________________
पात्रता आवती नथी.' मनुस्मृतिमा पण मनुष्यना जिंदगीना चार भाग करी पहेला त्रण भाग ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम,अने वानप्रस्थाश्रममां गाळी, छेवटना चोथा भागमां संन्यास लेवान कहेलं छे. जाबालोपनिषद्मा कहेलुं छे के मरजी होय तो ब्रह्मचारी के बीजा गमे ते आश्रममाथी संन्यास लई शकाय. कारण के वैराग उपजे के तुरत संन्यास लेवानो छे. जाबालोपनिषदनो मत ते पछीनी स्मृतिमां अने निबंधोमां स्वीकाराएलो छे अने तेथी पहेला आश्रममाथी संन्यास लेवाय तो ते सशास्त्र गणाय छे. वेदन अध्यन करवानु,लग्न करी प्रजा उत्पन्न करवानुं अने यज्ञ करवानुं एत्रण प्रकारना ऋण अदा कर्या पछी मोक्ष माटे संन्यास लई शकाय एम मनुस्मृतिमां कहेलं छे. पण मिताक्षरा प्रमाणे त्रण ऋण अदा करवानुं बंधन कोई ब्रह्मचारी अवस्थामां संन्यास ले तेने लागु पडतुं नथी. कारण के ब्रह्मचारीनु कर्तव्य तो मात्र वेदन अध्ययन करवान छे.५ संस्कार प्रकाशमां पण गृहस्थाश्रम वगेरेमा दाखल थया वगर एकदम संन्यास लेवानी ब्रह्मचारी माटे छूट राखेली छे. नारद परिव्रजक उपनिषदमां जेमनाथी संन्यास लई शकाय नहीं तेमनी यादी आपेली छे ते उपरथी जणाय छे के बाळकथी संन्यास लई शकाय नहीं. बाळक कोने कहेवू ते विषे कंई ठरावेलु जणातुं नथी. पण उपनयननो संस्कार ६ थी ८ वर्षनी उमरे करवा कहेलं छे तेथी जेने उपनयन संस्कार न थयो होय अने जे ब्रह्मचर्याश्रममा दाखल थयो न होय तेने बाळक कही शकाय. पहेलां तो उपनयन थया पछी बाळक तेना गुरुने त्यां अभ्यास करवा जतो; दस बार वर्ष पछी परणवा लायक थाय त्यारे तेने गुरुने त्यांयी घेर तेडी लाववामां आवतो अने घेर पाछो आवी परणे त्यां सुधी ब्रह्मचारी गणातो. हाल तो उपनयन आप्या पछी गुरुने त्यां जवा माटे जराक दोडी गया पछी तेने तुरत घेर लाववामां आवे छे. ब्रह्मचर्याश्रममां दाखल थया पछी अने वेदनो अभ्यास कर्या पछी ब्रह्मचारीने संन्यास लेवो होय तो ते प्रमाणे करवा छुट राखेली छे. १५. हिन्दुधर्मना अनुयायीओमां हालना बखतमां मोटी उमरे पण संन्यास
लेनारा थोडाज होय छे. जे ग्रहस्थाश्रम पूरो करी निवृत्ति हिन्दुधर्ममा जुदा जुदा प्रका- पाम्या होय ते पैकी कोईकज-घणु करीने मात्र ब्राह्मगोरना संन्यास.
मांथी-जिंदगीना छेवटनां वर्षोमां संन्यास ले छे. एवो संन्यास घणी वखत तो मरण पहेलां थोडा वखत अगाऊ लेवामां आवे छे. संन्यासी थवानी इच्छावाळानु माथु मुंडवामां आवे छे. तेने जनोई होय तो ते तोडी नांखवामा
१ याज्ञवल्क्यस्मृति पान १९९. २ मनुस्मृति अध्याय ६ श्लोक ३३. ३ संन्यासोपनिषदमां जाबालोपनिषद पान ४३. ४ मनुस्मृति अध्याय ६ श्लोक ३५. ५ याज्ञवल्क्यस्मृति पान २००. ६ संस्कार प्रकाश पान ५७२. ७ संन्यासोपनिषद पान ६२.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com