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शके नहीं तेथी श्रावकोए चस्मां जोया त्यारे तेमणे जाहेर कर्यु के संघर्नु शासन तोड्याने कारणे तेने साचो साधु मानी शकाय नहीं. तेवीज रीते तपागच्छनो एक साधु पगे विहार करवाने बदले आगगाडीमां मुशाफरी करतो हतो तेथी जे श्रावको तेना संबंधमां आवता ते एने साघु लेखता नहीं. राजकोटमा एक स्थानकवासी साधुर पोताना गुरूने बचकुं भर्यु हतुं, तेथी तुरतज तेने संघ बहार काढवामां आव्यो हतो.'
३४. श्रावकोनी सत्ता साधारण साधु उपरज चाले छे एम नथी. संघना उपरी श्रावकोनी साधु उपर सत्ता.
. श्रीपूज्य उपर पण चाले छे. अयोग्य पुरूषने गादीए बेसा
डवानी विधि प्रमाणे चटणी थई गई होय तोपण तेमने गादीए बेसतां श्रावकोए अटकाच्या छे, श्रीपूज्य साथे संघने अणबनाव थयो होय अने ते कारणे तेमने संघ बहार कर्या होय एवा प्रसंगो पण पट्टावलीमांयी मळी आवे छे. श्रावकोनी आवा प्रकारनी सत्ता तेमना पोताना संघमां साधारण रीते चाले छे. साधुओना चरित्र उपर श्रावकोनो आटलो अंकुश होवा छतां पण कोई कोई वार तेमना औदासिन्यने अने अज्ञानने लीधे यतिओ साधुव्रत बहु ओछां के नहीं जेवां पाळे छे अने तेमनामां पूरो सांसारिक भाव आवी जाय छे. आवा प्रकारना श्वेतांबर साधुओ मोटे भागे 'गोरजी' कहेवाय छे. तेओ साधुव्रत एवी शिथिलताथी पाळे छे के खरा जैन तेमने साचा साधु मानता नथी. हलकी वर्णना अने अनाथ बाळ कोने तेमनी बाल्यावस्थामा तेओ खरीदी ले छे अने तेमने साधु बनावे छे. तेमनामां बहु संस्कार होता नथी, तेम बहु शास्त्रज्ञान पण होतुं नयी, धर्मना विधि पाळवामां तेओ बहु शिथिल रहे छे अने ते मात्र बाह्याचार तरीके पाळे छे. निरंतर विहार करवाने बदले तेओ एकज स्याने पडी रहे छे, स्वादिष्ट भोजन जमे छे, पथारीमा सूए छे अने प्रसंगोपात ब्रह्मचर्यनो पण दोष करे छे. तेओ द्रव्य स्वीकारे छे अने संघरे छे अने एवो बचाव करवाने शरमाता नथी के महावीरे धातुना शिक्का राखवानो निषेध कर्यो छे पण नोटो राखवानो निषेध को नथी, तेओ मोटी मोटी संस्थाओनी व्यवस्था चलावे छे अने पोतानी पाछळ चेला कर्या होय तेमने सोंपे छे. तेओ साधनवाळा होवाथी नोकरो विगेरे राखी भभकामेर रहे छे अने ज्योतीष अने जादू विद्या पण जाणवानो डोळ करे छे. आथी केटलाक श्रावको तेमनाथी डरे छे अने तेमना आचार विचार साधु योग्य नहीं होवा छतां पण तेमने दान आपे छे. आवा पतित साधुओनी सांसारिक भावनाने दूर करी साधुसंघने सुधारवा १७ मा सैकांमां श्रीमान् यशोविजय नामना मुनिए प्रयत्न करलो अने तेना परिणाम साचो साधुवर्ग अने गोरजी वर्ग ते वखतथी जूदो पड़ी गयो छे. नवा संप्रदायना साधु, अशुद्ध रहेला गोरजी यतिथी जूदा देखावाने माटे ते वखतथी श्वेतने बदले केसरीयां वस्त्रो पहेरे छे अने ते संवेगी कहेवाय छे.
१ जैनधर्म पान ३३८-३४०.
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