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प्रकरणमां कडं छे के मनुष्य चारित्र्यवान होय तोज त्यागरूप दीक्षानो अधिकारी कही शकाय; मारी परिषदा संपूर्ण थशे, पाणी विगेरे लावत्रा माटे चेलो काम आवशे, इत्यादि आलोक संबंधी कार्यनी इच्छाओथी रहितपणे मात्र शिष्यना कल्याणनी खातर अने कर्मनी निर्जरा माटेज दीक्षा आपवी जोईए. वळी बीजे एक ठेकाणे कयुं छे के पहेलां शिष्यपणु कर्या शिवाय अर्थात् गुरूकुलवास, शास्त्राभ्यास विगेरे कर्या शिवाय आचार्यपणा माटे उतावळो थयेलो आचार्य पदवी मेळवीने मत्त हाथीनी पेठे निरंकुश फरे छे. शिष्यो पण भाचार्यपद लेवा माटे उतावळा थाय छे अने आचार्यों पण जलदी आचार्यपद आपया मेहेरबान थाय छे तेथी अल्पशिक्षित आचार्य-पिशाचोथी लोक भराई जाय छे. आ बधां वचनो तथा उद्गारो एज देखाडे छे के समजवगरना बाळकोने दीक्षा आपवी ए सर्वरीते हानिकारक छे अने तेथी ते बंध थवी ए इष्ट छे.
६५. बाळदीक्षाना केटलाक हिमायती तरफथी एवं कहेवामां आवे छे के,
. बाळपणमां दीक्षा आपत्रामा न आवे तो साधु विद्वान बाळदीक्षितज विद्वान थई
न थइ थाय नहीं; पण बाळपणमां दीक्षा लीधेला पैकी भाग्येज शके एम काई नथी.
कोई श्री शंकराचार्य के श्री हेमचंद्रसूरि जेवा विद्वान थया होय छे, तेमना जेवू ज्ञान थोडानेज थाय छे. जैन धर्म प्रमाणेना चोथा आरामां अतिमुक्तक जेवा कोईक शिवाय बाळदीक्षाना दाखला बनेला नथा. पांचमा आरामां जंबुक स्वामीए यौवन अवस्थामां दीक्षा लीधी हती. स्वयंभव, भद्रबाहु, स्थूलभद्र, सिद्धसेन, हरिभद्र ए विगेरेए पण यौवनावस्थामां दीक्षा लीधी हती. वर्तमान काळमां थयेला मोटा मोटा वैज्ञानिको, दार्शनिको अने नैयायिकोए कई बाळदीक्षा लीधी नहोती. श्री बुद्धिसागरजीए के जेमना नामनुं वडोदर। राज्यमां अने ते बहार जैनो एक मोटा मुनि तरीके स्मरण करे छे अने जे थोडांन वर्ष उपर देवलोक पाम्या हता ते जातना पाटीदार हता अने १६ वर्षनी उमर पहेला दीक्षित थया न हता. हिंदमां अने हिंद बहार जर्मनी, फ्रान्स विगेरे पाश्चिमात्य देशोमां महाविद्वान जैन आचार्य तरीके जाणीता थयेला, काशी जेवा हिन्दु धर्मना किल्लामा प्रवेश करी जैन भाव तरफ ब्रह्मभाव प्रेरावनार, हिन्दु पंडितोने हाथे शास्त्रविशारद जैनाचार्य, पद मेळवनार अने बारेक वर्ष उपर देवलोक थयेला श्री विजयधर्मसूरि जे मूळमां भावनगर ताबाना महुवाना वाणीया हता अने दीक्षा लेतां पहेलो घणुं थोडु भणेला हता, तेमणे १९ वर्षनी उमरे दीक्षा लीधी हती. पोते १९ वर्षना छतां दीक्षा लेवा मावापनी संमति मेळव्या वगर भावनगर गया हता, त्यारे तूर्त दीक्षा न आपी देतां तेमना गुरुए तेमने माबापनी संमति लेवा घेर पाछा मोकल्या हता. एम छतां पण ते भारे विद्वान षड्शास्त्रवेत्ता अने शास्त्रनुं अहर्निश चिंतन करी तेनी उन्नति करनार थया हता. जैनोमां
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