Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 100
________________ परिणामि नित्य कहा—'महाराज ! यह पुद्गलों का स्वभाव है।' उसने राजा के भाव की तीव्रता को अपनी भावभंगी से मंद कर दिया। बात वहीं समाप्त हो गई। कुछ दिन बाद मंत्री ने राजा को अपने घर भोजन के लिए निमन्त्रित किया। भोजन के मध्य राजा ने पानी पीया-अत्यन्त निर्मल, अत्यन्त मधुर और अत्यन्त सुगन्धित । राजा बोला-'मंत्री ! यह पानी तुम कहां से लाते हो? इच्छा होती है एक गिलास और पीऊं। मैं तुम्हें अभिन्न मानता हूं, किन्तु तुम मुझे वैसा नहीं मानते । तुम इतना अच्छा पानी पीते हो, मुझे कभी नहीं पिलाते ।' मंत्री मुस्कराया और बोला---'महाराज ! यह पानी उस खाई से लाता हूं, जहां आपने नाक-भौं सिकोड़ी थी और कपड़े से नाक ढंकी थी।' राजा ने कहा- 'यह नहीं हो सकता। यह पानी उस खाई का कैसे हो सकता है?' मंत्री अपनी बात पर अटल रहा । राजा ने उसका प्रमाण चाहा। मंत्री ने उस खाई का पानी मंगवाया। राजा की देख-रेख में सारी प्रक्रियाएं चलीं और वह पानी वैसा ही निर्मल, मधुर और सुगंधित हो गया जैसा राजा ने मंत्री के घर पीया था। केवल पानी ही क्या, हर वस्तु बदलती है । परिणमन का चक्र चलता रहता है, वस्तुएं बदलती रहती हैं । 'ओघ' शक्ति की दृष्टि से हम किसी पौद्गलिक पदार्थ को काला या पीला, खट्टा या मीठा, सुगंधमय या दुर्गंधमय, चिकना या रूखा, ठंडा या गर्म, हल्का या भारी, मृदु या कर्कश नहीं कह सकते । एक नीम के पत्ते में वे सारे धर्म विद्यमान हैं जो दुनिया में होते हैं। किन्तु 'समुचित' शक्ति की दृष्टि से ऐसा नहीं है। उसके आधार पर देखें तो नीम का पत्ता हरा है, चिकना है। उसकी अपनी एक सुगंध है। वह हल्का है और मृदु है । हमारा जितना दर्शन है, वह आनुभविक और प्रात्ययिक है। पर्याय-परिवर्तन के द्वारा वस्तुओं में बहुत सारी बातें घटित होती हैं। उनमें ऊर्जा की वृद्धि और हानि भी है । ऊर्जा परिणमन के द्वारा ही प्रकट होती है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया कि द्रव्य (Mass) को शक्ति (Energy) में और शक्ति को द्रव्य में बदला जा सकता है । इस द्रव्यमान, द्रव्य-संहति और शक्ति के समीकरण के सिद्धांत की व्याख्या परिणामि-नित्यवाद के द्वारा ही की जा सकती है। आइन्स्टीन से पहले वैज्ञानिक जगत् में यह माना जाता था कि द्रव्य को शक्ति में और शक्ति को द्रव्य में नहीं बदला जा सकता। दोनों स्वतन्त्र हैं। किंतु आइन्स्टीन के बाद यह सिद्धांत बदल गया। यह माना जाने लगा कि द्रव्य और शक्ति-ये दोनों भिन्न नहीं किन्तु एक ही वस्तु के रूपांतरण हैं । एक पौंड कोयला लें और उसकी द्रव्य-संहति को शक्ति में बदलें तो दो अरब किलोवाट की विद्युत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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