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शिराय बीजा प्रश्न पण पूछवाना छे' अने जो ते उपरथी खात्री थाय के दीक्षानो उमेदवार दीक्षानुं महत्व समजीने दीक्षा लेवा आव्यो छे तो पछी तेने दीक्षा आपवी. परीक्षा करवानो वखत सामान्य रीते ६ मासनो कह्यो छे पण पात्रनी योग्यता होय तो तेथी थोडा वखतमां पण दीक्षा आपी शकाय छे अने उमेदवारने वधारे ज्ञान आपवानी तथा तेनी वधारे कसोटी करवानी जरूर जणाय तो तेथी वधारे वखतपण लई शकाय छे. २९. दीक्षा आपवाने प्रसंगे लग्नना जेवो समारंभ करवामां आवे छे; शुभ
मुहूर्त जोवामां आवे छे अने सगांव्हालां अने स्नेहीओने जैन दीक्षानी क्रिया.
रुबरु कही अथवा कंकोत्री मोकली आमंत्रण करवामां आवे छे. जे खर्च करवानो होय ते जो स्थिति सारी होय तो दीक्षा लेनार के तेनां सगां संबंधी करे ठे, अने तेम करवान बनवा जेवू न होय तो बीजा श्रावको फाळो करीने खर्च करे छे. श्रावको तथा श्राविकाओ सारां कपडा पहेरी भेगां थाय छे अने दीक्षा लेनारने तेना बापने घेरथी पालखी के घोडा उपर बेसाडीने वाजते गाजते वरघोडो काढी दीक्षानी क्रिया थवानी होय ते जग्योए लई जाय छे. त्यां आचार्य अने बीजा साधु वाट जोता बेठा होय छे. नगर बहार वाडी, शेलडोनो वाढ अथवा आसो. पालव के बीजा कोई पवित्र वृक्ष नीचे के गुरुना स्थानकना चोकमां ए क्रिया थाय छे. त्यां मंडप बांधेलो होय छे अने तेमां वेदी रचेली होय छे. भेगा थयेला श्रावक श्राविकानी मेदनी समक्ष त्यां जैन प्रतिमानी पूजा अने पछी प्रदक्षणा करवामां आवे छेस्तोत्रो गावामां आवे छे अने मंत्रो भणवामां आवे छे. त्यार पछी दीक्षा लेनार पोताने बक्षीस के चाल्ला तरिके मळेली रकम पोतानी मरजी प्रमाणे धर्मादामां आपी दे छे, अने पोतानां वस्त्रोनो अने आभूषणोनो त्याग करी साधुना वस्त्र पहेरे छे. त्यार पळी ते पोते पोताना वाळ उखेडी नखे छे. अथवा आ दावजनक क्रिया गरु के बीजा पासे करावे छे. त्यार पछी मंत्रो अने सूत्रो भणीने सामायिक चारित्र पाळवार्नु व्रत ले छे अने नवं नाम धारण करे छे. स्थानकवासी साधुओनां नाम घणे भागे तेमनां पूर्वावस्थानां नामने मळतां राखे छे. त्यार पछी माथां उपर गसक्षेप करवामां आवे छे. पछी समवसरणनी प्रदक्षिणा करीने ते नवीन साधु गुरुने अने बीजा साधुओने नमन करे ळे अने श्रावक श्राविकाओ ए नवीन साधुने नमन करे छे. साध्वीनी दीक्षाने प्रसंगे जे क्रिया थाय छे ते उपर बताव्या प्रमाणेनी साधुने दीक्षा आपवानी क्रियाने मळती होय छे. तेरापंथीमां दीक्षा लेनारनो भाई के बीजो नजीकनो सगो दीक्षा लेनारनी पाछळ उभो रहे ळे अने दीक्षानी क्रिया करता अगाउ दीक्षा लेवा विषे कुटुंबनी संमतिनो लखेलो एक कागळ आचार्थने आपे छे अने ते मळ्या पछीज आचार्य दीक्षानी क्रिया करे छे.२ ।।
१ हरिभद्रसूरि कृत धर्मबिंदु: अध्याय ४, सूत्र २४. पंचवस्तु सूत्र पान ७. २ जैन धर्म, पान ४३४ थी ४३५.
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