर्वाण क्या है और निर्वाण का हेतु क्या है ? ये चार आर्य-सत्य क्या हैं? इन्हीं को जानने का प्रयत्न करो।
पूर्व-प्रतिपादित वर्गीकरण और मीमांसाओं के संदर्भ में मैं भगवान महावीर का तात्त्विक वर्गीकरण का विश्लेषण करूंगा। प्रारम्भ में एक धारा की ओर मैं इंगित करना चाहता हूं । वर्तमान युग के कुछ इतिहासज्ञ और कुछ दार्शनिक जैन दर्शन को वैशेषिक, सांख्य आदि दर्शनों का ऋणी मानते हैं। कुछ विद्वान् लिखते हैं कि परमाणुवाद महर्षि कणाद की देन है। जैन दर्शन ने उसका अनुकरण किया है । कुछ विद्वान लिखते हैं—जैन दर्शन सांख्य दर्शन का ही रूपान्तर है। उसका तत्त्ववाद मौलिक नहीं है । ये धारणाएं क्यों चलती हैं? इनका रहस्य खोजना जरूरी है। वे विद्वान् लेखक या तो इतिहास के कक्ष तक पहुंचने का तीव्र प्रयत्न नहीं करते या वे साम्प्रदायिक भावना को पुष्ट करने का प्रयत्न कर रहे हैं। दोनों में से एक बात अवश्य
है।
मालिक ने नौकर से कहा—'जाओ, बगीचे में पानी सींच आओ।' नौकर बोला- 'महाशय ! इसकी जरूरत नहीं है। वर्षा हो रही है तब पानी सींचकर क्या करूं?' मालिक ने कहा- 'वर्षा से डरते हो तो छाता ले जाओ। पानी तो सींचना ही होगा।' अब आप देखिये, वर्षा हो रही है, फिर पानी सींचने की क्या जरूरत है ? कोई नहीं। किन्तु मालिक कह रहा है कि वर्षा हो रही है तो होने दो। भींगने
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