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दीक्षा लेवाने कोण लायक छे ए जैन शास्त्रमा विगतबार रीते ठरावेलं छे.' दीक्षा लेवाने योग्य पुरुषनां लक्षण नीचे प्रमाणे ठरावेलां छेः
(१) आर्य देशमा उत्पन्न थयेलो; (२) उच्च जाति अने कुळनाळो; (३) जेना कर्ममल घणे भागे क्षय थयेला छे एवो; (४) निर्मळ बुद्धिवाळो; (५) मनुष्यजन्म दुर्लभ छे, जन्म ए मरणतुं निमित्त छे, संपत्तिओ चपळ
छे, इंद्रियोना विषय दुःखना हेतु रूप छे, संयोगोमां वियोग रहेलो छे, क्षणे क्षणे मरण थयाज करे छे अने कर्मना फल भयंकर छे, ए
प्रमाणे संसारनी असारता जाणवावाळो; (६) अने तेथी संसार तरफ वैरागभाव धारण करनार; (७) ओछा कषायवाळो; (८) थोडा हास्यादि करनारो; (९) कृतज्ञ ( करेला गुणने जाणनार ); (१०) विनयवन्त; (११) दीक्षा लीधा पहेलो पण राजा, प्रधान अने पोताना गामना लोकोमां
प्रतिष्टा पामेलो; (१२) कोईनो द्रोह नहीं करनारो; (१३) कल्याणकारी अंगवाळो ( पांचे इंद्रियो सहित तेमज भव्य मुखाकृति
वाळो ); (१४) श्रद्धावन्त (१५) स्थिरतावाळो ( विध्न आवतां आरंभेलं कार्य मूकी न दे एवो );
(१६) अने आत्मसमर्पण करवा ( दीक्षा लेवा ) गुरुसमीपे आवेलो; ए प्रमाणे सोळ गुणवाळो होय तेने दीक्षा लेवाने योग्य गणेलो छे.
२५. दीक्षा लेनारमा केवा गुण होवा जोईए ए दर्शाववा उपरांत कोने दीक्षा दीक्षा माटे नालायकी.
आपी शकाय नहीं ए पण केटलाक ग्रंथोमां बताव्युं छे,
___के जेथी कोई नालायक पुरुषने दीक्षा अपाई जाय नहीं. आचारदिनकरमा जणाव्युं छे के नीचेना अढार प्रकारना पुरुषोने दीक्षा आपी शकाय नहीं:
(१) बालक-आठ वर्षथी नानो (२) वृद्ध-साठ वर्ष उपरनो ( बीजाना मत प्रमाणे ७० वर्ष उपरनो); १ हरिभद्रसूरिकृत धर्मबिंदु, अध्याय ४, सूत्र ६.
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