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(३) क्लीब (स्त्रीनां अंग जोई कामातुर थाय एवो ); (४) नपुंसक (५) जड ( भाषाजड, शरीरजङ भने करण जड); (६) व्याधित ( भिक्षा वगेरे मागीने जे खाई शक नहीं एत्रो रोगी); (७) स्तेन ( दरेक जातनी चोरी करनार ); (८) राजापकारी (राजाना भंडार, अंत:पुर, शरीर, कुंवर वगेरेनो द्रोह
करनार); (९) उन्मत्त (ममज गुमाववाथी शून्य चित्तवाळो ); (१०) आंधळो; (११) दास (धनधी खरीदायलो, दासीथी उत्पन्न थयेलो, अथवा दुष्काळा
दिकमां द्रव्यवडे खरिदेलो अगर लेणा माटे रोकी राखेलो); (१२) दुष्ट ( कषायथी अने इंद्रिय विलासथी निर्बळ बनी गयेलो); (१३) तीर्थकरोनां नाम पण याद राखी शके नहीं, एवो निर्बुद्ध; (१४) ऋणी (राजा, व्यापारी आज्ञक नोकर-जे दास होय ते); (१५) जुंगित ( वेश्यानो निंदायलो धंधावाळानो विगेरे नीच कुळमां उत्पन्न
थएलो अथवा ब्रह्मघाती विगेरे नीच कर्म करनारो); (१६) अवबद्ध (धन लईने अथवा विद्या आदिक लेवा माटे जेणे अमुक
काम अमुक मुदत माटे माथे लीधां छे अने जेनी दीक्षाथी ए काम
अटकी पडे तेवो); (१७) भृत्य (रोजनो अगर महिनानो पगार ठसवी जे कोई श्रीमन्तने घेर
नोकर रह्यो होय ते ) अने (१८) शिष्य निष्फेटिका (जेने दीक्षा आपा माटे तेना माबापनी के
वालीनी के वडीलोनी समति न होय अने जेने वडीलोनी रजा
चिना चोरी संताडीने आण्यो.होय ).
उपर जे अढार प्रकारना पुरुषोने दीक्षा आपी शकाय नहीं एम जणाव्यु छ तेवाज दोषोवाळी अढार प्रकारनी स्त्रीओने पण दीक्षा आपी शकाय नहीं; अने ते उपरांत
(१९) गर्भवती अने
(२०) धावणा बाळकवाळी स्त्रीने पण आपी शकाय नहीं.' २६. हिंदु अने जैन बंने धर्म प्रमाणे संन्यास दीक्षा लीधेला साधुए सर्व प्रकारनी जैनोमा खरो त्याग.
धन संपत्तिनो त्याग करवो पडे छे अने घणु सार्दु
जीवन गाळवू पडे छे. पण हिंदु साधुओमां ए धोरणमा एटली बधी शिथीलता थई छे के तेमांना घप्पाखरा- घणो वैभव राखे छे अने सुख
- १ आचारदिनकर पान ७४.
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