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साधुओनी श्रावको उपर सत्ता.
३५. जेम श्रावकोनी साधु उपर सत्ता छे तेम साधुओनी श्रावक उपर पण छे. ए संबंधमां प्रोफेसर ग्याझेनाथन। जैन धर्ममां लख्युं छे तेम " धर्मज्ञ साधुओनी सत्ता श्रावकोना धार्मिक जीवन उपर घणी चालती अने हजीए घणी चाले छे. विशाळ जनसमाजना अने सारा धनवानोनां जीवन उपर असर करी होय अने ए जीवनने जैन धर्मनी भावनाने अनुसरता बनाव्यां होय एवां अनेक हितैषी साधुओनां नाम आपणने इतिहासमांथी मळी आवे छे. समस्त जैन समाज उपर भारे धार्मिक असर करता होय एवा साधुओ आजेय छे. तेओ दुःख ने संकटने प्रसंगे श्रात्रकोनी साथे उभा रहे छे, एमने धार्मिक बोध आपे छे अने बीजा धर्मोनी सामे शास्त्रार्थ करवानां साधनो आपी पोताना धर्मनुं रक्षण करे छे; अने एवी रीते चारे बाजुएथी बीजा संप्रदायोनी बच्चे आवेला जैन धर्मने साची राखे छे. हमणांज ( १९२२ मा ) स्वर्गवासी थयेला श्री विजयधर्मसूरि जेवा सुविख्यात साधुओने बचा संप्रदायना जैनो बहू मान आपे छे, एज स्पष्ट रीते देखाडी आपे छे के प्रबळ व्यक्ति केटली भारे असरे करी शके छे. बीजी बाजुएश्री पोतानी धर्मांधताथी अने संघी साथे शत्रुभावे ने संकुचित वृत्तिए वर्ती रोज रोज कलह करावीने हलकी वृत्तिना साधुओ खराब असर करे छे, एवी दार्घदर्शी जैनोनी फरियाद पण छे. तेओ कहे छे के आगळ बघता विचारोमा तेमनी अतिशय धर्मांधता मार्गमां बाधा नांखे छे ने जैन धर्मनी अवनति आणे छे." "
३६. समाज अने त्यागनी
संस्थाओ आपणे तपासीशुं तो मालम पडशे के समये समये सुधारो दाखल थवाने परिणामेज एवी संस्थाओ जीवती रही छे. " एकाद बुद्ध के महावीर, जीसस के महमद, शंकर के दयानंद समये समये जागे छे अने तेओ पोतानी प्रकृति, परिस्थिति अने समज प्रमाणे परापूर्वथी चाल्या आवता अमक अमूक समाजमा सुधारानो प्राण फूंके छे अने ते समाजनुं अने त्यागी संस्थानुं चक्र आगळ चाले छे. वळी वखत जतां ९ तक्ता उपर तेमना अनुगामी तरीके अगर प्रतिस्पर्धी तरीके बीजा पुरुषो आवे छे अने तेओ पण पोतानी दृष्टिए अमुक फेरफार करी एवी संस्थाओना कुंठित चक्रने वेगवालुं अने गतिशील बनावे छे. एटले सुधारो ए दरेक संस्थानुं जीवन टकाववा माटे अनिवार्य छे. २१ विधि निषेध गमे तेटला बताव्या होय तोपण वखत जतां कोईपण धर्मना साधुसंगनी अवनति थया वगर रही नथी. वो समय आवे छे के ज्यारे घणा विधि निषेधो मात्र बहारथीज पळाय छे अने प्राचीन व्यवस्था धीरे धारे अव्यवस्थित थता जाय छे. जेने संसारनो मोह उतरी गयो होय अने मुक्तिती साना सानी हाय तेमणेज साधु वुं जाईए साधु यवानी जेमने अंतरनी प्रबळ प्रेरणा यह न हाय एवा सवनाने दाक्षा अपाय तो तेओ ते दीक्षानुं व्रत
समाजमां अने त्यागी संस्थामां
सुधारानी आवश्यकता.
| जैन धर्मपान ३४०.३४१,
२ पना व्याख्यान व २ जुं (पूर्वार्ध ) पान २,
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