Book Title: Sannyas Diksha Pratibandhak Nibandhna Musadda Uper Vichar Karva Nimayeli Samitinu Nivedan
Author(s): Sanyas Diksha Pratibandhak Samiti
Publisher: Sanyas Diksha Pratibandhak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ ४ चेनमां दहाडा काढे छे, तोपण तेमना सामे कोई बोली शकतुं नथी. एमने मुकाबले जैन साधु घणो सारो त्याग राखे छे. ते मात्र एक पहेरवार्नु अने एक ओढवान ए प्रमाणे बे वस्त्रज राखे छे. साधारण साधु श्वेत अने संवेगी पीळास पडतां कपडां रखे छे. पोताना हमेशना उपयोगना माटे लाकडाना (धातुनां नहीं) जळपान अने आहारपात्र, पीतां पहेलां जळ गळवाने माटे जळगरणी, वायुनां जंतुनी हिंसा न थाय एटला माटे मोढे बांधवानी मुखपट्टी (स्थानकवासी साधु आ मुखपट्टो कायमनी मोढे राखे छे), बेसतां जंतुनी हिंसा न थाय एटला माटे बेसतां पहेला ते स्थान वाळीने स्वच्छ करवा मटे एक रजोहरण अने एक दंड एटली वस्तुओ साधु राखी शके छे. मूर्तिपूजक श्वेतांबर साधु ते उपरांत पांच 'अक्ष' (स्थापनाचार्य) ने चंदननी नानी लाकडीओ (ठवमी), एक पुस्तक, के एवी कंई वस्तु पोताना गुरुना स्मरणचिन्ह रूपे राखे छे. साधुए माथु ढांक, न जोईए अने हजामत न करावतां बाळ पोताने हाथे खेची काढवा जोईए (पण आज काल तो ए दुःख जनक विधिने बदले कातरनो उपयोग पण करवामां आवे छे ); तेणे सर्व प्रकारना विलासनो त्याग करवो जोईए; तेणे न तो न्हावु के न तो दातण करईं; तेणे खुल्लो जमीन उपर के बीजी कोई कठण पथारी उपर सूq; तेणे देवता सळगावयो नहीं अने रसोई रांधवी नहीं पण जैन गृहस्थाने त्यांथी भिक्षा मागी लावीने खावू; जैनेतरने त्यां भिक्षा माटे जवू नहीं; भिक्षा मागवा दिवसमा एकजवार जq अने जे घरनां बारणां उघाडां होय तेज घेर जवू; गृहस्यने घेर जे अन्न वध्यु होय अने जेनो उपयोग ते करनार न होय तेज अन्न लेवू अने खास रीते साधु भिक्षाने माटे जे अन्न रंधायुं होय ते न लेवू; साधारण रीते प्रत्येक साधु भिक्षा मागवा जता नथी, पण तेमना पैकी एक जाय छे, ते बीजा साधुओने माटे पण भिक्षा उपाश्रयमा लई आवे छे अने त्यां बधा ते वहेंचो खाय छे. कप९, रजहरण के एवी बीजी साधु जीवनमा उपयोगी चीज स्वीकारी शकाय पण ते उपाश्रयमां आणीने पोताना गरुने चरणे मकवी जोईए. पछी गुरु ते वस्त पको जेने जे आपे ते ते राखे. महावीरना सख्त नियम प्रमाणे तो साधुए एक गाममां एकज दिवस अने नगरमां पांचज दिवस रहेQ जोईर. पछीना समयमा आ आज्ञाने जरा शिथील करी एक गाममां वधारेमा वधारे एक सप्ताह मधी अने एक नगरमां वधारेमां वधारे एक मास सुधी रही शकाय एम ठराव्युं छे. वरसादनी ऋतुमां-चातुसिमां-तो सर्व साधुए विहार अटकावी दई एकज स्थाने चार मास रहो जq जोईए के जेयी जीव हिंसा थाय नहीं. वळी मुख्यत्वे करीने पगे चालीने फरवार्नु होवायी तेने माटे पण चोमासा पछी अनुकूळता थाय. साधु साध्वीओए तेमने माटे श्रावकोए बांधेला जूदा जू हा उपायमांज रहेQ जोईए. आ उपरांत साधु साध्वीना जीवनमा पाटवाना बाजा घणा सखत नियम जैन शास्त्रोमां विगतवार विधिरूपे बतावेला छे. अशुद्धतार्नु अने सांसारिक भावोनू निवारण करवाना अने दीक्षित जीवनने योग्य अभ्यासनी अने तपनी अनुकूळता करवाना हेतुथी ए नियमो घडेला छे. साध्वीओ माटेना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96