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प्रतो ६००.
पी
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संन्यास दीक्षा प्रतिबंधक निबंधना मुसहा उपर विचार
करवा निमायली समितिनुं
निवेदन
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BARODA
वडोदरा सरकारी छापखानु.
१९३२.
किंमत रु. ०-११-०.
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सन्यास दीक्षा प्रतिबंधक निबंध समितिनुं निवेदन.
अनुक्रमणिका. परिच्छेद अंक.
बाबत.
पृष्ठांक. प्रकरण १ लुं.
प्राथमिक हकीकत. १ वडोदरा राज्यनी धारासभामा रज थयेलो ठराव. २ ठराव पाछो खेंची लेवायो.
दीक्षाप्रतिबंधक निबंधनो खरडो. समितिनी निमणूक. सूचनाओ मंगावी. सूचनाओनो प्रकार.
विशेष खुलासो करी लीधो. ८ निवेदनमा समावेश करेली बाबतो.
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प्रकरण २ जु.
संन्यास. ९ संन्यास लेवानो उद्देश.
इस्लाम धर्म. १० इस्लाम धर्ममां संन्यास नथी.
खिस्ती धर्म. ११ खिस्ती धर्ममां संन्यास नथी.
___झोरोस्ट्रीयन धर्म. १२ झोरोस्ट्रीयन धर्ममा संन्यास नथी.
हिन्दु धर्म. हिन्दु धर्ममां संन्यास. संन्यास क्यारे लई शकाय. हिन्दुधर्ममा जुदा जुदा प्रकारना संन्यास. साधु संस्था. ढोंगी साधु.
2009 va
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परिच्छेद अंक.
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१९
२०
२१
२२
२३
२४
२५
२६
२७
२८
२९
३०
३१
३२
३३
३४
३५
३६
३७
३८
३९
४०
४१
४२
४ ३
४४
२
बाबत.
जैन धर्म.
जैन धर्ममां संन्यास दीक्षा.
जैन धर्मना संप्रदाय - श्वेतांबर अने दिगंबर.
स्थानकवासी संप्रदाय,
तेरापंथी.
जैन धर्ममां दीक्षा.
जैन साधुए पाळवानां पांच व्रतो.
कोण दीक्षा लई शके.
दीक्षा माटे नालायकी.
जैनोमा खरो त्याग.
दीक्षा आपनार गुरुनी लायकात.
दीक्षाना उमेदवारनी परीक्षा करवी. जैन दीक्षानी क्रिया.
आचार्य.
गच्छ.
हिन्दु अने जैन साधु रचनानी सरखामणी.
संघनी साधु उपर असर.
श्रावकोनी साधु उपर सत्ता,
साधुओनी श्रावको उपर सत्ता.
समाजमा अने त्यागी संस्थामां सुधारानी आवश्यकता.
प्रकरण ३ जुं.
अयोग्य दीक्षा अपाय छे के?
अयोग्य दीक्षा.
निर्णय करवाना मुद्दा.
समीरने फोसलाववानो आरोप.
साधुओ दीक्षा माटे नसाडे भगाडे छे के केम? समजवगरनाने दीक्षा अपाय छे !
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सगीरोने छूपी रीते दीक्षा अपाय छे.
सोळवर्षनी उपरनाने दीक्षा लेती वखते माबाप विगेरनी संमतिनी
अपेक्षा.
माता पिता विगेरनी संगतिनी आवश्यकता,
पृष्ठांक
१०
११
११
११
११
१२
१३
१३
१५
१६
१७
१७
2 2 2 2 2
१७
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१९.
२०
२०
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पृष्ठोंक.
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रिच्छेद अंक.
बाबत, ४५ भरणपोषणनी जवाबदारी सबंधी एक जैनमुनिना विचारो. ... ४६. मातापिता अने पत्नीने निराधार मुकवां ए योग्य नथी. ४७ सोळ वर्षनी उमरना दीक्षा लेनार इसमनी तेनी स्त्री पत्येनी फरज. ४८ संघनी संमति.
जैन कॉन्फरन्सोना ठरावो. १० संघनी संमतिनी आवश्यकता नथी.
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प्रकरण ४ धुं. अयोग्य दीक्षा अटकाववा शुं करवू. वेशधारी साधु बनता ककीरो-अने हिंदु साधुओ. ५२ जैन साधु. ५३ जे ते धर्मना अनुयायीओनी फरज, .५४ __ लाला सुखबीरसिंहनो खरडो. १५ सन्यास दीक्षामा मात्र नसाडया भगाडयानो सवाल नथी. ५६ समाजने नुकसान थाय तेवी बाब तो समाज अटकावी शके नहीं
तो ते अटकावधानी राज्यनी फरज.
दीक्षाना विरोधीओनी दलील. ५८ जे ते धर्मना अनुयायीओ सुधारा करे छे ते इच्छवा जोग छे.....
बाळदीक्षा मात्र अपवाद रुप हती. ६० कमीमां कमी १६ वर्षनी अंदर दीक्षा आपवी योग्य नथी. .... ६१ दीक्षा लेवानी उमरमा फेरफार करवाथी धर्मना मूळ सिद्धांतोमां
फेरफार थतो नथी.
गौण बाबतमां करेला फेरफारोनां उदाहरणो. ६३ मोटी उमरे दीक्षावाळा माटे शास्त्रना आधारो. ६४ बाळदीक्षितज विव्दान थई शके एम काई नथी.
६५
प्रकरण ५ मुं.
कायदो. बदोबस्त करवानी बाबतो. कायदो करवानी आवश्यकता. कायदानो अमल केवो थशे. प्रसिद्ध थयेला खरडामां केवो फेरफार करवो ते बाबत.
६६ ६७ ६८
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७२
परिच्छेद अंक.
बाबत.
पृष्ठांक. ६९ १६ वर्षी कमी उमरना माटे दीक्षानो प्रतिबंध. ७० सोळ वर्षनी उमरना विशेष प्रकारनी बुद्धिवाळा बाळको माटे
अपवाद करवानी जरुर नथी. ७१ १६ वर्ष तथा ते उपरनी उमरना सखसो माटे दीक्षा लेवानी
स्त्री के घणीनी समतिनां कारणो. ७३ संधनी संमतिनी अपेक्षा न होवा विषे.
संमति माटे पुरावो केवो होवो जोईए. दीक्षा छोडी देनारनो मिलकत उपरनो हक्क. फरियाद. शिक्षा.
निबंधनो सुधारलो खरडो. ७९ उपसंहार. ८० आभार प्रदर्शन. परिशिष्ट १ लुं.
७५
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२ जु. ३ जं.
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संन्यास दीक्षा प्रतिबंधक निबंध समिति
निवेदन.
प्रकरण १ लुं.
प्राथमिक हकीकत. केटलांक वर्षथी जैन धर्मने लगतां अने बीजां केटलांक वर्तमानपत्रोमां एवी
मतलबनी चर्चा उभी थई छे के जैन धर्मना साधुओ वडोदरा राज्यनी धारासभामा
कुमळी वयना बाळकोने फोसलावीने नसाडी भगाडी रजू थयेलो ठराव.
लई जाय छे अने तेमनां माबाप अगर वालीनी संमति मेळव्या वगर तेमने दीक्षा आपी दे छे; तेथी तेमनां माबापनी स्थिति कफोडी थाय छे एटलुज नहीं पण एवी अयोग्य रीते अपाती दीक्षाने लीधे जैन संघ पैकी एवी दीक्षानो ढोकपिछोडो करनारा अने तेनो विरोध करनारा एवा बे पक्ष पडी कजिया, कंकास अने अरसपरस विरुद्ध लागणी उत्पन्न थाय छे अने कोई कोईवार दिवानी फोजदारी न्यायाधिशीमां फरियादो दाखल थवाना प्रसंग पण आवे छे. ते उपरथी एवी अमिष्ट पद्धति बंध थाय अने दीक्षा आपवा नेवी महत्वनी धर्म संबंधी बाबतनुं नियमन रहे एवा हेतुथी वडोदरा राज्यनी धारासभामां वडोदरा विभाग तरफथी चंटायला सभासद रा. रा. लल्लुभाई किशोरभाई पटेले तारीख १९-१२-१९२९ ने रोज नीचे प्रमाणे ठराव चर्चा माटे रजू को हतो:--
" नाहनी उमरमां माणसोने दीक्षा आपी त्यागी बनाववामां आवे छे, तेथी कुमळी वयनां अने काची बुद्धिनां माणसो समजवगर दीक्षा ले छे अने त्यागी बने छे, तेथी घणा प्रसंगे अनर्थ थाय छे. माटे जेनी उमरना २१ वर्ष पुरा थयां न होय तेवा कोई पण माणस, स्त्री अगर पुरुषने संसार त्यागनी दीक्षा आपी शकाय नहीं तथा जेनी उमरना २१ वर्ष पुरा थयां होय पण ३० वर्ष पुरां थयां न होय तेवा माणसने प्रांत फोजदारी न्यायाधिशीनी परवानगी मेळव्या शिवाय संसारत्याग करवानी दीक्षा आपी शकाय नहीं एवं धोरण ठराववा आ धारासमा श्रीमंत सरकारने विनंति करे छे." २. आ ठरावना संबंधमां धारासभाना अध्यक्ष ( नामदार दिवान) साहेबे
खुलासो को हतो के आ ठरावनी तरफेणमा तेमज ठराव पाछो खेची लेवायो.
' विरुद्धमा जूदी जदी संस्थाओ तथा लोको तरफथी मारा उपर संख्याबंध तारो आवेला छे, तेथी आ बाबतमां तपास करी दीक्षा उपर कई
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कायदेसर अंकुशनी जरुरियात छे के केम तेनो विचार करवामां आवशे. ए उपरथी रा. रा. लल्लुभाईए पोतानो ठराव पाछो खेंची लीधो हतो. ३. आ पछी वर्तमानपत्रोमा थती विशेष चर्चा अने सरकार आगळ आवेली
बीजी हकीकत उपरथी प्रथमदर्शनीय एम जणायुं हतुं दीक्षाप्रतिबंधक निबंधनो खरडो.
5. के साधु, संन्यासी, यति, योगी, वेरागी विगेरे लोको तरफथी अज्ञान बाळकोने संन्यास एटले संसार त्याग करवानी दीक्षा आपवामां आवे छे तेथी अनेक अनर्था थाय छे. ते अटकाववा काईक प्रतिबंध मकवो इष्ट छ माटे परिशिष्ट १ वाळो कायदानो मुसद्दो श्रीमंत सरकार महाराजा सयाजीराव गायकवाड एमनी आज्ञाथी राज्यना न्यायमंत्री तरफथी तैयार करी तारीख ३०-७.३१ नी आज्ञापत्रिकामा प्रसिद्ध करवामां आव्यो हतो अने ते संबंधे कोईने कांई सूचना करवानी होय तो ते खरडो प्रसिद्ध थयानी तारीखथी बे मासनी अंदर मोकलवा जणाव्युं हतुं. ४. ए खरडाना संबंधमा जे सूचनाओ आवे अगर पोताने योग्य लागे तेवी
बीजी मंगावी आ बाबतमा आगळ शी रीते करवु ए समितिनी निमणूक.
विषे सरकारमा निवेदन करवाने दिवान हुकम अंक. . तारीख १५-८-३१ (परिशिष्ट २) थी नीचे प्रमाणे समिति तारीख १५-८-३१ ना रोज निमवामां आवी हती:
प्रमुख. मे. रा. बा. गोविंदभाई हाथीभाई देसाई, बी. ए., एलएल. बी.
(निवृत्त नायब दिवान.)
सभासदो. मे. रा. रा. विष्णु कृष्णराव धुरंधर, बी. ए., एलएल. बी., एडवोकेट.
(न्यायमंत्री, वडोदरा राज्य ). मे. रा. रा. अब्राहम आ. केहीमकर, बी. ए., एलएल. बी.
(निवृत्त न्यायाधीश वडोदरा).
सेक्रेटरी. रा. रा. पुष्करराम वामनराम महेता, एम. ए., एलएल. बी.
(नायब न्यायमंत्री, वडोदरा राज्य ). ५. प्रसिद्ध थएला खरडानी विरुद्धमां अगर लाभमां जेमने जे कांई हकीकत
जाहेर करवी होय ते जाहेर करवा शरुवातमां एक मासनी सूचनाओ मंगावी.
मुदत आपत्रामां आवी हती; ते उपरांत समितिए बीजी बे मासनी मुदत आपी हती अने ते पछी पण जरूर जणाई ते प्रमाणे ए मुदतमां बखतोवखत वधारो को हतो.
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६. समिति तरफ जे सूचनाओ आवी हती तेमा केटलीक कायदो करवानी
विरुद्धनी अने केटलीक कायदो करवानी तरफेणनी हती. सूचनाओनो प्रकार.
कायदो करवानी विरुद्धनी सूचनाओमा मुख्य दलील ए बताववामां आवी हती के दीक्षाथी कई अनर्थ थतो नथी, सगीरोने नसाडी भगाडी लई जई दीक्षा आपवान कहेवामां आवे छे ते खाटुं छे. दीक्षानो प्रतिबंध करवानो कायदो करवानी कंई जरूर नथी अने ते सरकारथी थई शके पण नहीं. जो ते करवामां आवशे तो साधुसंस्थानो नाश थई धर्मने घणी हानि थशे. कायदो करवानी तरफेणनी सूचनाओ एवी मतलबनी हती के कुमळी वयनां बाळकोने माबापनी अने परणेतरनी संमति वगर दीक्षा आपी देवानो प्रकार बने छे तेथी घणु अनिष्ट थाय छे अने ते अटकाववाने कायदो थवानी जरुर छे. कायदो करवानी विरुद्धता के तरफेशनी बधी सूचनाओ जैनधर्मना अनुयायी तरफथी आवी हती. हिंदु, मुस्लीम विगेरे बीजा धर्मना अनुयायीओ तरफथी कायदाना लाभभां के विरुद्धमा कंई पण सूचना आवी नहोती. आ उपरथी एवं अनुमान थई शके छ के श्रीमंत सरकारे करवा धारेला कायदाना संबंधमां जैन शिवाय बीजा कोई धर्मवाळानो विरोध नथी.
७. समिति तरफ आवेली केटलीक सूचनाओना संबंधमा विशेष खुलासो करी विशेष खुलासो करी लीधो.
न लेवानी जरूर जणायायी समितिने योग्य जणायुं ते
- प्रमाणे एकंदर २५ इसमोने समितिए पोतानी रुबरु बोलावी जुबानी तरीके हकीकत पुछी लीधी हती. आ उपरांत वडोदरा कॉलेजना संस्कृतना प्रोफेसर गोविंदलाल भट एम. ए., तथा वडोदरा ओरिएन्टल इस्टीटयुटना डायरेक्टर डॉक्टर बिनयतोष भट्टाचार्य एम. ए., पीएच. डी. पासेथी हिन्दु तथा जैन शास्त्रमांना संन्यास दीक्षा संबंधी फरमाननी नोंध करावी लेवामां आवी हती; तेम प्रमाण तरीके गणाता ग्रंथो पण जोवामां आव्या हता. ८. कायदो करवानी तरफेणमां तथा तेनी विरुद्धमा जे एकंदर हकीकत आवी
हती ते विचारमा लेतां समिति जे निर्णय उपर आवी निवेदनमा समावेश करेली लेने आ निवेदन सादर करवामां आवे छे. प्राथमिक बाबतो.
हकीकतना आ पहेला प्रकरण पछी बीजा प्रकरणमा आपणे त्यां प्रचलित मुख्य धर्मोमां संन्यास दीक्षा संबंधे शी रीते ठरेलुं छे ते टुंकामां दर्शाव्यु छे. दीक्षा आपवामां कंई अयोग्यपणुं थाय छे के केम तेनो विचार त्रीजा प्रकरणमां को छे, ते अटकाववा शुं करQ ते चोथा प्रकरणमां बतान्यु छ; अने कायदो करवानी जरूर छे के नहीं अने होय तो ते केवा प्रकारनो करवो जोईए अने प्रसिद्ध थयेला खरडामां केवो फेरफार करवानी आवश्यकता छ ए पांचमां प्रकरणमा दर्शाव्यु छे.
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प्रकरण २ जॅ.
सन्यास. ९. हिंदु, जैन अने बीजा केटलाक धर्ममां एवी मान्यता छे के कर्यां कर्म
भोगववानां छे अने ज्यां सुधी कर्मनो क्षय थई जीवात्मा संन्यास लेवानो उद्देश.
परमात्मा साथे मळी जई मोक्ष न थाय त्यां सुधी करेला कर्म प्रमाणे पुनर्जन्म लेवो पडे छे. जे कर्मनां फळ माणसयी वर्तमान जीवनमां पूरेपुरा भोगवी लेवातां नयी ते मृत्यु पछी पण वळगी रहे छे अने नवा भवन कारण बने छे. तेवो प्रसंग बने तेटलो थोडो आवे अने कर्मनो क्षय थई मुक्ति मळे एटला माटे संसारना भौतिक प्रयासोने असार मानीने तेनो त्याग करी धार्मिक ध्यान धरवा अने तप करवा हिंदु अने जैन धर्ममा संन्यास लेवामां आवे छे; अने केटलाक धर्ममा संन्यास न लेतां दुनियामां रहीनेज साधुजीवन गाळवामां आवे छे. आ बाबतमा प्रचलित मुख्य धर्म हिंदु, जैन, मुस्लीम, झोरोस्ट्रीयन अने ख्रिस्ती धर्ममां शी रीते ठरेलु छे तेनु टुंकामां दिग्दर्शन करवाथी कायदाना जे खरडानो समितिए विचार करवानो छे ते उपर कई अजवाळु पडी, तेनो योग्य निर्णय करवाने मदद रूप थशे एम लागवाथी प्रथम ए जूदा जूदा धर्ममा संन्यास लेवा माटे शी रीते ठरेलुं छे ते जोईशं.
____इस्लाम धर्म. १०. इस्लाम धर्ममा संन्यास लेवानें कांई छेज नहीं. ए धर्मना फरमान प्रमाणे
- संन्यास लेवायज नहीं. खुद्द पेगंबर साहेबे फरमान कर्यु इस्लाम धर्ममां संन्यास नथी.
" छे के खुदाए मनुष्य माटे उपयोगनी जे जे वस्तुओ पेदा करी छे तेनो उपभोग करवानुं वर्जित न करवू जोइए.' रमजानमा अपवास करवानु, शराब नहीं पीवानु, पांच वखत बंदगी करवानु, मक्कानी जात्रा करवान ए विगेरे फरमान पेगंबर साहेबे करेलां छे ते संसारमा रही धार्मिक जीवन गाळवाने माटे छे. सर्व कोईए खुदा उपर आकीन राखी पोतपोतानुं कर्तव्य करवानुं फरमान करवामां आव्यु छे पण संसारनो त्याग करी संन्यासी बनी जवान कोई ठेकाणे फरमान करेलं नथी. इस्लाम धर्ममा मुल्लां, मोलवी, मौलाना, पीर विगेरे नामथी ओळखाता विद्वान् धर्मगुरुओ होय छे पण ते लग्न करी घरबारी तरीके रही शके छे. आवा उत्तम कोटीना धर्मगुरुओ उपरांत दरवेश, फकीर विगेरे नामयी अर्धनग्न अगर विचित्र पोशाकमां भीख मागवा माटे रखडता फरता इसमो जोवामां आवे छे ते पण घरबारी तरीके रही शके छे. तेमांना केटलाक फक्कड (कुंवारा) तरीके रहे छे पण एवी रहेणी करणीने इस्लाम धर्मशास्त्रनी कंई अनुमती नथी. फकीरोमां बेशरा अने बाशरा एवा बे विभाग होय छे. बेशरा-शरा विरुद्ध वर्तनारा-परणता नथी पण बाशरा-शरा प्रमाणे वर्तनारा-परणे छे अने घरबारी तरीके रहे छे. फकीरो घणा प्रकारना होय छे पण तेमां
१ वडोदरा राज्यनो १९११ नो सेन्सस रिपोर्ट, पान १०२.
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अब्दाली अथवा डफाली, नक्षबंद, बेनवा, कलंदर, मदारी, मुसा सुहाग, रफै अने रसुल शाही ए मुख्य छे.' सन १९३१ नी वस्ती गणत्री प्रमाणे वडोदरा राज्यमा आवा फकीरोनी संख्या ६,४९५ छे अने ते उपरांत बीजा घणा बहारथी भीख मागवा आवी अहीं तही फरता फरे छे अने गृहस्थो घर आगळ अगर बजारमां दुकानदारोनी दुकान आगळ अल्लाहने नामे पैसा, अनाज विगेरे भीख तरीके ले छे. एवी भीख न आपवामां आवे तो केटलाक तोफान मचावीने पण ले छे.२
ख्रिस्ती धर्म. ११. इस्लामनी पेठे ख्रिस्ती धर्ममां पण संन्यास लेवा जेवं कई नथी. कदाच
कोईने दुनियादारी उपर वितराग आवे तो ते एकान्त ख्रिस्ती धर्ममां संन्यास नथी..
जीवन गाळे छे पण कई संन्यासी थई जतो नथी. धर्मगुरुओ पण घरबारी होय छे. इसवी सन १६०० ना अरसामां खिस्ती धर्ममां सुधारो (रेफर्मेशन) थयो ते पहेलां मठ अने तेमा रहेता साधु साध्वीनी घणी धमाल ते धर्ममा पण हती पण ले पछी तेना प्रोटेस्टंट संप्रदायमांथी ते तद्दन निकळी गई छे अने मात्र रोमन केथोलिक संप्रदाय के जे जूना रीत रिवाजने वळगी रह्यो छे तेमा रहेली छे. पण एवा साधु साध्वी लायक उमरनां थये स्वेच्छाथी दुनियानी उपाधिओथी दूर रहेवा मागता होय तोज साधु साध्वी बने छे. साधु थवा ईच्छनार साधु थती वखते अविवाहित होवोज जोईए एटलुज नहीं पण तेणे २५ वर्षनी वय पहेलां ओछामा ओछा ७-८ वर्ष साधुओनी चालती कॉलेजमां अभ्यास करी परीक्षामा पसार थर्बु जोईए. पसार थया पछी पण बधाने धर्मगुरु ( priest )तरीके लेवामां नथी आवता. रोमन कैथोलिक अने खिस्ती धर्मना एवा बीजा संप्रदायमां पण साधु थवानी भावना दिनप्रतिदिन कमी थती जाय छे. दुनियामां रहीने पोताना उपभोगने माटे जेम बने तेम ओछु खर्चq अने बीजाओने सुखी करवा माटे जेटलुं बने तेटलं बचावी परमार्थ करवानी भावना वधती जाय छे अने ते मुक्तिफोज ( साल्वेशन आर्मी ) अने बीजा संप्रदायना पादरीओ ( मिशनरीओ) मां जोवामां आवे छे. एमां समायलो सेवाधर्म घणो स्तुत्य छे, पण तेने संन्यास दीक्षा साथे कई संबंध नथी.
झोरोस्ट्रीयन धर्म. १२. झोरोस्ट्रीयन धर्मना अनुयायीओमां गृहस्थो बेहदीन कहेवाय छे अने
तेमना धर्मगुरु दस्तुर, अने धर्मक्रिया करनार मोबेद झोरोस्ट्रीयन धर्ममा संन्यास कहेवाय छे. पण दस्तुरो अने मोबेदो पण गृहस्थोनी पेठ नथी.
घरबारी होय छे. वळी मोबेदो पैकी घणा तो हवे पोतानो बापदादाथी चालतो आवेलो धर्मक्रिया करवानो धंधो छोडी दई इतर गृहस्थोनी पेठे
१ कुरान ५, ८९. २ वडोदरा राज्यनो १९११ नो सेन्सस रिपोर्ट, पान १०२. ३ Dictionary of Religion and Ethics Vol. 1. 4.
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वेपार, नोकरी विगेरे पण करे छे. तेमनामां दुनियानो त्याग करी संन्यास लेवान कई होतुं नथी..
हिंदु धर्म. १३. हिंदु धर्ममां श्रुति ( वेद ) अने स्मृति प्रमाणे ब्रह्म सत्य अने जगत् मिथ्या हिंदु धर्ममा संन्यास.
छे अने आखरे जीवात्माए परमात्मामां अंतर्गत थई जवान
' छे तेथी एवो शुभ प्रसंग व्हेलो आवे अने कर्मनी उपाधिमां पडवु न पडे एटला माटे संसारना भौतिक प्रयासोने असार मानी मोक्ष मेळववाने माटे प्राचीन काळथी ध्यान धरवामां अने तप करवामां जीवन गाळवा संन्यास लेवानी रीत दाखल थएली हती. पहेलां तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अने शूद्र ए चार मूळ वर्ण पैकी मुख्यत्वे करीने ब्राह्मणज संन्यास लेता अने ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ अने संन्यास एवा जिंदगीना चार आश्रम ठरावेला हता ते पैकी वानप्रस्यामश्र पूरो कर्या पछी संन्यास लेता. पाछळथी गमे ते आश्रममाथी अने गमे ते वर्णना लेकर संन्यास लेवानी प्रथा पडी गई हती.२ १४. क्यारे संन्यास लई शकाय ९ बाबत शास्त्रना ग्रंथोमां मतभेद छे.
... संन्यासोपनिषद्मा कहेलु छे के जेने वितराग संन्यास क्यारे लई शकाय.
__थयो होय तेज संन्यास लई शके. वितराग थया वगरनो संन्यास ले तो नरकमां पडे. संन्यास वानप्रस्थाश्रम पूरी कर्या पछी लेवाय के तेनी पहेलांना गमे ते आश्रममाथी लई शकाय ए विषे शास्त्रना ग्रंयोमा मतभेद छे. केटलाकनो मत एवो छे के वानप्रस्थाश्रम पूरो कर्या वगर संन्यास लई शकाय नहीं. ब्रह्मचर्याश्रम पूरो कर्या पछी गृहस्थाश्रममां दाखल थई ते पूरो कर्या पछी वानप्रस्थाश्रममा दाखल थर्बु जोईए अने ते पछी मरजी होय तो संन्यास लई शकाय. संन्यासोपनिषद्मा कां छे के पहेलां त्रण आश्रम पूरा कर्या पछी संन्यास लेवानी इच्छा राखनारे तेनां माबाप, स्त्री, पुत्र अने बीजां सगां संबंधीनुं अनुभोदन लेवू जोईए अने पोतानी मिलकतनी धर्मादा वगेरेमा व्यवस्था करवी जोईए.५ कौटिल्यना अर्थशास्त्रमा तो एम पण कहेलं छे के बैरी छोकरांना निर्वाह माटे गोठवण कर्या वगर कोई संन्यास ले तो तेनो राजाए २५० पण दंड करवो जोईए. ब्रह्मचर्याश्रम पूरो कर्या पछी परणवानु, पुत्रोत्पत्ति करवानु, अने यज्ञ करवानुं याज्ञवल्क्य स्मृतिमा फरमाव्यु छे. अने विशेषमा कह्यु छे के ए प्रकारचें ऋण ( देवू ) अदा कर्या वगर मोक्षने माटे संन्यास लेवानी
१ सन १९११ नो वडोदग राज्यनो सेन्सस रिपोर्ट, पान १०४. २ (1) वैखानस धर्म प्रश्न १०.
(२.) यति धर्मसंग्रह १५८. ३ संन्यासोपनिषद, पान ६३, ६४. ४ गौतम धर्मसूत्र, पान २१, २२. ५ संन्यासोपनिषद् २३६.
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पात्रता आवती नथी.' मनुस्मृतिमा पण मनुष्यना जिंदगीना चार भाग करी पहेला त्रण भाग ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम,अने वानप्रस्थाश्रममां गाळी, छेवटना चोथा भागमां संन्यास लेवान कहेलं छे. जाबालोपनिषद्मा कहेलुं छे के मरजी होय तो ब्रह्मचारी के बीजा गमे ते आश्रममाथी संन्यास लई शकाय. कारण के वैराग उपजे के तुरत संन्यास लेवानो छे. जाबालोपनिषदनो मत ते पछीनी स्मृतिमां अने निबंधोमां स्वीकाराएलो छे अने तेथी पहेला आश्रममाथी संन्यास लेवाय तो ते सशास्त्र गणाय छे. वेदन अध्यन करवानु,लग्न करी प्रजा उत्पन्न करवानुं अने यज्ञ करवानुं एत्रण प्रकारना ऋण अदा कर्या पछी मोक्ष माटे संन्यास लई शकाय एम मनुस्मृतिमां कहेलं छे. पण मिताक्षरा प्रमाणे त्रण ऋण अदा करवानुं बंधन कोई ब्रह्मचारी अवस्थामां संन्यास ले तेने लागु पडतुं नथी. कारण के ब्रह्मचारीनु कर्तव्य तो मात्र वेदन अध्ययन करवान छे.५ संस्कार प्रकाशमां पण गृहस्थाश्रम वगेरेमा दाखल थया वगर एकदम संन्यास लेवानी ब्रह्मचारी माटे छूट राखेली छे. नारद परिव्रजक उपनिषदमां जेमनाथी संन्यास लई शकाय नहीं तेमनी यादी आपेली छे ते उपरथी जणाय छे के बाळकथी संन्यास लई शकाय नहीं. बाळक कोने कहेवू ते विषे कंई ठरावेलु जणातुं नथी. पण उपनयननो संस्कार ६ थी ८ वर्षनी उमरे करवा कहेलं छे तेथी जेने उपनयन संस्कार न थयो होय अने जे ब्रह्मचर्याश्रममा दाखल थयो न होय तेने बाळक कही शकाय. पहेलां तो उपनयन थया पछी बाळक तेना गुरुने त्यां अभ्यास करवा जतो; दस बार वर्ष पछी परणवा लायक थाय त्यारे तेने गुरुने त्यांयी घेर तेडी लाववामां आवतो अने घेर पाछो आवी परणे त्यां सुधी ब्रह्मचारी गणातो. हाल तो उपनयन आप्या पछी गुरुने त्यां जवा माटे जराक दोडी गया पछी तेने तुरत घेर लाववामां आवे छे. ब्रह्मचर्याश्रममां दाखल थया पछी अने वेदनो अभ्यास कर्या पछी ब्रह्मचारीने संन्यास लेवो होय तो ते प्रमाणे करवा छुट राखेली छे. १५. हिन्दुधर्मना अनुयायीओमां हालना बखतमां मोटी उमरे पण संन्यास
लेनारा थोडाज होय छे. जे ग्रहस्थाश्रम पूरो करी निवृत्ति हिन्दुधर्ममा जुदा जुदा प्रका- पाम्या होय ते पैकी कोईकज-घणु करीने मात्र ब्राह्मगोरना संन्यास.
मांथी-जिंदगीना छेवटनां वर्षोमां संन्यास ले छे. एवो संन्यास घणी वखत तो मरण पहेलां थोडा वखत अगाऊ लेवामां आवे छे. संन्यासी थवानी इच्छावाळानु माथु मुंडवामां आवे छे. तेने जनोई होय तो ते तोडी नांखवामा
१ याज्ञवल्क्यस्मृति पान १९९. २ मनुस्मृति अध्याय ६ श्लोक ३३. ३ संन्यासोपनिषदमां जाबालोपनिषद पान ४३. ४ मनुस्मृति अध्याय ६ श्लोक ३५. ५ याज्ञवल्क्यस्मृति पान २००. ६ संस्कार प्रकाश पान ५७२. ७ संन्यासोपनिषद पान ६२.
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आवी तेने रुद्राक्षनी माळा पहेराववामां आवे छे. भगवा कपडा पहेराववामां आवे छे, हाथमा दंड आपवामां आवे छे, अने गीरी, पुरी, वन, तीरथ, आश्रम, सरस्वती विगेरे जेने छेडे आवे तेवां नवां नाम आपवामां आवे छे. परंतु आ शिवाय बीजा पण सन्यास ले छे अथवा संन्यास लीधो होय एवो डोळ करे छे. अने जोगी, योगी विगेरे नामथी ओळखाय छे. कोईपण न्यातनो इसम जोगी के योगी थई शके छे. योगीओमां केटला संप्रदायो पण होय छे तेमां कानफटी, अने ओघड ए बे मुख्य छे. तेओ रुद्राक्ष पहेरे छे, लंगोटी वाळे छे अथवा गेरु रंगनां कपडां पहेरे छे, माथे जटा राखे छे अने कपाळमां तथा शरीरे भभूत लगाडे छे. तेओ कोई मठमा रहे छे अगर फरता फरे छे. कानफटीना कानना निचला भागमां लाकडानी चरकी घालेली होय छे अने तेमनां नामने छेडे · नाथ ' शब्द लगाडेलो होय छे. ओघडना नामने छेडे ' दास ' लगाडे छे, अने काळा दोरामां परोवेली लाकडानी भूगळी तेमना गळा उपर लटकती राखे छे. आवा योगीओमा केटलाक संस्कारी अने चारित्रवान होय छे. पण मोटो भाग अज्ञान, ढोंगी अने मात्र पेटने माटे योगी, जोगी के साधु बनेलो होय छे. आवा योगी संसारमा पाछा आवेला ते उपरथी गोसांई, जोगी, रावळीया, भरथरी विगेरे नवी न्यातो बनेली छे. १६. गुजरातमा (१) शैव अने (२) वैष्णव ए बन्ने संप्रदायमां साधु होय छे.
शैव संप्रदायना साधु (१) ब्रह्मचारी (२) संन्यासी (३) साधु संस्था.
दंडी अगर (४) परमहंस तरीक ओळ'वाय छे. वैष्णवोमा (१) रामानुज (२) रामानंदी (३) रामस्नेही (४) स्वामीनारायण अने (६) संतराम ए मुख्य संप्रदायना साधु होय छे, पुष्टिमार्गी वैष्णव संप्रदायमा आचार्य घरबारी होय छे अने साधु बिलकुल होता नथी; पण स्वामीनारायण संप्रदायमा आचार्य घरबारी होय छे पण साधु ब्रह्मचारी होय छे. इतर संप्रदाय पैकी घणामां आचार्य अने साधु बन्ने ब्रह्मचारी तरीके रहे छे पण तेमना मठमां गृहस्थो तरीकेनो ठाठमाठ होय छे अने तेमनी रहेणी करणी पण गृहस्थोना जेवीज होय छे; फेर मात्र एटलो के तेमनु माथु मुंडावेलं होय छे अने कपडां भगवां होय छे. कमावानी कंई पण तस्दी लीधा वगर तेमना अनुयायीओ तरफथी मळती किंमती भेटोथी तेमणे भोगववाना वैभवनी सर्व जरुरियातो तेमने मळी रहे छे तेथी तेओ संसारीओ करतां पण वधारे सुखचेन भोगवे छे. तेमने जोईता चेला पण सहे जमां मळी आवे छे; कारण के ते पण संसारत्यागनी लागणीथी नहीं पण गादीपति, मठाधिपति वगेरे थवाना लोभथी अगर वगर महेनते मिष्टान्न मळवानी लालचयी दोरवाई साधु थवाने उमेदवार थया होय छे. तेमना पैकी कोई कज 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या' नी खरी भावनाथी साधु थयेला होय छे. खरी साधु भावनावाळा साधु थोडाज होय छे अने ते पोताना गुरुनी पासे दीक्षा लई तेमनी साथे कष्ट भोगवता फरता फरे छे अगर तो जो गुरु मठधारी के मंदीरवाळो होय तो तेना मठ के मंदीरमा रही धर्मग्रंयोनो अभ्यास करे छे अने कोई कोई तो उग्र तप करे छे.
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१७. घणाखरा हिन्दु साधुमा तेमना कपडा शिवाय बीजा कई साधुगुण होती ढोंगी स धु.
नथी. साधु, संन्यासी ए विगेरे नाम धारण करी घेणा
जण देवस्थान, तीर्थस्थान विगेर ठेकाणे पड्या पाथयों जोवामां आवे छे तेम टोळाबंध के छटा फरता जीवामां आवे छे; ते बधा हिंदुधर्म शास्त्रानुसार थयेला खरेखरा संन्यासी नगी होता. भोळा, भाविक हिन्दुओ अने विशेष करीने हिन्दु स्त्रीओ साधुओने महाराज, बापजी, ए विगेरे नामथी संबोधी धार्मिक भावनाथी पवित्र माने छे अने तेमने माटे सदावत स्थापन करीने अंगर पोताने आंगणे मागवा आवे त्यारे अन्न विगेरे आपीने तेमने पोषे छे अने तेथी उदर निर्वाह माटे हजारो लोको साधुना वेषमा फरता जोवामां आवे छे. तेओ दुराचारी होय छे एटलुज नहीं पण साघुनां करडां पहेरेलां छतां उघाडी रीते साथे रामकीओ लईने फरतां पण शरमाता नथी. कोळी, वावरी विगेरे गुन्हा करनारी जातोना लोको पण साधुनो वेश करी चोरी करवानो के खातरं पाडवानो लाग शोधता पण फरता जोवामां आवे छे. आवा लोकोनी भरती रझळता, रखडता, रोगपीडित, भुखे मरता, अपंग आंधळां वगेरे अन्य प्रकारना लोकोयी थाय छे अने तेमनी साथे स्त्रीओ अने छोकरां पण जोवामां आवे छे अने ते घणे भागे काढो आणेलां आगर तेमना जेवाज रखडता रझळता मालम पंडी आववाथी साथै लीधेलां होय छे. आखा हिंदुस्थानमा लगभग साठ लाख जेटली आवा साधुओनी मोटी संख्या कंईपण महेनत कर्या वगर बीजाओनी कमाई उपर आजीविका चलावे छे तेथी अनुत्पादिक द्रव्यनो केटलो बधो व्यय थाय छे तेनो सहेज ख्याल करी शकाय छे.
जैनधर्म. १८. हिन्दु अने जैनधर्म जूदा हे तोपण ए बन्नेमां केटलीक बाबतोमा घणी
साम्यता छे ते पैकीनी एक बाबत संन्यास संबंधी छे. जैन धर्ममां संन्यास दीक्षा.
___ जेने हिंदुमां संन्यास लेवो कहे छे तेने जैनोमां दीक्षा लेंवी कहें छे. संसारनी घटमाळमांयी छूटी निर्वाण पामवानी इच्छा एज संन्यास दीक्षा लेंबाना तत्वज्ञानन बन्ने धर्ममां मध्य बिन्दु छे. परंतु संन्यास दीक्षा लेवानी लागणी हिंदुओ करतां जैनोमा घणी तीव्र होय छे; अने जैनधर्म पण तेना अनुयायीओ जेओ श्रावक तरीके ओळखाय छे तेमने बनती त्वराए दोक्षा लई कर्मनां बंधनमांथी मुक्त थई मोक्ष मेळववा आग्रहपूर्वक बोध करे छे.
१९. जैनधर्मना अनुयायीमां सुमारे बे हजार वर्ष उपर बे विभाग ( संप्रदाय ) जैनधर्मना संप्रदाय-श्वेतांवर पड्या हताः-(१) श्वेतांबरी अने (२) दिगंबरी. ते अने दिगंबर.
समययी ए बन्ने संप्रदाय पोतपोताने मार्ग चाल्या गया छे; ए बे बच्चे विच्छेद पडी गया छतां एमनी बच्चेनो भेद कई महत्त्वनो नथी. साधुना वस्त्रोमा ए भेद खास देखाई आवे छे. श्वेतांबरोना साधु कपडा पहेरे छे पण
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दिगंबरी जैनना पहेरता नथी. हाल तो ए भेद नामनोज छे कारण के आजे तो नग्न दिगंबर साधुओ तो गण्या गांठ्याज छे अने ते पण जंगल विगेरे एकांत स्थळमांज रहे छे. श्वेतांबर अने दिगंबर सामाजिक संप्रदायना बंधारणमां भेद छे खरो पण तेनुं मूळ पण वस्त्रो संबंधेना मतभेदने लीधेज छे. ए भेदने लीधे तेमना मंतव्यो अने क्रियाकांडमां पण भेद पडी गयो छे. दिगंबरो माने छे के स्त्री निर्वाण पामी शके नहीं; तेमनी भावना प्रमाणे तीर्थकरो नग्न होय तेथी तेओ तेमनी प्रतिमाने वस्त्र के आभूषण पहेरावता नथी पण श्वेतांबरो पहेरावे छे. जो के बन्ने संप्रदायना मंतव्यों अने भावनाओमां भेद छे अने बन्नेनी बच्चे कई विरोधभाव पण छे तो पण ते विरोध कदापि तक्ष्ण रूप धारण करतो नथी. बन्ने संप्रदायोनां मूळ समान छे अने परस्परनो आध्यात्मिक संबंध ते कदापि भूल्या नथी. आम बनवानुं खास कारण ए छे के एक संप्रदायना लोको बीजा संप्रदायना आध्यात्मिक अने आधिभौतिक ग्रंथोनो उपयोग करे छे अने एक संप्र. दायना विद्वानोए बीजा संप्रदायना ग्रंथो उपर टीकाओ पण लखी छे.' २०. श्वेतांबरी जैन धर्मनो एक नवो संप्रदाय सुमारे साडी चारसो वर्ष उपर
उपस्थित थयो छे. जेम मुसलमानी राज्यकाळमां तेमना स्थानकवासी संप्रदाय,
मूर्तिपूजा विरोधीना वलणने लीधे हिंदुओमां नानक, दादु ९ विगेरे सुधारक उभा थया हता अने तेमणे मूर्तिपूजा विरुद्ध विरोध उभो करी पोतपोताना जूदा संप्रदाय स्थाप्या हता, तेम जैनोमां पण लोकाशा नामना अमदावादना श्वेतांबरी पंथना एक श्रावके मूर्तिपूजा विरुद्ध विरोध उभो को हतो. काळे करीने खवाई जता केटलाक ग्रंथोनो समूळगो नाश न थई जाय एटला माटे तेणे तेनी नकलो करावी लोधी अने ते वांचवाथी तेने एवं जणायुं के ए ग्रंथोमां तो ते समये चालती मूर्तिपूजा हतीज नहीं. आथी तेणे विशेष संशोधन करवा मांडयु, ते उपरथी ते एवा निर्णय उपर आव्यो के सूत्रोमा मर्तिपूजा स्वीकारलीज नयी. ते उपरथी तेना मतने संमत थनाराए एक नवो संप्रदाय उभो कर्यो ते ढुंडीआ ( शधनार ) नामे प्रसिद्ध थयो अने गुजरातना घणा श्रावकोने पोताना शिष्य बनावी शक्यो. टुंडीआ पोताने स्थानकवासी श्वेतांबर कहे छे कारण के ते संप्रदायना सर्व व्यवहार मंदीरमां नहि पण 'स्थानक ' मां उपाश्रयमां थाय छे. संख्यामां आजे स्थानकवासीओ अने दिगंबरो मळीने लगभग मूर्तिपूजक श्वेतांबरो जेटला छे अने तेथी जैनधर्मना त्रीजा संप्रदाय जेवो एमना संप्रदायने गणी शकाय एम छतां पण स्थानकवासी पोताने श्वेतांबरज माने छे; कारण के थोडा मतभेदने बाद करतां घणीखरी रीते ते श्वतांबरोने मळता छे.
१ (१) वडोदरा राज्यनो १९११ नो सेन्सस रिपोर्ट पान ९२. तथा (२) प्रोफेसर
ग्लाझेनाथ कृत जैन धर्म पान ४०. २ वडोदरा राज्यनो १९११ नो सेन्सस रिपोर्ट पृष्ठ ९३.
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११
तेरापंथी.
२१. श्वेतांबरोमां तथा दिगंबरोमां पेटा शाखाओ छे ते पकी एक तेरापंथी तरीके ओळखाय छे, कारण के ए पंथने पुष्टी अपनारी संख्या मूळमां १३ ( तेरा ) हती. तेरा पंथ सांधु जीवन अतिशय प्रबळ भावे पाळवानो आग्रह राखे छे. माबाप के वालीनी लेखी परवानगी बगर कोईने दीक्षा आपत्रा देतो नयी अने दीक्षानी क्रिया जाहेरमां खुली रीते करावे छे. '
जैनधर्ममां दीक्षा.
२२. आगळ जणान्युं छे तेम संन्यास दीक्षा लेवानो खरो उद्देश कर्मनो क्षय करी मोक्ष मेळववानो छे अने ते जैन धर्मना अनुपायीओ घणी सारी रीते समजेला छे. तेमना धर्मग्रंथो उपरथी तथा तेमना आचार विचार उपरथी स्पष्ट जणाय छे के बीजी कोईपण त्यागी संस्था करतां सामान्य रीते जैन त्यागी संस्था ( साधु साध्वी ) वधारे त्यागवाळी अने चढीयाती छे.
२३. संसारना भौतिक प्रयासोने असार मानीने जेमणे तप करवा अने धार्मिक ध्यान करवा दीक्षा लीधी होय छे साधु अने साध्वी कहेवाय छे. जैन गृहस्थोए ( श्रावकोए ) पाळवानां पांच व्रत साधुओए पण पाळवानां छे पण तेमणे ते गृहस्थी करतां वधारे सख्त रीते अने तीव्र भावे पाळवानां होय छे. एटला माटे गृहस्थना ए व्रतने अणुव्रत कह्यां छे अने साधुना व्रतने महाव्रत कह्यां छे; ते नीचे प्रमाणे छे:
जैनसाधुए पाळवानां पांच व्रतो.
( १ ) अहिंसा - कोई जीवनी हिंसा के हत्या अजाणे पण न थाय तेत्रो प्रयत्न करवो.
(२) असत्य त्याग - पोताना शब्दे शब्द एत्री रीते तोली तोलीने बोलवा के अजाणे पण जूठु बोली जवाय नहीं.
( ३ ) अस्तेय - जे तेना मालिके आप्युं नथी ते लेवायज नहीं. ( ४ ) ब्रह्मचर्य - मैथुननो त्याग करवो.
(५) अपरिग्रह - मिलकतनो त्याग करवो.
२४. यतिव्रत पाळ ए घणुं कठण काम छे. संयमनो भार वहन करवो, ब्रह्मचर्य पाळ, टाढ तडका सहन करवा, ज्ञाननो अभ्यास कोण दीक्षा लई शके. करवो अने तप आदरवुं ए विगेरे विषम कार्यों यतिने करवां पडे छे. माटे तेवा पदने लायक होय तेज ते पद ग्रहण करे एवा उद्देशथी
१ सेन्सस ऑफ इंडीया रिपोर्ट, सन १९२१ अॅपेंडीक्स ४ धुं.
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दीक्षा लेवाने कोण लायक छे ए जैन शास्त्रमा विगतबार रीते ठरावेलं छे.' दीक्षा लेवाने योग्य पुरुषनां लक्षण नीचे प्रमाणे ठरावेलां छेः
(१) आर्य देशमा उत्पन्न थयेलो; (२) उच्च जाति अने कुळनाळो; (३) जेना कर्ममल घणे भागे क्षय थयेला छे एवो; (४) निर्मळ बुद्धिवाळो; (५) मनुष्यजन्म दुर्लभ छे, जन्म ए मरणतुं निमित्त छे, संपत्तिओ चपळ
छे, इंद्रियोना विषय दुःखना हेतु रूप छे, संयोगोमां वियोग रहेलो छे, क्षणे क्षणे मरण थयाज करे छे अने कर्मना फल भयंकर छे, ए
प्रमाणे संसारनी असारता जाणवावाळो; (६) अने तेथी संसार तरफ वैरागभाव धारण करनार; (७) ओछा कषायवाळो; (८) थोडा हास्यादि करनारो; (९) कृतज्ञ ( करेला गुणने जाणनार ); (१०) विनयवन्त; (११) दीक्षा लीधा पहेलो पण राजा, प्रधान अने पोताना गामना लोकोमां
प्रतिष्टा पामेलो; (१२) कोईनो द्रोह नहीं करनारो; (१३) कल्याणकारी अंगवाळो ( पांचे इंद्रियो सहित तेमज भव्य मुखाकृति
वाळो ); (१४) श्रद्धावन्त (१५) स्थिरतावाळो ( विध्न आवतां आरंभेलं कार्य मूकी न दे एवो );
(१६) अने आत्मसमर्पण करवा ( दीक्षा लेवा ) गुरुसमीपे आवेलो; ए प्रमाणे सोळ गुणवाळो होय तेने दीक्षा लेवाने योग्य गणेलो छे.
२५. दीक्षा लेनारमा केवा गुण होवा जोईए ए दर्शाववा उपरांत कोने दीक्षा दीक्षा माटे नालायकी.
आपी शकाय नहीं ए पण केटलाक ग्रंथोमां बताव्युं छे,
___के जेथी कोई नालायक पुरुषने दीक्षा अपाई जाय नहीं. आचारदिनकरमा जणाव्युं छे के नीचेना अढार प्रकारना पुरुषोने दीक्षा आपी शकाय नहीं:
(१) बालक-आठ वर्षथी नानो (२) वृद्ध-साठ वर्ष उपरनो ( बीजाना मत प्रमाणे ७० वर्ष उपरनो); १ हरिभद्रसूरिकृत धर्मबिंदु, अध्याय ४, सूत्र ६.
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(३) क्लीब (स्त्रीनां अंग जोई कामातुर थाय एवो ); (४) नपुंसक (५) जड ( भाषाजड, शरीरजङ भने करण जड); (६) व्याधित ( भिक्षा वगेरे मागीने जे खाई शक नहीं एत्रो रोगी); (७) स्तेन ( दरेक जातनी चोरी करनार ); (८) राजापकारी (राजाना भंडार, अंत:पुर, शरीर, कुंवर वगेरेनो द्रोह
करनार); (९) उन्मत्त (ममज गुमाववाथी शून्य चित्तवाळो ); (१०) आंधळो; (११) दास (धनधी खरीदायलो, दासीथी उत्पन्न थयेलो, अथवा दुष्काळा
दिकमां द्रव्यवडे खरिदेलो अगर लेणा माटे रोकी राखेलो); (१२) दुष्ट ( कषायथी अने इंद्रिय विलासथी निर्बळ बनी गयेलो); (१३) तीर्थकरोनां नाम पण याद राखी शके नहीं, एवो निर्बुद्ध; (१४) ऋणी (राजा, व्यापारी आज्ञक नोकर-जे दास होय ते); (१५) जुंगित ( वेश्यानो निंदायलो धंधावाळानो विगेरे नीच कुळमां उत्पन्न
थएलो अथवा ब्रह्मघाती विगेरे नीच कर्म करनारो); (१६) अवबद्ध (धन लईने अथवा विद्या आदिक लेवा माटे जेणे अमुक
काम अमुक मुदत माटे माथे लीधां छे अने जेनी दीक्षाथी ए काम
अटकी पडे तेवो); (१७) भृत्य (रोजनो अगर महिनानो पगार ठसवी जे कोई श्रीमन्तने घेर
नोकर रह्यो होय ते ) अने (१८) शिष्य निष्फेटिका (जेने दीक्षा आपा माटे तेना माबापनी के
वालीनी के वडीलोनी समति न होय अने जेने वडीलोनी रजा
चिना चोरी संताडीने आण्यो.होय ).
उपर जे अढार प्रकारना पुरुषोने दीक्षा आपी शकाय नहीं एम जणाव्यु छ तेवाज दोषोवाळी अढार प्रकारनी स्त्रीओने पण दीक्षा आपी शकाय नहीं; अने ते उपरांत
(१९) गर्भवती अने
(२०) धावणा बाळकवाळी स्त्रीने पण आपी शकाय नहीं.' २६. हिंदु अने जैन बंने धर्म प्रमाणे संन्यास दीक्षा लीधेला साधुए सर्व प्रकारनी जैनोमा खरो त्याग.
धन संपत्तिनो त्याग करवो पडे छे अने घणु सार्दु
जीवन गाळवू पडे छे. पण हिंदु साधुओमां ए धोरणमा एटली बधी शिथीलता थई छे के तेमांना घप्पाखरा- घणो वैभव राखे छे अने सुख
- १ आचारदिनकर पान ७४.
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चेनमां दहाडा काढे छे, तोपण तेमना सामे कोई बोली शकतुं नथी. एमने मुकाबले जैन साधु घणो सारो त्याग राखे छे. ते मात्र एक पहेरवार्नु अने एक ओढवान ए प्रमाणे बे वस्त्रज राखे छे. साधारण साधु श्वेत अने संवेगी पीळास पडतां कपडां रखे छे. पोताना हमेशना उपयोगना माटे लाकडाना (धातुनां नहीं) जळपान अने आहारपात्र, पीतां पहेलां जळ गळवाने माटे जळगरणी, वायुनां जंतुनी हिंसा न थाय एटला माटे मोढे बांधवानी मुखपट्टी (स्थानकवासी साधु आ मुखपट्टो कायमनी मोढे राखे छे), बेसतां जंतुनी हिंसा न थाय एटला माटे बेसतां पहेला ते स्थान वाळीने स्वच्छ करवा मटे एक रजोहरण अने एक दंड एटली वस्तुओ साधु राखी शके छे. मूर्तिपूजक श्वेतांबर साधु ते उपरांत पांच 'अक्ष' (स्थापनाचार्य) ने चंदननी नानी लाकडीओ (ठवमी), एक पुस्तक, के एवी कंई वस्तु पोताना गुरुना स्मरणचिन्ह रूपे राखे छे. साधुए माथु ढांक, न जोईए अने हजामत न करावतां बाळ पोताने हाथे खेची काढवा जोईए (पण आज काल तो ए दुःख जनक विधिने बदले कातरनो उपयोग पण करवामां आवे छे ); तेणे सर्व प्रकारना विलासनो त्याग करवो जोईए; तेणे न तो न्हावु के न तो दातण करईं; तेणे खुल्लो जमीन उपर के बीजी कोई कठण पथारी उपर सूq; तेणे देवता सळगावयो नहीं अने रसोई रांधवी नहीं पण जैन गृहस्थाने त्यांथी भिक्षा मागी लावीने खावू; जैनेतरने त्यां भिक्षा माटे जवू नहीं; भिक्षा मागवा दिवसमा एकजवार जq अने जे घरनां बारणां उघाडां होय तेज घेर जवू; गृहस्यने घेर जे अन्न वध्यु होय अने जेनो उपयोग ते करनार न होय तेज अन्न लेवू अने खास रीते साधु भिक्षाने माटे जे अन्न रंधायुं होय ते न लेवू; साधारण रीते प्रत्येक साधु भिक्षा मागवा जता नथी, पण तेमना पैकी एक जाय छे, ते बीजा साधुओने माटे पण भिक्षा उपाश्रयमा लई आवे छे अने त्यां बधा ते वहेंचो खाय छे. कप९, रजहरण के एवी बीजी साधु जीवनमा उपयोगी चीज स्वीकारी शकाय पण ते उपाश्रयमां आणीने पोताना गरुने चरणे मकवी जोईए. पछी गुरु ते वस्त पको जेने जे आपे ते ते राखे. महावीरना सख्त नियम प्रमाणे तो साधुए एक गाममां एकज दिवस अने नगरमां पांचज दिवस रहेQ जोईर. पछीना समयमा आ आज्ञाने जरा शिथील करी एक गाममां वधारेमा वधारे एक सप्ताह मधी अने एक नगरमां वधारेमां वधारे एक मास सुधी रही शकाय एम ठराव्युं छे. वरसादनी ऋतुमां-चातुसिमां-तो सर्व साधुए विहार अटकावी दई एकज स्थाने चार मास रहो जq जोईए के जेयी जीव हिंसा थाय नहीं. वळी मुख्यत्वे करीने पगे चालीने फरवार्नु होवायी तेने माटे पण चोमासा पछी अनुकूळता थाय. साधु साध्वीओए तेमने माटे श्रावकोए बांधेला जूदा जू हा उपायमांज रहेQ जोईए. आ उपरांत साधु साध्वीना जीवनमा पाटवाना बाजा घणा सखत नियम जैन शास्त्रोमां विगतवार विधिरूपे बतावेला छे. अशुद्धतार्नु अने सांसारिक भावोनू निवारण करवाना अने दीक्षित जीवनने योग्य अभ्यासनी अने तपनी अनुकूळता करवाना हेतुथी ए नियमो घडेला छे. साध्वीओ माटेना
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नियमो साधु माटेना नियमो करतां कईक वधारे आकरा के कारण के तेम तुं पतन थवानो बधारे संभव छे.' आवा सख्त नियम राखबार्नु कारण एम जणाय छे के खरेखरा त्यागी विचारथी जे दीक्षा लेया इच्छतो होय तेज एवं कष्टमय जीवन गाळवाने माटे आगळ आवे अने एवा नियम पळाय त्यारेज दीक्षा लेवानो खरो उद्देश पार पडे. २७. जेवी रीते दीक्षा लेनारनी लायकी ठरावी छे तेवी रोते दीक्षा आपनार
... गुरुनी पण ठरावी छे. दीक्षा आपत्राने योग्य एवा गुरुर्नु दीक्षा आपनार गुरुनी लायकात.
स्वरुप नीचे प्रमाणे वर्णव्युं छे:-- (१) जेणे विधि प्रमाणे दीक्षा अंगीकार करेली होय एवो; (२) गुरुकुलनी सारी रीते उपासना करनार; (३) अस्खलितपणे शील पाळनार; (४) आगमोनुं सारी रीते अध्ययन करनार; (५) तेथी निर्मल बोधने लीधे तत्वने जागनार; (६) उपशान्त एटले मन, वचन, कायाना विकारोने रोकनार अने वश
करनार; (७) साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप चतुर्विध संघ प्रत्ये वात्सल्यवाळो; (८)प्राणी मात्रनुं कल्याण करवामां मशगुल; (९) जेनुं वचन सर्व मान्य राखे एवो; (१०) गुणी पुरुषोने अनुसरी वर्तनारो; (११) गंभीर; (१२) विषाद (शोक) रहित; (१३) उपशम लब्धीवाळो; (१४) सिद्धांतना अर्थनो उपदेश करनार अने
(१५) गुरु पासेथी गुरुपद मेळवनार, ए प्रमाणे पंदर गुण दीक्षा आपनारमा होवा जोईए. २८. दीक्षा आपतां पहेलां गुरुए दीक्षा लेवानी उमेदवाळामां परिच्छेद २४
... मां कहेली लायकी होवा विष तथा परिच्छेद २५ मां दीक्षाना उमेवारनी परीक्षा
__ कहेली नालायकी नहि होवा विषे खात्री करी लेवी करवी.
जोईए. दीक्षा लेवाने पोतान। समीप आवेला पुरुषने तेणे प्रथम प्रश्न पूछ्यो के हे वत्स ! तुं कोण छे अने शा माटे दीक्षा ग्रहण करे छे ? ए
१ ग्लाझेनाथकृत Jainism - भाषांतर, पान ३४४ थी ३४८. २ धर्मसंग्रह श्लोक ८१, ८४; धर्मबिंदु अध्याय ४ थो, सूत्र ७ मुं...
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शिराय बीजा प्रश्न पण पूछवाना छे' अने जो ते उपरथी खात्री थाय के दीक्षानो उमेदवार दीक्षानुं महत्व समजीने दीक्षा लेवा आव्यो छे तो पछी तेने दीक्षा आपवी. परीक्षा करवानो वखत सामान्य रीते ६ मासनो कह्यो छे पण पात्रनी योग्यता होय तो तेथी थोडा वखतमां पण दीक्षा आपी शकाय छे अने उमेदवारने वधारे ज्ञान आपवानी तथा तेनी वधारे कसोटी करवानी जरूर जणाय तो तेथी वधारे वखतपण लई शकाय छे. २९. दीक्षा आपवाने प्रसंगे लग्नना जेवो समारंभ करवामां आवे छे; शुभ
मुहूर्त जोवामां आवे छे अने सगांव्हालां अने स्नेहीओने जैन दीक्षानी क्रिया.
रुबरु कही अथवा कंकोत्री मोकली आमंत्रण करवामां आवे छे. जे खर्च करवानो होय ते जो स्थिति सारी होय तो दीक्षा लेनार के तेनां सगां संबंधी करे ठे, अने तेम करवान बनवा जेवू न होय तो बीजा श्रावको फाळो करीने खर्च करे छे. श्रावको तथा श्राविकाओ सारां कपडा पहेरी भेगां थाय छे अने दीक्षा लेनारने तेना बापने घेरथी पालखी के घोडा उपर बेसाडीने वाजते गाजते वरघोडो काढी दीक्षानी क्रिया थवानी होय ते जग्योए लई जाय छे. त्यां आचार्य अने बीजा साधु वाट जोता बेठा होय छे. नगर बहार वाडी, शेलडोनो वाढ अथवा आसो. पालव के बीजा कोई पवित्र वृक्ष नीचे के गुरुना स्थानकना चोकमां ए क्रिया थाय छे. त्यां मंडप बांधेलो होय छे अने तेमां वेदी रचेली होय छे. भेगा थयेला श्रावक श्राविकानी मेदनी समक्ष त्यां जैन प्रतिमानी पूजा अने पछी प्रदक्षणा करवामां आवे छेस्तोत्रो गावामां आवे छे अने मंत्रो भणवामां आवे छे. त्यार पछी दीक्षा लेनार पोताने बक्षीस के चाल्ला तरिके मळेली रकम पोतानी मरजी प्रमाणे धर्मादामां आपी दे छे, अने पोतानां वस्त्रोनो अने आभूषणोनो त्याग करी साधुना वस्त्र पहेरे छे. त्यार पळी ते पोते पोताना वाळ उखेडी नखे छे. अथवा आ दावजनक क्रिया गरु के बीजा पासे करावे छे. त्यार पछी मंत्रो अने सूत्रो भणीने सामायिक चारित्र पाळवार्नु व्रत ले छे अने नवं नाम धारण करे छे. स्थानकवासी साधुओनां नाम घणे भागे तेमनां पूर्वावस्थानां नामने मळतां राखे छे. त्यार पछी माथां उपर गसक्षेप करवामां आवे छे. पछी समवसरणनी प्रदक्षिणा करीने ते नवीन साधु गुरुने अने बीजा साधुओने नमन करे ळे अने श्रावक श्राविकाओ ए नवीन साधुने नमन करे छे. साध्वीनी दीक्षाने प्रसंगे जे क्रिया थाय छे ते उपर बताव्या प्रमाणेनी साधुने दीक्षा आपवानी क्रियाने मळती होय छे. तेरापंथीमां दीक्षा लेनारनो भाई के बीजो नजीकनो सगो दीक्षा लेनारनी पाछळ उभो रहे ळे अने दीक्षानी क्रिया करता अगाउ दीक्षा लेवा विषे कुटुंबनी संमतिनो लखेलो एक कागळ आचार्थने आपे छे अने ते मळ्या पछीज आचार्य दीक्षानी क्रिया करे छे.२ ।।
१ हरिभद्रसूरि कृत धर्मबिंदु: अध्याय ४, सूत्र २४. पंचवस्तु सूत्र पान ७. २ जैन धर्म, पान ४३४ थी ४३५.
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३०. उपर प्रमाणे जेने दीक्षा आपवार्मा आवी होय ते साधु ( यति ) तरीके आचार्य.
ओळखाय छे. श्वेतांबरोमां दीक्षा थया पछी साधुने
आध्यात्मिक क्रियाओ करवानी होय छे; ते द्वारा ते छेदोपस्थापनीय नामे चारित्रना बीजा पद उपर आवे छे. तप, कषाय शुद्धि अने भौतिक वासनामांथी मुक्ति द्वारा ए चारित्रना बाकीनां त्रण पद उपर चढे छे. आटला माटे गुरु जे बतावे ते धर्म साधुए पाळवानो होय छे. ते उपरांत बीजा अनेक विधि पाळवाना होय छे. ए धर्मर्नु अने विधिनु उल्लंघन थतां तेणे प्रतिक्रमण अने प्रायश्चित करवू पडे छे. ए प्रमाणे अनेक प्रकारनी आध्यात्मिक क्रिया कर्या पछी यतिने लायक उपाध्याय के आचार्यने पदे लेवामां आवे छे. ए प्रसंगे अनेक प्रकारनी तैयारीओ थाय छे, समवसरणनी प्रदक्षणा थाय छे, स्तोत्रो अने मंत्रो भणाय छे अने अनेक प्रकारनी क्रियाओ थाय छे. आचार्य बनाववानी क्रिया महत्वनी छे. ते प्रसंगे आचार्य थनारने माटे पहेरवानां वस्त्रने राते अमुक क्रियाथी शुद्ध करवामां आवे छे. त्यार पछी बे आसन मुकाय छे, तेमांना एक उपर गुरु बेसे छे अने बीजा उपर अक्षसमूह (स्थापनाचार्य) मूकाय छे. केटलीक क्रिया थया पछी गुरु आचार्य थनार यतिना कानमा त्रणवार सूरिमंत्र भणे छे अने तेना हाथमां अक्षसमूह मुके छे. त्यार पछी तेनु नवु नाम पाडे छे ते घणु कराने तेना यति तरीकेना नामने उलटावीने पाडे छे अने तेने सूरि पद लगाउवामां आवे छे; जेम के इंद्रविजयर्नु नवु नाम विजयइंद्रसूरि पाडवामां आवे छे; त्यार पछो ए नवा आचार्य बेमांना एक आसन उपर बेसे छे अने गुरु तथा हाजर होय ते बीजा बधा एमने नमस्कार करे छे. ३१. श्वेतांबर अने दिगंबर ए बे मोटा संप्रदायमा अनेक गण, गच्छ अने
संघ होय छे. सर्वसामान्य आचारथी के विचारयी भिन्न
थता गुरुओ पोतानो संप्रदाय जूदो करी बेसे छे तेने लीधे एवां अलग अलग मंडळ बनेलां होय छे. छेक प्राचीन काळमां भद्रबाहुना रचेगा कल्पसूत्रमा पण एवी रीते जूदा पडेला गण, कुळ अने शाखानां नाम आपेलां छे. हालमां मूर्तिपूजक श्वेतांबरोमां जे गच्छो छे तेमां तपा, खरतर, पायचन्द अने अंचल ए मुख्य छे. समस्त गच्छना उपरी भट्टारक अथवा श्रीपूज्य कहेवाय छे. गच्छमा बीजा पण यतिमंडळ होय छे अने ते दरेकना उपरी आचार्य कहेवाय छे. आचार्यनो नीचे उपाध्याय, वाचक ( पाठक) होय छे ते शास्त्रनी कथा करे छे. उपाध्यायनी नीचे पंन्यास होय छे ते यतिओए करवानी क्रिया उपर नजर राखे छे. पंन्यास नीचे गणी होय छे. तेमणे भगवती सुधीनो अभ्यास करेलो होय छे अने ते बीजा मुनओ उपर नजर राखे छे. उपरना बधा मुनि कहेवाय छे. ३२. हिंदु धर्मन। त्यागीओ उपर संमारीओनो बिलकुल अंकुश नथी. हिंदु
. ओमां सन्यासी साधु भ्रष्ट थाय ता तेमना उपर नयी हिंदु अने जैन साधु रचनानी सरखामणी.
आचार्यनो अंकुश के नथी हिंदु धर्मना गृहस्थोनो अंकुश. परिणाम ए आव्यु छे के हिंदुओ आवा मिथ्याचारीने
गच्छ.
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आश्रय आपी अधर्मने अणघटतुं उत्तेजन आपे छे. हिंदु गृहस्थो पोतानां देवस्थान अने साधुओ उपर अंकुश राखे ए ईच्छवा जोग छे अने आ बाबतमां जैनोनी संघव्यवस्थामांथी तेमणे घणुं शीखवानुं छे. आवा मिथ्याचारी हिंदु त्यागीओने लीधे शंकराचार्यना पूर्वगामी कर्ममिमांसकोए त्यागाश्रमनो बळवान विरोध को हतो. त्यागनी महत्ता तेना वैराग्य अने तपोबळ उपर छे. आ वे अंशनो लोप थाय तो त्याग प्रजानो भारे अनर्थ करे छे. आथी त्यागनो पुनरुद्धार हिंदुओमां शंकराचार्ये कर्यो त्यारे मठाम्नाय व्यवस्था राखी हती अने वैदिक प्रजाए तेने टेको आप्यो हतो. हाल ते व्यवस्थानो लोप थयो छे अने श्रृंगेरी मठ शिवाय अन्यत्र संन्यासीओ अने त्यागीओ उपर कंई पण अंकुश राखी शके एवी व्यवस्था जोवामां आवती नथी. मात्र शंकराचायनी गादीना झगडा अने ताणाताण विना कंई पण धर्मकार्य थतुं जोवामां आवतुं नथी; अने तेटलाज माटे थोडा लायक संन्यासीओने अपवाद तरीके बाद करतां एकंदर साधु संस्था उपर समजदार लोकोमा विशेष आस्था रही नथी.' ३३. जैनोमां तेथी नदी वस्तुस्थिति छे. तेमनामां श्रावक श्राविका, साधु अने
साध्वी, ए चारेनो संघ बनेलो होय छे. संघ, धार्मिक संघनी साधु उपर असर.
शासन साधुओना हाथमां होय छे अने एमनी मर्यादा नीचे वीजा सौ चाले छे. साध अने साध्वीओनो जीवन निर्वाह धार्मिक श्रावकोना दानने आधारे चाले छे अने तेथी तेओ तेटले अंशे श्रावकोने आधीन छे. जैन धार्मिक साधुसंघ अने श्रावकसंघ वच्चे बहू निकटनो संबंध छे. छेल्ला तीर्थकर महावीर स्वामीए संघनी जे दृढ योजना बांधेली छे तेने अनुसरीने ते काळथी श्रावक संघ साधुसंघ उपर कंई अंशे सत्ता भोगवतो आवे छे अने तेथी सत्ता मेळववाना के कोई सांसारिक बाबतोमां माथां मारवाना प्रयत्नोथी साधुने दूर रहेQ पडे छे; अने साधु जीवन उपर संयम राखीने तेमने पोतानी उच्चता जाळवी राखवी पडे छे.राजपूतानाना अने गुजरातना साधुसंघमां धीरे धीरे श्रावकोने एवी सत्ता मळी गई छे के तेओ साधुओनी दीक्षा, शिक्षा अने चारित्र उपर कंईक सत्ता भोगवे छे.आना केटलाक दाखला प्रोफेसर हेल्मूट ग्लाझेनाथे पोताना जैन धर्मना पुस्तकमां आपेला छे. ते पैकी एक एवो छे के १९१३ ना अरसामां जीनसेन नामनो साधु श्रावको पासेथी भिक्षा लईने पोतानो उदर निर्वाह करतो हतो. केटलाक जैनोए ए साधुना पूर्वजीवन विषे तपास चलावी तेमां एवू मालम पड्डयुं के ते साचो साधु नहोतो पण जेम तेम निर्वाह चलावी शकाय एटला माटे तेणे साधुनो स्वांग धारण करी लीवो हतो. ए मीथ्यामुनि सामे श्रावकोए पगलां भरवा विचार कर्यो, पण एटलामां ते मुनि झटपट नासी गयो अने सजामाथी बची गयो. बीजो एक दाखलो एवो छे के पालीताणामां एक साधु सोनानी फ्रेमवाळां चस्मां पेहरतो हतो. साधुओ कोईपण प्रकारनी धातु पोतानी पासे राखी
१ दि. वा. नर्मदाशंकर देवशंकर महेतार्नु भाषण पर्युषण पर्वनां व्याख्यानो. वर्ष २ जु. उत्तरार्ध पान ७७-७८,
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शके नहीं तेथी श्रावकोए चस्मां जोया त्यारे तेमणे जाहेर कर्यु के संघर्नु शासन तोड्याने कारणे तेने साचो साधु मानी शकाय नहीं. तेवीज रीते तपागच्छनो एक साधु पगे विहार करवाने बदले आगगाडीमां मुशाफरी करतो हतो तेथी जे श्रावको तेना संबंधमां आवता ते एने साघु लेखता नहीं. राजकोटमा एक स्थानकवासी साधुर पोताना गुरूने बचकुं भर्यु हतुं, तेथी तुरतज तेने संघ बहार काढवामां आव्यो हतो.'
३४. श्रावकोनी सत्ता साधारण साधु उपरज चाले छे एम नथी. संघना उपरी श्रावकोनी साधु उपर सत्ता.
. श्रीपूज्य उपर पण चाले छे. अयोग्य पुरूषने गादीए बेसा
डवानी विधि प्रमाणे चटणी थई गई होय तोपण तेमने गादीए बेसतां श्रावकोए अटकाच्या छे, श्रीपूज्य साथे संघने अणबनाव थयो होय अने ते कारणे तेमने संघ बहार कर्या होय एवा प्रसंगो पण पट्टावलीमांयी मळी आवे छे. श्रावकोनी आवा प्रकारनी सत्ता तेमना पोताना संघमां साधारण रीते चाले छे. साधुओना चरित्र उपर श्रावकोनो आटलो अंकुश होवा छतां पण कोई कोई वार तेमना औदासिन्यने अने अज्ञानने लीधे यतिओ साधुव्रत बहु ओछां के नहीं जेवां पाळे छे अने तेमनामां पूरो सांसारिक भाव आवी जाय छे. आवा प्रकारना श्वेतांबर साधुओ मोटे भागे 'गोरजी' कहेवाय छे. तेओ साधुव्रत एवी शिथिलताथी पाळे छे के खरा जैन तेमने साचा साधु मानता नथी. हलकी वर्णना अने अनाथ बाळ कोने तेमनी बाल्यावस्थामा तेओ खरीदी ले छे अने तेमने साधु बनावे छे. तेमनामां बहु संस्कार होता नथी, तेम बहु शास्त्रज्ञान पण होतुं नयी, धर्मना विधि पाळवामां तेओ बहु शिथिल रहे छे अने ते मात्र बाह्याचार तरीके पाळे छे. निरंतर विहार करवाने बदले तेओ एकज स्याने पडी रहे छे, स्वादिष्ट भोजन जमे छे, पथारीमा सूए छे अने प्रसंगोपात ब्रह्मचर्यनो पण दोष करे छे. तेओ द्रव्य स्वीकारे छे अने संघरे छे अने एवो बचाव करवाने शरमाता नथी के महावीरे धातुना शिक्का राखवानो निषेध कर्यो छे पण नोटो राखवानो निषेध को नथी, तेओ मोटी मोटी संस्थाओनी व्यवस्था चलावे छे अने पोतानी पाछळ चेला कर्या होय तेमने सोंपे छे. तेओ साधनवाळा होवाथी नोकरो विगेरे राखी भभकामेर रहे छे अने ज्योतीष अने जादू विद्या पण जाणवानो डोळ करे छे. आथी केटलाक श्रावको तेमनाथी डरे छे अने तेमना आचार विचार साधु योग्य नहीं होवा छतां पण तेमने दान आपे छे. आवा पतित साधुओनी सांसारिक भावनाने दूर करी साधुसंघने सुधारवा १७ मा सैकांमां श्रीमान् यशोविजय नामना मुनिए प्रयत्न करलो अने तेना परिणाम साचो साधुवर्ग अने गोरजी वर्ग ते वखतथी जूदो पड़ी गयो छे. नवा संप्रदायना साधु, अशुद्ध रहेला गोरजी यतिथी जूदा देखावाने माटे ते वखतथी श्वेतने बदले केसरीयां वस्त्रो पहेरे छे अने ते संवेगी कहेवाय छे.
१ जैनधर्म पान ३३८-३४०.
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साधुओनी श्रावको उपर सत्ता.
३५. जेम श्रावकोनी साधु उपर सत्ता छे तेम साधुओनी श्रावक उपर पण छे. ए संबंधमां प्रोफेसर ग्याझेनाथन। जैन धर्ममां लख्युं छे तेम " धर्मज्ञ साधुओनी सत्ता श्रावकोना धार्मिक जीवन उपर घणी चालती अने हजीए घणी चाले छे. विशाळ जनसमाजना अने सारा धनवानोनां जीवन उपर असर करी होय अने ए जीवनने जैन धर्मनी भावनाने अनुसरता बनाव्यां होय एवां अनेक हितैषी साधुओनां नाम आपणने इतिहासमांथी मळी आवे छे. समस्त जैन समाज उपर भारे धार्मिक असर करता होय एवा साधुओ आजेय छे. तेओ दुःख ने संकटने प्रसंगे श्रात्रकोनी साथे उभा रहे छे, एमने धार्मिक बोध आपे छे अने बीजा धर्मोनी सामे शास्त्रार्थ करवानां साधनो आपी पोताना धर्मनुं रक्षण करे छे; अने एवी रीते चारे बाजुएथी बीजा संप्रदायोनी बच्चे आवेला जैन धर्मने साची राखे छे. हमणांज ( १९२२ मा ) स्वर्गवासी थयेला श्री विजयधर्मसूरि जेवा सुविख्यात साधुओने बचा संप्रदायना जैनो बहू मान आपे छे, एज स्पष्ट रीते देखाडी आपे छे के प्रबळ व्यक्ति केटली भारे असरे करी शके छे. बीजी बाजुएश्री पोतानी धर्मांधताथी अने संघी साथे शत्रुभावे ने संकुचित वृत्तिए वर्ती रोज रोज कलह करावीने हलकी वृत्तिना साधुओ खराब असर करे छे, एवी दार्घदर्शी जैनोनी फरियाद पण छे. तेओ कहे छे के आगळ बघता विचारोमा तेमनी अतिशय धर्मांधता मार्गमां बाधा नांखे छे ने जैन धर्मनी अवनति आणे छे." "
३६. समाज अने त्यागनी
संस्थाओ आपणे तपासीशुं तो मालम पडशे के समये समये सुधारो दाखल थवाने परिणामेज एवी संस्थाओ जीवती रही छे. " एकाद बुद्ध के महावीर, जीसस के महमद, शंकर के दयानंद समये समये जागे छे अने तेओ पोतानी प्रकृति, परिस्थिति अने समज प्रमाणे परापूर्वथी चाल्या आवता अमक अमूक समाजमा सुधारानो प्राण फूंके छे अने ते समाजनुं अने त्यागी संस्थानुं चक्र आगळ चाले छे. वळी वखत जतां ९ तक्ता उपर तेमना अनुगामी तरीके अगर प्रतिस्पर्धी तरीके बीजा पुरुषो आवे छे अने तेओ पण पोतानी दृष्टिए अमुक फेरफार करी एवी संस्थाओना कुंठित चक्रने वेगवालुं अने गतिशील बनावे छे. एटले सुधारो ए दरेक संस्थानुं जीवन टकाववा माटे अनिवार्य छे. २१ विधि निषेध गमे तेटला बताव्या होय तोपण वखत जतां कोईपण धर्मना साधुसंगनी अवनति थया वगर रही नथी. वो समय आवे छे के ज्यारे घणा विधि निषेधो मात्र बहारथीज पळाय छे अने प्राचीन व्यवस्था धीरे धारे अव्यवस्थित थता जाय छे. जेने संसारनो मोह उतरी गयो होय अने मुक्तिती साना सानी हाय तेमणेज साधु वुं जाईए साधु यवानी जेमने अंतरनी प्रबळ प्रेरणा यह न हाय एवा सवनाने दाक्षा अपाय तो तेओ ते दीक्षानुं व्रत
समाजमां अने त्यागी संस्थामां
सुधारानी आवश्यकता.
| जैन धर्मपान ३४०.३४१,
२ पना व्याख्यान व २ जुं (पूर्वार्ध ) पान २,
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पाळी शके नहीं अने तेथी साधु वर्गनी अवनति थाय ए उघड छे. तेटला माटे जैन संघ एवा लोकोने साधु संघमांथी दूर करवा मूळचीज प्रयत्न करतो भान्यो छे. जेनो सुधारो नहीं तेनुं परिवर्तन नहीं; तेनो तो नाशज, लोपज संभवे छे. एज रीते विचार विनानुं सुधारक कार्य पण पुरतुं फळदायक थतुं नथी. परिच्छेद ३४ मां जणाव्या प्रमाणे जैनोमां ते प्रमाणे वखतोवखत सुधारो थतो आव्यो छे. अने तेने लीधेज तेमनी धर्म भावना तथा साधुवर्गनी शुद्धवृत्ति हिंदुधर्मना अनुयायीओने मुकाबले सारी रही छे. लगभग पचीसो वर्ष उपर थयेला छेला तीर्थंकर श्री महावीर स्वामीना अनुयायीओ अने अहिंसा धर्म तथा उच्च ज्ञानना विस्तारक जैन श्रमणोनी संस्कृतिमां समयने अनुसरी कदाच कंई शिथीलता आवी हो तो पण हजु सुधी ते बीजा धर्मना मुकाबले सारी रहेली छे. समय प्रमाणे दरेक राष्ट्र, दरेक प्रजा, दरेक समाज अने दरेक वस्तुमा फेरफार थतो रहे छे, ते छतां पण हिन्दुस्थानना साधुओमां जैन साधुओर्नु स्थान उंचज छे. आज पण तेमना त्यागने, तेमनी कष्टचर्याने, तेमना विकट नियमोने दुनियानी कोईपण साधु संस्था पोहोंची शके तेम नथी. कोडी जेटलं पण अर्थसाधन नहीं राखवानु, कोईने त्या बेसीने नहीं जमवाजें, पीवानुं पाणी पण मागीने लेवान, माथाना वाळ हाथे उखेडो नाखवार्नु अने पोताना खप पुरतो सामान पोतानी खांध उपर लादीने पगे मुसाफरी करवाने आजे बीजा कोईपण संप्रदायमा नथी. एटला माटे आवी उत्तम संस्था शुद्ध अने उच्च भावनावाळी राखवाने साधु दीक्षामां छेल्लां केटलांक वर्षथी दाखल थयेलु होवान कहेवामां आवतुं अयोग्यपणुं जाहेरमां लाशी तेमा सुधारो कराववा जैन धर्मना केटलाक केळवायेला युवको तथा शुभेच्छको कंई समयथो उहापोह करी रह्या छे अने तेने परिणामे अमारे जेनी जरुरियात के बीनजरुरियातनो विचार करवानो छे ते कायदानो खरडो श्रीमंत सरकार महाराजा साहेबे तैयार करावी लागता वळगता तरफथी सूचनाओ मंगावी छे.
प्रकरण ३ जु.
अयोग्य दीक्षा अपाय छे के ? ३७. वडोदरा राज्यमा प्रचलित मुख्य धर्मोमो संन्यास दीक्षा संबंधी शास्त्रथी केवी
रीते ठरेलुं छे ए विषे पाब्ला प्रकरणमा दिग्दर्शन कर्या आयोग्य दीक्षा.
_ पछी हवे केटलाक तरफथी आक्षेप करवामां आवे छे तेम दीक्षा आपवामां कई अघटित के अयोग्य थाय छे के केम अने थतुं हशे तो शुं अने ते अटकाववा शा उपाय लेवानी जरूर छे तेनो विचार करवानो रहे छे. हिंदु संन्यासनी उत्तम भावनामां काळे करीने केटली अधमता पेठा छे अने योडा अपवाद रूप सारा संन्यासी बाद करतां बाकीनो मोटो भाग केवो ढोंगी अने केवळ उपद्रवकारक थई पडयो छे ए बीजा प्रकरणमां बताववामां आव्युं छे ( परिच्छेद १७). एम छतां
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हिन्दु धर्मना अनुयायीओ के जेमनी वस्ती अने साधु वर्गनो समुदाय जैनो करतां घणो मोटो छे तेमना तरफथी कोईपण प्रकारनी सूचना के हकीकत अमारा आगळ आवी नथी. सरकारे जे खरडो प्रसिद्ध कर्यो छे तेमां कई पण फेरफार कर्या वगर तेने कायदानुं रूप आपवामां आवे तो हिन्दु धर्म समाजनो कई बांधो होय एम जणातुं नथी. परंतु तेां कई अजायत्र जेवुं नथी. हिन्दु धर्मना त्यागीओ उपर संसारीओनो कई अंकुश नथी अने एकंदर हिन्दु समाज एवो उदासीन छे के तेमनी त्यागी संस्थामां सुधारो करवानी कई दरकार नथी. पोते थईने कई तजवीज करतो नथी पण जो सरकार कई करे तो तेमां तेने कई बांधो नथी. आधी उलट जनो के जेमना धर्ममां संन्यास दीक्षा खास महत्वनी गणेली छे तेमनमांना केटला एवी दलील रजू करी छे के शास्त्रमां ठरावेला सिद्धांतोनो भंग करी समजण वगरना नानां बाळकोने नसाडी, भगाडी तेमनां मात्राप, वाली विगेरनी संमति वगर केटलाक जैन गुरुओ चेला वधारवाना लोभयी शास्त्र विरुद्ध दीक्षा आपी दे छे, तेने माटे जैन संघ मतभेदने ली कई उपाय योजी शकतो नथी, तेथी सरकारे तेमां दरम्यानगिरी करी कंई बंदोबस्त करवो जोईए. आ विरुद्ध बीजा केटलाक एवी दलील करे छे के आ आरोप खोटो छे. शास्त्र विरुद्ध कई पण बनतुं नथी अने बनतुं होय तोपण ते अटकाववानुं काम जैन संघनुं छे. सरकारे तेमां कोईपण रीते दरम्यानगिरी करवी जोए नहीं, एक तरफथी सुधारको भाषणो, वर्तमानपत्रो, पुस्तको विगेरे द्वारा हकीकत प्रसिद्ध करी जणावे छे के शिष्य वधारवाना मोहथी धर्मनुं फरमान बाजुए मुकीने केटलाक साधुओ सगीर ने (१) फोसलावी ( २ ) नसाडी, भगाडी अने (३) माबाप विगेरेनी संमति लीधा वगर अने (४) संघने जणाव्या वगर छानी रीते दीक्षा आपीदे छे अने (५) कोई इसम लायक उमरनो होय अने परणेलो होय त्यारे तेना माबाप स्त्री विगेरे आप्त वर्गनी संमति मेळववी जोईए ते मळी न होय तोपण दीक्षा आपी दे छे अने तेथी समाजमां क्लेश, कंकास थाय छे अने घणी वखत न्यायाधिशीमां फरियाद थवाना प्रसंगो पण आवे छे. आ विरुद्ध जुना विचारने वळगी रहेनारा अने दीक्षाना चुस्त हिमायतीओनुं कहेवुं एवं छे के आ बधा आक्षेपो खोटा छे अने ते स्वधर्मने खोडवाने अने साधुओ उपर खोटा आरोप मुकी तेमने हलका पाडवाने माटे करेला होय छे, जैन धर्म प्रमाणे आठ वर्षनी उमर पछी दीक्षा लेवानी जेमनी पोतानी इच्छा थई होय - जे दीक्षा आपवाने शास्त्र प्रमाणे लायक होय, अने जो ते सोळ वर्षना अंदरना होय तो तेमणे दीक्षा लेवामां माबाप संमत होय तेमनेज दीक्षा अपाय छे. पण १६ थी वधारे उमरनाने माटे मात्राप स्त्रा विगेरे कोईनी संमतिनी अपेक्षा शास्त्रमां रखाई नथी अने पोताना स्वार्थ तथा मोहनी खातर एव समां वहालां कोई कोई बार दीक्षा लेवा माटे विरुद्धता करे छे तोपण दीक्षा अपाय छे तेथी एव सगां वहालां तथा तेमना संबंधीओ दीक्षा आपनार साधुने वगोवे छे अने कचित प्रसंगे तेमने न्यायाधिशीमां पण घसडी जाय छे; तोपण तेमणे आपेली दीक्षामां कांई
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वांघो लेवा जेवू के शास्त्र विरुद्ध होतुं नथी तेथी परिणामे दीक्षाना विरोधीओ आवी दीक्षा बंध कराववानी धारणामां निष्फळ नीवडे छे, तेथी सरकार आगळ खोटो उहापोह करी रह्या छे. ____३८. अमारी आगळ बन्ने पक्ष सरफथी जे लेखी हकीकतो आवी छे तथा
रुबरु जुबानीओ थई छे ते उपरथो अमारी मान्यता निर्णय करवाना मुद्दा.
एवी थई छे के एक पक्ष तरफथी खरी वस्तुस्थितिनी कईक अतिशयोक्ति करवामां आवे छे, तोपण वास्तविक रीते तेना तरफथी मुकवामां आवता आक्षेप बीनपायादार नथी; परंतु एथी उलट सामा पक्ष तरफथी खरी हकी कत खुल्ला दीलथी कबूल न करता ते छुपाववा अने अयोग्य रीते दीक्षा आपनारनो खोटो बचाव करवा प्रयत्न थाय छे. बन्ने पक्ष तरफथी कहेवामां आवती हकीकत उपरथी तकरारी बाबतोमा विचार करवाना मुद्दा नीचे प्रमाणे जणाय छे:
(१) दीक्षा आपवा माटे सगीरोने फोसलाववामां आवे छे के केम ? (२) दीक्षा आपवा माटे सगीरोने नसाडवा भगाडवामां आवे छे के केम ! (३) दीक्षार्नु रहस्य न समजे एवाने दीक्षा आपवामां आवे छे के केम ? (४) माबाप विगेरेनी संमति लीधा वगर सगीरोने छुपी रीते दीक्षा अपाय छे
के केम ? (५) सज्ञान उमरनाने दीक्षा आपता पहेला माबोप, स्त्री विगेरेनी संमति लेवाय
छे के केम? (६) सोळ वर्ष उपरनाने माटे एवी संमितिनी जरूर छे के केम ? (७) संघनी संमति लेवार्नु आवश्यक छ के केम ? आ मुद्दाओनो हवे पछीना परिच्छेदोमां अनुक्रमवार विचार करीशु.
३९. साधुओ पोते थईने सगीरोने दीक्षा लेवा फोसलावे छे ए आरोप अमने सगीरने फोसलाववानो आरोप.
- पुरवार थयेलो लागतो नथी. कोई साधुए कोई सगीरने
" फोसलाव्यानी हकीकत अमारा आगळ आवी नथी. ए वात खरी छे के साधुओ पोताना प्रवचन वखते तथा बोध आपवाना इतर प्रसंगे जैनो आगळ दीक्षाना महत्व उपर भार मुके छे अने जो कर्मनो क्षय करी मोक्ष मेळववो होय तो तेनुं सर्वथी उत्तम साधन दीक्षा छे एम आग्रहपूर्वक कहे छे. परंतु आ बोध सामान्य रीते प्रवचन वखते हाजर थयेला सर्व श्रेोता जनोने एटले के तमाम श्रावक श्राविकाओने खुल्ली रीते करवामां आवे छे, मात्र सीरोने छुपी रीते कई कहे. वामां आवतुं होय अगर लालच आपवामां आवती होय तेम जणातुं नथी. दीक्षाना फळनु महत्व बतावी दीक्षा लेवानो बोध करवामां आवतो होय तेटला उपरथी दीक्षा लेवाने फोसलाव्या एम कंई कहेवाय नहीं. दीक्षा लेशो तो तमार। देहनो मोक्ष थशे
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अने तमने सर्व कोई मान आपशे अने पूजशे एम कहेवातुं होय तोपण तेथी दीक्षा लेवा फोसलाववामां आवे छे एम कांई कहेवाय नहीं. दीक्षितने मान आपवामां आवे छे ए बात खरी छे अने ते सर्व कोई जाणे छे अने प्रत्यक्ष जुए छे. ए वतुस्थिति कांई खोटो नथी एटले ते आगळ धरवामां आवती होय तोपण तेनो समावेश फोसलाववामां करी शकाय नहीं. दीक्षाना लाभ तो बधा पक्षना जैनो कबूल करे छे. केटलाको विरोध छे ते दीक्षा सामे नहीं पण अयोग्य रीते अपाती दीक्षा सामे छे. सगीरने साधु तरफधी खोटी रीते भंभेरी अथवा खोटी लालच आपीने दीक्षा लेवानुं समजाववामां आवतुं होय एवी कांई हकीकत अमारा आगळ आवी नथी. खरी वात तो एछे के सगीर वयना बाळकोए प्रवचन वखते दीक्षानो महिमा सांभळ्यो होय अगर साधुने अपातुं मान जोयुं होय ते उपरथी तेओ पोते थईने दीक्षाना मोहवी ते लेवाने घेरी छानामाना नासी जाय छे अने साधु पासे हाजर थई दीक्षा आपचा मागणी करे छे. आवे प्रसंगे तेमने दीक्षा आपवामां साधुओ जे अयोग्य करे छे ते घणे भागे तेमने ललचावीने पोतानी पासे लाववामां नहीं पण आगळ जणाववामां आवशे तेम पोतानी आगळ दीक्षा लेवाने माटे आवेला सगीरोने घेर पाछा मोकलो देवाने बदले अगर तेमना मात्रापने खबर आपी तेमनी संमति छे के नहीं ते जोवा माटे तेमने बोलाववाने बदले तेमने गुपचुप दीक्षा आपी देवामां रहेलुं छे; अने तेथीज माबाप विगेरे तरफथी तेमना उपर फोसलाववा विगेरेना आरोप मुकत्रानो प्रसंग आवे छे.
४०. उपरना मुद्दाने मळतो बीजो आक्षेप एवो करवामां आवे छे के साधुओ अज्ञान वयना बाळकने दीक्षा आपका माटे नसाडी भगाडी लई जाय छे. आ आक्षेप कईक दरज्जे खरो जणाय छे. उपरना परिच्छेदमां जणाच्युं छे तेम साधुओ सगीरने घेर अगर इतर ठेकाणे ते होय त्यां जई तेने फोसलावाने नसाडी भगाडी जता नथी पण कोई सगोर पोतानी मेळे तेमनी पासे दीक्षा लेना आव्यो होय तो तेने घेर पाछो मोकलवाने बदले कोई जाणे नहीं एवी रीते तेने दीक्षा आपी देवाना इरादाथी तेने एक ठेकणेथी बीजे ठेकाणे लई जाय छे अगर मोकलावी दे छे. कोई साधुए कोई सगीरने पोताना माबापना कबजामांथी पोते थईने नसाडी भगाड ! लई जवानो दाखलो अमारी आगळ आव्यो नयी, पण एवा घणा दाखला आव्या छे के जेमां सगोर पोते थईने साधु पासे दीक्षा लेवा गया पछी साधुर तेने एक गामथी बीजे गाम मोकलावी दीवो हतो अने तेम करवानो तेनो हेतु मात्रापने खबर पडे ते पहेलां छूपी रीते दीक्षा आपी देवानो हतो. आवी रीते एक साधुए १३ वरसना कहेवाता एक छोकराने दीक्षा आपवा माटे अहींथी तहीं फेरव्यो हता एम पाटणमां थयेली फरियाद उपरथी नीकळ्युं हतुं. जो के पाछळथी एम जणायुं हतुं के ते छोकरो तेर वरसनो नहीं पण सज्ञान वयनो होई पोतानी खुशीथी दीक्षा लेवा गयो हतो; एम जणायाथी साधुने छोडी मुकवामां आग्यो हतो तोपण तेने दीक्षाना उमेदवार तरीके
साधुओ दीक्षा माटे साडे
भगाडे छे के केम ?
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एक ठेकाणेथी बीजे ठेकाणे मोकलावी दीधानी हकीकत खरी जणाई हती अने तेम करवानो हेतु पण तेना सगांनो विरोध थशे एम जाणी तेमाथी छटकी जवानो होबार्नु नीकळ्युं हतुं. सोळ वर्षनी अंदरनी सगीर वयनो एक छोकरो डभोईमां आवेला तेना घेरथी छानोमानो नासी गयो हतो; तेने दीक्षा आपनार साधुए ऊंझाथी सिद्धपुर अने त्यांथी मेत्राणा अने तुंडाव लई जई एक झाड नीचे दीक्षा आपी दीधी हती. बीजो एक एवीज सगीर वयनो छोकरो चाणस्मानी निशाळमां भणतो हतो त्यांथी छानोमानो दीक्षा लेवा साधु पासे चाल्यो गयो, तेने घणे ठेकाणे रखडावी चितोड पासे एक गामडामां दीक्षा आपी देवामां आवी हती अने तेना बापे पोलिसमां मनुष्यनयननी फरियाद करी हती ते उपरथी घणी वखत तपास चाली हती अने तेने पांचसो सातसो रूपिया खर्च पण थयुं हतुं पण छोकरानो कई पत्तो लाग्यो नहीं. आखरे केटलेक वर्षे छोकराए पोते थईने कागळ लख्यो त्यारे तेनो पत्तो लाग्यो अने तेने दीक्षा आपी दीधेली होवार्नु जणायुं हतुं. एज प्रमाणे आमोदनी एक बाईना ११ वर्षना छोकराना संबंधमां तेना मामाने रू. १००० आपवाना ठरावी कोई दीक्षा घेलाए तेनी मानी संमति वगर दीक्षा आपवा तजवीज करी हती पण ते माना प्रयत्नथी ए तजवीज निष्फळ नीवडी हती. छाणीनो एक सगीर छोकरो माबापने कह्या वगर दीक्षा लेवा मुंबई तरफ जतो रह्यो हतो; तेना माबाप तरफथी तेने दीक्षा नहीं आपवा साधुने मनाई करेली हती छतां तेने छुपाक्वा अंधेरी अने घाटकुपर बच्चे अहींथी तहीं फेरवी गुप्त रीते दीक्षा आपो देवामां आवी हती अने बापने मुंबाई जई छोकरानो पत्तो पाडी घेर तेडी लाववो पडयो हतो. आवा दाखला बने छे त्यारे दीक्षाना हीमायती धर्मचुस्तो अहिंथी तहीं दोडी जई, लागवग चलावी माबार उपर दबाण करे छे अने खरी हकीकत आगळ आवती अटकाववा प्रयत्न करे छे; एवा दबाणथी डरी जई केटलीक वखत माबाप फरियाद करतां अचकाय छे, अगर जाणे कई बन्युज न होय एवी खोटी हकीकत तेमने कहेवी पडे छे, एम केटलाक दाखला उपरथी अमने जणायुं छे. आवी तजवीजोथी पुरेपूरी हकीकत आगळ आवती नथी तो पण केटलाक निडर अने स्वधर्मना खरा हितेच्छुओए पोतानी विरुद्ध पक्षना पोताना धर्म बंधुओनी खफगी वहोरी लेवानुं जोखम खेडीने दीक्षामां चालती आवी गेरशीस्त रीतो उघाडी पाडवाने पुस्तको बहार पाडयां छ; अने तेनो विरोध करवाने सामा पक्ष तरफथी पण प्रसिद्ध थयां छे. अयोग्य दीक्षा अपाय छे अने दीक्षितो मेळववाने अधर्मी आचरण थाय छे एवो आक्षेप करनारां
(१) अमृतसरिता, (२) वीर धर्मनो पुनरुद्धार, (३) पर्युषण पर्वनां व्याख्यानो भाग १-२, (४) जैन दीक्षा प्रथम खंड अने (५) समयने ओळखो.
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ए पुस्तको छे. आ विरुद्ध कई अयोग्य थतुं नथी एम कहेनारां' आत्माने ओळखो' अने तेना जेवां पुस्तको छे. जैन वर्तमानपत्रोमां पण एक तरफ " जैन " अने एवां बीजां सुधारक पत्रो अने तेना विरुद्ध " जैन प्रवचन " "वीर शासन" पत्रो छे. जैन धर्मनी साथेना संबंध वगरनां पत्रोए पण पोतानी कालमो बने पक्षने माटे उघाडी राखी छे, अने आ रीते कागळ उपर बने पक्षनी वच्चे द्वन्द्व युद्ध चाली रहेलुं छे एम तेमना तरफथी समिति तरफ मोकलाती नकलो उपरथी जणाई आवे छे. अमे आवां पुस्तको अने लेखो उपर कई ध्यान आप्यु नथी पण अमारा आगळ आवेली पुरावा तरीकेनी हकीकत उपरथी अमारी खात्री थई छे के सोळ वर्षनी अंदरनी कुमळी वयना बाळकोने तेमना माबापनी संमति मेळववानी दरकार राख्या वगर जैन धर्मना फरमान विरुद्ध केटलाक साधु दीक्षा आपी दे छे अने तेने लीधे जैन समाजमां पक्ष पडी गया छे. ४१. बीजो मुद्दो ए जोवानो छे के दीक्षानुं रहस्य न समजे एवा सगीरोने
दीक्षा आपवामां आवे छे के केम ? आ आक्षेप पण समज वगरनाने दीक्षा
दाता खरो लागे छे. दीक्षा एटले शु, ते लेवानो उद्देश शो, अपाय छे?
तेनुं परिणाम शु थशे, ए कुमळी वयनां बाळको समजी शके के केम ए बहू विचारमा लेवा जेवी बाबत छे. ए वात खरी छे के आठ वर्षनी उमरनाने दीक्षा आपवानी शास्त्रमा छूट राखेली छे पण दीक्षा आपवान! काममा मात्र उमर नहीं पण समज पण जोवानी होय छे. मनुष्यपणुं दुर्लभ छे, जन्म ए मरणर्नु नीमीत्त छे, संपत्ति चंचळ छे, इंन्द्रिओना विषयो दुःखना कारणभूत छे, संयोगमा वियोग रहेलो छे अने मरण क्षणे क्षणे थयाज करे छे एवं जे समजी शके तेने दीक्षा
आपी शकाय. पण आ तत्वज्ञान कुमळी वयनां बाळक समजी शके नहीं; एवी समज लायक उमरवाळामां पण थोडानेज होय तो पछी सगीर वयनामां तो क्यांथी होय ? आवी समज होवानी खात्री करी दीक्षा अपाती होय तो सोळनी अंदरनी वयनाने तो कदी पण आपवामां न आवे; पण एवी वयनाने दीक्षा आपवामां आवे छे एज देखाडे छे के शास्त्रमा दीक्षा आपतां पहेलां जेवी परीक्षा करवाने का छे तेवी परीक्षा कर्या वगर जे कोई हाथमां आवे तेने मंडीदे एवा साधु पण होय छे. यतिव्रत पाळवाना संबंधमां एवं कहेवामां आव्युं छे के ते असिधारा जेवा दुर्गम मार्गपर चालवा बरोबर छे. वळी कहयुं छे के संयमनो भार वहन करवो, ब्रह्मचर्य पाळवू, बीजाने उपदेश आपको, देशोदेश विचर टाढ तडका सहन करवा, परीश्रम खमवा, ज्ञाननो अभ्यास करवो अने तप आदर, ए विगेरे अनेक विषम कार्यो यतिने करवानां होय छे. माटे जे एवा पदने लायक होय तेनेज यति बनाववो जोईए; एवो माणसज साधुपणाने शोभावे छे अने पोताना आत्मानुं कल्याण करे छे. एटला माटेज जेनामा परिच्छेद २४ मां बतावेला १६ गुण होय तेनेज दीक्षा आपवा शास्त्रमा फरमावेल छे. आ १६ गुणोमां केटलाक एवा छे के माणस
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लायक उमरनो थई संसारनो अनुभव ले नहीं त्यां सुधी तेनामां ते आवे नहीं; जेम के मोह विगेरे कर्म क्षय पामेलो होवानो त्रीजो गुण; राग द्वेष विगेरे कमी थई ज्ञान बुद्धि निर्मळ थयेली होवानो चोथो गुण; संसारनी असारता अनुभवेली होवानो पांचमो गुण; वैराग्य उत्पन्न थयेलो होवानो छठो गुण, क्रोध, मान, माया, अने लोभ कमी थयेलो होवानो सातमो गुण; करेलो उपकार नहीं भूलवानो कृतज्ञपणानो नवमो गुण; विनयवंत होवानो दसमो गुण; उत्तम चारित्रवाळो होवानो अगियारमो गुण; कोईनो द्रोह नहीं करवानो बारमो गुण; अने आरंभेलं कार्य गमे तेवां विघ्न आवे तोपण मुकी नहीं देवानो स्थिरतानो पंदरमो गुण; आवा गुण होवानी बधी लायकी तपासीने दीक्षा अपाती होय तो भाग्येज कोई नानी उमरनाने ते प्रसंग आवे. श्री प्रभावक चरित्रमां' वर्णवेला वज्रस्वामी जेवा कोई विरल पुरुषने त्रण वर्ष जेटली बाळ वये दीक्षा लेवानी समज आवी हशे एम घडी भर मानी लईए तोपण एवा विरला हालना वखतमां होवार्नु बनवा जोग लागतुं नथी. बाळ अवस्थामां दीक्षा लेवा जेवो वैराग्य भाग्येज कोईमां आवे. घणीवार एम बने छे के माणसने संसारमां बनता केटलाक संजोगोने लीधे तात्काळिक वैराग्य आवे छे पण ते वैराग्य क्षणिक होय छे अने थोडा वखतमां जे संजोगोमा ते उत्पन्न थयो होय ते संजोगो नाश पामतां ते वैराग्य पण अदृष्य थई जाय छे. मात्र एवी स्थितिमां दीक्षा लीधी होय तो पाछळ पस्तावा जेवू थाय छे. संयम बेडीरूप भासे छे अने ते छोडी घेर पाछा आववा मन थाय तोपण शरम अथवा बीजाओना दबाणने लीधे तेवी दुःखमय स्थितिमा जारी रहेQ पडे छे. एबुं परिणाम नानी उमरना दीक्षा लेवा आवनारना संबंधमां न आवे एटला माटे तेनो वैराग्य क्षणिक छे के स्थिर छे ते बाबतनी दीक्षा आपनारे तपास करवी जोईए. पण हालमां घणे भागे तेमांनु कांई यतुं होय एम लागतुं नथी. जो यतुं होय तो दीक्षा लेवा माटे आवेला पैकी घणाने घेर पाछा मोकल्या होय. पण दीक्षा लेवा आवेलाने कोई साधुए तेम कर्यानुं जाणवामां आव्युं नथी. पण एथी उलट उतावळमां दीक्षा लीधेला पैकी पोतानी मेळे कंटाळीने संसारमा पाछा आवेलाना दाखला तो मळी
आवे छे
४२. चोथो मुद्दो ए जोवानो छे के माबाप विगेरे नजीकना सगां संबंधीनी
समति लीधा वगर सगीरोने छपी रीते दीक्षा आपी सगीरोने छपी रीते दीक्षा पा देवामा आवे छे के केम ! आ मुद्दो पण अमारा आगळ
के कम ? आ मद्दो पण अमा अपाय छे.
पुरवार थयेलो छे. १६ वर्ष उपरनी उमरनाने दीक्षा आपती वखते माबाप विगेरेनी संमति लेवी जोईए के नहीं ए एक तकरारी प्रश्न छे पण १६ वर्षनी अंदरनाने माटे तो समति जोईए ए निर्विवाद छे ( जुओ परिच्छेद २५, ३७.) एम छतां एवी संमति लेवाने स्पष्ट आज्ञानो अनादर करी दीक्षा आपी देवामा आवे छे अने जाण थशे तो माबाप विरोध करी अटकावशे एवी बीकथी ते गुप्त रीते १ पान १५, संवत १९८७ नी आवृत्ति.
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आपी देवामां आवे छे. अदत्तदान नहीं लेवाने पोताना महाव्रतथी बंधायेला आचार्योए माबापनी संमति वगर अज्ञान उमरना छोकराने दीक्षा आप्या बद्दलना अमारी आगळ आवेला घणा दाखला पैकी मात्र छाणो, डभोई अने चाणस्मावाळाज लक्षमां लईए तो तेटलाज उपरथी स्पष्ट थाय छे के एज छोकराओने दीक्षा आपनार आचार्य शास्त्र विरुद्ध वर्तन करी शिष्य चोरी अथवा निटिकानो अपराध को हतो. जो जैनसंघ पहेलांना जेवो शुद्ध अने सारो रह्यो होत तो आवा चोरी करनार आचार्यना कपडां तत उतरावी लेत अगर निदान तेने ठपको आपी फरीथी एवं नहीं करवाने ताकीद आपत; तेज प्रमाणे बीजा आचार्यो पण तेमनो फीटकार करत. परंतु ते पैकी कोईए कंई कर्यु नथी; एटलुज नहीं पण उलट खरी हकीकत छुपात्री ए छोकरानी उमर तो १६ वर्षनी थई गयेली हती एटले कोईनी संमति लेवानी कई जरूर नहोती एम कही शास्त्र विरुद्ध वर्तनार साधुनो खोटी रीते बचाव करवामां आवे छे; एटलुज नहीं पण तेमनो बचाव करवाने केटलाक तरफथी खरी हकीकत आगळ लावनारनो वर्तमानपत्र विगेरे द्वारा धर्मविरोधी तरीके फीटकार करवानी तजवीज थई छे, ए अमने घणुं शोचनीय लागे छे. जो खरी रीते चालवान होय तो दीक्षा आपवाना काममा छुपवट शा माटे जोइए ? जो खरी रीते चालवान होय तो जे आचार्य पासे सगीर छोकरा तेमना माबाप के सगां साथे लीधा वगर दीक्षा लेवा आवे तेमने कंईपण तपास कर्या वगर गमे त्यां लई जई दीक्षा आपी देवाने बदले तेमना माबापने खबर आपीने तेडावे, तेमने पूछीने उमर विगेरे विषे खात्री करे, तेमनी संमतिनी जरूर होय तो ते मेळवे, दोक्षा आपवा माटे सगीरमां खरा वैराग्य विगेरेनी लायको छे के नहीं ते पण जुए अने दीक्षा आपत्री योग्य जणाय तो तेने माटे मुहूर्त नको करे, संधने खबर कहे, वरघोडो कढावे अने जाहेर अने उघाडी रीते सर्व कार्य करे. एम न करतां छूपी रीते अने तूर्तातूर्त दीक्षा आपी देवामां आवे छे, एज देखाडे छे के दीक्षा आपी दीक्षितोनी संख्या वधारवानी इन्तेजारीमा हाल घणु अणवतुं थाय छे एम सुधारक जैनो तरफथी जे आक्षेप करवामां आवे छे ते आधार वगरनो छे एम कही शकातुं नथी. दीक्षा आपी देवानी उतावळ करवाने बदले महात्मा गांधीजीना नीचेना उतारामां जणावेलो बोध ध्यान राखवामां आवे तो साधु संस्थानी केटली बधी उन्नति थाय तेनो ख्याल करयो घटे छे. तारीख २८ आगस्ट १९२७ ना नवजीवनना पान ४२१ उपर एवी हकीकत छाई छे के झावरा स्टेटनी एक ओस्वाल बाईनो धणी नानी वयनो छतां दीक्षा लेवानो इरादो करी घर छोडी गयो हतो अने जती वखते पोतानी स्त्री उपर एक पत्र लखी गयो हतो के मारे दीक्षा लेबी छे अने बे वरसथी हुँ परवानगी मागु छु पण कोई आपतुं नथी माटे हवे में पोतेज दीक्षा लेवानो विचार कया छे. आ हकीकतना संबंधमां महात्मा गांधीजीए लख्यु छे के “ मारी उमेद छे के आ नवयुवकने कोई दीक्षा न आपे, एटलुंज नहीं पण ते पोतेज पोतानो धर्म समजशे. नानी वये बुद्ध के शंकराचार्य जेवा ज्ञानी दीक्षा ले ए शोभी शके छे पण हरेक जुवा
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नीया एवा महान पुरुषोनुं अनुकरण करवा बेसे तो ए धर्मने अने पोताने शोभाववाने बदले लजवे. आज काल लेवाती दीक्षामां कायरता शिवाप काई जोवामां आवतुं नथी अने तेथीज साधुओ पण तेजस्वी होवाने बदले घणा खरा आपणा जेवा दीन अने ज्ञानहीन होय छे. दीक्षा लेवी ए पराक्रमर्नु काम छ भने तेनी पाछळ पूर्वजन्मना महा संस्कार अथवा तो आ जन्ममा मेळवेलुं अनुभव ज्ञान होवू जोईए. वृद्ध माता अने तरुण स्त्रीनो कांईपण विचार कर्या विना दीक्षा लेनारने एटलो बधो वैराग्य होवो जोईए के आसपासनो समाज ते समज्या वगर रहे नहीं. आ दीक्षा लेनार जुवानने ते होय एम जोवामां नथी भावतुं." ४३. आ तो सोळ वरसनी अंदरना सगीरना संबंधमां थयु; परंतु १६
वरसनी उपरांतनो दीक्षानो उमेदवार होय अने तेनां सोळ वरसनी उपरनाने दीक्षा
" माबाप हयात होय अगर ते परणेलो होय तो माबाप लेती वखते माबाप विगेरेनी संमतिनी अपेक्षा.
अने पत्नीनी संमति देवी जोईए के केम ए तकरारी
प्रश्न छे. मूर्तिपूजक श्वेतांबरोनो एक पक्ष जेनी आगेवानी अमदावादना · यंगमेन्स जैन एसोसिएशन' ना चालको करे छे तेगर्नु कहेदूं एवं छे के १६ वरसनी उपरांतना माणसोने दीक्षा आपवामां कोईनी संमतिनी जरूर नथी. ए विरुद्ध बीजो पक्ष के जेनी आगेवानी जूदे जूदे स्थळे स्थापन थयेला युवक संघ करें छे तेमनु कहे£ एq छे के एवे प्रसंगे पण संमति लेवानी अपेक्षा रहे छे; कारण जे अढार प्रकारना पुरुषोने अने वीस प्रकारनी स्त्रीओने दीक्षा आपवाने शास्त्रमा अयोग्य जणाव्यां छे तेमा अढारमी नालायकी माबाप विगेरेनी संमतिनो अभाव छे अने एवी संमति मेळव्या वगर आपेली दीक्षाने निष्फटिका' एटले के चोरीनी दीक्षा गणेली छे; तेमां कई ९वो भेद राख्यो नथी के संमति १६ वरसनी अंदरनाने माटेज जोईए अने ते उपरना माटे न जोईए; सामान्य रीते बधी उमरनाने माटे संमतिनी अपेक्षा राखेलो छे. बंने पक्ष तरफथी बतावेली दलीलो विचारमा लेतां अमने लागे छे के १६ वर्ष तथा ते उपरनी उमरनो इसम पोतानी स्वेच्छाथी दीक्षा लेतो होय तो तेम करवामां कायदा प्रमाणे बीजा कोईनी संमतिनी जरूर रहेती नथी, पाल्यपालक निबंध (Guardian and Wards Act ) मां ठरावेली १८ के २१ वर्षनी उमरनी यत्ता, लग्न अने धर्म कार्यना संबंधमा लागू पडती नथी. १६ वर्षनी उमर थया पछी लग्न अने धर्म संबंधी कार्यमा जे ते सखसे आपेली संमति कायदेसर छे अने तेथी माबाप ना कहेता होय तोपण १६ वर्षनी उमरनो पुरुष पोतानी ईच्छा होय ते प्रमाणे वर्ती शके छे ए वात खरी छे; पण दीक्षा लेवा जेवू धर्म कार्य, जेणे अत्यार सुधी पाळी पोषी मोटा कर्यो होय एवां माबाप अगर शास्त्र विधि प्रमाणे जेनी साथे लग्ननो संस्कार को होय तेमने रडावी, ककळावी अगर तेमने आधार वगरना करी पोतानी स्वेच्छा प्रमाणे संसारमाथी चाल्या जवु ए नीतिधर्म प्रमाणे कई धर्म कार्य गणाय नहीं; माटे तेमनी संमतिनी कायदा
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प्रमाणे जरूर न होय तोपण तेमना मननुं समाधान करी अर्थात् तेमनुं अनुमोदन लई, संसारत्याग जेवुं आखरनुं पगलुं लेवाने प्राचीन बखतयी शास्त्रमा राखेलुं छे. हिंदुधर्मना अनुयायीओना संबंधां संन्यासोपनिषद्मां तेमनुं “ अनुमोदन " लेवा कहेलुं छे ते जैन धर्मना अनुयायीओना संबंधमां पण कहेलुं छे. उदाहरण तरीके श्रीहरिभद्रसूरिनां १ धर्मबिंदुमां कहेलुं छे के “ तथा गुरुजनाद्यनुज्ञेति " अने तेनी टीकामां श्रीमुनिचंद्रसूरिए कह्युं छे के " गुरुजन " एटले माता पिता विगेरे; अहीं आदि ( विगेरे ) शब्दथी बहेन, स्त्री वगेरे बाकीना संबंधी लोको समजवाना छे. तेमनी अनुज्ञा " एटले ' तुं दीक्षा ले' एवी संमतिरूप आज्ञा समजवानी छे, ज्यारे ए संबधीओ आज्ञा मागतां छतां न आपे तो मूळ ग्रंयमां कहुं छे के संबंचीवर्ग आज्ञा आपे वी युक्ति करवी; अर्थात् तेमने समजावी अनुमोदन लेवुं. एज ग्रंथकारे रवेला अष्ट कमां मातृ पितृ भक्तिना अष्टकमां कहां छे के " दीक्षा सर्व प्राणने हितकारी गणवामां आवेली छे माटे जे दीक्षा माता पिताने उद्वेग करावनारी होय ते न्याययुक्त गणाय नहीं. माटे मातृपितृ तथा स्वजननी अनुमति मेळवीनेज दीक्षा लेवी. " जैनोना परमपूज्य चोवीसमा तीर्थंकर महावीर स्वामीए दीक्षा लेवाथी मातापिताने दुःख थशे एवा भयथी ज्यां सुधी ते जीवता रह्या त्यां सुधी दीक्षा लेवानो एक शब्द पण उच्चार्यो
हतो; अने मातापिताना मरण पछी पोताना भाईनी आज्ञा मागी अने ज्यारे भाईए क के मातापितानो वियोग ताजोज छे ने तेथी हुं दुःखी छं, तो ते दुःखमां तमारा वियोगी उमेरो थरो, माटे हालमां दीक्षा लेवानो विचार मांडी वाळो, त्यारे वडील बंधुनी आज्ञा पाळवाने बीजा वे वर्ष गृहस्थाश्रममा रह्या मोटा पुरुषो जे रस्ते चाले ते प्रमाणे बीजाओ चालवाने दोराय ए हेतुथी महावीर स्वामीए पोताना आचारथी लोकोने दृष्टांत आप्युं हतुं के, मातापिता तथा स्वजननी अनुमतियो दीक्षा लेवी, अनुमति लेवाना संबंधमां समाजनो विचार एटलो मजबूत हतो के, महावीर स्वामी पछी सुमारे छ सेंकडा पछी थयेला आर्यरक्षित नामना २२ वर्षना युवकने तोषलीपुत्र नामना मुनिए दीक्षा आपी हती तेमां तेनी मातुश्रीनी संमति हती पण तेना पितानी संमति लीवी न होती अने बापने तथा नगरना राजा, नागरिको विगेरेने खबर न पडे एटला माटे कंई दूर लई जई दीक्षा आपवामां आवी हती; एटला उपरथी ए दीक्षाने " शिष्य निष्फेटिका " एटले असंमत अथवा चोरीनी दीक्षा कहेवामां आवी हती. एवी " चोरीनी ” दीक्षानो आ पहेलवहेलो दाखलो हतो. आर्यरक्षित २२ वर्षेनो तरुण उमरना हता अने चार वेद अने चौद विद्या भणी उतर्या पछी गुरुकुळमांथी घेर आव्या त्यारे तेमना मानमां तेमना गामना राजाए अने प्रजाए तेमने हाथी पर बेसाडी मोटो वरघोडो काढयो हतो. आटलं छतां पण तेमनी मातुश्रीने पूर्ण संतोष यो नहीं. राजमान अने प्रजा मान मेळवी पंडित आर्यरक्षित ज्यारे पोताना माताजीना पगे पड्या त्यारे तेमणे तेमने एत्रो उपदेश कर्यो के तारे हजी " दृष्टिवाद " नुं अध्य१ धर्मबिंदु अध्याय ४, सत्र २५.
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यन करवानुं बाकी छे माटे ते तोषलीपुत्राचार्य पासे जई शीखी ले." ए उपरथी आर्यरक्षित ते आचार्य पासे गया अने पोताने दृष्टिवादनुं अध्ययन कराववाने विनंति करी; ते उपरथी तेमणे तेने का के जैन दीक्षा लीधा शिवाय ए शास्त्र तने शीखवी शकाय नहीं. ते उपरथी आर्यरक्षिते तूर्त दीक्षा लीधी अने ते शास्त्रनो अभ्यास कों. आर्यरक्षितने आपेली दीक्षामां नसाडवा भगाडवानो के फोसलाववानो कई प्रकार बन्यो नहोतो, तोपण पिता हयात छतां एकली मातानी संमतिथी तोषलीपुत्राचार्य दीक्षा आपी अने ते पण जाहेर रीते न आपी ते उपरथी ए दीक्षा “ निष्फेटिका " एटले चोरीनी दीक्षा गणाई हती, आ दृष्टांतनु महत्व घटाडवाने माटे यंग मेन्स जैन एसोशिएशनना केटलाक सभ्यो तथा बीजाओ तरफथी एवी दलील करवामां आवी छे के दीक्षा वखते आर्यरक्षितनी उमर ११ वर्षनी एटले के सोळ वर्षनी अंदरनी हती अने तेथी तेमां बापनी समति लीधी न होवाथी ते " निष्केटिका दीक्षा" गणाई छे ते बरोबर छे; कारण के १६ वर्षनी अंदरनाने माता पिता विगेरेनी संमति विना दीक्षा आपवानी नथी. आ दलीलना टेकामां युगप्रधान गंडिका नामना पुस्तकमां दीक्षा लेती वखते आर्यरक्षितनी उमर ११ वर्षनी लखी छे एम कहेवामां आव्युं छे अने एवी रीते आर्यरक्षित अज्ञान वयना छतां लागतावळगता बधानी संमति वगर दीक्षा आप्याने कारणे तेने निष्फेटिका कही छे; परंतु आ दृष्टांतनु महत्व घटाडवाने अने दृष्टांत मात्र सगीरना संबंधमांज लागु पडे छे एवं बताववाने आर्यरक्षितनी उमर युगप्रधान गंडीकामा २२ ने बदले ११ वर्षनी उमर बतावी हशे एवो शक लेवा ब्याजबी कारण जणाय छे. जे कोष्टकमां उमर दाखल करेली छे ते कोष्टक युगप्रधान गंडिकानो मूळ विषय नथी. ए कोष्टक पाछळथी दाखल थयेल होवू जोईए; कारण के श्रीसुधर्मास्वामी, आर्यरक्षित, आर्यसुहस्ती अने एक चोथा आचार्यनी उमर तेमां दर्शावेली छे. तेमां पण फरक होवाथी बीजा आचार्यो ते ग्राह्य करता नथी, वळी वडोदरामां यगप्रधान गंडिकानी एक बीजी प्रत छे के जेनुं बीजु नाम ' दुष्माकालस्तोत्र' छे तेमा उमर ते प्रमाणे नथी. विशेषमा आर्यरक्षितनुं जीवनचरित्र के जे परिशिष्ट पर्वमां हेमचंद्राचार्ये लखेल छे ते जोवाथी खात्री थाय छे के आर्यरक्षितनी उमर दीक्षा लेती वखते ११ वर्षनी होवानो बिलकुल संभव नथी कारण के जेटलुं तेमना पिता जाणता हता तेटलुं दीक्षा लेतां पहेलां ते तेमनी पासे भण्या हता अने त्यार पछी विशेष भणवाने माटे पाटलीपुत्र गया हता. त्यां अंगो, चार वेद, मीमांसा, न्यायपुराण अने धर्मशास्त्र भण्या पछी पोताना घेर आव्या हता. आर्यरक्षिते दीक्षा बावीस वर्षनी उमरे लीधी हती एम श्री सुमतिगणीरचित गणधरसार्धशतक, बृहद्वृत्ति, सर्वजगणीकृत गणधरसार्धशतक लघुवृत्ति अने श्री विजयानंदसरि आत्मारामजी महाराज कृत अज्ञानतिमिरभास्करमाथी पण आधार मळी आवे छे. एटले दीक्षा लेती वखते आर्यरक्षितनी उमर ११ वर्षनी होवानो बिलकुल संभव नथी. सोळ वर्ष उपरनी उम्मरना इसमो दीक्षा ले त्यारे तेमनां मावापनी संमति मेळवत्री जोईए एम श्री हेमचंद्राचार्य कृत
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त्रिषष्टीशलाकापुरूषचरित्रमाथी पण दाखलो मळे छे. विनयनंदन नामना सूरिनो बोध सांभळी पुरूषसिंहकुमार नामना राजपुत्रने दीक्षा लेवानी इच्छा थवाथो दीक्षा आपवाने तेणे तेमने विनंति करी त्यारे ते सांभळी सूरि बोल्या:-" हे राजकुमार तमारो आ मनोरथ घणो श्रेष्ठ अने पुण्य संपत्तिने साधनारो छे माटे ते अमे पूर्ण करीशु पण प्रथम तमे नगरमां जई तमारा मातापितानी रजा लईने आवो. कारण के जगतमां प्राणीने पहेला गुरू माता पिता छे.” मुनिना ए वचन सांभळी पुरूपसिंह नगरमा गयो अने माबाप पासे जई दीक्षा लेवानी परवानगी आपवा विनंति करी; अने तेमणे ज्यारे खुशी थईने संमति आपी त्यारेज सरिए तेने दीक्षा आपी हती, (पर्व ३ जु सर्ग ३ जो.) ४४. संमति बाबत धर्मबिंदुनो जे आधार बताव्यो छे ते प्रमाणे संमति मेळववा
. धर्मबिंदुना टिकाकारे जे युक्ति करवा लख्युं छे ते युक्तिना माता पिता विगेरेनी संमतिनी संबंधमां तेणे एवो खलासो कर्यो छे के संबंधी वर्ग अनुआवश्यक्ता.
मति आपे नही तो तेमने नठारा स्वप्न कहेवां, मृत्यु समीप आवेला जेवा पुरुषनां चिन्ह देखाडवां अने जोशी विगेरे लोकोनी पासे मातापितादिकने एवं कहेवडावq के आनुं थोडा वखतमा मृत्यु थशे माटे तेना कल्याण माटे दीक्षा लेवा द्यो. मा बाप विगेरेनी संमतिनी एटली बधी आवश्यकता राखी छे के ते न आपे तो आ प्रमाणे युक्ति करीने पण ते मेळवबा का छे. वळी एज प्रमाणे जेनी जेटली शक्ति होय तेटली शक्ति प्रमाणे मातापिता विगेरे प्रमुख गुरुजनना चित्तन समाधान करवा माटे तेमना निर्वाहना सावन माटे पोतानी शक्ति प्रमाणे आजीविकानो बंदोबस्त कर्या पछी दीक्षा लेवान पण कहुं छे; के जेथी पाछळथी पोताना माता पितादिकने निर्वाहना कारण माटे हेरानगति भोगववी न पडे. १ एम करवाथी पोते कृतज्ञता करली कहेवाय छे जैन धर्मना उद्योतनुं बीज करुणा अने दया छे, तेथीज माता पिता स्त्री विगेरेने खुशी करी तेनुं अनुमोदन मेळवो दीक्षा लेवान का छे. ज्यां ए प्रमाणे थतुं नथी त्यां पाछळ क्लेश अने मारामारी थवाना अने हालमां तो न्यायाधिशीमा फरियादो थवाना प्रसंग पण बने छे. उदाहरण तरीके थोडा समय उपर खंभातना एक युवानने तेना मा बापनी संमति वगर दीक्षा आपनार मुनिने मारमारीने युवानने घेर लई जवानो दाखलो वासद आगळ बन्यो हतो; वळी अमदावादमां कांतीलाल नामना युवाने परणेलो छतां पोतानी स्त्रीनी संमति वगर तेम तेना भरणपोषण माटे कंईपण तजवीज कर्या वगर दीक्षा लीधी हती ते उपरथी तेनी स्त्रीए खोराकी माटे फोजदारी न्यायाधिशीमां फरियाद करी हती; न्यायाधिशीए दरमासे रु. २५ तेणीने आपवानो हुकम को हतो, परंतु ते ठराव उपर हायकोर्टमां विवाद थतां एबुं ठयु हतुं के दीक्षा लीधेला जैन सामे तेनी स्त्रीनो खोराकी पोशाकनो दावो चाली शके नहीं; कारण के दीक्षा लीधा पछी तेनी काईपण मिलकत रहेती
१ धर्मबिन्दु, अध्याय ४, सूत्र ३२.
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नथी तेथी नीचली न्यायाधिशीनो ठराव रद्द करवामां आव्यो हतो. ए प्रमाणे पोतानुं श्रेय करवा दीक्षा लीवेला कांतीलालनी स्त्री निसामा नांखती अने रझळती रही छे.
४५. दीक्षा आपवानी इंतेजारीमां जैन जेवा जीव दयावाळा धर्मना आचार्यों केवा प्रकारे वचन उच्चारे छे अने दीक्षा लेवानो केवो बोध करे छे तेनो दाखलो हमारा जोवामां आव्यो छे ते अत्रे टांकीए छीए. एक प्रख्यात जैन मुनिने जूदे जूदे प्रसंगे पूछायला वर्तमान वातावरण उपर प्रकाश पाडता प्रश्नोना उत्तरमां तेमणे जे कयुं हतुं ते तारीख १ जुलाई १९३२ ना ' वीर शासन ' पत्रमां प्रसिद्ध थयेलुं छे. तेमां एक सवाल एवो हतो के " परणेतर बाईंनुं भरणपोषण ए दीक्षितनुं वास्तविक देवुं खरूं के नहीं " ? तेना जबाबमां मुनिश्री तरफथी एवं कद्देवामां आभ्युं के " धर्मशास्त्रना फरमान मुजब संसारना माणसो ज्यारे दीक्षित थाय त्यारे व्यवहार दृष्टिए ते माणसो मरण तरीकेनी स्थितिमां मुकायछे अने तेमनां स्नान सुतक सरख पण तेमना सांसारिक कुटुंबीओने लागतु नथी. वळी वेपारमा मनुष्य ज्यारे सर्व गुमात्री दे छे त्यारे स्त्रो पण पतिने पगले चाली पतिना दुःखे दुःखी बनी सुको रोटलो खाई पोतानुं जीवन नभावे छे. देवाळु काढनारनी स्थावर जंगम मिलकतनी कोर्टमां नोंध थाय छे तेमां पण एक बाजु देवानी नोंध अने बीजी बाजु लहेणानी नोंध लेवाय छे, पण आज दिन सुधीमां इन्सॉल्वन्सी नोधावनारा देवाळु काढनारा - पैकी कोईएपग देवानी नोंधनां पोतानी स्त्रीनुं भरणपोषण नधान्युं होय एवं सांभळ्युं नथी. आर्यावर्तनी आर्यपत्नीने धणीना सुखे मुखी अने घणीनां दुःखे दुःखी ए अचळ नियम जाळत्रवानो होय छे. जेथी सारी या नबळी स्थितिने आनंदनाज दिवसो मानी एकांते सुखमांज मग्न रहेनारी आर्याने माटे धणी जे पंथे वळे ते पंथे वळवुं ए स्त्री मात्रनी फरज छे. धणी हृदयपूर्वक जे कांई आपे ते लेवामां बांधो नहीं पण हक्क करीने मागवुं ते अस्थाने छे. वास्तविक रीते लेशभर पण मागी शकेज नहीं. "
भरण पोषण जवाबदारी संबंधी एक जैन मुनिना विचारो
४६. विजयधर्मसूरिकृत " धर्मदेशना " ना ग्रंथमां कहुं छे के दीक्षा लीघेलाने अथवा दीक्षा लेनारने मातापितादिक परिवार वींटीने रूदन करतां कहे छे के " भाई बाल्यावस्थाथी आज सुधी अमोए तारुं पोषण करेलुं छे छतां ज्यारे अत्यारे तुं अमने पोषवा लायक थयो त्यारे घर छोडी चाल्यो जाय छे. हवे अमने कोण पाळशे ? तारा विना कोई पाळनार नथी. हे पुत्र, तारा पितादेव घरडा थया छे; थोडा दिवसना मेमान छे; तारी बेन हजी कुंवारी छे; आ तारा भाईओ सर्वथा पाळवा लायक छे; आ तारी माता विगेरे वर्गनुं पोषण कर, जेथी आ तारों लोक कीर्तिवाळो थाय अने परलोक पण सुधरे. हे पुत्र, तारां बाळको नानां नानां छे; तारी स्त्री नवयौवना छे; कदाच तुं तेनो त्याग करीश अने तेनाथी कुळनी मर्यादा न बनी शकी, तो लोकमां तारी अने अमारी हेलना थशे, अर्थात् लोकापवादरूप दूषण लागशे.”” १ धर्मदेशना, भावनगर आवृत्ति, पान २०.
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मातापिता अने पत्नीने निराधार मुकवां ए योग्य नथी.
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जोके आ प्रमाणे आवा मुनि महाराजोए बोध कर्यो छे तोपण बहालां मातापितानी विनंतिनो अस्वीकार करी तेमने रडतां ककळतां मुकीने अगर पोतानी पत्नीने निराधार मुकीने दीक्षा लई लेवी ए भले ओवा मुनि महाराजो पोतानी संख्यामां धारो करवा इष्ट गणता होय पण आध्यात्मिक तेम सांसारिक दृष्टियी तो ते अनिष्ट अने निद्यजगणाय; अने तेथीज श्री महावीर स्वामीए पोताना आचारथी लोकोने दृष्टांत आप्तुं के मातापिता अने स्वजननी अनुमतिथीज दीक्षा लेवी जोईए अने तेज लागतावळगता सर्वना भला अने शांतिने माटे उत्तम मार्ग छे. स्त्री मात्राप विगेरेने रडावी ककळाची दीक्षा लेवा करतां महात्मा गांधीजीए कहुं छे तेम " घरवेठां दीक्षा जेवुं जीवन गाळवामां कांई थोडुं पराक्रम नयी जोईतुं अने खरी कसोटी तो तेमांज थाय छे. संतोषपूर्वक पवित्र रहीने, सत्यने जाळवीने, गरीब घरसंसार चलाववो, परस्त्रीने मावेन समान जाणवी, पोतानी स्त्री साधे पण मर्यादामां रहीने भोगो भोगवचा, शास्त्रार्थनो अभ्यास करवो अने यथाशक्ति देशनी सेवा करवी ए कांई नानीसूनी दीक्षा नथी. दीक्षानो अर्थ आत्मसमर्पण छे. आत्मसमर्पण बाह्याडंबरथी नयी यतुं. ए मानसिक वस्तु छे अने तेने अंगे केटलाक बाह्याचार आवश्यक यई पडे छे. पण ते ज्यारे आंतरशुद्धिं अने आंतर त्यागनुं खरूं चिन्ह होय त्यारेज शोभी शके. ते विना ते केवळ निर्जीव पदार्थ छे, " १
४७. आ एकंदर हकीकत विचारमां लेतां अमने लागे छे के १६ वर्षनी उमरनो इसम पोतानी इच्छाशी दीक्षा लेवा जेवुं धर्म कार्य करे मां बीजा कोईनी समतिनी अपेक्षा कायदा प्रमाणे रहेती नथी. एवा कार्यने माटे ते पोतेज संमति आपवाने कायदा प्रमाणे लायक गणाय छे; तोपण नैतिक दृष्टियी तो माबाप विगेरेनी संमति आवश्यक छे अने तेटलाज माटे ते लेवाने धर्मशास्त्रमां फरमायुं छे. माबाप करतां परणेतर स्त्रीनी स्थिति तो जूदाज प्रकारनी छे. माबापना संबंधमां तो एटलुंज के जेमणे जन्म आपी पाळी पोषी मोटा कर्या तेमनुं मन दुभावीने चाल्या जवं ए व्याजवी नथी. परंतु माबाप करतां परणेतर स्त्री तरफ तो विशेष प्रकारनी फरज छे. तेने पाळवा तो लग्नथी धणी बंधायेलो छे; एटले तेने रझळती मूकीने तेनी परवानगी वगर अने तेनी खोराकी पोषाकीने माटे बंदोबस्त कर्या वगर तेनाथी चाली जवायज नहीं.
१६ वर्षनी उमरना दीक्षा लेनार इसमनी तेनी स। प्रत्येनी फरज.
४८. छेलो प्रश्न संघनी संमति लेवा बदल छे. संघनी समति लेवी ए इष्ट छे परंतु ते लेवीज जोईए अने ते लीधा वगर दीक्षा आपी
संघनी संमति.
शकायज नहीं, एम कांई शास्त्रयी ठरेलं नथी. संघनी संमति लेवानुं केटलाक एवा कारणथी इष्ट गणे छे के तेम करवायी कोई नालायक दीक्षा पाई न जाय अगर सगीरना पोताना धार्मिक हित शिवाय मात्राप के बीजा कोईना स्वार्थना के बीजा कोई अयोग्य कारणथी दीक्षा अपाती नयी ए जोवाय. परिच्छेद २४ मां बतावेली लायकीओ पंकी धार्मिक दृष्टिए जोवानी लायकी दीक्षाना १ नवजीवन, तारीख २८ ऑगस्ट सन १९२७, पान ४२१.
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ईद
उमेदवारांछे के नहीं एनी तो दीक्षा आपनार गुरु पोते प्रश्न पुछी खात्री करी शके. परंतु ए शिवायनी बीजी लायकीओ के जेनो आधार स्थानिक माहिती उपर रहे छे ते बीज कोई पूछया वगर दोक्षा आपनार जाणी शके नहीं. एटलाज माटे संघनी संमति लेवानो वहिवट पडेलो होय एम लागे छे. हीरसौभाग्य काव्यमां तो दीक्षा संबंधी अमल बजावणी (execution power) श्रावक संघने होवानुं पण लख्युं छे. वळी माबाप विगेरेनी संमति वगरनी चोरीनी दीक्षाओ अपातां जे कलह उत्पन्न थानो संभव रहे छे ते थत्रा न पामे अने बधुं कार्य खुशालोथी उघाडी रीते थई शके, एटला माटे संघनी संमति लेवानी वात केटलेक ठेकाणे संघे पोते थईने दाखल करेली जणाय छे. संवत् १९६८ सन १९१२ मां वडोदरा शहेरमां श्रीमंत विजयानन्दसूरीश्वरजी ( आत्मारामजी महाराज ) ना संघाडाना मुनिओनुं संमेलन भरायुं हतुं तेमां थयेला ठरावोमां २० मो ठराव एवो हतो के जेने दीक्षा आपवी होय तेनी ओछामा ओछी एक महिनानी मुदत सुधी यथाशक्ति परीक्षा करी तेना संबंधी माता, पिता, भाई, स्त्री विगेरेने रजिष्टर कागळथी खबर आपवानो रिवाज आपणा साधुओए राखवो, तेमज दीक्षा निमित्ते आपणी पासे जे वखते आवे तेज वखते तेनी पासे तेना संबधीओने रजिस्टर कागळथी खबर आपवानो उपयोग राखवो. पण संघनी संमति लेवा संबंधी कांई ठराव थयो नहोतो. आ साधु संमेलनमां थयेला २० मा ठराव उपरथी एम अनुमान थई शके छे के अयोग्य दीक्षाओ अपाती होवी जोईए अने ते बंध करवा ते ठराव थयेलो होवो जोईए. आवुं अनुमान नहीं थवा देवाने अमारा आगळ अयोग्य प्रकारनी दीक्षा अपाती नथी एम कहेनार पक्षे एवी दलील बतावी हती के ए ठशव थयोज नथी अने थयो हशे तो पाछळथी रद्द थई गयो छे. परंतु आ दलील वजनदार जणाती नथी. आ ठराव तेमज तेनी साथे थयेला एकंदर ठरावनु पुस्तक प्रसिद्ध ययेलं हतुं अने तेमां मुनिसंमेलनमां हाजर रहेला ५० मुनिओनां नाम आपेलां हतां; एटलुंज नहीं पण ते १९१२ ना जुनमां वडोदराना सयाजी विजय तारीख २०-६-१२, अमदावादना प्रजाबंधु तारीख २६-६-१२, मुंबई सांजवर्तमान तारीख २७-६-१२, अने मुंबई समाचार तारीख २४-६-१२ अने जैन, भावनगर तारीख २३-६-१२ मां प्रसिद्ध थयेलो हतो अने तेज प्रमाणे हजी सुधी कायम छे. ४९. श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनोनी कॉन्फरन्सना १३ मा अधिवेशनम जे ठराव थया हता तेमां २१ मो ठराव नीचे प्रमाणे थयो हतो:--
रीते
जैन कॉन्फरन्सोना ठरावो.
" दीक्षा संबंधी आ कॉन्फरन्सनो एवो अभिप्राय छे के दीक्षा लेनारने तेना माता पिता आदि अंगत सगां तथा जे स्थळे दीक्षा आपवानी होय स्थांना श्री संघनी संमतिथी जाहेरात पछी दीक्षा आपवी. "
स्थानकवासी श्वेतांबरोना साधुओनुं संमेलन संवत् १९८८ महा वदी ९ ने रोज राजकोट मुकामे मळयुं हतुं तेमां थयेला ठरावोमां दीक्षा बाबत एक ठराव नीचे प्रमाणे थयो हतो:
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२१. दीक्षा लेनार उमेदवारने तेना वालीओथी छानी रीते नसाडवो भगाडवो नहीं. उमेदवारनी शारीरिक संपत्ति तपासवी. कोईपण खोडवाळो न होय, करजदार के गुन्हेगार न होय, प्रकृति सारी होय, वैराग्यवान होय, तेना वर्तनमां कोई एब न होय तेवानी पसंदगी करवी. उमेदवारने एकाद वर्ष साथे राखी प्रकृति अने वैराग्यनो पाको परिचय कर्या पछी ज्यारे तेनी योग्यतानो निर्णय थाय त्यारे तेना वालीनी लेखीत आज्ञा मेळवी श्रीसंघ तथा संप्रदायना अग्रेसरनी संमति मेळव्या पछी दीक्षा आपवी. उमेदवार भाई के बाईनी उमर अति न्हानी नहीं अने अति मोटी नहीं किंतु योग्य उमर होवी जोईए. अयोग्य दीक्षा उपर समितिनो अंकुश रहेशे." १ पाटणमां त्यांना जैन संघे संवत १९८५ ना भादरवा वद ११ ने रविवारना रोज एवो ठराव करलो हतो के " हालनी परिस्थिति जोतां पाटणमां जेओने दीक्षा लेवी होय तेओए एक मास पहेलां जाहेर छापामां जाहेरात कर्या पछी तेनी योग्यतानी खात्री थतां संघनी संमति मेळवी दीक्षा आपी शकाशे. आनी विरुद्ध धर्तन करनार अथवा तेमां भाग लेनार संघना गुन्हेगार गणाशे." सन १९३२ ना एप्रिल मासमां भोयणीमां आचार्य श्री विजयलब्धसूरिना अध्यक्षपणा नीचे श्रीश्रमण संघनो मेळावडो थयो हतो तेमां पसार थयेला छ ठरावो पकी बीजा नंबरनो ठराव एवो हतो के, " पाटणमां दीक्षा माटे संघनी रजा विषे करवामां आवेलो ठराव शास्त्र विरूद्ध छे अने तेवो जिनाज्ञा विरुद्ध ठराव श्रीसंघनो नहीं पण केटलाक धर्म विरोधी अज्ञान युवानोनोज छे. आवो कोईपण ठराव श्री जैन संघ करी शके नहीं अने करे तो ते जैन संघ कहेवाय नहीं."२ संघनी संमतिनी आवश्यकता संबंधे आ प्रमाणे भिन्न मत छे एटले दीक्षा आपता पहेला संघनी संमति लेवानी आवश्यकता छ एम कही शकातुं नथी. १०. एकंदर हकीकत विचारमा लेतां अमने लागे छे के दीक्षा आपसा पहेला जे
गामनो उमेदवार होय ते गामना अगर जे गामे दीक्षा संघनी संमतिनी आवश्यक्ता आपवानी होय ते गामना संघनी संमति लेवी जोईए एम
आधारभूत अने सर्वसामान्य सिद्धांत तरीके गणाय एम कोई ठेकाणे ठरेलु जणातुं नयी. संघनी संमतिने माटे केटलाक ठेकाणे अपेक्षा रखाय छे ते चोरी छुपकीथी सगीरोने दीक्षा न अपाय एटला माटेज रखाय छे. तेथी जेमने पोताना संघ पुरतो तेवो बंदोबस्त राखवो योग्य जणाय ते भले राखे पण हालनी परिस्थिति प्रमाणे ते कायदा रूपे सर्व ठेकाणे फरजियात रीते रखावी शकाय एम नथी.
मथी.
१ जनप्रकाश, तारीख २४-४-३२, पान २७१. २ वीरशासन, तारीख २२.४-३२, पृष्ठ ४४४.
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प्रकरण ४ थु.
अयोग्य दीक्षा अटकाववा शुं करवं. ५१. बीजा प्रकरणमा जणाव्या प्रमाणे मुस्लीम धर्ममां संन्यास लेवान कहेलु नथी
__छतां निर्वाहना साधन माटे फकीर बनी घणां जण भीख वेषधारी साधु बनता फकीरो- मागता फरे छे अने पोतानी साथे पोताना अगर बीजाना अने हिंदु साधुओ.
( तेमना मावापनी संमतिथी अगर संमतिविना काढी आणेला) छोकरां लईने फरता फरे छे अने धर्मने बहाने भीख मागी खाय छे अने भीख नहीं आपनारने सतावे छे. एज प्रमाणे हिंदुओमां जो के अमुक संयोगोमां संन्यास दीक्षा लेवानी छूट छे तोपण केटलीक धर्म संस्थाने अंगे मुंडेला आगर खरा वैराग्यथी पोते थईने योग्य रीते दीक्षित थयेला थोडा अपवाद शिवाय साध वेषमां फरता घणाखरा मात्र वेषधारीज होय छे अने तेओ दीक्षा आप्या वगरना अगर गमे त्यांयी गमे ते प्रकारे काढी आणेला सगीरो अने बीजानी टोळी जमावी साधुने वेषे भीख मागता फरता फरे छे. आ बन्नथी जनसमाजने घणो उपद्रव थाय छे तेथी एवा कहेवाता संन्यासी साधुओ अने फकीरनी संख्या कोई रीते कमी थाय अने निरुद्यमी जीवन गाळनारथी थतुं आर्थिक नुकसान अटके ए इच्छवा जोग ले. पण फोजदारी कायदामां मनुष्यनयन अने जीव खाई जाय एवी रीते भीख मांगवाना गुन्हा ठरावेला छे तेनो सखत रीते अमल थाय अगर खास कायदो करी भीख मागवानुं बंध करवामां आवे त्यां सुधो तेनो अटकाव थवो अशक्य छे. मात्र अयोग्य दीक्षा प्रतिबंधनो कायदो करवायी तेमना संबंधमां कई सुधारो थई शकशे एम लागतुं नथो. ५२. परंतु जैन धर्मनी साधु संस्था तेथी जुदाज प्रकारनी अने खरेखरी
धर्मनी भावनाथी बनेली होय छे. कोई पण जैन साधु जैन साधु.
रखडतो रझळतो जोवामां आवतो नथी. ते तेना धर्मथी ठरेला धोरणे मात्र आजीविका चलावत्रा जेटलं मागी लावी पोतानो वखत अध्ययन करवामां अने उपदेश आपवामां गाळे छे अने घणु करी कर्मनो क्षय करी मोक्ष मेळ. वधानी धारणाथी साधु बनेलो होय छे. प्रकरण ३ मां बताव्या प्रमाणे ए धर्ममा पण केटलाक समयथो साधु संख्या वधारवाने अयोग्य प्रयत्न थवा लाग्या छे अने तेमा मुख्य ए छे के दीक्षाना सगीर उमेदवारना माबाप विगेरे सगां अगर वालीनी संमति मेळवी दीक्षा आपवाने बदले एवी संमतिनी परवा राख्या वगर दीक्षा आपी देवामा आवे छे अने तेथी दीक्षा जेवा महत्वना धर्म कार्यने अंगे जैन संघमा पक्षो पडी तेमना वच्चे उघाडी रीते कजिया, कंकास अने वैमनस्य उत्पन्न थयां छे.
५३. आवी स्थिति सुधारवाने माटे वास्तविक रीते जे ते धर्मना अनुयायीओए जे ते धर्मना अनुयायीओनी
कजियानुं मूळ दूर करी अर्थात पोताना संघमां पेठेलो
सडो दूर करवा योग्य ते तजवीज करी पोताना धर्मनी फरज.
शुद्धता जाळची राखवी जोईए. हिंदु के मुस्लीम धर्म
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३८
प्रमाणे जे खरो साधु के फकीर नथी पण मात्र पेट भरवाने माटे साधु के फकीर नो वेष लई फरतो होय तेने पोषवामां धर्म नथी, पण उलट आळसने उत्तेजन आपवानुं पाप थाय छे, एम समजी ए धर्मना अनुयायीओ तेमने कांई न आपे तेमज जेमणे अज्ञान उमरना छोकराने नसावा भगाडवानो गुन्हो कर्यो होय तेमने शिक्षाए पहोंचाडवानी तजवीज करे तो आवा ढोंगी साधु अने फकीरोनी संख्या कमी थई जे खरेखरा अने पवित्र होय अने धर्मोपदेश करवानुं भलुं काम करता होय तेत्राज टकी रही साधु संस्थाने माटे मानभक्तिमां वधारो थाय. एज प्रमाणे जे जैन आचार्यों सगीरोना मात्राप विगेरेनी संमति मेळव्या बगर छुपी रीते दीक्षा आपता होय तेमने माटे पण जैन संघ तरफ योग्य विचार थई घटीत पगलां लेवातां रहे तो तेमना नमूनेदार साधु वर्गमां हाल शास्त्र विरुद्ध वर्तन चलावी दीक्षा आपी देवानी जे अनिष्ट रीत दाखल थई छे ते बंध ई साधु र्गनुं गौरव अने महत्व हाल छे तेना करतां पण तेमां विशेष वधारो थाय. परंतु दीलगिरीनी बात छे के कोईना तरफथी ते प्रमाणे यतुं नथी अने तेथीज ते संबंधे शुं कर ए सरकारे विचार करवानो एक अगत्यनो प्रश्न उपस्थित थयो छे.
५४. सन १९२३ ना जान्युआरीनी ३० मी तारीखे दोल्हीमां भरायेली कौन्सील ऑफ स्टेटनी बेठकमां लाला सुखबीरसिंह नामना युनाइलाला सुखबीरसिंहनो खरडो. टेड प्रोवीन्सीझ तरफना सभासदे एक एवी मतलबनुं बीजू कर्तुं हतुं के फकीर अने बीजा धर्मने बहाने भीख मागता लोको सगीर वयना छोकराने अयोग्य रीते पोताना चेला तरीके तेमना मात्राना वालीपणामाथी लई जाय छे अने भीख मागवानो अने बीजो अनीतिनो धंधो करे छे; तेना अटकाव माटे कायदाथी एम ठराव जोईए के एवा साधु अने फकीरो जे सगीरने " चेला " के 66 मुद " तरीके लेवा मागता होय तेमना बाप के वाली साथे डिस्ट्रिक्ट मॅजिस्ट्रेट रूबरू हाजर करी एवो दाखलो मेळववो जोईए के ते साधु अगर फकीर जेमा चेला के मुरीद रखाता होय एवी कोई जाणीती धार्मिक संस्थानो सभ्य छे अने एवा सगीर चेला के मुरीदने तेना पिता के वालीनी रजामंदीथी ते चेलो करवा मागे छे. जो आवो दाखलो न मेळव्यो होय तो ज्यारे एवा दाखला वगरनो कोई सगीर चेलो के मुरीद साधु के फकीर पासे मळी आवे अने जो एम साबीत न थाय के तेना मात्राप के वालीए एवो सगीर गुम थवानुं जणातांज पोलिस के मॅजिस्ट्रेटने फरियाद करी हती तो ते बाप अगर वालीने रु. ५० सुधीनो दंड अगर १ मास सुधीनी आसान केदनी शिक्षा करवी जोईए. आवो कायदो करवो के नहीं ए विषे देशमां अग्रेसर गणाता केटलाक गृहस्थोनो अने संस्थाओनो अने स्थानिक सरकारोनो अभिप्राय पुछतां केटलाक नो लाभमा अने केटाको विरुद्धमां थयो हतो. विरुद्धतानो भाग मोटो हतो अने प्रजानी सामाजिक अने धार्मिक बाबतीमां दरम्यानगिरी नहीं करवानी सरकारनी नीति विरुद्धनी ए बाबत छे एम गणा सरकार तरफथी तेनी विरुद्वता करवामां आवी हती; अने तेथी ए कायदानी दरखास्त करनारे पोतानो खरडो पाछो खेंची लीधो हतो. ए
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प्रसंगे कायदाना ए खरडानी स्हामे विरोध करता इन्डिया सरकारना होम मेंम्बर ऑनरेबल मि.जे.केरार एम बोल्या हता के जे उद्देशथी मि. सुखबीरसिंहनो खरडो रजू थयो छे ते उद्देश स्तुत्य छे परंतु तेनी कलमो अमलमां मुकतां धणी मुश्केलीओ उभी थाय तेम छे. वळी ए खरडानो विषय साधु फकीर वगेरे धार्मिक गणाती बाबतने लगतो होवाथी प्रजाना धार्मिक काममा सरकार दरम्यानगिरी करे छे एवी प्रजामां गेरसमजूत थवानो पण संभव रहे छे; सगीर उमरना बाळकोने मावापनी के वालोनी संमति वगर साधु अने फकीरो काढी जता हशे तो तेने माटे शिक्षा कराववा चालु कायदा प्रमाणे सगीरना बाप के वाली उपाय लई शके छे माटे आवो कायदो करवामां सामेल थवाने सरकार योग्य धारती नथी. परंतु आ जवाब कंई संतोषकारक गणी शकाय नहीं; कारण के तेमां धर्मनो कई प्रश्न नहोतो पण पोताना सगीर संताननें कोई हरण करी गयु छे एम जाण्या छतां जे माबाप उदासीन थईने बेसी रहे तेने शिक्षा करवानो प्रश्न हतो. ५५. फोजदारी निबंधनी कलम ३४९, ३४६ ( इंडियन पीनल कोड
_ ३६१,३६२) प्रमाणे १४ वर्षथी ओछी उमरना छोकराने संन्यास दीक्षामा मात्र नसाध्या भगाड्यानो सवाल नथी.
- अथवा १६ वर्षयी ओछी उमरनी छोकरीने तेना कायदेसर
वालीना हवालामांथी ते वालीनी रजामंदी शिवाय जे सखस लई जाय अथवा फोसलावीने तेडी जाय तेवा मनुष्यहरणना गुन्हा माटे शासन ठरावेल छे. एटले जो मात्र नसाडी भगाडी के फोसलावी जवानोज प्रसंग होय तो तेने माटे बीजा कंई विशेष कायदानी जरूर नथो; कारण के एवां कृत्य करनारने फोजदारी निबंध प्रमाणे नशियते पहोंचाडी शकाय छे एम केटलाक इसमोए अमारा आगळ दलील करी छे, पण अमने ते बरोबर लागती नथी, जो मात्र नसाडवा भगाडवानोज प्रसंग होत तो कायदामा ठरावेला मनुष्यहरण के मनुष्यनयननां गुन्हा प्रमाणे शिक्षा थई शके. पण अहीं तो ते उपरांत दीक्षा आपी देवानो एटले के संसारी कारण माटे तेने मुवेला जेवो बनाववानो, कुटुम्बनी मिलकत उपर तेनो हक्क नष्ट करवानो महत्वनो बीजो प्रश्न पण छे. मनुष्यनयनना काममा १४ वर्षनो छोकरो के १६ वर्षनी छोकरी संमति आपे तेथी जे कृत्य थाय ते गुन्हो न बने ए बीजां कारणो माटे बरोबर होय तोपण साघु तरीके मुडी नांखवानी अने संसारमाथी नीकळी जवानी संमति आपवाने ए उमर योग्य गणाय के केम ए पण विचारवा जेवू छे. वळी जो सगीरने मात्र नसाड्या भगाड्यानो सवाल होय तो बीजो कोई खास कायदो करवानी आवश्यकता रहे नहीं एम मानीने चालीए तो पण संन्यास दीक्षा लेवी अने ते पाळवी ए एवं कठण काम छे के काची समजवाळा अने दीक्षामां शुं रहस्य समायलं छे तेनो पूरा ख्याल वगरना बाळको के बाळकीओ साधु पासे दोडी जाय अने ते एवा सगीरने मुंडो नांखे ए एथी कांई जुदोज प्रश्न छे अने तेने मात्र उपर जणावेली फोजदारी निबंधनी कलमोमां बतावेली उमरनी यत्ता बरोबर लागती नथी.
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५६. त्यारे हवे करवु शु ? धर्म संबंधी बाबतोमां दरम्यानगिरी करवानी भलामण
करवाने अमे खुशी नहोता अने तेथी पोताना धर्ममां समाजने नुकसान थाय तेवी अपाती दीक्षामा पेठेलो सडो पोते थईनेज दूर करवा बाबतो समाज अटकावी शके नहीं तो ते अटकाववानी राज्यनी
अमे अमारी आगळ रजु थयेला तेम बीजा जैन गृहफरज.
स्थोने सूचना करी हती. पण तेमनामां बे पक्ष पडी
गयेला होवायी अने सुधारकोनें कहेवु कोई रीते माने एका जूना विचारवाळा नहीं होवाशी तेम संघ पण पहेलां जेवो योग्य नियमन करवानी सत्तावाळो नहीं रहेलो होवाथी आ बाबतमां सरकारे योग्य ते दरम्यानगिरी करवानी भलामण अमारे न छुटके करवी पडे छे. श्रीमंत सरकार पण धर्म संबंधो बाबतोमा दरम्यानगिरी साधारण रीते करता नथी पण न छुटके समाज अने धर्मना संरक्षण माटे जरूर होय त्यारेज तेमने ते प्रजाना एकंदर हितने माटे ते नाईलाजे करवी पडे छे ए वात जाणीती छे. बाळलग्न विगेरे सामाजिक सुधारानी बाबतमा ज्यारे प्रजार पोते थईने कांई न कर्यु अने एवो अनिष्ट रिवाज चालतो रहेवायी प्रजानी शारीरिक, मानसिक अने नैतिक स्थिति बगडती जती जणाई त्यारे न छटके सरकारे प्रजाना हितने माटे बाळ लग्ननी बदी बंध करवा कायदाथी दरम्यानगिरी करवानी पोतानी फरज स्वीकारी हती. बाळलग्ननी अटकायत कायदाथी करवानी पहेल श्रीमंत गायकवाड सरकारे करी त्यारे तेना सामे घणो विरोध करवामां अव्यो हतो; पण हवे तो ते आशीर्वाद समान देखाय छे अने तेनुं अनुकरण बीजां राज्योमां पण थयेलं छे. इंडिया सरकारे पण बाळलग्ननी अटकायत माटे शारदा अॅक्टने नामे ओळ वाय छे ते कायदो हालमां को छे अने १४ वर्षयी कमी उमरनी कन्याओ अने १८ वर्षथी कमी उमरना वरना लग्न करवानुं कृत्य गुन्हो गणी तेने माटे शिक्षा ठरावी छे. एवीज रीते आ दीक्षानी बाबत जो के धार्मिक छे तोपण तेनुं योग्य नियमन न रहेवाथी बाळको तेमां होमाई समाजनी नैतिक, धार्मिक अने आर्थिक स्थितिने नुकसान थवानो संभव रहे छे तेथी जो प्रजा योग्य नियमन न करी शके तो सरकारे ते करवानी सरकारनी फरज छे. संन्यास एटले दुनियाना कामकाज छोडी दई मात्र धर्म काममां निमग्न रहेg; जेनी लायकी अने इच्छा होय ते भले ते प्रमाणे करे; पण ए काम शुं छे ए समजे नहीं एवा बाळकोने पण तेमा तेमना संबंधीनो संमति वगर दाखल करी लेवामां आवे तेथी समाजने उघाडी रीते नुकसान छे अने ते जो समाज पोते थईने न अटक.वी शकती होय तो ते अटकाववानी राज्यनी फरज छे. ५७. श्रीमंत सरकारे प्रसिद्ध करेला खरडानो विरोध करनारा तरफयी एवी दलील
र करवामां आवे छे के सरकारथी दीक्षा जेवा धार्मिक दीक्षाना विरोधीओनी दलील.
"" कार्यमां कांई दरम्यानगिरी थई शके नहीं; १६ वरसनी अंदरना दोक्षाना उमेदवारो माटे ज्यां माबाप विगेरेनी संमतिनी अपेक्षा राखेली छे त्यां ते लेवाय छे अने १६ वरसनी उपरना माटे कोई बीजांनी संमतिनी आवश्यकता
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शास्त्रमा राखेली नथी. तेथी जो ते नवीन दाखल करवामां आवे तो तेथी दीक्षा लेवान मुशिबत थशे अने परिणामे साधुवर्गनो लोपज थशे; कारण के सांसारिक मोह अने लालचने लीधे माबाप स्त्री विगेरे सगां संबंधी पोताना पुत्र, पुत्री के पतिने दीक्षा लई संसारमाथी नीकळी जवानी संमति आपेज नहीं अने तेथी दीक्षा लेवानुं अशक्यज थई जाय; वळी शास्त्रमा आठ अने ते उपरनी उमरनाने दीक्षा आपवानी जे छट राखेली छे तेमां दरम्यानगिरी करी खरडामा ठराव्या प्रमाणे १८ वर्ष सुधी दीक्षा अपायज नहीं एम ठराववामां आवे तो तेथी शास्त्रथी ठरेला सिद्धान्तमां पण फेरफार थाय अने तेवो फेरफार करवानो प्रजा के सरकार पैकी कोईने हक्क नथी. आ विरुद्ध सुधारापक्षनें कहेQ एबुं छे के दीक्षा लेवानी तथा आपवानी शास्त्रमा जे आज्ञा छे तेमा मात्र उमरनी लायकीमां वधारो करवाथी दीक्षा कांई बंध थती नथी पण उलट दीक्षा लेवाने माटे जे खरेखरा समजदार अने लायक होय अने दीक्षा लेवानी जेमनी पोतानी खरेखरी इच्छा होय तेज दीक्षा लेशे अने सारी रीते पाळशे तेथी दीक्षाना महत्वमां घटाडो थवाने बदले उलट वधारो थशे; अने हाल सगां संबंधीनी अनुमति वगर पण बाळवयनाने दीक्षा अपाय छे तेथी जे सांसारिक क्लेश, तकरारो, झगडा अने संताप थाय छे ते संमति लेवान शास्त्रमा फरजियात छे तेनु कायदायी पालन करवाथी आपोआप बंध थई जशे; माटे संमति मेळवधान अवश्य राखq जोईए अने संमति आपेली हती के नहीं ए बाबत पाछळथी कई तकरार पड़े नहीं एटला माटे विश्वसनीय गणाय एवो लेखी दाखलो रखावयानुं ठरावजोईए. ५८. अमारा आगळ आवेली तमाम दलीलोनो विचार करतां अमने एम लागे
_ छे के धर्म संबंधी बाबतोमा जे सुधारा करवा जेवा होय ते जे तेधर्मनाअनुयायीओ सुधारा करे छे ते इच्छवा जोग छे.
जे ते धर्मना अनुयायीओ तरफपीज थाय अने सरकारे
तेमां दरम्यानगिरी करवानो प्रसंग न आवे ए इच्छवा जोग छे. पण हालनी स्थिति जोतां हिन्दु के जैन धर्मना अनुयायीओ पोते थईने ए बाबत कांई बंदोबस्त करी शके एम लागतुं नथी.गेर रीते दीक्षा अपायाना प्रकार ज्यां ज्यां बन्या छे त्या त्यां गेररीते वर्तनार साधु प्रत्ये नापसंदगी बतावी तेने संघ तरफथी ठपको आपवामा आव्यो होत अथवा जो ते पोतानी गेररीत छोडी न दे तो तेनां कपडां लेई लई तेनो बहिष्कार करवामां आव्यो होत तो जे गेररीत हाल चाली रहो छे अने जेना दाखला अमारी समिति तरफथी तपास चालती हती ते दरम्यान पण बन्या छे (जेम के छाणीना छोकगनो) ते बनवा पामतज नहीं. अंदर अंदरना कुसंपने लीधे जैन संघ पहेला हतो (जुओ परिच्छेद ३३, ३४) तेवो मजबूत हवे रह्यो नथी पण उलट एवो निर्बळ थयेलो छे के पहेलांनी पेठे अयोग्य वर्तन करनार साधुओ उपर ते काई अंकूश राखी शकतो नथी एटलुंज नहीं पण जे थोडा श्रावको अने साधुओ तेम करवाने प्रयत्न करे छे तेमने धर्मविरोधी भ्रष्ट थयेला विगेरे दूषण आपी हेरान करवाने पण अचकातो नयी एम पण जोवामां आव्युं छे.
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५९. आठ वर्षथो नानो बाळक दीक्षा लई शके नहीं एम जैन धर्ममा ठराव्यु
छे ते उपरथी एटलुंज निष्पन्न थाय छे के एथी वधारे बाळ दीक्षा मात्र अपवाद रूप
बाद कप उमरनो बाळक जो बीजी रीते लायक होय तो दीक्षा हती.
लई शके. हिंदु धर्ममां ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम अने ते पछी संन्यासाश्रमनी परापूर्वथी चालती आवती जनी पद्धति जैन धर्मनी पद्धति करतां सारी छे तोपण ए धर्ममां कोईने वहेलो वैराग्य आवे तो ब्रह्मचर्याश्रममाथीज संन्यास लई शके छे. परंतु आवा प्रसंगो क्वचितज अने ते पण शंक. राचार्य के हेमचंद्र जेवा प्रभावशाली अने विशेष प्रकारनी बुद्धि अने वैराग्यवाळा मात्र थोडानांज संबंधमां बनेला छे. सामान्य रीते घणाखरा तीर्थकरो, गणकरो, आचार्यो, साधुओ अने महात्माओए सगीर वयने ओळंगीने अने लग्न संस्थामां पसार थईने संन्यास लीधो हतो. श्रीहेमचंद्रसूरिकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमा आधा घणा दाखला छे. पोते बाळपणमां दीक्षा लीधेलो छतां अने घणा विद्वान अने नामांकित थयेला छतां बाळदीक्षानी तेमणे हिमायत करी नथी. ब्रह्मचर्याश्रममांथी एकदम संन्यास आश्रममा जनारा हमेशा बहु विरलज होय छे. जैन दृष्टिए त्रीजो अने चोथो आरो सतयुग गणाय छे. ए सतयुगमां पण जे जे दीक्षितो थया छे तेमांनां घणाखरा लग्न संस्थामां पसार थया पछी दीक्षित थया छे. ब्रह्मचर्याश्रममांथी सीधा लग्नसंस्थामां आव्या वगर दीक्षित थयेला पुरुषो नेमीनाथ जेवा विरलज छे अने बाल दीक्षित तो एथीए वधारे विरलज छे. अयिमुत्ता जेवा कोईकज नीकळशे; चोथा आरा जेवा सतयुगना वखतमां पण ज्यारे बालदीक्षित कोईकज नीकळ्या छे त्यारे एथी ए स्पष्ट थाय छे के बाळदीक्षा ते वखतमां पण एक अपवाद रूप गणी शकाय एवा प्रकारनी हती. होल चालता पांचमा आरामां (कळ युगमा) तो ते बाळदीक्षा एथी पण वधारे मुश्केल गणाय ए सहेज समजी शकाय तेम छे. एम छतां शिष्य वधारवाना मोहने लीधे हालना कठण काळमां प्राचीन वखतना करतां वधारे प्रमाणमा नानी उमरनी दीक्षाओ केटलाक साधु महाराजो तरफयी, केटलाक धर्मघेला श्रावकोनी सहायथी अपाय छे अने ते पण घणीवार माबाप आदिनी संमतिनी अपेक्षा वगर अपाय छे. बाळके पोते हा पाडी होय तेनी कंई किंमत नथी, दीक्षानुं महत्व समजवा जेवी तेनामां समज होती नथी. पांच महानतो शु छे ए पण ते समजतो न होय एम छतां तेना उपर ते पाळवानो भार लादवो ए एक प्रकारचें भारे घातकीपणुं छे. बाळकने दीक्षा आपवा माटे तेना भोळपणनो, तेनी काची बुद्धिनो अने तेनी अज्ञानदशानो लाभ लेवामां बहु खोटुं थाय छे. खरी दीक्षा बहु आकरी छे अने ते जिंदगी पर्यंत पाळवानी होय छे. छोकराने निशाळे बेसाडवानो होय त्यारे आपणे जोवं पडे छे के तेनामां ग्रहणशक्ति आवीछे के नहीं. परणाववो होय त्यारे जोवु पडे छे के तेनां शरीर, मन, इंद्रीयो विगेरे विकास पाम्या छे के नहीं. निशाळे बेसवानी अने लग्न करवानी योग्यता करतां दीक्षा लेवानी योग्यता तो जरूर वधारे होवी जोईए. दीक्षा कांई एवी स्थूल वस्तु नथी के ते अमुक उमरे
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वेष बदलवानी साथेन आवी जाय. दीक्षा ए एक भावना छे, दीक्षा ए विवेकपरिपाकनुं परिणाम छे. ए परिपाक थता सुधी दीक्षा उमेदवारे धीरज राखवी जोईए. हरिभद्रसूरिकृत धर्मबिंदुमां कहुं छे तेम “जेम कोई बुद्धिमान पुरुष पगले पगले करी सारी रीते पर्वत उपर चढ। जाय छे तेम वीर पुरुष नियमोए करी चारित्र रूपी पर्वत उपर चढों जाय छे." १ बाळकने केळवणी केवा प्रकारनी आपवी ए तेना माबापनी मरजीनी बात छे. बाळकनुं वळण जोई तेने धर्म संबंधी केळवणी आपवी योग्य जणाय तो ते आपवाने कोइथी हरकत लेवाय नहीं, अने तेथी लायक वये ते दोक्षा लेवा मागतो होय तो तेमां पण योग्य कारण वगर हरकत लेवाय नहीं. पण दीक्षाने माटे तेने लायक करवाने धर्म संबंधी प्राथमिक केळवणी तो आपवी जोईए. जे बाळकना माबाप पोतानो छोकरो के छोकरी साधु जीवन जोवे एम इच्छता होय तेमणे ते छोकरा के छोकरीने १६ वर्षेनी उमर सुधी कोई धर्म संबंधी शिक्षण आपती शाळामां के एवा कोइ आश्रममा दाखल करवो के जेमां साधु जीवनने अनुरूप दररोज दिनचर्या नक्की थई होय अने व्यवहारिक केळवणी साथे संस्कृत, मागधी तेमज जैन साहित्यनुं ज्ञान अपातुं होय तेवी संस्थामा तेमने मोकलवानो जैन समाजे प्रचार करवो जोईए. ६०. दीक्षा ए कई रमवान रमकडु नथी पण घणी तपश्चर्या छे. दीक्षाने मार्गे
... जवानी इच्छावाळा मुसाफरे क्रमे क्रमे पोतानो अभ्यास कमीमां कमी १६ वर्षनी अंद दीक्षा आपवी योग्य नथी.
१५ वधारवो जोईए अने पोतार्नु चारित्र खीलब जोईए.
केवळ दीक्षानो वेष पहेरी लेवाथी अने ओघो पकडी लेवाथी दीक्षा आवी जती नथी, जेने संसारना स्वरूपनु बराबर भान थयु होय, तेम जेने संसार उपरथी वैराग प्रगट थयो होय अने जेनामां मोक्ष दशाने प्राप्त करवानी पोतानी आंतरिक अभिलाषा प्रबळ रीते जागृत थई होय तेज दीक्षा लेवाने याग्य छे. साधुपणानी योग्यता प्राप्त करवाने माटे जैन धर्ममा प्रतिमावहन विधिनी सुंदर योजना करवामां आवी छे. आ प्रतिमावहन विधिना मार्गे क्रमे क्रमे दीक्षानो अभिलाषी साधु जीवननी योग्यता प्राप्त करतो दीक्षित जीवन सन्मुख भावतो जाय छे. आ प्रतिमाओ अगीयार छे अने ते शीखवानो वखत पांच वरस अने छ मासनो कह्यो छे. ए प्रतिमाओमां धर्म अधर्मर्ने ज्ञान, तपश्चर्या, शांतवृत्ति, ब्रह्मचर्य, साधुजीवन, पोताने माटे तैयार करवामां आवेली वस्तुओनो स्याग, विगेरे बाबतोनो अभ्यास आवी जाय छे. पहेली प्रतिमानो अभ्यास एक मास सुधी, बीजीनो बे मास, त्रीजीनो त्रण मास, ए प्रमाणे उत्तरोत्तर प्रतिमाओना अभ्यासमा एकेक मास वधारे लागे छे; कारण के नवीन आदरली प्रतिमाना अभ्यास साथे पाछळनी प्रतिमाओनो अभ्यास चालू राखवानो होय छे. हिंदु धर्मशास्त्र प्रमाणे पण पांचथी आठ वर्ष सुधीमा उपनयन संस्कार थाय छे अने त्यारपछी ब्रह्मचारी तरीके अध्ययन करवान होय छे. हालना वखतमां प्राथमिक निशाळमां दाखल करवानी उमर पण ७ वरसनी ठरली छे.
१ अध्याय श्रीजो सूत्र ८५,
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आ बधी वातो विचारमा लेता एवी कल्पना थई शके छे के कमीमां कमी सोळ वरस पहेलां जोईए तेवी साधारण समज बाळकमां आवी शके नहीं तो पछी संसारनी वस्तुओ संबंधी वैराग आवी दीक्षा लेवानं भावना तो भाग्येज थई शके. वळी दक्षा आपवामां आवे तो पण तेने अंगे जे कष्ट सहन करवानां छे ते सोळथी नानी उमरे भाग्येज सहन थई शके, आ उपरथी एम अनुमान थई शके के प्राचीन काळमां धर्मशास्त्रमा जो के आठ वर्ष पछी दीक्षा लई शकाय एम लखेलु छे तोपण तेमां दीक्षाना उमेदवारनी उमर शिवायनी बीजी लायकी संबंधे जे शरतो राखेली छे तेनो विचार करतां पण एम लागे छे के, उमरनी यत्ता करतां बीजी लायकी उपर वधारे लक्ष अपायलं हे; अने तेने लीधेज साधारण रीते आठ वर्षनी उमरे भाग्येज कोईने दीक्षा अपाय छे. घणु करीने चौद, पंदर के सोळ वर्षनी उमरे दीक्षा अपायेली जोवामां आवे छे पण एटली उमरे अपाती दीक्षाओ करता तेथी मोटी उमरे वधारे दीक्षाओ अपाय छे. एटले जो दीक्षा माटे कमीमां कमी उमर सोळ वर्षनी टराववामां आवे अने तेथी नानी उमरनाने दीक्षा आपवानुं बंध करवामां आवे तो हालनो समय जोतां कोईपण रीते अयोग्य अगर सख्ताई भरेलं थशे एम अमने लागतुं नथी. केटलाक सुधारकोनो अभिप्राय एवो छे के, सज्ञान वयनी उमर कायदा प्रमाणे १८ वर्षनी वये थाय छे, तेथी ते उमर पूरी थया वगर दीक्षा आपवानुं बंध थर्बु जोईए. तेमनी दलील एवी छे के १८ थी कमी उमरनो सखस कंई करार करवाने नालायक गणाय छे तो पछी संसार त्याग करवाना अने मिलकत परनो पोतानो हक उठाववाना दीक्षा लेवा जेवा महत्वना काममां १८ वर्ष उमरनी पहेला तेणे दीक्षा लेवा माटे आपेली संमति निरर्थक गणवी जोईए. आ दलील जो के ठीक छे तोपण ते स्वीकारतां पहेला बीजा चालू कायदानो पण विचार करवो जोईए. सज्ञानपणानी उमर अने पाल्यपालक संबंधी निबंधमां सज्ञान वय १८ नी ठरावी छे तोपण तेज निबंधनी कलम ६ थी एq ठराव्युं छे के ए निबंधी ठरावेली उमरनी यत्तायी कोई पण सखसना धर्मने, धर्म संबंधीना कृत्यने तथा संप्रदायने बाध आवशे नहीं. अर्थात् १८ वर्षनी उमरनी यत्ता कायदाथी धर्म जेवी बाबतने लागू करेली नथी. माटे दीक्षा लेवाना काममां पण कायदेसर संमति आपवानी यत्ता १६ वर्षनी राखवामां आवे तो ते काई कायदा विरुद्ध गणी शकाय नहीं. ६१. केटलाक जूना विचारने वळगी रहेनारा गृहस्थो तरफथी एम कहेवामा
आवे छे के आठ वर्ष पछी दीक्षा आपी शकाय एम जैन दीक्षा लेवानी उमरमां फेर
शास्त्रोमा ठरावेलुं छे तने बदले १६ (के १८) वर्षनी फार करवायी धर्मना मूळ सिद्धांतोमां फेरफार थतो नथी. पछोज दीक्षा आपी शकाय एम ठराववाथी धर्मशास्त्रमा ठरेला
सिद्धांतोमा फेरफार थाय अने तेथी तेम कर, ए धर्म विरुद्ध थाय. पण आ दलील बरोबर लागती नथी. कमीमां कमी केटली उमरे दीक्षा आपी शकाय ए विषे प्राचीन काळमां जे ठरावेलुं हतुं तेनी मात्र यत्तामा फेरफार कर
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वाथी दीक्षा आपवाना सिद्धांतमां कई फेर थतो नथी. सिद्धांत तो वास्तविक रीते जेने खरेखर वैराग्य उत्पन्न थयो होय तेनेज दीक्षा आपवानो अने तेणेज ते लेवानो छे. वैराग्य एटले शुं ते समजी शके नहीं एवा १२ के १४ वर्षना बाळकने तेना माबाप के वालीनी संमति लई दीक्षा आपवाथी एवा बाळकमां खरेखर वैराग्य उत्पन्न थयो छे एम कही काय नहीं; अने एवी रीते आपेली दीक्षा सशास्त्र पण गणी शकाय नहीं वैराग्य उत्पन्न थयो छे के नहीं ए तो दीक्षा लेनार पोते सोळ वर्षांनी उम्मर पछी पोतानी मेळे संमति आपना लायक थाय त्यारे ते पोते जे कहे ते उपरथीज जाणी शकाय. दीक्षा कई उमरे लई शकाय ते बाबतमां समयने अनुसरीने फेरफार करवायी धर्म संबंधी मूळ सिद्धांतमां कांई फेरफार थतो नथी.
६२. आवी गौण बाबतमां शास्त्रमां ठरावेली यत्तामां फेरफार कर्याना आज सुधीमां जैन धर्ममां पण घणा दाखला बनेला छे ते पैकी थोडा अत्रे उदाहरण तरीके जणावीए छीए. ( १ ) महावीर स्वामीना पहेला थयेला तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जेमनी साधु थवानी इच्छा होय तेमने चार महावतोनी प्रतिज्ञा साथे दीक्षा आपता; पण तेमनी पछीना महावीर स्वामीए चारने बदले पांच महावतोनी प्रतिज्ञा साथे दीक्षा आपवानो फेरफार कर्यो हतो. पहेलां अपरिग्रहमां ब्रह्मचर्यनो समावेश थतो हतो पण महावीर स्वामीर तेमांथी ब्रह्मचर्यने दुं पाडी पांचमुं व्रत ठराव्यु हतुं. ( २ ) पार्श्वनाथ स्वामीना वखतमां साधुओ गमे तेवा रंग बेरंगवाळा वस्त्रो पहेरता हता तेमां फेरफार करीने महावीरे सफेद वस्त्र पहेरखानुं ठरायुं हतुं. ( ३ ) पण सफेद कपडांवाळा गोरजी विगेरे हलका गणाता यतिओथी शुद्ध यतिओने भिन्न देखाडवाने सत्तरमा सैकामां संवेगी साधुओए पीळां कपडा पहेरवानुं दाखल कर्तुं हतुं. ( ४ ) प्रथमथी चालता आवेला सख्त नियमोमां केटलाक फेरफार करी १४ मा सैकामां साधु साध्वीओ माटे केटलीक विशेष सवलतो करी आपी हती, जेमके साधु वस्त्रनी पोटलीओ राखी शके, घी दुध विगेरे खाई शके, कपडा धोई शके, फळ अने शाक लई शके, साध्वीर आणेलो खोराक साधु वापरी शके अने श्रावकोने खुशी करवा तेमनी साथै बेसीने प्रतिक्रमण पण करी शके. एज प्रमाणे साध्वीओए आणेलो आहार साधुए वापस्वानी प्रथम छूट गई हती ते पाछळथी रद्द थई हती अने हवे साध्वीओए आलो आहार साधु वापरता नथी. ( ५ ) वीर संवत १९१४ सुधी साधुओ जंगल - मांज रहेता अने त्यार पछी वस्तीमां आवी मंदीरमां वसवाट करवा लाग्या, अने धीरे धीरे मंदीरोना वहिवटनी जंजाळमां पडवाथी चारित्रमां शिथिल थवा लाग्या त्यारे मंदीरोमा रहेवानुं तेमणे बंध करी अपाशरामांज रहेवानुं ठराववामां आव्युं ( ६ ) तेवीसमा तीर्थकरना साधुओ ज्यारे पाप लाभ्युं होय त्यारेज प्रतिक्रमण करता तेमां सुधारो करीने ते पीना तीर्थंकर श्री महावीर एम ठरायुं हतुं के साधुने पाप लाग् होय के न लाग्यं होय तो पण तेमणे सवार सांज नियमित प्रतिक्रमण कर जोईर. ( ७ ) प्रथम साधुओ अने श्रावको अलग अलग प्रतिक्रमण करता तेमां पाछळयी
गौण बाबतमां करेला फेर
फारोना उदाहरण,
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विजयचंद्रसूरिए फेरफार करने श्रावकोने साधुअनी साथे प्रतिक्रमण करवानो सुधारो को हतो ते आज सुधी चालू छे. प्रतिक्रमण ए जैन धर्ममां एक अगत्यनी अने आवश्यक क्रिया छे. आखा दिवसमा इरादापूर्वक थयेला पापनी आलोचना संध्या समये 'देवसी' प्रतिक्रमणथी कराय छे. एज प्रमाणे रात्रिना पापनी आलोचना प्रातःकालनी ' राई ' प्रतिक्रमणथी कराय छे, अने एज प्रमाणे पाक्षिक प्रतिक्रमण, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण तेना माटे ठरावेला दिवसोए थाय छे. (८) प्रथम वार्षिक प्रतिक्रमण भादरवा सुद ५ ना रोज करवामां आवतुं हतुं अने ए रीत महावीर स्वामी पछी ४५७ वर्षे थयेला कालकासूरि नामना आचार्यना समय सुबी कायम हती, पण कालकासूरिए ते रीतमा फेरफार करीने भादरवा सुद ४ ना दिवसे संवत्सरिक पर्व उजववानुं नक्की कर्यु त्यारथी ते प्रमाणे थाय छे. (९) प्रतिक्रमणनी क्रियामां पण अनेक नवां सूत्रो दाखल थयां छे. प्रतिक्रमण जेवी जैन धर्मनी आवश्यक क्रियामा घणां नवां सूत्रो दाखल करवानो फेरफार थयो हतो ते साधुओ अने श्रावकोए खुशीथी स्वीकार्यो हतो. (१०) चातुर्मासिक प्रतिक्रमणमा पूनेमने बदले चौदसनो फेरफार करवामां आव्यो छे. (११) कल्पसूत्र नामनो आगमग्रंथ जेनी रचना महावीर स्वामीना निर्वाण पछी १७० वर्षे भद्रबाहु नामना साधुए करेली हती ते सांभळवानो पहेलां श्रावकोने अधिकार न हतो. जेम हिंदुओमा मात्र ब्राह्मणज वेद भणी शके अने सांभळी शके तेम जैनोमां पण कल्पसूत्र फक्त साधुओज वांचता. पण महावीर स्वामीना निर्वाण पछी ४४७ वर्षे कालकासृरि आचार्ये ते ग्रंथ सौथो पहेलां प्रतिष्ठानपूर नगरमां संघ समक्ष पर्युषण पर्वमां वांच्यो हतो अने त्यारथी ए ग्रंथ सांभळवानो अधिकार श्रावकोने थयो छे अने पर्युषण पर्वना पांच दिवसमां साधुओ संघ समक्ष ए ग्रंथ वांचे छे. (१२) जैन धर्ममां नवकार मंत्र अगत्यनुं स्थान भोगवे छे, आ नवकार मंत्रनो पाठ प्रयम उपाधाननी तपश्चर्या अने क्रिया शिवाय भणी शकातो नहीं. तेम छतां आजे पांच वर्षनां जैन बाळकोपण उपाधाननी क्रिया कर्या शिवाय ते मंत्रनो पाठ भणी शके छे. (१३) शहेनशाह जहांगीरना वखतमा आचार्य श्री हरिविजयश्रीना पट्टवर शिष्य विजयसेनसूरिने घणां गामोना संघोए जदा जूदा प्रश्नो पूछया हता अने तेना तेमणे जे उत्तर आप्या हता ते सेनप्रश्न नामथी एक ग्रंथ तरीके प्रसिद्ध थया छे. ते ग्रंथ उपरथी जणाय छे के नवकारमंत्रना संबंधमां कोई गामना संघे प्रश्न पूछयो हतो तेना जवाबमां आचार्ये कह्यु हतुं के डाह्या पुरुषोए शरु करेली होय अने बीजा आचार्योए जेनो निषेध कयों न होय एवी आचरणाने आगम प्रमाणे मानवी. (१४ ) संवत् १६७७ मां आचार्य विजयदेव मूरिए साधुमर्यादापक बनावेलो हतो. तेमा देशकाळ जोईने फेरफार कर्या हता अने ३३ मी कलममा ३५ वरसनी अंदरनी उमरनी स्त्रीओने दीक्षा न आपवानी यत्ता ठरावी हती पण हवे ते उमरनी यत्ता पण फरी गई छे. एटले उमरनी यत्तामा देशकाळने अनुसरीने फेरफार करवामां आवे तेमां कई शास्त्र विरुद्ध थतुं नथी एम आ उपरयी स्पष्ट जणाय छे. उपर जगावेला दाखला उपरथी
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स्पष्ट जणाय छे के एक वखत शास्त्रमां जे कार्यनो निषेध कर्यो हतो तेज कार्यने पाछळना आचार्योए देशकाळ जोईने अनुमति आपी हती अने तेने आगम प्रमाण जेवा मानी ते प्रमाणे चालवामां आवतुं हतुं. एटले हालनो देशकाळ जोतां दीक्षानी कमीमां कमी उमरनी हद्द जे ८ वर्षनी छे तेने बदले १६ के तेथी पण ऊंचे वधारवामां आवे तो मां शास्त्रमा आधारे कांई बाघ आवतो होय एम लागतुं नथी. दीक्षा लेवानो जे मुख्य उद्देश तेमां आवा फेरफारथी कई सिद्धांतमां फेरफार थतो नथी पण उलट तेनो उद्देश सारी रीते पार पाडवाने मदद मळे छे.
६३. शास्त्रना ग्रंथोमां
ર
तो घणे ठेकाणे मोटी उमरनाने दीक्षा आपत्रा कहेलुं छे ते पैकीना थोडा अत्रे रजू करीए छीए आयारंगसूत्रमां कयुं छे के जुवान, प्रौढ अने वृद्ध ए त्रणमांथी मध्यम वयवाळो पाकट बुद्धिनो होवाथी वधारे लायक छे. ' हरिभद्रसूरिए पंचाशक सूत्रमां कहुं छे के आ दुष्माकाळ अशुभ परिणामवाळो छे अने तेथी आ अशुभ काळमां चारित्रनुं पालन मुश्केली भरलुं छे माटे दीक्षा लेवानी इच्छावाळाओ प्रतिमाओनो अभ्यास कर्या पछी दीक्षा लेवी जोईए. २ श्री सुधर्मा - स्वामी बारे अंगनी रचना करो छे तेमां त्रीजा ठाणांग सूत्रना दसमां ठाणांगमां कहुं छे के दस प्रकारना मुंडित होय छे. कान, नाक, आंख, जीभ अने त्वक् स्पर्शन ए पांच इंन्द्रीयथी मुंडित एटले तेना विषयोने जीतनार; क्रोध, मान, माया अने लोभ ए चार कषायथी मुंड; अर्थात् कषायोने फेंकी देनारो; अने दसमो शीर मुंड एटले लोच आदिथी मस्तकना वाळने दूर करनार. दीक्षा आपनारे दीक्षा लेवा आवेला पुरूषने प्रश्न, आचार, कथन अने परीक्षा विगेरे करवानो विधि छेउ ते जोतां पण लायक उमरनोज ते प्रश्नो विगेरे समजी शके अने उत्तर दई शके एम जणाय छे. श्री वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकरमां कह्युं छे के शुद्ध रीते सम्यकत्व अने बार व्रतने पाळनार, भोगनी इच्छाओधी शांत थयेल, वैराग्यनी भावनावाळो, गृहवासने लगता जेना मनोरथ पूरा थयां छे अने पुत्र, पत्नी, स्वामी आदिथी अनुज्ञात ( संमति पामेल ) एवो श्रावक ब्रह्मचर्य ( चोथा व्रत ) ने माटे लायक बने छे. ब्रह्मचर्यनुं व्रत लीधा पछी ते ब्रह्मचारीए शुं करवानुं छे ए विषे ते लखे छे के, चोटली, लंगोट आदि धारीने मौनपणे अने शुद्ध शुभ ध्यान तत्पर ऋण वर्ष रहेवुं जोईए. त्रण वर्ष मन, वचन अने कायाथी शुद्ध ब्रह्मचर्य पाळ्या पछी प्रवृज्या एटले दीक्षा स्वीकारे अने व्रतने ( ब्रह्मचर्यने ) खंडन करनार फरी गृहत्रासमां जाय. हरिभद्रसूरिए पोताना षोडशक
मोटी उमरे दीक्षावाळा माटे शाखना आधारो.
१ अध्यन ८ उद्देश ३ पत्रक २७४.
२ गाथा ४९ तथा ५०.
३ धर्मबिन्दु, अध्या ४, सूत्र २४.
४ आचारदिनकर पृष्ठ ७१.
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प्रकरणमां कडं छे के मनुष्य चारित्र्यवान होय तोज त्यागरूप दीक्षानो अधिकारी कही शकाय; मारी परिषदा संपूर्ण थशे, पाणी विगेरे लावत्रा माटे चेलो काम आवशे, इत्यादि आलोक संबंधी कार्यनी इच्छाओथी रहितपणे मात्र शिष्यना कल्याणनी खातर अने कर्मनी निर्जरा माटेज दीक्षा आपवी जोईए. वळी बीजे एक ठेकाणे कयुं छे के पहेलां शिष्यपणु कर्या शिवाय अर्थात् गुरूकुलवास, शास्त्राभ्यास विगेरे कर्या शिवाय आचार्यपणा माटे उतावळो थयेलो आचार्य पदवी मेळवीने मत्त हाथीनी पेठे निरंकुश फरे छे. शिष्यो पण भाचार्यपद लेवा माटे उतावळा थाय छे अने आचार्यों पण जलदी आचार्यपद आपया मेहेरबान थाय छे तेथी अल्पशिक्षित आचार्य-पिशाचोथी लोक भराई जाय छे. आ बधां वचनो तथा उद्गारो एज देखाडे छे के समजवगरना बाळकोने दीक्षा आपवी ए सर्वरीते हानिकारक छे अने तेथी ते बंध थवी ए इष्ट छे.
६५. बाळदीक्षाना केटलाक हिमायती तरफथी एवं कहेवामां आवे छे के,
. बाळपणमां दीक्षा आपत्रामा न आवे तो साधु विद्वान बाळदीक्षितज विद्वान थई
न थइ थाय नहीं; पण बाळपणमां दीक्षा लीधेला पैकी भाग्येज शके एम काई नथी.
कोई श्री शंकराचार्य के श्री हेमचंद्रसूरि जेवा विद्वान थया होय छे, तेमना जेवू ज्ञान थोडानेज थाय छे. जैन धर्म प्रमाणेना चोथा आरामां अतिमुक्तक जेवा कोईक शिवाय बाळदीक्षाना दाखला बनेला नथा. पांचमा आरामां जंबुक स्वामीए यौवन अवस्थामां दीक्षा लीधी हती. स्वयंभव, भद्रबाहु, स्थूलभद्र, सिद्धसेन, हरिभद्र ए विगेरेए पण यौवनावस्थामां दीक्षा लीधी हती. वर्तमान काळमां थयेला मोटा मोटा वैज्ञानिको, दार्शनिको अने नैयायिकोए कई बाळदीक्षा लीधी नहोती. श्री बुद्धिसागरजीए के जेमना नामनुं वडोदर। राज्यमां अने ते बहार जैनो एक मोटा मुनि तरीके स्मरण करे छे अने जे थोडांन वर्ष उपर देवलोक पाम्या हता ते जातना पाटीदार हता अने १६ वर्षनी उमर पहेला दीक्षित थया न हता. हिंदमां अने हिंद बहार जर्मनी, फ्रान्स विगेरे पाश्चिमात्य देशोमां महाविद्वान जैन आचार्य तरीके जाणीता थयेला, काशी जेवा हिन्दु धर्मना किल्लामा प्रवेश करी जैन भाव तरफ ब्रह्मभाव प्रेरावनार, हिन्दु पंडितोने हाथे शास्त्रविशारद जैनाचार्य, पद मेळवनार अने बारेक वर्ष उपर देवलोक थयेला श्री विजयधर्मसूरि जे मूळमां भावनगर ताबाना महुवाना वाणीया हता अने दीक्षा लेतां पहेलो घणुं थोडु भणेला हता, तेमणे १९ वर्षनी उमरे दीक्षा लीधी हती. पोते १९ वर्षना छतां दीक्षा लेवा मावापनी संमति मेळव्या वगर भावनगर गया हता, त्यारे तूर्त दीक्षा न आपी देतां तेमना गुरुए तेमने माबापनी संमति लेवा घेर पाछा मोकल्या हता. एम छतां पण ते भारे विद्वान षड्शास्त्रवेत्ता अने शास्त्रनुं अहर्निश चिंतन करी तेनी उन्नति करनार थया हता. जैनोमां
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प्रतिष्ठित गणाता श्रीविजयनेमीसूरि, सागरानन्दसूरि भने मूळमां आपणा वडोदरा शहेरना रहीश श्री विजयवल्लभसूरिजी श्रीहंसविजयजी, श्रीकांतिविजय, विगेरेए पण १६ वर्ष पहेलां दीक्षा लीधी नहोती; छतां जैन समाजमा विद्वान, प्रतिभाशाली व्यक्तिओ तरीके ए बधा पूजाय छे. दीक्षा आपवामां उतावळ करवान कई कारण नथी, होय तो ते एटलुज के कोई छोकरो छोकरी घेरथी रिसाई त्यागी थवा आव्यो छे तेने तूर्त मुंडी नांखवामा नहीं आवे तो शान्त थतां पाछो जतो रहेशे अने फरी हाथ नहीं आवे. “ उपायतः कार्यपालनं " अने " भाव वृद्धिकरण " ए सूत्रो दीक्षा लेवा आवेलाने पण एकदम न आपतां कांई समय सुधी तेनी पासे दीक्षाना गुणोनो अभ्यास कराववाथी मुमुक्षुने खरेखर कांई नुकसान थतुं नथी पण उलट लाभ थाय छे. दीक्षा लेतां पहेलांनी अभ्यासनी अवस्था कांई ओछी पवित्र नथी. जे जैन दीक्षा लेवाने तत्पर थयो होय ते छ कायाना जीवोनी रक्षा करवा आतुर होवो जोईर. माटे पृथ्वी, पाणी, तेज, वायु, वनस्पति अने त्रस कायाना जीवोनी ते रक्षा करे तेवो अभ्यास तेने कराववो जोईए के दीक्षा लीधा पछी तेने ते बाबत सुगम थाय अने दीक्षा लीधा पछी ते पाळी शकशे के नहीं तेनी खात्री पण आ रीते थई शके. कहेवत छे के " सोळे सान" सोळ वर्ष पहेला साधारण रीते खरं खोटुं समजवानी पाकी समज आवती नथी. गुन्हाइत कृत्यने माटे ७ थी १२ घर्षनी उमरे एवां कृत्योनां परिणाम समजवानी समज होवानं कायदामां मान्य राखवा आवे एटला उपरथी दीक्षा लेवा जेवा संसार वैराग्यना काममां पण तेवी समज आवे एम कही शकाय नहीं. दीक्षा जेवा पवित्र कार्यने गुन्हाना कार्य साथे सरखाव एज उचित नथी. दीक्षा तो पोतानामां समज आवे त्यारे मात्र पोतानी संमतिथी-नहीं के मा बापनी संमतिथी-लीधी होय त्यारेज ते सफळ थवानो संभव रहे छे. माबाप के स्त्री विगेरेना अनुमोदननो (संमतिनो) प्रश्न दीक्षानो उमेदवार पोतानी समजथी दीक्षा लेवा तत्पर थाय त्यार पछोज उत्पन्न थाय छे. एवी समज साधारण रीते योग्य वय थया वगर आवती नथी अने समजणा थयेला मात्र पोतानी समजथी दीक्षा ले त्यारेज ते फतेहमंद निवडे छे. दीक्षा लीधेला पैकी एवाज आगळ तरी आवे छे; अने अज्ञानपणामां माबापनी शिखवणीथी के समतिथी दीक्षा लेनार कदाच नालायकी मेळवी घेर पाछा न आव्या होय तोपण घणुं करीने जे पट्टमा दाखल थया होय त्यांज पडी रही साधु संख्यामां नकामो वधारो करे छे.
प्रकरण ५ मुं.
कायदो. ६५. पाछला प्रकरणमा जे विवेचन करवामां आव्युं छे ते उपरथी एम नीकळे
छे के संन्यास दीक्षा लेवानी बे बाबतोमां कंई बंदोबस्त बंदोबस्त करवानी बाबतो.
ता. थवानी जरूर छेः (१) दीक्षा लेवानो कमीमां कमी उमर केटली जोईए ते अने (२) दीक्षा लेनारे दीक्षा लेतां पहेलां मावाप विगेरेनी संमति लेवी जोईए के केम ?त्रीजीवात जोवानी ए छे के ए बंदोबस्त माटे कायदो करवो के केम ?
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६६. प्रथम छेल्ली बाबत एटले के कायदो करवो के केम ए जोईए. परिच्छेद ५६ मा
बतावेल छे के हाल दीक्षा आपवामां जे खामीओ कायदो करवानी आवश्यकता.
". जणाय छे ते दूर करवानो कई बंदोबस्त सरकार दरम्यानगिरी वगर थई शके तेम नथी. हिंदुओने तो कंई पण करवानी परवाज नी, अने जोके जैनोए पोतानी दीक्षा संस्थामा सुधारो करवानो प्रश्न उठान्यो छे खरो पण तेमनामां तेथी बे पक्ष पडी गया के अने एबे पक्ष वच्चे पटलं बधं वैमनस्य उत्पन्न थयं छे के तेओ भेगा थई आपसआपसमां समजी पोतानी मेळे कई करी के एम लागतुं नथी. सरकार बच्चे नहीं पडे तो ज़ना विचारना अने नवा विचारना वच्चे जे विरोध जागी गयो छे ते बंध पडे एम नथी अने हाल वर्तमानपत्रद्वारा तेम इतर रीते जे झगडा चाली रह्या छे ते बंध थवानो कई पण संभव नथी. बाबत जो के धर्म संबंधी छे तोपण तेमां जे अयोग्य पद्धति चाले छे तेथी प्रजानी मानसिक, नैतिक अने आर्थिक उन्नति उपर खराब असर थाय छे. बाळलग्ननो प्रतिबंध करवानो सुधारो जे ते कोमना अने धर्मना लोको बाळलग्नथी थता गेरफायदा समजीने करवा धारत तो करी शकत, परंतु तेमनाथी ते थई शक्युं नहीं त्यारे सरकारने तेमां दरम्यानगिरी करवी पडी हती. आपणे अहीं शरुआतमां कन्यानी उमर बार वर्ष अने वरनी उमर सोळ वर्ष थतां पहेलां लग्न नहीं करवा ठराववामां आव्यु हतुं. ते वखते एटली कमी यत्ता सामे पण प्रजाना मोटा भाग तरफथी सख्त विरोध बताववामां आव्यो हतो. पण श्रीमंत सरकारे मक्कमपणु राखी प्रजाहित समजीने बाळलग्न प्रतिबंधक कायदो को तेथी लगभग तीस वर्षना समय पछी हवे वखत एवो आव्यो छे के सरकारे ठरावेली कन्यानी चौद अने वरनी उमर अढारनी सामे कांईपण विरोध बतावबामां आवतो नथी; एटलुज नहीं पण हवे चौदने बदले सोळ, अदार अने वीस वर्षनी कन्याओ अने अढारने बदले वीस के बावीस वर्षना छोकरा पोतानी स्वेच्छाथी अविवाहित रहे छे. एज प्रमाणे अमुक उमर सुधीनाने दीक्षा नहीं आपवानो कायदो सरकार करे तो कदाच केटलाक जूना विचारना लोकोने शरूआतमां ते सख्त लागशे अने सरकारे धर्मना काममां हाथ घाल्यों एवो ककळाट पण ते करशे तोपण जनसमाजना मोटा भागने ते व्याजबीज लागशे अने थोडाज वखतमां एवो समय पण आवशे के ज्यारे कायदानो कांईपण अमल करवानी जरूर न रहेतां बधा लोको पोतानी मेळेज ते प्रमाणे वर्तता थशे अने कायदो मात्र कागळ उपर रहेशे. पूर्व काळमां पण दीक्षाप्रणाली पर राजशासननां अंकुश मुकायानी हकीकत इतिहास उपरथी मळी आवे छे. इ. स. पूर्वे चोथा सैकामां कौटिल्यना समयमां दीक्षा संबंधी प्रश्न राज्यमां मोटी व्यग्रता उपजावी हती अने एटला माटे कौटिल्ये स्पष्टपणे राजाओने साधुदीक्षाना मामलामां दखलगिरी करवानी सलाह आपी हती. कौटिल्य कहे छे के प्रव्रज्यानी बाबतमा अनुचित आचरणनी तमाम रीतो दंडथी राजाए अटकाववी जोईए. केम के धर्म ज्यारे अधर्मथी घेराय छे, उपहत थाय छे, त्यारे जो बेदरकारी राखवामां आवे तो राजाने,
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शासकने नष्टभ्रष्ट करी मूके छे. वळी कौटिल्ये कयुं छे के " जे माणस पोतानी पत्नी अने बाळबच्चां माटे योग्य बंदोबस्त कर्या वगर घर छोडे अर्थात् संन्यास अखत्यार करे तेने " साहस दंड " नी सजा थवी जोईए; अने जे कोई स्त्रीने प्रव्रज्या वा ते पण तेटलीज सजा करवी जोईए. जे माणसे पोतानी ताकाद गुमावी दीधी होय ते न्यायाधिशीनी परवानगीथी प्रव्रज्या लई शके, पण तेम करवानुं ( परवानगी लेवानुं ) जो चूकी जाय तो तेने केद करवो जोईए.'
१"
कायदानो अमल केवो थशे.
६७. वडोदरा राज्ये एकलाए कायदो करवानी विरूद्ध एक दलील एवी करवामां आवी छे के आखा हिंदुस्थानमां जैनोनी वस्ती १२,५२,१०५ छे ते पैकी २,००,०१६ मुम्बाई इलाकाम छे अने वडोदरा राज्यमां मात्र ४८, ४०८ छे. तेथी आखा हिंदने माटे कायदो या वगर मात्र वडोदरा राज्यमां करवामां आवे तेथी कांई धारेलो सुधारो थई शके नहीं; कारण के वडोदरा राज्य बहार ज्यां एवो कायदो न होय त्यां जईने वडोदरावासीओने दीक्षा आपवामां आवे तो तेओ कायदाना अमलमांथी सहेलाईथी छटकी जई शके. बाळलग्न प्रतिबंधक निबंधना संबंधमां पण आवीज दलील करवामां आवी हती, परंतु ते परिणामे निरर्थक जणाई हती; तेम दीक्षाना कायदाना संबंधमां आ दलील निरर्थक छे. फोजदारी काम चलाववानी रीतना निबंधनी कलम १८९ प्रमाणे आ राज्यनी रैयत पैकी कोई सखसे आ राज्यनी बहार करेलुं कृत्य आ राज्यना कायदा प्रमाणे गुन्हो यतुं होय पण जे ठेकाणे ते कृत्य करवामां आव्युं होय त्यांना कायदा प्रमाणे गुन्हो यतुं न होय त्यांरे एवा कोईपण गुन्हा बाबत हजरना अथवा हजरे आ बाबत जेने अधिकार आप्यो होय ते अमलदारना हुकमधी एवा कृत्य बद्दल आ राज्यमां काम चलावी शिक्षा थई शके छे. वळी जेम शरूआतमां बाळलग्न प्रतिबंधक निबंधनो कायदो प्रथम आ राज्यमां अने म्हैसूरमां थयो हतो अने पाछळधी तेनुं अनुकरण करी बीज घणाखरा राज्योमां अने ब्रिटिश इंडियामां पण थयो छे अने लग्न करवानी उमर पण प्रथम करतां घणी वधारवामां आवी छे ते प्रमाणे संन्यास दीक्षाना नियमन संबंधी कायदानी पण बीजा राज्योमां जरूर जणाशे तो ते प्रमाणे त्यां पण कायदो थशेज. एवे प्रसंगे त्यां दीक्षा लेवानी उमरनी यत्ता अहिंना करतां पण उंची राखवामां आवे ए बनवा जोग छे. वडोदरा राज्यना जैन लोकोनो मोटो भाग कायदो करवानी तरफेणमां छे. कायदा सामे जेमना तरफथी वधारे विरोध थयो छे ते वडोदरा राज्य बहारनानो छे. तेमनो ए विरोध मुख्यत्वे करीने एवी धास्तीथी थयेलो छे के आवो कायदो करवानी वडोदरा राज्य पहेल कर तो बीजा राज्यमां पण आवो कायदो थई जाय. परंतु जो जरूर होय तो बीजे ठेकाणे पण कायदो थाय तेथी कोईए बीवानुं कांई कारण नथी. वास्तविक प्रश्न ए जोवानो छे के आवी बाबतमां कायदो करवानी आवश्यकता छे के नहीं. अमे आ निवेदनमां जणावेली एकंदर हकीकत उपरथी अमारो अभिप्राय एवो थयोछे के १ कौटिल्य अर्थशास्त्र.
१०-११.
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कायदो करवानी जरूर छे. कायदो थवाथी हाल दीक्षा संबंधे चालता झगडा, साधुओ उपर मूकाता अपवादो अने कुटुंबमां थतो क्लेश पण बंध थशे अने जेओ समजथी अने लागतावळगतानी संमतिथी दाक्षा लेवा योग्य हशे तेज दीक्षा लई शकशे. आधी दीक्षानुं महत्व घटवाने बदले उलटुं वधशे; साधु संस्था कांई बंध नहीं थई जाय पण तेमा दाखल थवा लायक हशे तेज दाखल थई शकशे अने तेथी साधु संस्था प्रत्ये जैन समाजनी हाल जे भावना छे तेमां घटाडो थवाने बदले उलटो वधारो थशे. ६८. हवे सरकार तरफथी कायदानो जे खरडो प्रसिद्ध थयो छे तेमां कई फेर
फार करवा जेवो छे के केम अने हशे तो शो तेनो प्रसिद्ध थयेला खरडामा केवो फेरफार करतो ते बाबत विचार करशु. कायदा (निबंध) ने " संन्यास
दीक्षा प्रतिबंधक निबंध " एवं नाम आपेलु छे ते उपरथी केटलाकनी एवी समज थयेली छे के आ कायदानो हेतु संन्यास दीक्षा बंध करवानो छे. परंतु ते समजुत बरोबर नथो. कायदो करवानो हेतु दीक्षा समूळगी बंध करवानो नहीं पण कुमळी वयनां बाळकोने अपाती अयोग्य दीक्षा बंध करवानो छे. कोइपण प्रकारनी गेरसमज रहे नहीं अने कायदाना नाम उपरथी तेनो हेतु समजी शकाय एटला माटे अमारी सूचना एवी छे के सरकारे करवा धरेला आ कायदान नाम " संन्यास दीक्षा प्रतिबंधक निबंध " एव॒ राखवाने बदले " संन्यास दीक्षा नियामक निबंध " एवं राखवू; अने ते वात हेतु अने कारणोमा स्पष्ट करवी. ६२. परिशिष्ट १ ना मुसद्दानी कलम ३ नी पेटाकलम (१) सज्ञानपणानी उमर अने
पाल्यपालक संबंधी निबंधनी कलम ४ मां सज्ञान वयनी १६ वर्षथी कमी उमरना माटे दीक्षानो प्रतिबंध.
- यत्ता अढार वर्षनी ठराववामां आवी छे ते धोरणे राख
वामां आवी छे. संन्यास दीक्षा लेवाने ए उमर कई वधारे नथी. परिच्छेद ४१ मां अमे जे विवचन कर्यु छे ते प्रमाणे संन्यास दीक्षानो हेतु बरोबर समजी मोटी उमरे संन्यास लेवाय तेज सारं छ; अने तेटला माटे १८ के २० वर्षनी यत्ता कई वधारे नथी. परंतु अमे आगळ बताव्यु छे तेम पालग पालक निबंधमां अज्ञान वयनी जे यत्ता ठरावी छे, ते एज कायदानी कलम ६ थी धर्म अथवा धर्म संबंधी कृत्योना संबंधमा लागू थती नथी. मनुष्यहरण गुन्हामा अने हिंदु धर्मशास्त्र अने सरेह प्रमाणे लग्न माटे संमति आपवानी वय सोळ करतां वधारे राखेली नथी. फोजदारी कायदा प्रमाणे १४ वर्षना छोकगने अगर १६ वर्षनी छोकरीने तेनी समतिथी कोई लई जाय तो ते मनुष्यहरणनो गुन्हो यतो नथी. वळी दीक्षा नियामक कायदो करवानो हेतु ए छे के सगीर वयनां छोकरी जे उमरे पोतानी मेळे संमति आपवाने नालायक होय तेमने मात्र तेमनो संमति उपरथी अगर तेमनां मावापनी संमति लइने अगर लीधा वगर छानीमानी रीते दीक्षा आपी देवाय ते अटकाववानो छे. तेथी कमीमां कमी जे उमरे छोकरो के छोकरा पोतानी जाते कायदा प्रमाणे संमति आपो शकतां होय ते उमर लक्षमा राखीने विचार करतां एम लागे छे के १८
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वर्ष जेटली नहीं पण १६ वर्षथी कमी उमरनाने दीक्षा आपवानुं बंध करवामां आवे तेज योग्य थशे. बाळलग्न प्रतिबंधक निबंधमां पण शरूआतमां कमी उमर राखी लोको समजता थया पछी पाछळथी क्रमे क्रमे उमर वधारवामां आवी हती. एज प्रमाणे दीक्षाना काममा हाल तूर्त १६ वर्षनी उमर सुधी प्रतिबंध राखवामां आवे तो आगळ उपर लोकमत केळवाशे, ते प्रमाणे तेमां वधारो करी प्रतिबंधनी यत्ता १८ के तेथी वधारे उमर सुधी राखवान योग्य जणाशे तो ते बाबत घटीत तजवीज थई शकशे. माटे हाल तूर्तने माटे अमारो अभिप्राय एवो छे के कलम ३ एवी रीते सुधारवी के तेथी सोळ वर्षनी अंदरनी दीक्षानोज प्रतिबंध थाय.
७०. अमारा आगळ एक सूचना एवी करवामां आवी हतो के सरकारनो हेतु सोळ वर्षनी उमरना विशेष मात्र संमति वगरनी अने अयोग्य रीते छुपी रीते अपाती प्रकारनी बुद्धिवाळा बाळको माटे दीक्षाज बंध करवानो छे; बधी दीक्षा बंध करी नांखवानो अपवाद करवानी जरूर नथी. नथी. तेथी आ सामान्य धोरणने एक एवो अपवाद राखवो के, ८ थी उपर अने १६ थी कमी वयना कोई विशेष प्रकारनी बुद्धिवाळा बाळकने खरेखर पोतानी समज शक्तिथी खरेखरो वितराग आववाथी दीक्षा लेवानी तीव्र इच्छा थई होय अने तेमां तेना माबाप पण शुद्धबुद्धिथी मात्र तेना धार्मिक लाभने माटे सम्मत छे एवी प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ ( सुबा ) अगर सरकार ठरावे एवा बीजा कोई अमलदारे करेली तपास उपरथी तेमनी खात्री थाय तो तेमनो दाखलो मेळवीने तेवी विशेष प्रकारनी व्यक्तिने दीक्षा लेवानी छूट आपवी; आवो अपवाद राखवाथी धर्मथी ठरेली उमरनी यत्तामा हाथ घालवामां आवे छे एम कहेवाने कोईने कई कारण रहेशे नहीं, तेम कोई बाळकने खरेखरो वितराग थयो हशे तो तेने अपवाद तरीके दीक्षा आपवानी छूट पण रहेशे, परंतु आ सूचना स्वीकारवी ए योग्य थाय एम अमने लागतुं नथी. अमे आगळ जणाव्युं छे तेम दीक्षा लेवानी उमरनी यत्तामा फेरफार करवाथी दीक्षा लेवाना शास्त्रनां सिद्धांतमां कंई फेरफार थतो नथी अने थतो होय तोपण देशकाळने अनुसरी ते करवो जोईए. कोई बाळक पोतानी इच्छा प्रमाणे गमे त्यां लग्न करवाने सोळ वर्ष पहेला लायक गणातुं नधो. तेम संसार छोडी दीक्षा लेवाना धर्म काममां पण १६ वर्ष पहेलां ते पोतानी ईच्छा प्रमाणे वर्ती शकतुं नयो. तेनी पोतानी संमति पुरती नथी तेथीज तेना माबाप के वालीनी संमतिनी अपेक्षा सोळ वर्षनी अंदरनां बाळको माटे शास्त्रमा पण राखेली छे. माबाप के वाली समति आपता होय तोपण ते केवळ शुद्धबुद्धिथी बाळकना हितने माटे आपे छे के केम ते बाळक पोते पण आवे प्रसंगे पोताना कृत्यनुं परिणाम पोताना सांसारिक हक्क उपर के थशे ते बरोबर समजीने तथा संसार उपर खरेखरी रीते भाव उठी जवाने लीधे आवे छे के केम ए नक्की करवू मुश्केल छे. वळी एवी छूट राखवाथी हालमा शिष्यलोभने लीधे नसाडवा, भगाडवाना, लालच आपवाना, दबाण कर्याना, टंटा थवाना, अने पाछळथी खरी हकीकत समजाय त्यारे बाळके पोते साधुनो वेष छोडी संसारमा पाछा आव्याना
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दाखला अमारी समितिनी तपास चालतां पेहेलां तेम ते दरम्यान बनवा लाग्या छे ते बंध थशे नहीं ताजो दाखलो पाटणना कुसुमविजयना संबंधमां नवेंबर १९३२ मांज बनेलो छे अने तेने माटे वर्तमानपत्रोमा उहापोह चाली रह्यो छे. माटे सारासार विचार करतां सोळ वर्षथी कमी उमरना बाळको माटे कोई प्रकारनो अपवाद करवानी सूचना अमे योग्य धारता नथी, ७१. सोळ वर्ष तथा ते उपरनी उमरना शखस माटे पोतानी इच्छाथी दीक्षा लेवानी
छूट रहे तो पछी तेमां माबापनी संमतिनो प्रश्न रहेतो नथी; सोळ वर्ष तथा ते उपरनी उमरना
कारण के एवी संमति वगर पण पोतानी कायदेसर लायसखसो माटे दीक्षा लेवानी छूट,
" कीने लीधे ते पोतानी मरजी प्रमाणे करी शके छे. परंतु जो के आवे प्रसंगे कायदा प्रमाणे माबापनी संमतिनी जरूर रहेती नथी तो पण नैतिक धोरणे रहे छे. जेमणे नानपणथो पाळी पोषीने मोटा कर्या तेमने तेमनी रजा वगर छोडीने चाल्या जq ए निंद्य छ; अने जे खरो धर्माचरणी होई दीक्षा लेवा धर्मलाभ माटेज इच्छतो होय तो ते पोताना माबापनी लागणीनी अवगणना करे नहीं पण तेमने समजावीने पण तेमनी अनुमति लेज; अने सुज्ञ मावाप पण पोताना ऐहिक स्वार्थनो विचार करवाने बदले पोताना पुत्र के पुत्रीना परलौकिक हितनो विचार करी घणु करीने संमति आपवानाज; पण कदाच न आपे तोपण सोळ वर्षनी उमरनो तेमनी संमति वगर पण दीक्षा लई शके. कदाच जेनी पासे दीक्षा लेवानी होय ते आचार्य, माबापनी संमति न होय तो दीक्षा न आपे तो ते तेना अधिकारनी अने मरजीनी वात छे.पण जो एवी संमति न होवा छतां पण जो दीक्षा आपत्री तेने योग्य जणाय तो तेम करवाने कायदानी कई मनाई न होवी जोईए. ७२. परंतु स्त्री के धणीनी संमतिनी आवश्यकता जुदाज कारणसर रहे छे. स्त्री
. पोताना धणीनी संमात वगर अगर तेनाथी छेडोटको स्त्री के धणीनी संमतिनां
"तना लीधा वगर तेने मुकीने चाली जई शकती नथी. तेम कारणो.
धणी पण पोतानी स्त्रीनी संमति लीधा वगर अने तेना भरणपोषणने माटे बंदोबस्त कर्या वगर तेने छोडी दईने चाल्यो जई शकतो नथो. जो एम करे तो तेने मोटी हानि करे छे अने पोताना लग्ननी प्रतिज्ञा तोडे छे; माटे दीक्षा लेवानी इच्छा करनार पुरुष के स्त्रोए लग्न करेलं होय अने स्त्रो के धणी हयात होय तो पोतानी स्त्री के धणीनी संमति वगर दीक्षा लेवाने तेने प्रतिबंध करवो ए व्याजबी अने तेटला माटे जो के १६ वर्ष तथा ते उपरनी उमरनो सखस दीक्षा लेवा लायक गणाय छे तो पण जो तेनी स्त्री के धणीनी संमति न होय तो दीक्षा लेबानो तेने प्रतिबंध थाय एवी कलम कायदामा दाखल करवी जोईए. ७३. संघनी संमतिनी अपेक्षा कांई एवी नथी, के तेना वगर दीक्षा लई शकायज
_ नहीं. वळी अमारी भलामण प्रमाणे कायदो थाय तो संघनी संमतिनी अपेक्षा न । होवा विषे.
' दीक्षामा अयोग्यपणुं यतुं अटकाववाने कायदानी कलमोज
पुरती छे भने तेमां संघनी संमतिनो वधारो करवानी
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कई खास आवश्यकता रहेती नथी. हालनी स्थितिमा संघ अव्यवस्थित अने निर्बळ थई पड्यो छे अने तेनी संमतिनी अपेक्षा राखवामां आवे तो ते कोनी पासे मागवी, कोण केवी रीते आपी शके; ए पण ठरावी आपqज जोईए अने जो न ठरावो आपवामां आवे तो योग्य प्रसंगे पण संमति मळवी मुश्केल थई पडे. वळी संघनी संमतिनो उद्देश कायदामां अयोग्य दीक्षा अपाती बंध थवाथी पूरो पण पडे छे. एटले तेने माटे कई आवश्यकता होय एम अमने लागतुं नथी. ७४. कायदामां ठरावेली संमतिनो पुरावो केवो होवो जोईए ए विषे हवे विचार
न करवानो रहे छे, केटलाक जणे एवी सूचना करी हती संमति माटे पुरावो केवो होवो के दीक्षाना उमेदवार प्रांतना सुबा पासे अरजी करवी जोईए?
अने तपास करी ते जे काममां दाखलो आपे ते काममां ते दाखलो समतिना पुरावा तरीके गणवो जोईर. बीजा केटलाकन कहेवु एवं हतु के दीक्षाना उमेदवारे दिवानी न्यायाधिशीमां अरजी करवी जोईए अने न्यायाधीशे एवी अरजी आव्या पछी तेनी प्रसिद्ध रीते जाहेरात आपवी अने अरजीमा जणावेला सगां संबंधीने सूचना आपी तेमनी कंई हरकत न होय तोज दीक्षा लेवानो दाखलो आपवो जोईए. परंतु आ बन्ने प्रकारोथी घणो विलंब, खर्च तथा अथडामण थवानो संभव रहे छे. वळी आवा दाखला माटे न्यायाधिशीमा एक मुकदमो चलाववा जेवी योजना करवान कोई कारण नथी. दीक्षानो उमेदवार एक एवो लेख तैयार करे के जेमां तेनुं नाम, ठाम, ठेकाणुं अने उमर बतावी होय, तेना माबाप अने लग्न थयुं होय तो धणी के स्त्री हयात छे के नहीं ते जणाव्यु होय, अने स्त्री के धणी हयात होय तो तेमनी संमति बद्दल तेमनी सही लीधेली होय अने तेवो लेख हुकमतवाळी नोंधणी कचेरीमा रजू करी नोंधणीना कायदा प्रमाणे नोंधाग्यो होय तो तेथी सही तथा सहीओ करनारना खरापणा विषे इतर लेखोनो पेठ नोंधणी कामदार जोइती खात्री करी शके छे. माटे संमति बद्दल अमे आ निवेदन साथे सामेल राखेला कायदाना नवा मुसद्दामा नमनो सूचव्यो छे ते प्रमाणे एक लेख थवानी, ते नोधाववानी अने एवो नोंचावेलो लेख रजू कर्या वगर दीक्षा नहीं आपवानी एक कलम कायदामा दाखल थाय तो तेथी जेमनी संमति लेवानी आवश्यकता राखवामां आवे ते संमति छ के नहीं, ते जोवाने दीक्षा आपनार पासे ते दाखलो रजू थतां तेमने सहेज जणाई आवशे. ७५. केटलाक तरफथी एक सूचना एवी थई छे के जेणे दीक्षा लीधी होय ते
दीक्षा छोडी दईने पाछो आवे त्यारे वारसा विगेरेनी रुइए दीक्षा छोडी देनारनो मिलकत मळबानो मिलकत उपरनो तेनो हक्क कायम रेहेवो जोईए. उपरनो हक्क.
परंतु आ सूचना अमने योग्य जणाती नथी. मिलकत विगेरेनो त्याग ए दीक्षानुं मुख्य अंग छे अने ज्यारे कोई इसमे दीक्षा लीधी होय त्यारे ते लीधायीज मिलकत उपरनो तेनो हक नष्ट थाय छे. एटला माटे दीक्षा लेनार कोई पण सखस दीक्षा छोडी पाछो संसारमां आवे त्यारे ते हक्क तेने फरोथी मळवो न जोईए.
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जो हक पाछो मळे एम ठराववामां आवे तो पुख्त विचार कर्या वगर दीक्षा लेवा दोडी जवाना उतावळीया कामने उत्तेजन मळशे अने दीक्षा छोडी देवाना दाखला वधवानो अने तेथी दीक्षानुं महत्व घटयानो पण संभव रहेशे. दीक्षा छोडी पाछा घेर जईशु तोपण आपणो मिलकतनो हक्क आपणने मळवानो नथी एवी समज होय तोज दीक्षा लेवामां थतुं उतावळपणु अटके माटे आ सूचना अमे मान्य राखता नथी. परंतु दीक्षा गेरकायदेसर एटले के कायदामा ठरावेली उमरना अदरना इसमोने आपी होय अगर जेमनी संमतिनी आवश्यकता कायदामा राखी होय तेमनी समति वगर आपी होय तो तेवी दीक्षा परिशिष्ट १ ना खरडानी कलम ४ प्रमाणे मूळयीज निरर्थक अने रद्द बातल छे अने तेथी मिलकतना हक उपर एवी गेरकायदे दीक्षाथी कांई असर थती नथी अर्थात् एवो हक्क मूळमांज कांई जतो नथी ए उघड छे. परंतु एवो इसम जो दुनियादारीमां पाछो आववा ईच्छतो होय तो पोतानो हक तेणे सामान्य कायदामां बतावेली मुदत अंदर स्थापित करावी लेवो जोईए. ७६. परिशिष्ट १ ना खरडानुं त्रीजुं प्रकरण शिक्षा माटे छे. ए प्रकरणमां
मात्र अयोग्य दीक्षाआपवाना गुन्हाने माटे शिक्षा ठरावी छे. फरियाद.
परंतु फरियादकोणे करवी, खानगी द्वेष के अदावतना लीधे खोटी फरियाद न थतां शुद्धबुद्धिथीज करवामां आवे तेने माटे शो बंदोबस्त राखको अने फरियाद करवानो प्रसंग आवे तो काम कोना आगळ चलायवु ए विषे विचार पई कलमो दाखल थयेली नथी. अमने लागे छे के आवा प्रकारना कायदामां ठरावेला गुन्हा बद्दल फरियाद कोईपण इसम करी शके पण एवा गुन्हा पोलिस अधिकारमा आववा न जोईए. निंबध विरूद्ध कांई गुन्हाईत कृत्य बन्युं होय तो तेने माटे फरियाद प्रथम फोजदारी न्यायाधिशी वर्ग १ आगळ थवी जोईए; अने तेमणे ते बाबत प्राथमिक तपास करी जो हकीकत खरी जणाय तो अधिकारवाळा पहेला वर्गना फोजदारी न्याया धीशे काम चलाववानी मंज़री आपवान धोरण कायदामां दाखल थयु जोईए. एवी मंजरी वगर फरियादगें काम न चालवू जोईए. सामान्य फोजदारी कायदा प्रमाणे मनुध्यहरण विगेरे गुन्हो बनतो होय तेने माटे उपर प्रमाणेनी विधिनी जरूर नयी पण जो दीक्षा निबंधमां ठरावेला गुन्हा बद्दलज फरियाद करवी होय तो तेने माटे उपर प्रमाणे विधि थवी जोईए, के जेथी खोटी फरियाद थवाना अने कोईने वगर कारणे हेरान करवानो प्रसंग बने नहीं. टुंकामां धी इंडियन चाइड मॅरेज रीस्ट्रेन्ट अॅक्ट (सन १९२९ नो १९ मो) मां गुन्हार्ने काम चलावया संबंधी जे धोरणो छे ते बनता लगी आ निबंधमां दाखल करवानो सुधारो करवो जोईए. ए निबंध प्रमाणेना गुन्हानो इन्साफ डिस्ट्रीक्ट मॅजीस्ट्रेट अगर प्रेसीडेन्सी मॅजीस्ट्रेट शिवाय बीजा कोईथी थई शकतो नथी. वळी गुन्हो बन्यानी तारीखयी एक वर्षनी अंदर फरियाद थई न होय तो काम चलावी शकातुं नयी. फरियादीनी जुबानी लीधा पछी अने आरोपी उपर आव्हानपत्र काढतां अगाउ न्यायाधिशीए फरियादी पासे रु. १०० रोकड अना
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मत मुकाववानुं अगर ते आपवानुं एक खत जामीनसह के जामीनवगर करी आपवान ए कायदामा राख्युं छे, पण आ कायदामां तेनी जरूर नथी, कारण के आवा गुन्हाना काममा खोटी फरियाद थवानो संभव ओछो रहे छे. वळी फरियाद करवाना काममां एवी सख्ताई राखवामां आवे तो कई फरियाद करवानी परवा राखे नहीं अने गुन्हा बन्या छतां कायदानो अमल थाय नहीं; कारण के खरा प्रसंगे पण फरियाद करवा आगळ आवे एवा निडर अने परोपकारी लोको आपणा समाजमां थोडाज होय छे, तो पछी तेमनी पासे रकम अनामत मुकवानुं ठराववामां आवे तो भाग्येज कोई फरियाद करवा आगळ आवे. एक सूचना एवी थई हती के बाळलग्न प्रतिबंधक निबंध विरुद्ध गुन्हानी फरियादो गामना पटेल करे तेम दीक्षा निबंध विरुद्धना गुन्हानो फरियादो पण सरकार तरफयी थवा धोरण ठरावq जोईए. पण आ सूचना स्वीकारवानी अमे भलामण करी शकता नथी. दीक्षा निबंध विरुद्ध गुन्हा कांई एटला बधा थपाना नथी के तेने माटे गामेगाम बाळलग्ननी पेठे पत्रको रखाववां योग्य थाय. एक वर्षमा आखा राज्यमां थईने भाग्येज आठ दस फरियादो थवानो प्रसंग आवे; जो के आ गुन्हा पोलिस अधिकारना न होवायी पोलिस पोते थईने तेनी तपास करी शके नहीं पण पोलिसने मळेली खबर उपरथी फरियाद करवी योग्य जणाय तो तेम करवाने कांई बाध नथी पण वास्तविक रीते तो आवा कामनी फरियादो जे ते धर्मना अनुयायीओना स्थानिक आगेवानोए अगर लागतावळगता संबंधवाळाए करवी ए तेनुं कर्तव्य छे. ७७. अयोग्य दीक्षा हवे बे प्रकारनी थशे. (१) अज्ञानने आपेली दीक्षा अने
(२) सज्ञान सखसे लेख करी आप्या शिवाय लीधेली . शिक्षा.
दीक्षा अगर तेणे लेख करी आप्यो छे एवी खात्री कर्या वगर तेने आपेली दीक्षा. आ पैकी पहेला प्रकारनो गुन्हो ए बीजा प्रकारना गुन्हा करतां वधारे गंभीर प्रकारनो छे. तेथी ते माटे वधारे सख्त शिक्षा राखवी जोईए. अमारा अभिप्राय प्रमाणे पहेला प्रकारना गुन्हा माटे एक वर्ष सुधीनी गमे ते प्रकारनी केदनी तथा ते उपरांत पांचसो रुपिया सुधीना दंडनी शिक्षा राखवी जोईए. बीजा प्रकारना गुन्हा माटे छ मास सुधीनी आसान केदनी अगर पांचसो रुपिया सुधीना दंडनी शिक्षा राखी होय तो बस थशे. ७८. प्रसिद्ध थयेला निबंधनो खरडो अमारी सूचना प्रमाणे सुधारवामां आवे तो
व ते केवो थशे ए अमे परिशिष्ट ३ थी नवो मुसद्दो सामेल निबंधनो सुधारेलो खरडो.
'. कर्यो छे ते उपरथी जणाशे. ७९. अमारे करवानें काम घणी मुश्केली अने गुंचवाडा भरेलु हतुं अने कांई पण
निर्णय पर आवतां पहेलां अमारे घणु विचारवान तथा उपसंहार.
तपासवान हतुं ते संबंधमां अमाराथी बनतो प्रयत्न अमे कर्यो छे. अमारी सचनाओ जैन धर्मना अनुयायीयो के जेमनामां बे पक्ष बंधाई घणो
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विरोध चाले छे तेमने बधाने पूरो सतोष आपी शके नहीं ए उघड छे. तोपण अमे आशा राखीए छीए के तेमने एटलं तो क बूल कर्या वगर नहीं चाले के आ महत्वना काममां तेमना धर्मने कांई अडचण आवे नहीं एवी सरळ, साधारण अने व्यवहारू प्रकारनी भलामणो अमे करी छे. अमे आशा राखीए छीए के अमे जे भलामण करी छे ते स्वीकारवाथी संन्यास दीक्षा जेवी महत्वनी अने उच्च धर्भनी बाबतमा हाल जे मलीनता दाखल थयेली छे ते दूर थई जे ते धर्मनो जेवा प्रकारनो दीक्षित वर्ग हाल छे तेना करता आगळ उपर वधारे शुद्ध अने सारो थशे. अमारुं निवेदन तथा भलामण सरकार तथा जे ते धर्मना अनुयायीओने पसंद पडशे तो तेथी अमारी महेनत सफळ थई एम मानी अमे खुशी थईशं. ८०. आ निवेदन बंध करतां पहेलां अमारा सेक्रेटरी नायब न्यायमंत्री रा. रा.
पुष्करराम वामनराम महेता एम. ए., एलएल., बी. तथा आभार प्रदर्शन.
तेमना शिरस्तेदार रा. छोटालाल मगनलाल शाह बी. ए. एमणे जे उमंग, खत अने श्रमथी अमने अमारा काममां मदद करी छे तेने माटे अमे तेमनो आभार मानीए छीए अने तेमनी आ सारी नोकरी सरकारना ध्यान उपर लावीए छीए. तारीख ६ माहे डिसेंबर सन १९३२. पु. वा. महेता.
गोविंदभाई हा. देसाई. वि. कृ. धुरंधर. अ. आ. केहीमकर.
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५९
परिशिष्ट १ लु. संन्यासदीक्षा प्रतिबंधक निबंधनो मुसहो. श्रीमंत सरकार महाराज सयाजीराव गायकवाड सेनाखासखेल समशेर बहादूर, जी. सी, एस आय., जी. सी. आय. ई., फरजंदे-खास-ई-दौलते-इंग्लिशिया एमणे नीचे लखेलो “ संन्यासदीक्षा प्रतिबंधक निबंध " मंजूर कर्यो छे.
सन १९३१ नो मुसद्दो अंक २ जो. संन्यासदीक्षा प्रतिबंधक निबंध.
अनुक्रमणिका. अनुक्रम अंक. बाबत.
पृष्ठ. उद्देश.
प्रकरण १ लु.
प्राथमिक. संज्ञा. व्याख्या.
प्रकरण २ जं.
प्राथमिक. (१) सगीरने दीक्षा नहीं आपवा बाबत. (२) रजामंदी होय तोपण पेटाकलम (१)
ना ठरावने बाध नहीं आववा बाबत. कलम ३ ना ठराव विरुद्ध अपायली दीक्षा निरर्थक होवा बाबत.
प्रकरण ३ जु.
शिक्षा. ५. शिक्षा.
संन्यासदीक्षा प्रतिबंधक निबंध. साधु, संन्यासी, यति, योगी, वेरागी तया फकीर विगेरे एवा लोको तरफथी
अज्ञान बाळकोने, संन्यास एटले संसार त्याग करवानी उदेश,
दीक्षा आपवामां आवे छे अने तेनाथी अनेक अनर्थो थाय छे ते अटकाववा काईक प्रतिबंध मुकवो जरूर छे एम जणायाथी श्रीमंत सरकार महाराज सयाजीराव गायकवाड सेनाखासखेल समशेर बहादूर, जी. सी. एस. आय., जी. सी. आय. ई., फरजंदे-खास-ई-दौलते-इंग्लिशिया एमणे नीचे प्रमाणे ठराव्युं छे:
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प्रकरण १ हुं.
प्राथमिक. १. मा निबंधने “ संन्यासदीक्षा प्रतिबंधक निबंध" कहेवो.
संज्ञा.
२. पुर्वापर संबंध उपरथी बाध आवतो न होय तो
व्याख्या.
(क)" संन्यासदीक्षा " ए शब्दमां कोईपण धर्मना
संन्यासदीक्षा,
(अ) (१) साधु,
(२) संन्यासी, (३) यति, (४) योगी, (५) वेरागी, (६) फकीर,
विगेरे एवा माणसो पोताना (आ) (१) धर्ममा अथवा
(२) पंथमां,
जीवन गाळवाने कोईपण माणसने (इ) (१) मंत्र आपे,
(२) मुंडे, (३) चेलो करे, (४) लुंचितकेश करे, (५) कफनी ओरावे, (६) नाथे अथवा
(७) एवीज बीजी कोई रीते क्रिया करे के जेथी संसारनो त्याग कयों गणाय तेनो समावेश थाय छे. (ख) “दीक्षा" एटले “ संन्यासदीक्षा " एम समजवू. दीक्षा.
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प्रकरण २ जु.
प्रतिबंध. ३.(१)" सज्ञानपणानी उमर तथा पाल्यपालक संबंधी निबंध " नी कलम सगीरने दीक्षा नहीं आपका ४ मां जेने
बाबत.
(अ) सगीर गणवामां आव्यो छे तेने, तेमज
(आ) जे सज्ञान थयो नथी एम गणवामां आव्यो छे तेने कोईपण माणसथी संन्यासदीक्षा आपी शकाशे नहीं.
(२) (अ) पेटाकलम (१) मा जणावेलो
रजामंदी होय तोपण पेटाकलम (१)ना ठरावने बाध नहीं आपवा बाबत, प्रसंग.
(१) सगीर अथवा
(२) जे सज्ञान थयो नथी ते अगर (आ) (१) तेनां माबाप अगर
. (२) वाली परिणाम. संन्यासदीक्षा आपवा माटे रजामंदी आपे तेथी पेटाकलम (१) ना
ठरावने बाध आवशे नहीं. ४. कलम ३ मां कहेला ठराव विरुद्ध जो कोई तेवी दीक्षा आपशे तो ते सर्व प्रसंग,
कारण माटे कलम ३ ना ठराव विरुद्ध अपायली दीक्षा निरर्थक होवा बाबत.
परिणाम, निरर्थक गणाशे एटले के, तेवी दीक्षा अपायला सखसना (अ)(१) संप्राप्त अगर
(२) भविष्यमा प्राप्त थनारा
कोईपण (आ) (१) वारसाईना,
(२) भरणपोषणना,
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(३) वहेंचणीना अगर
(४) बीजा कोईपण (इ) कायदेसर
(१) हक्कने तथा (२) जवाबदारीओने तेवी दीक्षाथी कोईपण जातनो बाध आवशे नहीं.
प्रकरण ३ जु.
शिक्षा. ५. कलम ३ ना ठराव विरुद्ध जो कोई सखस, शिक्षा.
(अ) (१) दीक्षा आपशे अगर प्रसंग. (२) फोजदारी निबंधमां " मददगारी करवी " ९ शब्दोनी जे
व्याख्या आपवामां आवी छे ते प्रमाणे दीक्षा आपवामां मददगारी
करशे तो ते (आ)(१) एक वर्ष सुधीनी
(अ) सखत अगर परिणाम,
(आ) आसान
केदनी अथवा (२) रुपिया एक हजार सुधीना दंडनी,
अथवा (३) बन्ने
शिक्षाने पात्र थशे. तारीख २४ माहे जुलाई सन १९३१. म. से. दवे.
विष्णु कृष्णराव धुरंधर,
न्यायमंत्री.
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संन्यासदीक्षा प्रतिबंधक निबंध,
हेतुओ अने कारणो. तारीख १९-१२-१९२९ नी धारासभानी बेठकमा रा. लल्लुभाई किशोरभाईए
नीचेनो ठराव आण्यो हतो:हालनो मुसद्दो तैयार करवानी जरूरियात. धारासभामांना रा. लल्लुभाईनो ठराव.
" नाहनी उमरमां माणसोने दीक्षा आपी त्यागी बनाववामां आवे छे. तेथी
कुमळी वयना अने काची बुद्धिनां माणसो समज वगर दीक्षा ले छे अने त्यागी बने छे, तेथी घणा प्रसंगे अनर्थ थाय छे. माटे जेनी उमरना २१ वर्ष पूरां थयां न होय तेवा कोईपण माणस, स्त्री अगर पुरुषने संसार त्यागनी दीक्षा आपी शकाय नहीं तथा जेनी उमरना २१ वर्ष पूरां थयां होय पण ३० वर्ष पूरा थयां न होय तेवा माणसने प्रांत फोजदारी न्यायाधिशीनी परवानगी मेळव्या शिवाय संसारत्याग करवानी दीक्षा आपी शकाय नहीं एवं धोरण ठराववा आ धारासभा श्रीमंत सरकारने विनंति करे छे."
आ ठरावना संबंधमां नेक नामदार अध्यक्ष साहेबे खुलासो को हतो के आ बाबतमां तपास करी आवा कायदेसर अंकुशनी जरूर छे के केम तेनो विचार कर. वामां आवशे. २. वळी केटलेक प्रसंगे कुमळी वयना जैन बाळकोने त्यागनी दीक्षा आपवामां
___ आवी साधु बनाववामां आवे छे अने तेथी ते पद्धत हुजूरश्रीनी ध्यानमा आवली शोचनीय होई बंध करवा पात्र छ एम श्रीमंत सरकारने हकीकत.
पण जणायुं छे.
३. आ उपरथी हालनो मुसद्दो तैयार करवामां आव्यो छे. सगीर वयना बाळकोने
दीक्षा आपवामां अनेक सांसारिक अडचणो अने अनर्थो मुसद्दो सामान्य स्वरुपनो छे..
'- समाएलां होय छे तेथी तेवी दीक्षा अपाती होय तेना उपर अंकुश मूकवा हालनो मुसद्दो करवामा आव्यो छे. हालनो मुसद्दो मात्र जैन साधुओ दीक्षा आपे छे तेनेज लागू थाय एवो करवामां आव्यो नथी. ते सामान्य स्वरुपनो करवामां आब्यो छे, एटले के कोईपण धर्मना साधु, संन्यासी, यति, योगी, वेरागी, फकीर विगेरे एवा माणसो पोताना धर्म अथवा पंथमा जीवन गाळवानो कोईपण माणसने मंत्र आपे, मुंडे चेलो करे विगेरे एवी कोई क्रिया के संस्कार करे के जेथी संसारनो त्याग थयो गणाय तेवी सर्व प्रकारनी दीक्षाने लागू थाय एवी रीतनो तैयार को छे. ( कलम २).
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४. त्यागनी दीक्षा एक धार्मिक संस्कार गणाय छे; तेनी वच्चे श्रीमंत सरकारे
पडवानो आ मुसद्दानो हेतु नथी; परंतु जो कोई सगीरने मुसद्दानी कलम ४.
" तेवी दीक्षा आपवामां आवे तो ते तेनी समजण शिवाय अथवा रजामंदी शिवाय छे एम गणवं जोईए अने तेयी तेवी दीक्षाने अंगे कायदाने लईने तेना हितविरुद्ध जे जे परिणाम आवे ते तेने भोगवां न पडे एवा इरादायी सगीरने दीक्षा आपत्रामां आवे तो ते कायदानी दृष्टिए सर्व प्रकारे निरर्थक छे एम गणवा कलम ४ मां ठराव्युं छे, एटले के ते कलममा जण्याच्या प्रमाणे तेवा कोई सगीरना कायदेसर हक्क के जवाबदारीओ होय तेने तेवी दीक्षाथी बाध आवशे नहीं एवं समजवा ठराव्यु छे. ५. आ उपरांत एवा कोई सगीरने जो कोईपण माणस दीक्षा आपशे अगर
आपवामा मददगारी करशे तेने कलम ५ थी शिक्षा पात्र कलम ५.
ठराव्यो हे. ६. आटला धोरणो हाल पूरता छ एम जणायुं छे; सगीर न होय एवा माणसने
__कोई आवी दीक्षा आपे तो तेने माटे प्रतिबंध मूक्यो सगीर ने होय एवा माणसने । आवी दीक्षा अपे तो प्रतिबंध मुक्यो नथी.
७. आशा छे के जनसमाजना हित माटे श्रीमंत सरकार तरफथी थएला वखतो
वखतना कायदाओनी माफक आ कायदानो मुसद्दो पण आशा.
प्रजा राजीखुशीथी स्त्रीकारशे अने जे अनर्थो थता होय ते अटकाववामां सहायभूत थशे. तारीख २३ माहे जुलाई सन १९३१. म. से. दवे.
विष्णु कृष्णराव धुरंधर,
न्यायमंत्री.
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परिशिष्ट २ जु.
1. Name of the department.
Nyayamantri. 2. No. and date of the Tippan. 3. Subject:--Appointment of the Committee in connection
with the Jain Diksha Bill.
Dewan Onder.
The Jain Diksha Bill. A Committee consisting of:
R. B. Govindbhai H. Desai Appointment of Mr. A. A. Kehimkar Committee.
Mr. V. K. Dhurandhar with Mr. P. V. Mehta ( Naib Nyayamantri ) as Secretary will receive all the representations on the above Bill, examine witnesses in Baroda and submit a report to Government.
V. T. KRISHNAMACHARI.
15-8-31.
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परिशिष्ट ३ जुं. संन्यासदीक्षा नियामक निबंधनो मुसहो.
श्रीमंत सरकार महाराज सयाजीराव गायकवाड सेनाखासखेल समशेर बहादूर जी. सी. एस. आय., जी. सी आय्. ई., फरजंदे-खास-ई-दौलते-इंग्लिशिया एमणे नीचे लखेलो “संन्यासदीक्षा नियामक निबंध " मंजर को छे.
___ सन १९३२ नो मुसहो अंक संन्यासदीक्षा नियामक निबंध.
अनुक्रमणिका. अनुक्रम अंक बाबत.
पृष्ठ.
____उद्देश.
प्रकरण १ लुं.
प्राथमिक. १. (१) संज्ञा.
(२) शरुवात. २. व्याख्या.
प्रकरण २ जं.
संन्यास दीक्षानुं नियमन. अज्ञानने संन्यासदीक्षा आपवी नहीं. (१) संन्यासदीक्षा लेनारे लेख करवा विषे. (२) दीक्षाना लेख उपर कया सखसोनी सही होवी जोईए. .... (३) लेख नोंधाववो जोईए. (४) नियम करवा.
लेख कर्यानी खात्री कर्या वगर दीक्षा आपवी नहीं. ६. कलम ३-3 ना ठराव विरुद्ध आपेली दीक्षा निरर्थक गणाशे. ....
(१) कलम ३ विरुद्धना गुन्हा बदल शिक्षा.
(२) कलम ५ तथा ४ विरुद्धना गुन्हा बद्दल शिक्षा. ८. गुन्हान स्वरुप.
(१) इन्साफनो अधिकार. (२) परवानगी वगर काम चलावq नहीं. (१) फरियाद प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ तरफ करवी. .... (२) प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ एमणे चोकशी करवी. .... (३) खात्रो थाय तो शु करQ.
(४) साधारण फोजदारी न्यायाधीशे करवानी तजवीज. ११. फोजदारी निबंध प्रमाणे फरियाद चालवा बाध नथी..
नमूनो निशानी १.
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६७
उद्देश.
संन्यास दीक्षा नियामक निबंध. साधु संन्यासी, यति, योगी, विगेरे पोतपोताना धर्मना अनुयायीओने संन्यास
दीक्षा आपे छे. तेमां कोई कोईवार दीक्षा एटले शु ए
समजे नहीं एयां कुमळी वयनां बाळकोने पण दीक्षा आपवामां आवे छे अने कोई कोईवार एवी दीक्षा तेमना वालोनी संमति लीधा वगर अने उमेदवार लायक होय अने विवाहित होय त्यारे तेनी स्त्रीनी अगर पतिनी संमति वगर दीक्षा आपे छे अने तेथी कलह, झगडा, टंटा, फिसाद, फरियादो विगेरे थाय छे ते अटकाववा आ बाबतमां कायदाथी नियमन करवू इष्ट जणायाथी श्रीमंत सरकार महाराज सयाजीराव गायकवाड, सेनाखासखेल समशेर बहादूर, जी. सी. एस् आय., जी. सी. आय. ई., फरजंदे-खास-ई-दौलते-इंग्लिशिया एमणे नीचे मुजब ठराव्युं छे:
प्रकरण १ लु.
प्राथमिक. १. (१) आ निबंधने “ संन्यास दोक्षा नियामक निबंध " कहेवो. संज्ञा. (२) आ निबंध तारीख माहे
सन थी अमलमा आवशे.
शरूवात.
२. पूर्वापर संबंध उपरथी बाध आवतो न होय तो
व्याख्या.
(१) " अज्ञान " एटले जेनी उमरनां १६ वर्ष पूरां थयां न होय एवो
सखस समजबो; (२)" नोंधणी कामदार " एटले दस्तावेज नांधणी संबंधी निबंध अन्वये
दस्तावेजो नोंधवा माटे निमायलो नोंधणी कामदार; (३)" सज्ञान " एटले जे सखस अज्ञान न होय ते समजबो; (४)" संन्यास दीक्षा " एटले कोईपण धर्मना
(१) संन्यासी, (२) यति, (३) आचार्य, विगेरे लोको, कोई सखसने (क) मंत्र आपवानी,
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(ख) मुंडवानी,
( ग ) कफनी ओराढवानी अगर (घ) एवीज बीजी
पवी नहीं.
शिष्य, चेलो के साधु बनाववानी क्रिया करीने पोताना वर्गमां दाखल करे के जेना परिणामे ते सखसे संसारनो त्याग करेलो गणाय तेवी कोई क्रिया समजवी.
प्रकरण २ जुं.
संन्यासदीक्षानुं नियमन.
३. कोईपण अज्ञान सखसने संन्यास दीक्षा आप। शकाशे नहीं.
अज्ञानने संन्यास दीक्षा आ
४. (१) (क) जे सज्ञान सखसनी संन्यास दीक्षा लेवानी इच्छा हशे तेणे ते बाबत नमूना अंक १ प्रमाणेनो लेख करवो जोईए; ( ख ) ते जो विवाहित होय तो
संन्यास दीक्षा लेनारे लेख करवा विषे.
६८
प्रसंग.
परिणाम.
दीक्षाना लेख उपर कया सखसोनी सही होवी जोईए.
( १ ) तेनी पत्नीनी संमति शिवाय, अने ( २ ) पत्नीना अने छोकरांना व्यवस्था कर्या शिवाय
(२) (अ) पेटाकलम (१) प्रमाणेना लेख उपर
ते संन्यास दीक्षा लई शकशे नहीं.
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( क ) तेनी सही होवी जोईए तथा
(ख) (१) माता पितानी अगर तेमना पैकी जे
हयात होय तेनी अगर न्यातना बे आगेवाननी अने
साख होवी जोईए;
( आ ) पत्नी अज्ञान होय तो तेनी वती ( १ ) तेना पिताए अने
भरणपोषणनी
(२) ते उपरांत, ते विवाहित होय तो तेनी पत्नीनी
( २ ) पिताना अभावे तेनी माताए अने ( ३ ) तेना अभावे कोई नजिकना बे सगांए साख करवी.
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(३)(क) सदरहु लेख तालुकानी नोंधणी कचेरीमां नोधाववा माटे
___ दीक्षा लेनारे रजू करवो; लेख नोंधाववो जोईए,
(ख) नोंधणी कामदारे ते लेख उपरनी सही तथा साक्षी खरी होवा
बद्दल खात्री करी, ते लेख नोंधी आपवो. (४) आवा दस्तावेजोनी नोंधणी संबंधी जरूर जगाय तेवा नियमो नोंधणी
खाताना मुख्य अधिकारी हजूर मंजूरीथो करी शकशे. नियम करवा.
५. संन्यास दीक्षा लेवानी इच्छा राखनारे कलम ४ मां ठराव्या प्रमाणे लेख
__ करी नोंधाव्यो छे एवी खात्री कर्या वगर कोईपण लेख कर्यानी खात्री कर्या वगर दीक्षा आपवी नहीं.
(क) साधूए, (ख) संन्यासीए अगर (ग) आचार्य
संन्यास दीक्षा आपवी नहीं. ६.(क) कलम ३ ना ठराव विरुद्ध अज्ञान सखसने संन्यास दीक्षा आपी हशे
ते, तथा कलम ३-४ ना ठराव विरुद्ध आपेली दीक्षा निरर्थक गणाशे,
प्रसंग. (ख) कलम ४ ना ठराव प्रमाणे लेख नोंधाव्या शिवाय सज्ञान सखसे संन्यास
दीक्षा लीधी हशे ते परिणाम. सर्व कारण माटे निरर्थक गणाशे, एटले के
(अ) तेवी दीक्षा अपायला सखसने
(१) संप्राप्त थयेला अगर (२) भविष्यमा संप्राप्त थनारा वारसाईना अगर बीजा कोईपण प्रकारना कायदेसर हक्कने बाध
आवशे नहीं, तेम (आ) (१) तेना आश्रितोतुं भरणपोषण करवानी अगर
(२) बीजी कोई कायदेसर जवाबदारीमाथी ते मुक्त थएलो गणाशे नहीं. .
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७. (१) जे सखस
कलम ३ विरुद्धना गुन्हा बद्दल शिक्षा.
(क) कलम ३ ना ठराव विरुद्ध कोई अज्ञान सखसने संन्यास दीक्षा आपशे ते तथा
७०
( ख ) फोजदारी निबंधमां आपली व्याख्या मुजब तेवा कोई कृत्यमां मददगारी करशे ते
एक वर्षसुधीनी गमे ते प्रकारनी केदनी तथा रुपिया ५०० सुधीना दंडनी शिक्षाने पात्र थशे.
(२) जे सुखस
कलम ५ तथा ४ विरुद्धना गुन्हा बद्दल शिक्षा.
( क ) ( १ ) कलम ५ ना ठराव विरुद्ध बीजा कोई सखसने संन्यास दोक्षा आपशे ते तथा
(२) जे सखस कलम ४ ना ठरावो विरुद्ध सन्यास दीक्षा लेशे ते तेमज
( ख ) फोजदारी निबंधमां आपेली व्याख्या मुजब तेवा कोई कृत्यमां मददगारी करशे ते
छ मास सुधीनी आसान केदनी अगर रुपिया ५०० सुधीना दंडनी अगर ए बन्ने शिक्षाने पात्र थशे.
८. कलम ७ मुजबनो गुन्हो
गुन्दानुं स्वरूप.
छेएम समज.
९. ( १ ) कलम ७ मुजबना गुन्हानो इन्साफ पहेला वर्गना हकुमतवाळा फोजदारी न्यायाधीशथी थई शकशे.
इन्साफनो अधिकार.
परवानगी वगर काम चलाववु
नही.
(क) जामीन लई शकाय एवो तथा
(ख) पकडहुकम वगर पकडाय नहीं एवो
( २ ) परंतु सदरहु गुन्हा माटे काम चलाववानी प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ नी मंजुरी वगर काम चाली शकशे नहीं.
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७१
१०. (१) (क) कलम ७ मुजबना गुन्हानी फरियाद जे ते प्रांतना प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ तरफ, गुन्हानी तारीखथी एक वर्षनी मुदत अंदर कोईपण सखस करी शकशे;
फरियाद प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ तरफ करवी.
(ख) रकम ( क ) मां ठरावेली मुदत बहारनी फरियाद दाखल करवी नहीं.
(२) (क) सदरहु फरियाद खरी छे के केम तेनी खात्री करवा सारू प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ पोताने योग्य लागे तेवी तांत्रिक चोकशी करवा मुखत्यार छे;
प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ एमणे चोकशी करवी.
(ख) आवी चोकशीमां साक्षीओनी जुबानी तथा आरोपीओनो खुलास लई शकाशे.
(३) पेट कलम ( २ ) प्रमाणे चौकशी कर्या पछी, फरियाद खरी होवानी प्रसंग. प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ नी खात्री थाय तो तेमणे
खात्री थाय तो शुं कर.
परिणाम.
(क) आरोपीओ उपर काम चलाववानी परवानगी आध्यानो हुकम करवो अने
( ख ) फरियाद तथा बनेला कागळो हकुमतवाळा पहेला वर्गना साधारण फोजदारी न्यायाधीश तरफ मोकली आपवां.
( ४ ) पेटाकलम ( ३ ) प्रमाणे पोताना तरफ कागळो आवे एटले साधारण फोजदारी न्यायाधीशे बीजी फरियादोनी माफक पोतानी नहीमां ते दाखल करी आगळनी रीतसर तजवीज करवी.
साधारण फोजदारी न्यायाधीशे करवानी तजवीज.
११. आ निबंध विरुद्ध
फोजदारी निबंध प्रमाणे फरियाद चालवा बाध नथी.
गुन्हो बनतो होय ते उपरांत फोजदारी निर्बंध विरुद्धनो पण गुन्हो बनतो होय तो ते निबंध प्रमाणे ते गुन्हा बाबत फरियाद चालत्राने आ निबंधना कोई ठरावथी बाध आवे छे एम समजवुं नहीं.
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नमूनो निशानी १. ( जुओ कलम ४.)
रहेवासी
१. हुं
जाते
नो
छु.
२. हुं आ लेखथी जाहेर करूं छु के, (क) आ संसार तरफ वितराग आववाथी हुं मारी राजीखुशीथी संन्यास
दीक्षा लऊं छु. (ख) मारी उमर पूरी
वर्षनी छे. (ग) माग माता पिता हयात
परणेलो
(च) हु परणेली छु।
*(छ) मारी स्त्री तथा छोकरांना भरणपोषण माटे में योग्य व्यवस्था करी छे,
ते अर्थे मारी स्त्रीए आ लेख उपर साख सही करी छे. तारीख
सही. साख.
* दीक्षा लेनार स्त्री होय तो आ रकम छेकी नांखवी.
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अधिकार
अणबनाव
इन्साफनो. (परिशिष्ट ३ )
श्री पूज्यने संघसाथे.
हिंदुसंन्यासनी उत्तम भावनामां
मनुष्य चारित्र्यवान होय तो त्याग रूप दीक्षानो अधिकारी.
फरियादी पासे.
बाळलग्न प्रतिबंधक निबंधन कायदा.
इस्लाम धर्म शास्त्री.
जैनधर्मनां अनुयायीओना संबंधमां.
संन्यास लेवानी ईच्छा राखनारे लेवा विषे.. हिंदुधर्मना अनुयायीओना संबंधमां.
अधमता
अधिकारी
अनामत
अनुकरण
अनुमती
अनुमोदन
अपवाद
अपेक्षा
अमल
सोळवर्षी कमी उमरना बाळको माटे.
सोळवर्षांनी उमरना विशेष प्रकारनी बुद्धिवाळा बाळको माटे.
संघनी संमतिनी,
संघनी संमतिने माटे,
संमतिनी-सोळवर्षनी उपरनाने दीक्षा लेती वखते माबाप
विगेरेनी.
कायदानो केवो थशे.
दीक्षा आपवामां
अयोग्य
अयोग्यपणुं
७३
सूची.
दीक्षा आपवामां
१०
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परिच्छेद
०
३४
३७
६३
७६
६७
१०
४३
१४
४३
७०
७०
७३
५०
४३
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३९
८
पृष्ठ
७०
१९
२१
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४
३०
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30 m 30 ur o
५४
३६
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२४
३
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७४
पृष्ठ
अर्थ
परिच्छेद दीक्षामा यतुं अटकाववाने कायदानी कलमो पुरती. साधुदीक्षामां दाखल थयेलं.
३६ अरजी
दीक्षाना उमेदवारे दिवानी न्यायाधीशीमां करवी. दीक्षाना उमेदवारे प्रांतना सुबा पासे करवी. अहिंसानो. असत्य त्यागनो. अस्तेयनो. ब्रह्मचर्यनो.
अपरिग्रहनो.. अवनति
कोई पण धर्मना साधु संधनी.
साधु वर्गनी. असर
प्रजानी मानसिक नैतिक अने आर्थिक उन्नति उपर.
संघनी साधु उपर. अंकुश
अयोग्य वर्तन करनार साघुओ उपर. आचार्यनो--संन्यासी साधु भ्रष्ट थाय तो. कायदेसर-दीक्षा उपर. देवस्थान अने साधुओ उपर. राजशासनना-दीक्षा प्रणालीपर. शृंगेरीमठ शिवाय अन्यत्र संन्यासीओ अने त्यागीओ उपर. साधुओना चरित्र उपर-श्रावकोनो. संसारीओनो-हिंदुधर्मना त्यागीओ उपर.
हिंदुधर्मना गृहस्थोनो-पन्यासी साधु भ्रष्ट थाय तो, आक्षेप
साधुओ उपर, अज्ञान वयना बाळकने नसाडी भगाडो लई जवानो. ४० आचार्य
गच्छमा यतिमंडळ होय छे ते दरेकना उपरी. . वैष्णव संप्रदायमां.
घरबारी. आतुर
छ काथाना जीवोनी रक्षा करवा,
or
r
a
ur
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आधार
आमंत्रण
आरोप
उद्देश
आवश्यकता
उमर
संमति बाबत-ध
उत्तजन
उपयोग
कपडां
कागळ
काम
दीक्षा आपवाने प्रसंगे सगां व्हाला अने स्नेहीओने.
फोसलाववा विगेरेना.
सगीरोने दीक्षा लेवा माटे फोसलाववानो.
उमेदवार
- धर्म बिंदुनो.
कायदो करवानी.
संघनी संमतिनी.
हिंदुओ मिथ्याचारीने आश्रय आपी आपे छे.
संघनी संमतिनो.
संन्यास लेवानो.
आध्यात्मिक अने आधिभौतिक ग्रंथोनो.
दीक्षा लेवानी कमीमां कमी.
दीक्षानो-सोळ वर्षनी उपरांतनो,
चोरी करनार आचार्यनां उतरावी लेत.
भगवा.
७५
काम चलाव
दीक्षानी क्रिया करता अगाउ कुटुंबनी संगतिनो .
शास्त्र विरुद्ध बनतुं होय ते अटकाववानुं जैन संघनं.
प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ नी मंजुरी वगर-नहीं. ( परिशिष्ट ३ )
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परिच्छेद
४४
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३९
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06.
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७६
परिच्छेद पृष्ठ कारणो स्त्री के धणीनी संमतिनां.
७२ १४ क्रिया
आध्यात्मिक-कर्या पछी यतिने लायक उपाध्याय के आचार्थने पदे लेवामां आवे छे. आध्यात्मिक-दीक्षा थया पछी श्वेतांबरोमां करवानी. दीक्षानी. दीक्षानी क्या थाय छे ते. दीक्षानी-तेरापंथीमां. प्रतिक्रमणनी.
साध्वीनी.दीक्षाने प्रसंगे. रूबर
माता पिता भाई स्त्री विगेरेने. खरडो
निबंधनो सुधारेलो.
लाला सुखबीरसिंहनो. खर्च
दीक्षा आपवाने प्रसंगे. खामीओ
दीक्षा आपवामां, खुलासो
विशेष-समिति तरफ आवेली सूचनाओना संबंधमां. गच्छ
मूर्तिपूजक श्वेतांबरोमा तपा, खरतर, पायचंद अने अंचल. ३१
श्वेतांबर अने दिगंबर संप्रदायमां. गण
श्वेतांबर अने दिगंबर संप्रदायमां. गणी
पंन्यास नीचे होवा विषे.
मठधारी के मंदीरवाळा. गेरशीस्त रीतो
दीक्षामां चालती-उघाडी पाडवी.
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परिच्छेद पृष्ठ ग्रंथो
प्रमाण तरीके गणता. चूंटणी
विधि प्रमाणे थई होय तोपण अयोग्य पुरुषने गादीए
बेसाडतां अटकाव. चोकशी
प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ एमणे करवी. (परिशिष्ट ३) . छूट
संन्यास लेवानी-ब्रह्मचारी माटे. सोळ वर्ष सथा ते उपरनी उमरना सखसो माटे.
छपवट
दीक्षा आपवाना काममां. जवाबदारी
भरणपोषणनी. जीवन
धार्मिक-संसारमा रही गाळवा माटे. जैन त्यागी संस्था
वधारे त्यागवाळी अने चढियाती. ठराव
दीक्षा बाबत. धारासभामां. (परिशिष्ट १) धारासभामा रजू थएलो-दीक्षा बाबतनुं नियमन रहेवा माटे. धारासभाना सभासदे रजू करेलो-दीक्षा बाबतनुं नियमन
रहेवा माटे. संघनी समति लेवा संबंधी.
जैन कॉन्फरन्सोना. डोळ
ज्योतीष अने जादू विद्या जाणवानो. तजवीज
साधारण फोजदारी न्यायाधीशे करवानी. ( परिशिष्ट ३) तार
दीक्षाना ठरावनी तरफेण तथा विरुद्धमां.
१
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त्याग
दलील
दिवस
दीक्षा
दाखलो
दावो
दिग्दर्शन
जैन साधु घणो सारो राखे छे ते.
संन्यास दीक्षा लीघेला साधुए सर्व प्रकारनी धन संपत्तिनो
करवो पडे छे.
संसारना भौतिक प्रयासोनो,
कायदो वरवानी तरफेणनी सूचनाओमां. कायदो करवानी विरुद्धनी सूचनाओमां.
दीक्षाना विरोध ओनी.
यंगमेन्स जैन एसोसीएशनना सभ्यो तरफ थी.
चोरींनी दीक्षानो.
दीक्षा लीला जैन सामे खोराकी पोषाक नो.
७८
संन्यास दीक्षा संबंधी शास्त्रथी केवी रीते ठरेलं छे ए विषे. हिंदु, जैन, मुस्लीम तथा इतर धर्ममां संन्यास विषे शी रीते ठरलं छे तेनुं.
एकज- साधुए एक गाममां रहेवुं.
साधुए पांच-एक नगरमा रहेवुं.
कुमळी वयनां बाळकोने.
कोण लई शके.
जैन धर्ममां.
जंबुक स्वामीए यौवनावस्थामा - लोधी हती. तपश्चर्या छे.
परिच्छेद
नसाडी, भगाडी, फोसलावीने आपवा विषे. निरर्थक गणाशे. (परिशिष्ट ३ )
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२६
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अज्ञान सखसने. (परिशिष्ट ३ ) अयोग्य - अपाय छे के ?
लेख कार्यानी खात्री कर्या वगर नहीं आपवा विषे. (परिशिष्ट ३ ) ०
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परिच्छेद निरर्थक होवा विषे. ( परिशिष्ट १ ) माबाप विगेरेनी संमति लीधा वगर. माबाप विगेरेनी संमति लीधा वगर सगीरोने छुपी रीते-अपाय
छे के केम? परीक्षा कर्या वगर. प्रतिमाओनो अभ्यास कर्या पछी. रहस्य न समजे एवा सगीरोने आपवामां आवे छे के केम ? । शास्त्र विरुद्ध-चेला वघारवाना लोभथी. सगीरने नहीं आपवा विषे. (परिशिष्ट १) सगोरोने छुपी रीते अपाय छे. समजवगर. समज वगरनाने. संघने जणाव्या वगर, संमति वगर आपवा करेली तजवीज. संमति वगर-आपी देवानो प्रकार. संसार त्यागनी-परवानगी मेळव्या शिवाय आपी शकाय नहीं.१
स्त्री माबाप विगेरने रडावी ककळावीने. दीक्षानी क्रिया
तेरापंथीमां. देवु
परणेतर बाईन भरणपोषण करवान. धमाल
साधुनी-खिस्ती धर्ममां मुधारो थयो ते पहेला.
साधुनी-प्रोटेस्टंट संप्रदायमांथी नोकळी गई छे, धर्मगुरुओ
खोस्तो धर्ममां-घरबारी होय छे.
लग्न करी घरबारी तरीके रही शके छे तेवा. धर्मांधता
आगळ वधता विचारोमा बाधा नांखनार.
जैन धर्मनी अवनति आणनार. धार्मिक जीवन
संसारमा रही गाळवा माटे.
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धोरणा
नमन
नमूनो
नाम
नाश
नवीन साधु गुरुने - करे छे.
श्रावक श्राविकाओ नवीन साधुने - करे छे.
संन्यास दीक्षा माटेना लेखनो. (परिशिष्ट ३ )
दीक्षा माटे .
कायदानु-संन्यास दीक्षा नियामक निबंध राखवुं, गण, कुळ अने शाखानां.
नापसंदगी
इंडियन चाइल्ड मॅरेज रीस्ट्रेस्ट अॅक्टमां गुन्हार्नु काम चलावा संबंधीना.
गेर रीते वर्तनार साधु प्रत्ये.
निर्वाह
नालायकी
काळे करीने खवाई जता ग्रंथोनो,
दीक्षा माटे
निमणूक
नियम
निवेदन
निषेध
८०
-पुरुषोनी. -स्त्रीओनी.
बैरी छोकरां माटे. साधुओनो-श्रावकोना दानने आधारे.
समिति जे निर्णय उपर आवी छे तेनुं.
धातुना शिक्का राखवानो. नोटो राखवानो.
परिच्छेद
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२५ १२-१३
२५
दीक्षा लेवानी उमेदवाळामां-नही होवा विषेनी खात्री करी लेवी. २८
समितिनी.
सख्त राखवानुं कारण.
साधु साध्वी पाळवाना.
साध्वीओ माटेना वधारे आकरा.
५६
१६
१६
७२
२४
५२
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परिच्छेद
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नोध
देवाळू काढनारनी स्थावर जंगम मिलकतनी. डॅाक्टर भट्टाचार्य पासे जैनधर्म शास्त्रनां फरमान विषे
तैयार करावेली. प्रोफेसर गोविंदलाल भट पासे हिंदुधर्म शास्त्रना फरमान विषे तैयार करावेली.
चारित्रना परिणाम
न्हानी उमरना दीक्षा लेवा आवनारना संबंधा. परीक्षा
एक महिनानी मुदत सुघी.
दीक्षाना उमेदवारनी. पुनरुद्धार __ त्यागनो-हिंदुओमां शंकराचार्य कर्यो,
पुरावो
समति माटे केवो होवो जोईए.
पुस्तको
अयोग्य दीक्षा अपाय छे एवो आक्षेप करनारा.
दीक्षितो मेळववाने अधर्मी आचरण थाय छे एवो आक्षेप करनारा. पंन्यास
उपाध्यायनी नीचे. प्रकार
फकीरोना. संन्यासना-हिंदुधर्ममां. संमतिवगर दीक्षा आपी देवानो.
समिति तरफ आवेली सूचनाओनो. प्रतिक्रमण
धर्मनु अने विधिनुं उल्लंघन थतां-करवू. जैन धर्ममां एक आवश्यक क्रिया,
साधुओने पाप लाग्युं होय त्यारे. प्रतिज्ञा
___ लग्ननी. प्रतिबंध
दीक्षाना काममां-१६ वर्षनी उमर सुधी.
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८२
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६९
परिच्छेद दीक्षानो-१६ वर्षथी कमी उमरना माटे. दीक्षा लेवानो-स्त्री के धणीनी संमति न होय तो
सगीर न होय एवा माणसने दीक्षा माटे. ( परिशिष्ट १) प्रदक्षणा
समवसरणनी. प्रयत्न
साधु संख्या वधारवाने.
साधु संघमाथी दूर करवानो. प्रश्न
दीक्षा लेवाने आवेला पुरुषने पुछवा विषे. प्रायश्चित
धर्मर्नु अने विधिनुं उल्लघंन थतां करवं. फकीर
निर्वाहना साधन माटे. जे ते धर्मना अनुयायीओनी. परणेतर स्त्रो तरफ. बाळलग्ननी अटकायत कायदाथी करवानी,
राज्यनी-समाजने नुकसान थाय तेवी बाबतो अटकाववानी. फळ
कर्मनां. फरियाद
कायदामां ठरावेला गुन्हा बद्दल. खोटी थवानो संभव नथी. दीक्षा विरुद्धना गुन्हानी.
प्रांत फोजदारी न्यायाधीश वर्ग १ तरफ करवी. (परिशिष्ट ३) फेरफार
प्रसिद्ध थएला खरडामां-करवानी आवश्यक्ता.
प्रसिद्ध थयेला खरडामां केवो करवो ते. बाध
फोजदारी निबंध विरुद्धनो गुन्हो बनतो होय तो ते निबंध प्रमाणे फरियाद चालवाने नथी, (परिशिष्ट ३)
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.
बाबतो
*
बंदोबस्त करवानी. निवेदनमा समावेश करेली.
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बाशरा.
बाळदीक्षा
बील
बैठक
बेशरा.
बोध
भगाडे
भावना
अपवादरूप. ना हिमायती.
भट्टारक
भेद
लाला सुखबीर सिंहनं.
कौन्सोल ऑफ स्टेटनी
भरती
भलामणो
मत
कर्मना बंधनमांथी मुक्त थई मोक्ष मेळवावा माटे.
दीक्षा माटे.
समस्त गच्छना उपरी.
साधु लोकोनी.
८३
व्यवहा रु.
परमार्थ करवानी - मुक्ति फोजना पादरीओमां. साधु थवानी - दिन प्रतिदिन कमी थती जाय छे. साधु संस्था प्रत्ये.
जैन साधुनां वस्त्रोमां
श्वेतांबर भने दिगंबरना मंतव्यो अने क्रिया कांडमां
श्वेतांबर अने दिगंबर सामाजिक संप्रदायना बंधारणमां.
जाबालोपनिषदनो
संन्यास क्यारे लई शकाय ते विषे.
हिंदुधर्ममां संन्यास क्यारे लई शकाय ते विषे.
संन्यास लेवाना तत्वज्ञाननुं.
मतभेद
मध्यबिंदु
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परिच्छेद
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परिच्छेद पृष्ठ महत्ता त्यागनी-वैराग्य अने तपोबळ उपर.
३२ १८ मानभक्ति साधु संस्था माटे.
५३ ३८ मुदत
खरडानी विरुद्ध अगर लाभमा हकीकत जाहेर करवा माटे.
तकरारी बाबतोमा विचार करवाना. निर्णय करवाना.
मुसहो
नवो. कायदानो.
सामान्य स्वरुपनो. ( परिशिष्ट १) मोह
संसारनो. यत्ता
अज्ञान वयनी उमरनी. पांत्रीस वर्षनी अंदरनी स्त्रीओने दीक्षा न आपवानी.
सज्ञान वयनी उमरनी. युक्ति
संबंधी वर्ग आज्ञा आपे एवी. रकम
बक्षीस के चाल्लानी-दीक्षा लेनारे धर्मादामां आपवा विषे. रजामंदी
संन्यास दीक्षा माटे. ( परिशिष्ट १) लागणी
संन्यास दीक्षा लेवानी-जैनोमां. लाभ
दीक्षाना-बधा पक्षना जैनोने कबूल. लायकात
दीक्षा आपनार गुरुनी. लायकी
दीक्षा लेवानी उमेदवाळामा होवा विषेनी खात्री करी लेवी. २८ लेख
दीक्षाना-उपर कोनी सही जोईए. ( परिशिष्ट ३ ) दीक्षानो उमेदवार तैयार करे.
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लोप
वखत
वहिव
वासक्षेप
बाळ
वांधो
नीना कायदा प्रमाणे नौधाववो. धाववो जोईए. (परिशिष्ट ३ ) कुमतवाळी नोंधणी कचेरीमां रज करवो.
साधु वर्गनो.
प्रतिमाओ शीखवानो.
संघनी संमति लेवानो.
माथां उपर करवामां आवे छे.
विचारो
विद्वान
विधि
व्यय
दीक्षा लेनार उखेडी नांखे छे.
हिन्दु धर्म समाजो - खरडाने कायदानुं रूप आपवामां
जैन मुनिना - भरण पोषणनी जवाबदारी संबंधी.
विभाग
विरोध
८५
संबंधमां.
त्यागाश्रमनो.
मूर्तिपूजा विरुद्ध.
श्रीमंत सरकारे प्रसिद्ध करेला खरडानो.
सगांनो,
अनुत्पादिक द्रव्यनो.
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बाळ दीक्षितज थड़े शके एम नथी.
दीक्षा लेवा आवेला पुरुषने प्रश्न आचार कथन अने परीक्षा विगेरे करवानो.
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जैन धर्मना.
१९
अयोग्य रीते अपाती दीक्षा सामे.
कन्यानी चौद अने वरनी उमर अढारनी सामे.
जैन शिवाय बीजा कोई धर्मवाळानो -करवा धारेला कायदाना
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व्याख्या
व्रतो
शिक्षा
शाखाओ
अज्ञान (परिशिष्ट ३ ) दीक्षा शब्दनी (परिशिष्ट १ ) aणी कामदार (परिशिष्ट ३ ) सज्ञान (परिशिष्ट ३ )
संन्यास दीक्षा. (परिशिष्ट १ अने ३ )
जैन गृहस्थोए पाळवानां.
जैन साधुए पाळवानां.
सत्ता
पेटा - श्वेतांबरोमां तथा दिगंबरोमां
अज्ञानने आपली दीक्षा माटे.
केदनी. (परिशिष्ट १ )
दंडनी. (परिशिष्ट १ ) दीक्षा आपवाना गुन्हा माटे.
मुसद्दानी कलम ३ विरुद्धना गुन्हा माटे. (परिशिष्ट ३ )
४
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शिथिल
शिथिलता
भो पूज्य
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५.
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सज्ञान सखसे लेख करी आप्या शिवाय लीवेली दीक्षा बद्दल.
चारित्रमां - मंदीरोना वहिवटनी जंजाळमां पडवाथी.
हिंदु साधुओमां.
समस्त गच्छना उपरी.
(परिशिष्ट ३ ) (परिशिष्ट ३ )
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धर्मज्ञ साधुओनी - श्रावकोना धार्मिक जीवन उपर . राजपूतानाना अने गुजरातना साधु संघम श्रावकोने. श्रावक संघनी - साधु संघ उपर. श्रावकोनी - साधु उपर.
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परिच्छेद
३३
श्रावकोनी-संघना उपरी श्रीपूज्य उपर. साधुओनी दीक्षा, शिक्षा अने चारित्र उपर.
साधुओनी-श्रावको उपर. समज
दीक्षानुं महत्त्व समजवा जेवी. सरखामणी
हिंदु अने जैन साधु रचनानी. सवाल
संन्यास दीक्षामा मात्र नसाड्या भगाड्यानो नथी. समारंभ
दीक्षा आपवाने प्रसंगे. साधना
मुक्तिनी.
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.....
साधु
ए एक गाममा एकज दिवस रहेQ. ए एक नगरमां पांच दिवस रहे,. जैन समाज उपर भारे धार्मिक असर करता होय एवा. गुजरातमा. ढोंगी. दिगंबरी जैनना. रामकीओ लईने फरनारा. शैव संप्रदायना. श्वेतांबरोना.
साधारण श्वेत अने संवेगी कपडां राखे छे. साधु जीवन
तेरापंथी. सुधारो
त्यागी संस्थामां.
समाज अने त्यागनी संस्थाओमां. सूचना
कायदाना खरडा उपर. कायदाना लाभमां के तरफेणमां. जैन धर्मना अनुयायी तरफथी. दीक्षा प्रतिबंधक निबंधना खरडाना संबंधमां,
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परिच्छेद
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दीक्षा माटे कायदो करवानी विरुद्धनी अमे तरफेणनी. विरुद्धता के तरफेणनी.
हिंदु, मुस्लीम विगेरे बीजा धर्मना अनुयायीओ तरफथी. सूरिमंत्र
आचार्य थनार यतिना कानमां, संख्या
फकीरोनी-वडोदरा राज्यमां.
बीजाओनी कमाई उपर आजीविका चलावनार साधुओनी. संघ
अव्यवस्थित अने निर्बळ. श्रावक, श्राविका, साधु अने साध्वीनो बनेलो.
श्वेतांबर अने दिगंबर संप्रदायमां. संप्रदाय
जैन धर्मना. योगीओमां. श्वेतांबरी जैन धर्मनो.
स्थानकवासी. संबंध
साधु संघ अने श्रावक संघ वच्चे. संमति
दीक्षा लेतां पहेलां माबाप विगेरेनी. मातापितानी. माबार विगेरेनी आवश्यक. माबाप, स्त्री विगेरे आप्त वनी. माबाप स्त्री विगेरेनी दीक्षा आपतां पहेला. संघनी. सोळ वर्ष उपरनी उमरनाने दीक्षा आपती वखते. सोळ वर्षनी अंदरनाने माटे.
संघनी लेवार्नु आवश्यक. संमेलन
श्रीमंत विजयानंद सूरीश्वरजीना संघाडाना मुनिओनु.
स्थानकवासी श्वेतांबरोना साधुओन. संन्यास
इस्लाम धर्ममां-नथी.
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परिच्छेद
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खिस्ती धर्ममां-नथी. जैन धर्ममां. झोरोस्ट्रीयन धर्ममां-नथी. हिंदु धर्ममा-कोण लई शके.
हिंदु धर्ममां-क्यारे लई शकाय. स्थान
हिंदुस्थानना साधुओमां जैन साधुओर्नु. स्थिति
परणेतर स्त्रीनी. स्वरूप
गुन्हामुं. (परिशिष्ट ३)
दीक्षा आपवाने योग्य गुरुर्नु. हकीकत
कायदो करवानी तरफेणमां तथा विरुद्धमां. प्राथमिक. समितिए जुबानी तरीके पूछी लीधी.
हजूरश्रीनी ध्यानमां भावेली. ( परिशिष्ट १) हक्क
कायदेसर-सगीरना. ( परिशिष्ट १) कुटुंबनी मिलकत उपर.
दीक्षा छोडी देनारनो-मिलकत उपर. हरकत
दीक्षा लेवा मागतो होय तेमां. - हानिकारक
समज वगरना बाळकोने दीक्षा आपवी ते.
हुकम
दिवाननो-दीक्षा प्रतिबंधक निबंधना मुसद्दाना संबंधमा समिति
निमवानो. हेतु
कायदानो. कायदो करवानो. छुपी रीते दीक्षा आपी देवानो.
सरकारनो-संमति वगरनी छूपी रीते अपाती दीक्षा बंध करवानो. ७० हेरानगति
माता पितादिकने निर्वाहना कारण माटे.
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