Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 83
________________ ७० सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में है । ज्ञान अनावृत, आनन्द अबाधित और शक्ति अप्रतिहत हो जाती है । तैजस शरीर (प्राण शरीर या प्राणशक्ति) भी तपस्या से विकसित होता है । किन्तु तपस्या का मुख्य कार्यक्रम शरीर को प्रकंपित करना है । अनशन, ऊनोदरी (आहार की अल्पता), वृत्ति-संक्षेप (आहार-विषयक संकल्प), रस- परित्याग, कायक्लेश और प्रतिसंलीनता (इन्द्रिय- संयम या प्रत्याहार) — तपस्या के ये छह प्रकार स्थूल शरीर के माध्यम से कर्म - शरीर को प्रकंपित करते हैं, इसलिए भगवान् महावीर ने उन्हें बाह्य तप (बहिरंग योग ) कहा है । प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य (सेवा), स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग (कषाय-त्याग और कायोत्सर्ग) — तपस्या के ये छह प्रकार मन के माध्यम से कर्म- शरीर को प्रकंपित करते हैं, इसलिए भगवान् महावीर ने उन्हें आन्तरिक तप ( अन्तरंग योग ) कहा है । स्थूल शरीर के माध्यम से होने वाले कर्म- शरीर के प्रकंपनों की अपेक्षा मन के माध्यम से होने वाले प्रकंपन अधिक शक्तिशाली होते हैं। उनकी चोट भीतरी और गहरी होती है । इसीलिए उनके द्वारा कर्म- शरीर के परमाणुओं का अधिक मात्रा में विकिरण होता है । 1 ४. प्राणवायु / शरीर में कम्पन होता है। फेफड़ा रक्त का शोधन करता है । हृदय उसको फेंकता है। वहां से उसका समूचे शरीर में अभिसरण होता है। धमनियों में अशुद्ध रक्त जाएगा तो विकृति पैदा करेगा । उससे शरीर में मंदता, शिथिलता और आलस्य पैदा होगा। शुद्ध रक्त जाएगा तो शरीर की क्षमता बढ़ेगी। काम करने की शक्ति बढ़ेगी । हृदय का काम रक्त को फेंकने का है। उसकी सफाई करने का नहीं सफाई करने का काम फेफड़े का है। रक्त शरीर में घूमा । उसमें बहुत सारी विकृतियां मिल गईं। फुफ्फुस यंत्र ने उसके विषों को अलग कर उसे निर्दोष बना दिया। यह रक्त की सफाई प्राणवायु के द्वारा होती है । फुफ्फुस प्राणवायु के द्वारा रक्त को छानता है । उसमें जो कार्बन-डाइ-ऑक्साइड जमा होता है उसे निकाल देता है। फेफड़े में पहुंचते-पहुंचते खून का रंग नीला हो जाता है। सफाई होने पर उसकी रक्तिमा प्रकट हो जाती है। फेफड़े को प्राणवायु पूरा मिलता है तो रक्त पूरा शुद्ध हो जाता है । प्राणवायु पूरा नहीं मिलता तब तक रक्त पूरा शुद्ध नहीं होता। हम प्राणवायु को पूरा लेना नहीं जानते । पूरा श्वास लेना नहीं जानते। हम श्वास लेना नहीं जानते, यह कहना अटपटी-सी बात लगती है । हम गूढ़ सत्य को नहीं जानते । यह बात समझ में आ सकती है किन्तु श्वास जैसी साधारण बात के लिए यह कहा जाए कि हम श्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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