Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 94
________________ प्रत्ययवाद और वस्तुवाद ८१ को अनेकान्तवाद का समर्थन मिलता है। उसके अनुसार जो सत् है वह अप्रतिपक्ष सहित होता है। प्रतिपक्ष के बिना पक्ष की सिद्धि नहीं हो सकती। इस स्थिति में वस्तुवाद भी सत्यांश है। प्रत्ययवाद और वस्तुवाद एक-दूसरे से निरपेक्ष होकर असत्यांश हो जाते हैं और परस्पर-सापेक्ष होकर सत्यांश बन जाते हैं । परम अस्तित्व की स्वीकृति के बिना वस्तु और उसके पारस्परिक सम्बन्धों के मूल आधार की व्याख्या नहीं की जा सकती। वस्तु की स्वतन्त्रता की स्वीकृति के बिना विशिष्ट गुणों की व्याख्या नहीं की जा सकती । इन दोनों की सामंजस्यपूर्ण व्याख्या परम अस्तित्व और वस्तु की स्वतन्त्रता की सापेक्ष स्वीकृति द्वारा ही की जा सकती है। १. पाश्चात्य दर्शनों का इतिहास, पृष्ठ १८१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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