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प्रमाणे जरूर न होय तोपण तेमना मननुं समाधान करी अर्थात् तेमनुं अनुमोदन लई, संसारत्याग जेवुं आखरनुं पगलुं लेवाने प्राचीन बखतयी शास्त्रमा राखेलुं छे. हिंदुधर्मना अनुयायीओना संबंधां संन्यासोपनिषद्मां तेमनुं “ अनुमोदन " लेवा कहेलुं छे ते जैन धर्मना अनुयायीओना संबंधमां पण कहेलुं छे. उदाहरण तरीके श्रीहरिभद्रसूरिनां १ धर्मबिंदुमां कहेलुं छे के “ तथा गुरुजनाद्यनुज्ञेति " अने तेनी टीकामां श्रीमुनिचंद्रसूरिए कह्युं छे के " गुरुजन " एटले माता पिता विगेरे; अहीं आदि ( विगेरे ) शब्दथी बहेन, स्त्री वगेरे बाकीना संबंधी लोको समजवाना छे. तेमनी अनुज्ञा " एटले ' तुं दीक्षा ले' एवी संमतिरूप आज्ञा समजवानी छे, ज्यारे ए संबधीओ आज्ञा मागतां छतां न आपे तो मूळ ग्रंयमां कहुं छे के संबंचीवर्ग आज्ञा आपे वी युक्ति करवी; अर्थात् तेमने समजावी अनुमोदन लेवुं. एज ग्रंथकारे रवेला अष्ट कमां मातृ पितृ भक्तिना अष्टकमां कहां छे के " दीक्षा सर्व प्राणने हितकारी गणवामां आवेली छे माटे जे दीक्षा माता पिताने उद्वेग करावनारी होय ते न्याययुक्त गणाय नहीं. माटे मातृपितृ तथा स्वजननी अनुमति मेळवीनेज दीक्षा लेवी. " जैनोना परमपूज्य चोवीसमा तीर्थंकर महावीर स्वामीए दीक्षा लेवाथी मातापिताने दुःख थशे एवा भयथी ज्यां सुधी ते जीवता रह्या त्यां सुधी दीक्षा लेवानो एक शब्द पण उच्चार्यो
हतो; अने मातापिताना मरण पछी पोताना भाईनी आज्ञा मागी अने ज्यारे भाईए क के मातापितानो वियोग ताजोज छे ने तेथी हुं दुःखी छं, तो ते दुःखमां तमारा वियोगी उमेरो थरो, माटे हालमां दीक्षा लेवानो विचार मांडी वाळो, त्यारे वडील बंधुनी आज्ञा पाळवाने बीजा वे वर्ष गृहस्थाश्रममा रह्या मोटा पुरुषो जे रस्ते चाले ते प्रमाणे बीजाओ चालवाने दोराय ए हेतुथी महावीर स्वामीए पोताना आचारथी लोकोने दृष्टांत आप्युं हतुं के, मातापिता तथा स्वजननी अनुमतियो दीक्षा लेवी, अनुमति लेवाना संबंधमां समाजनो विचार एटलो मजबूत हतो के, महावीर स्वामी पछी सुमारे छ सेंकडा पछी थयेला आर्यरक्षित नामना २२ वर्षना युवकने तोषलीपुत्र नामना मुनिए दीक्षा आपी हती तेमां तेनी मातुश्रीनी संमति हती पण तेना पितानी संमति लीवी न होती अने बापने तथा नगरना राजा, नागरिको विगेरेने खबर न पडे एटला माटे कंई दूर लई जई दीक्षा आपवामां आवी हती; एटला उपरथी ए दीक्षाने " शिष्य निष्फेटिका " एटले असंमत अथवा चोरीनी दीक्षा कहेवामां आवी हती. एवी " चोरीनी ” दीक्षानो आ पहेलवहेलो दाखलो हतो. आर्यरक्षित २२ वर्षेनो तरुण उमरना हता अने चार वेद अने चौद विद्या भणी उतर्या पछी गुरुकुळमांथी घेर आव्या त्यारे तेमना मानमां तेमना गामना राजाए अने प्रजाए तेमने हाथी पर बेसाडी मोटो वरघोडो काढयो हतो. आटलं छतां पण तेमनी मातुश्रीने पूर्ण संतोष यो नहीं. राजमान अने प्रजा मान मेळवी पंडित आर्यरक्षित ज्यारे पोताना माताजीना पगे पड्या त्यारे तेमणे तेमने एत्रो उपदेश कर्यो के तारे हजी " दृष्टिवाद " नुं अध्य१ धर्मबिंदु अध्याय ४, सत्र २५.
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