Book Title: Sarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Author(s): Kalapurnsuri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 11
________________ ( १० ) जिस प्रकार आकाश समस्त पदार्थों का आधार है, उसी प्रकार से सामायिक समस्त ज्ञान आदि गुणों का आधार है; क्योंकि सामायिक विहीन जीव चारित्र आदि गुण कदापि प्राप्त नहीं कर सकते । अतः जिनेश्वर देवों ने शारीरिक, मानसिक समस्त दुःखों के नाशक मोक्ष के अनन्य साधन के रूप में "सामायिक धर्म" को ही माना है । सामायिक क्या है ? जिसकी आत्मा संयम, नियम एवं तप से तत्पर बनी हुई है, तथा जो समस्त जीवों को आत्मवत् मानकर उनकी रक्षा करता है, उसे ही सर्वज्ञकथित वास्तविक "सामायिक" होती है । समता की प्राप्ति अथवा ज्ञान आदि गुण सम्पत्ति की प्राप्ति सामायिक का सामान्य अर्थ है । “सामायिक" की विशिष्ट व्याख्या एवं उनके रहस्य " आवश्यक सूत्र निर्युक्ति" एवं "विशेषावश्यक भाष्य" आदि ग्रन्थों में विस्तृत रूप से वर्णित हैं जिसके संक्षिप्त सार पर हम यहाँ विचार करेंगे । सामायिक के मुख्य तीन भेद साम- - यह सामायिक मधुर परिणाम रूप है । (२) सम - - यह सामायिक तुल्य (स्थिर) परिणाम रूप है । (३) सम्म (सम्यक् ) – यह सामायिक तन्मय परिणाम रूप है । प्रथम साम सामायिक शक्कर के स्वाद तुल्य है और यह सम्यक्त्व सामायिक स्वरूप है । द्वितीय सम सामायिक तराजू के समान है जो श्रुत सामायिक स्वरूप है । तृतीय सम्म सामायिक खीर-शक्कर के समान है जो चारित्र सामायिक स्वरूप है | उपर्युक्त तीनों प्रकार के परिणामों को आत्मा में प्रविष्ट कराना अर्थात् प्रकट करने का नाम सामायिक है । ( १ ) साम सामायिक का स्वरूप मैत्री, अहिंसा, करुणा, अभय, मृदुता, क्षमा, भक्ति आदि के भावों से युक्त आत्मा के परिणाम निर्मल होते हैं तब एक अपूर्व माधुर्यं का अनुभव होता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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