Book Title: Sannyas Diksha Pratibandhak Nibandhna Musadda Uper Vichar Karva Nimayeli Samitinu Nivedan
Author(s): Sanyas Diksha Pratibandhak Samiti
Publisher: Sanyas Diksha Pratibandhak Samiti
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४७
स्पष्ट जणाय छे के एक वखत शास्त्रमां जे कार्यनो निषेध कर्यो हतो तेज कार्यने पाछळना आचार्योए देशकाळ जोईने अनुमति आपी हती अने तेने आगम प्रमाण जेवा मानी ते प्रमाणे चालवामां आवतुं हतुं. एटले हालनो देशकाळ जोतां दीक्षानी कमीमां कमी उमरनी हद्द जे ८ वर्षनी छे तेने बदले १६ के तेथी पण ऊंचे वधारवामां आवे तो मां शास्त्रमा आधारे कांई बाघ आवतो होय एम लागतुं नथी. दीक्षा लेवानो जे मुख्य उद्देश तेमां आवा फेरफारथी कई सिद्धांतमां फेरफार थतो नथी पण उलट तेनो उद्देश सारी रीते पार पाडवाने मदद मळे छे.
६३. शास्त्रना ग्रंथोमां
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तो घणे ठेकाणे मोटी उमरनाने दीक्षा आपत्रा कहेलुं छे ते पैकीना थोडा अत्रे रजू करीए छीए आयारंगसूत्रमां कयुं छे के जुवान, प्रौढ अने वृद्ध ए त्रणमांथी मध्यम वयवाळो पाकट बुद्धिनो होवाथी वधारे लायक छे. ' हरिभद्रसूरिए पंचाशक सूत्रमां कहुं छे के आ दुष्माकाळ अशुभ परिणामवाळो छे अने तेथी आ अशुभ काळमां चारित्रनुं पालन मुश्केली भरलुं छे माटे दीक्षा लेवानी इच्छावाळाओ प्रतिमाओनो अभ्यास कर्या पछी दीक्षा लेवी जोईए. २ श्री सुधर्मा - स्वामी बारे अंगनी रचना करो छे तेमां त्रीजा ठाणांग सूत्रना दसमां ठाणांगमां कहुं छे के दस प्रकारना मुंडित होय छे. कान, नाक, आंख, जीभ अने त्वक् स्पर्शन ए पांच इंन्द्रीयथी मुंडित एटले तेना विषयोने जीतनार; क्रोध, मान, माया अने लोभ ए चार कषायथी मुंड; अर्थात् कषायोने फेंकी देनारो; अने दसमो शीर मुंड एटले लोच आदिथी मस्तकना वाळने दूर करनार. दीक्षा आपनारे दीक्षा लेवा आवेला पुरूषने प्रश्न, आचार, कथन अने परीक्षा विगेरे करवानो विधि छेउ ते जोतां पण लायक उमरनोज ते प्रश्नो विगेरे समजी शके अने उत्तर दई शके एम जणाय छे. श्री वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकरमां कह्युं छे के शुद्ध रीते सम्यकत्व अने बार व्रतने पाळनार, भोगनी इच्छाओधी शांत थयेल, वैराग्यनी भावनावाळो, गृहवासने लगता जेना मनोरथ पूरा थयां छे अने पुत्र, पत्नी, स्वामी आदिथी अनुज्ञात ( संमति पामेल ) एवो श्रावक ब्रह्मचर्य ( चोथा व्रत ) ने माटे लायक बने छे. ब्रह्मचर्यनुं व्रत लीधा पछी ते ब्रह्मचारीए शुं करवानुं छे ए विषे ते लखे छे के, चोटली, लंगोट आदि धारीने मौनपणे अने शुद्ध शुभ ध्यान तत्पर ऋण वर्ष रहेवुं जोईए. त्रण वर्ष मन, वचन अने कायाथी शुद्ध ब्रह्मचर्य पाळ्या पछी प्रवृज्या एटले दीक्षा स्वीकारे अने व्रतने ( ब्रह्मचर्यने ) खंडन करनार फरी गृहत्रासमां जाय. हरिभद्रसूरिए पोताना षोडशक
मोटी उमरे दीक्षावाळा माटे शाखना आधारो.
१ अध्यन ८ उद्देश ३ पत्रक २७४.
२ गाथा ४९ तथा ५०.
३ धर्मबिन्दु, अध्या ४, सूत्र २४.
४ आचारदिनकर पृष्ठ ७१.
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