Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 74
________________ साधना का मार्ग अपने बहुमूल्य सामान की सुरक्षा के लिए उसमें रह रहे हैं । उस कारागृह में रहना सबके लिए जरूरी है। पर रहने का अर्थ एक नहीं है। कोई व्यक्ति कष्ट पाने के लिए उसमें रहता है और कोई कष्ट से मुक्ति पाने के लिए उसमें रहता है। साधना का संकल्प होता है—सब दुःखों से छुटकारा पाना । भगवान् महावीर ने कहा-'साधना का मार्ग सब दुःखों से मुक्ति दिलाने वाला है।' साधक एक ओर उस मार्ग पर चले और दूसरी ओर दुःखों को आमंत्रित करे-इन दोनों में कोई संगति नहीं हो सकती। जब दुःख के वलय को तोड़ना है तो फिर उसका वरण नहीं हो सकता । काय-क्लेश का अर्थ दुःखों को आमंत्रित करना नहीं हो सकता। शरीर को सताना, उसे दुःख देना, परम धर्म नहीं हो सकता। शरीर को कष्ट देना और शरीर में कष्ट आना-ये दो बातें हैं। पहली बात, शरीर अचेतन है । अचेतन में हमारे प्रति शत्रुता का भाव नहीं है । फिर हम उसे क्यों कष्ट दें? दूसरी बात, वह हमारी प्रगति में सहायक है । जो सहायक है उसे हम क्यों सताएं? हम उसे इतना शक्तिशाली बनाएं जिससे वह आने वाले कष्ट को झेल सके। इसलिए भगवान् महावीर ने शरीर की साधना के दो सूत्र दिए-कायक्लेश और कायोत्सर्ग । कायक्लेश काया की सिद्धि का सूत्र है। इस जगत् में भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि अनेक द्वंद्व हैं। उन द्वन्द्वों को सहन करने की क्षमता उत्पन्न करने पर काया की सिद्धि हो जाती है। कायोत्सर्ग काया की मुक्ति का सूत्र है । शरीर का शिथिलीकरण करते-करते हम उस स्थिति में पहुंच जाते हैं जहां शरीर का बन्धन नहीं रहकर एक शक्ति का वलय मात्र रह जाता है। यह तनावमुक्ति की साधना है। कायक्लेश में कुछ तनाव होता है, मात्र शारीरिक । मानसिक तनाव की मुक्ति के लिए शारीरिक तनाव उत्पन्न करना और फिर उसे भी कायोत्सर्ग की साधना से विसर्जित कर देना—यह साधना का एक महत्त्वपूर्ण रहस्य है। __ साधक का पहला संकल्प होता है-आत्मा और शरीर की भिन्नता का अनुभव करना । आत्मा और शरीर भिन्न है तो फिर शरीर को सताने की बात कैसे हो सकती है ? आत्मा और शरीर एक हो तो भी शरीर को सताने की बात कैसे हो सकती है ? साधना में शरीर को सताने की बात किसी भी दृष्टि से प्राप्त नहीं होती । काया के साथ जुड़ा हुआ 'क्लेश' शब्द उलझन में डालता है। उसी शब्द के आधार पर काया को कष्ट देने की धारणा भी बन जाती है पर 'क्लेश' शब्द ध्वनित नहीं करता कि शरीर को कष्ट दो या प्राप्त कष्ट को सहो । कायक्लेश एक तप है । तप की ध्वनि कष्ट देने की नहीं हो सकती। उसकी ध्वनि कष्ट सहने की हो सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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