Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 78
________________ साधना का मार्ग प्रस्तुत होता है तो फिर घबराहट क्यों? घबराहट होने का कारण शरीर का छूटना नहीं किन्तु उसका ममत्व है। मन का ममत्व नहीं छूटता इसलिए मौत के क्षण में काया के छूट जाने पर भी कायोत्सर्ग नहीं होता। जिस क्षण मूर्छा का बन्धन शिथिल होता है उस क्षण शरीर का तनाव मिट जाता है, कायोत्सर्ग अपने-आप सध जाता कायोत्सर्ग से तनाव दूर होता है और बाहरी प्रभावों से बचाव भी होता है। भगवान् महावीर से पूर्व की घटना है। भगवान् पार्श्व के शिष्य साधना कर रहे थे। उनमें प्रमुख थे मुनि सुदर्शन । उस समय एक महामांत्रिक था । उसका नाम था सुकर्ण कापालिक । वह मन्त्र की साधना कर रहा था । उसे बलि देने के लिए सर्व-लक्षण-सम्पन्न पुरुष की अपेक्षा थी। एक दिन सुदर्शन मुनि कुछ साधुओं के साथ सुकर्ण के आश्रम के पास पहुंचे । सुकर्ण के शिष्यों ने उन्हें देखा । उन्होंने सुकर्ण को सूचना दी—'अपने आश्रम के पास कुछ जैन मुनि आ रहे हैं। उनमें जो अग्रणी है वह सर्व-लक्षण-सम्पन्न है। उसकी बलि दी जा सकती है।' सुकर्ण ने अपने कर्मकारों को भेजा। वे सुदर्शन मुनि को पकड़कर आश्रम में ले आए। मुनि ने देखा, सामने देवी की मूर्ति है । स्थान-स्थान पर रक्त से सनी खोपड़ियां पड़ी हैं। वे समझ गए—मैं बलि के लिए लाया गया हैं। उनके मन में न कोई चिन्ता और न कोई भय। उन्हें बलि की वेदी पर ले जाकर खड़ा किया गया। वे कायोत्सर्ग कर ध्यान में लीन हो गए। सुकर्ण ने मन्त्र का उच्चारण किया। उनके मुख्य शिष्य चंड ने मुनि के बध के लिए तलवार उठाई। वह गले तक पहुंचते-पहुंचते हाथ से गिर गई। चंड भी गिर पड़ा। जितने भी धूप-दीप थे वे सब गिर पड़े। सुदर्शन अपने स्थान पर खड़े रहे । कुछ समय बाद कायोत्सर्ग पूरा कर उन्होंने देखा कि सब लोग मूर्च्छित पड़े हैं। वे बाहर गए। प्रतीक्षा में खड़े मुनियों को साथ ले वे आगे चले गए। सुकर्ण और उसके शिष्य की मूर्छा भंग हुई। उन्होंने देखा, मुनि वहां नहीं हैं। सुकर्ण उस युग का सबसे बड़ा मांत्रिक था। उसके चंगुल में फंसा हुआ व्यक्ति इस प्रकार मुक्त होकर चला जाए, यह उसके लिए घोर अपमान की बात थी। वह क्रुद्ध हो उठा। उसने मुनि को मारने के लिए एक यज्ञ प्रारम्भ किया। महाज्वाला की साधना प्रारम्भ की । सात पुरुषों की बलि दी। महाज्वाला प्रकट हुई। उसने कार्य का निर्देश चाहा। सुकर्ण बोला-'सुदर्शन मुनि को, उसके परिवार के साथ जला डालो।' महाज्वाला वहां पहुंची। कुछ मुनि सुदर्शन के साथ-साथ चल रहे थे। एक वृद्ध मुनि कुछ आगे-आगे चल रहे थे। उनके पैरों के पास ज्वाला भभक उठी। वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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