Book Title: Sannyas Diksha Pratibandhak Nibandhna Musadda Uper Vichar Karva Nimayeli Samitinu Nivedan
Author(s): Sanyas Diksha Pratibandhak Samiti
Publisher: Sanyas Diksha Pratibandhak Samiti
View full book text
________________
आवी तेने रुद्राक्षनी माळा पहेराववामां आवे छे. भगवा कपडा पहेराववामां आवे छे, हाथमा दंड आपवामां आवे छे, अने गीरी, पुरी, वन, तीरथ, आश्रम, सरस्वती विगेरे जेने छेडे आवे तेवां नवां नाम आपवामां आवे छे. परंतु आ शिवाय बीजा पण सन्यास ले छे अथवा संन्यास लीधो होय एवो डोळ करे छे. अने जोगी, योगी विगेरे नामथी ओळखाय छे. कोईपण न्यातनो इसम जोगी के योगी थई शके छे. योगीओमां केटला संप्रदायो पण होय छे तेमां कानफटी, अने ओघड ए बे मुख्य छे. तेओ रुद्राक्ष पहेरे छे, लंगोटी वाळे छे अथवा गेरु रंगनां कपडां पहेरे छे, माथे जटा राखे छे अने कपाळमां तथा शरीरे भभूत लगाडे छे. तेओ कोई मठमा रहे छे अगर फरता फरे छे. कानफटीना कानना निचला भागमां लाकडानी चरकी घालेली होय छे अने तेमनां नामने छेडे · नाथ ' शब्द लगाडेलो होय छे. ओघडना नामने छेडे ' दास ' लगाडे छे, अने काळा दोरामां परोवेली लाकडानी भूगळी तेमना गळा उपर लटकती राखे छे. आवा योगीओमा केटलाक संस्कारी अने चारित्रवान होय छे. पण मोटो भाग अज्ञान, ढोंगी अने मात्र पेटने माटे योगी, जोगी के साधु बनेलो होय छे. आवा योगी संसारमा पाछा आवेला ते उपरथी गोसांई, जोगी, रावळीया, भरथरी विगेरे नवी न्यातो बनेली छे. १६. गुजरातमा (१) शैव अने (२) वैष्णव ए बन्ने संप्रदायमां साधु होय छे.
शैव संप्रदायना साधु (१) ब्रह्मचारी (२) संन्यासी (३) साधु संस्था.
दंडी अगर (४) परमहंस तरीक ओळ'वाय छे. वैष्णवोमा (१) रामानुज (२) रामानंदी (३) रामस्नेही (४) स्वामीनारायण अने (६) संतराम ए मुख्य संप्रदायना साधु होय छे, पुष्टिमार्गी वैष्णव संप्रदायमा आचार्य घरबारी होय छे अने साधु बिलकुल होता नथी; पण स्वामीनारायण संप्रदायमा आचार्य घरबारी होय छे पण साधु ब्रह्मचारी होय छे. इतर संप्रदाय पैकी घणामां आचार्य अने साधु बन्ने ब्रह्मचारी तरीके रहे छे पण तेमना मठमां गृहस्थो तरीकेनो ठाठमाठ होय छे अने तेमनी रहेणी करणी पण गृहस्थोना जेवीज होय छे; फेर मात्र एटलो के तेमनु माथु मुंडावेलं होय छे अने कपडां भगवां होय छे. कमावानी कंई पण तस्दी लीधा वगर तेमना अनुयायीओ तरफथी मळती किंमती भेटोथी तेमणे भोगववाना वैभवनी सर्व जरुरियातो तेमने मळी रहे छे तेथी तेओ संसारीओ करतां पण वधारे सुखचेन भोगवे छे. तेमने जोईता चेला पण सहे जमां मळी आवे छे; कारण के ते पण संसारत्यागनी लागणीथी नहीं पण गादीपति, मठाधिपति वगेरे थवाना लोभथी अगर वगर महेनते मिष्टान्न मळवानी लालचयी दोरवाई साधु थवाने उमेदवार थया होय छे. तेमना पैकी कोई कज 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या' नी खरी भावनाथी साधु थयेला होय छे. खरी साधु भावनावाळा साधु थोडाज होय छे अने ते पोताना गुरुनी पासे दीक्षा लई तेमनी साथे कष्ट भोगवता फरता फरे छे अगर तो जो गुरु मठधारी के मंदीरवाळो होय तो तेना मठ के मंदीरमा रही धर्मग्रंयोनो अभ्यास करे छे अने कोई कोई तो उग्र तप करे छे.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96