Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ ६८ सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में तैजस शरीर के भीतर एक सूक्ष्म शरीर और है । उसका नाम है-कर्म शरीर । दृश्य शरीर आहार के परमाणुओं, तैजस शरीर विद्युत् परमाणुओं और कर्म शरीर वासना, संस्कार और संवेदना सूक्ष्मतम परमाणुओं से निर्मित होता है। कर्म शरीर सर्वाधिक शक्तिशाली शरीर है। यह सब शरीरों का मूल कारण है। इसके होने पर अन्य शरीर होते हैं। इनके न होने पर कोई शरीर नहीं होता। स्थूल शरीर का सीधा सम्पर्क तैजस शरीर से है । तैजस शरीर का सीधा सम्पर्क कर्म शरीर से है और कर्म शरीर का सीधा सम्पर्क चेतना से है। कर्म शरीर चैतन्य पर आवरण डालता है। इसलिए चेतना सर्वात्मना बाह्य जगत् का ज्ञान नहीं कर पाती । आवरण के दो बिन्दु विरल होते हैं, उनमें से झांककर कुछ चैतन्य-रश्मियां बाह्य जगत् को जान पाती हैं। कर्म शरीर स्थूल शरीर के द्वारा आकर्षित बाह्य जगत् के प्रभावों को ग्रहण करता है और चैतन्य के प्रभावों को बाह्य जगत् तक पहुंचाता है । इसके चार मुख्य केन्द्र हैं । उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं १. ज्ञान-केन्द्र। २. सत्य-केन्द्र। ३. आनन्द-केन्द्र। ४. शक्ति केन्द्र। इसके चार गौण केन्द्र इस प्रकार हैं१. संवेदन-केन्द्र। २. निर्माण-केन्द्र। ३. उपलब्धि -केन्द्र। ४. जीवन-केन्द्र। ज्ञान-केन्द्र-इन्द्रियां ज्ञान-केन्द्र हैं। उनके संस्थान स्थूल शरीर में निर्मित होते हैं। पर ज्ञान का मूल स्रोत स्थूल शरीर नहीं है । ये संस्थान एक प्रकार से अभिव्यक्ति केन्द्र हैं । ज्ञान की धारा कर्म-शरीर के माध्यम से उनमें संक्रांत होती है । स्थूल शरीर में जितने भी ज्ञान-केन्द्र हैं वे सब कर्म-शरीर द्वारा संप्रेषित ज्ञान-धारा के संवाहक हैं। कर्म शरीर के जितने द्वार खुलते हैं उतने ही ज्ञान-केन्द्र स्थूल शरीर में निर्मित होते हैं। आनन्द, शक्ति और संवेदन के केन्द्र भी कर्म-शरीर में होते हैं। उनका प्रतिबिम्ब स्थूल शरीर में होता है। सुख-दुःख का अनुभव भी कर्म-शरीर को होता है। घटना स्थूल शरीर में घटित होती है। उसका संवेदन कर्म-शरीर में होता है। मादक वस्तुओं का प्रयोग करने पर स्थूल शरीर और कर्म-शरीर का सम्बन्ध विच्छिन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122