Book Title: Satya ki Khoj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 29
________________ सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में पवित्र और कितना कषायमुक्त है। जैन धर्म में दीक्षित होने वाला मुक्त नहीं भी हो सकता और अन्य धर्म में दीक्षित होने वाला मुक्त हो सकता है— इसका प्रतिपादन कर महावीर ने धर्म का सम्प्रदायातीत और भेदातीत स्वरूप जनता के सामने प्रस्तुत किया । १६ धर्म आत्मा की आन्तरिक पवित्रता है, इसलिए उसका किसी जाति, वर्ग और सम्प्रदाय से सम्बन्ध नहीं हो सकता, किन्तु धर्म का बाहरी रूप सम्प्रदाय में प्रकट होता है, इसलिए वह जाति और वर्ग से भी जुड़ जाता है । महावीर ने अपने धर्म-शासन का द्वार सब जातियों और सब वर्गों के लिए खुला रखा था। उन्होंने कल्पना ही नहीं की होगी कि उनका धर्म - शासन किसी एक जाति या वर्ग से जुड़कर दूसरों के लिए द्वार बन्द कर देगा। किन्तु काल की गति ने ऐसा घटनाचक्र प्रस्तुत किया कि महावीर का मानवीय एकता का पक्षधर धर्म- शासन मानवीय अनेकान्त का पक्षधर हो गया । हम महावीर के मानवीय एकता के सिद्धान्त को विश्व के सामने प्रस्तुत कर सकते हैं । किन्तु महावीर के आधुनिक धर्म-शासन को मानवीय एकता के पक्षधर के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकते । अपरिग्रह मानवीय एकता का महान् सिद्धान्त है । इसे विश्व के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है, किन्तु जैन समाज को इसके उदाहरण के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता । अनेकान्त मानवीय एकता का महान् सिद्धान्त है । इसे जागतिक समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। किन्तु आधुनिक जैन शासन को सापेक्षता और समन्वय के महान् प्रयोगकार घटक के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता । सिद्धान्त और व्यवहार के इस अन्तर्विरोध को देखकर प्रश्न होता है— क्या ये सिद्धांत केवल मनोग्रही और बुद्धिग्राही हैं या व्यावहारिक भी हैं? यदि ये व्यावहारिक नहीं हैं तो इनको प्रस्तुत करने से क्या लाभ ? यदि ये व्यावहारिक हैं तो जैन शासन इनके व्यवहार से वंचित क्यों ? काल-चक्र की घटनाओं ने जैन शासन को इतना प्रभावित किया कि वह महावीर के मौलिक सिद्धान्तों की प्रयोग- भूमि नहीं रह सका । आज उस जैन शासन की अपेक्षा है जो महावीर के महान् सिद्धान्तों का प्रतिनिधि हो, जिसे महावीर के धर्म-शासन का उत्तराधिकार प्राप्त हो सके। इसकी अर्हता विश्व का कोई भी अंचल प्राप्त कर सकता है । इस दृष्टि से मैं मान सकता हूं कि जैन धर्म विश्व धर्म है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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