Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 93
________________ ८० उनका अभ्युपगम है कि जिस प्रकार वस्तु के लिए मन की आवश्यकता है उसी प्रकार मन को मनन करने के लिए वस्तु की आवश्यकता है । अनेकान्त दर्शन ने जात्यन्तर के सिद्धांत की स्थापना की। उसका तात्पर्य यह है कि भेद और अभेद जैसा स्वतन्त्र गुण कोई नहीं है। जहां भेद है वहां अभेद है और जहां अभेद है वहां भेद । भेदाभेद ही वास्तविक है । ज्ञाता ज्ञेय से सर्वथा भिन्न नहीं है । यदि वह ज्ञेय से सर्वथा भिन्न हो तो उनमें ज्ञाता और ज्ञेय का सम्बन्ध नहीं हो सकता । यदि वह सर्वथा अभिन्न हो तो भी उनमें ज्ञाता और ज्ञेय का सम्बन्ध नहीं हो सकता । वे भिन्न-भिन्न हैं । ज्ञाता और ज्ञेय का अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर नहीं है, इसलिए वे स्वतंत्र हैं । ज्ञाता और ज्ञेय का सम्बन्ध परस्पराश्रित है, इसलिए परस्पराधीन हैं । शेलिंग' का यह तर्क' विषयों की सिद्धि पर उनकी ज्ञाता आत्मा की सिद्धि और ज्ञाता की सिद्धि पर उनके ज्ञेय विषयों की सिद्धि निर्भर है, अर्थपूर्ण नहीं है । मूल आधार अस्तित्व है । ज्ञाता और ज्ञेय एक सम्बन्ध हैं । अस्तित्व होने पर सम्बन्ध होता है । सम्बन्ध से अस्तित्व नहीं होता । 'होना' और 'सिद्ध होना' - दोनों एक बात नहीं हैं । परमाणु के सिद्ध होने से पूर्व वह नहीं था यह नहीं माना जा सकता । सिद्धि ज्ञान के विकास पर निर्भर है, किन्तु अस्तित्व ज्ञान पर निर्भर नहीं है। उसकी निर्भरता अपने मौलिक गुणों पर है । हम केवल पौद्गलिक वस्तु को ही नहीं जानते, चेतन द्रव्य को भी जानते हैं । ज्ञाता चेतन ही होता है, किन्तु उसे ज्ञेय चेतन और अचेतन — दोनों हो सकते हैं। जैसे पौद्गलिक वस्तु ज्ञान से स्वतंत्र है वैसे ही एक आत्मा से दूसरी आत्माएं स्वतंत्र हैं। आत्माएं अनेक हैं । इसलिए जो आत्मा दूसरों का ज्ञान करते समय ज्ञाता होती है वह दूसरी आत्मा के द्वारा ज्ञेय हो जाती है। पौद्गलिक वस्तु में केवल ज्ञेय धर्म होता है, किन्तु आत्मा में ज्ञाता और ज्ञेय - ये दोनों धर्म होते हैं । महान् दार्शनिक काण्ट का यह वाक्य - 'विचार को वस्तु नहीं बनाना चाहिए' जितना सत्य है उतना ही यह सत्य है कि 'वस्तु को विचार नहीं बनाना चाहिए ।' अनेकान्तवाद ने विचार और वस्तु — दोनों की सापेक्ष व्याख्या की है। परम अस्तित्व के जगत् में विचार और कहीं है। अपर अस्तित्व के जगत् में विचार से वस्तु भिन्न है । प्रत्ययवादी शेलिंग ने यह स्वीकार किया है कि आत्मा और अनात्मा एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं। एक ही स्थिति दूसरे के बिना नहीं हो सकती।' इस स्वीकार १. पाश्चात्य दर्शनों का इतिहास, पृष्ठ १७४ | सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में Jain Education International For Private & Personal Use Only • www.jainelibrary.org

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