Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 52
________________ मनुष्य की स्वतन्त्रता का मूल्य उसके उपकरण शक्तिशाली हैं और पुरुषार्थ की क्षमता बहुत बढ़ी है। आदिम युग का मनुष्य केवल प्रकृति पर निर्भर था। वर्षा होती तो खेती हो जाती। एक एकड़ भूमि में जितना अनाज उत्पन्न होता उतना हो जाता। अनाज को पकाने में जितना समय लगता, उतना लग जाता । आज का मनुष्य इन सब पर निर्भर नहीं है। उसने सिंचाई के स्रोतों का विकास कर वर्षा पर निर्भरता को कम कर दिया। उसने रासायनिक खाद का निर्माण कर अनाज की पैदावार में अत्यधिक वृद्धि कर दी और कृत्रिम उपायों द्वारा फसल के पकने की अवधि को भी कम करने का प्रयत्न किया है । पुरुषार्थ के द्वारा काल की अवधि और स्वभाव के परिवर्तन के सैकड़ों उदाहरण सभ्यता के इतिहास में खोजे जा सकते हैं । काल, स्वभाव आदि को ज्ञान का वरदहस्त प्राप्त नहीं है, इसलिए वे पुरुषार्थ को कम प्रभावित करते हैं। पुरुषार्थ को ज्ञान का वरदहस्त प्राप्त हैं, इसलिए वह काल, स्वभाव आदि को अधिक प्रभावित करता है। उनको प्रभावित कर वर्तमान को अतीत से भिन्न रूप में प्रस्तुत कर देता है। इमान्युएल कांट (Immanuel Kant)ने विचार का प्रतिपादन किया है कि मनुष्य अपनी संकल्प-शक्ति में स्वतन्त्र है, इसीलिए कर्म करने और शुभ-अशुभ फल भोगने में भी स्वतन्त्र है। यदि वह कर्म करने में स्वतन्त्र न हो तो वह कर्म करने और उसका फल भोगने के लिए उत्तरदायी नहीं होता। भारतीय कर्मवाद का यह प्रसिद्ध सूत्र है कि अच्छे कर्म का अच्छा और बुरे कर्म का बुरा फल होता है। मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल भोगता है । इस सूत्र की मीमांसा से यह निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य नया कर्म करने में पुराने कर्म से बंधा हुआ है। वह कर्म करने और उसका फल भोगने में स्वतन्त्र नहीं है। यदि ऐसा है तो उसे किसी भी अच्छे या बुरे कर्म के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। उसका वर्तमान अतीत से नियंत्रित है। वर्तमान का अपना कोई कर्तृत्व नहीं है। वह अतीत की कठपुतली मात्र है। कर्मवाद के इस सामान्य सूत्र ने भारतीय मानस को बहुत प्रभावित किया। उसे भाग्यवाद के सांचे में ढाल दिया। उसके प्रभाव ने पुरुषार्थ की क्षमता क्षीण कर दी। महावीर ने पुरुषार्थ के सिद्धांत का प्रतिपादन किया । उनका पुरुषार्थवाद भाग्यवाद के विरोध में नहीं था । भाग्य पुरुषार्थ की निष्पत्ति है। जो जिसके द्वारा निष्पन्न होता है, वह उसके द्वारा परिवर्तित भी हो सकता है। महावीर ने कर्म के उदीरण और संक्रमण के सिद्धांत का प्रतिपादन कर भाग्यवाद का भाग्य पुरुषार्थ के अधीन कर दिया। कर्म के उदीरण का सिद्धांत है कि कर्म की अवधि को घटाया-बढ़ाया जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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